उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी...पर वैसा पागलपन, वैसी शिद्दत, वैसी बेकरारी...वो जो मेरे अन्दर एक लड़की जी उठी थी जाने कैसे तुम्हारे प्यार की एक छुअन से...वो लड़की जो जाने कितने पर्दों में मैंने छुपा के रखी थी तुमने उसकी आँखों में आँखें डाल बस एक बार कहा की तुम उससे प्यार करते हो और वो तुम्हारी हो गयी थी...मन को जितना बाँधा मन उतना ही भागता गया तुम्हारे पीछे...पर तुम कोई पास तो थे नहीं...तो दौड़ते दौड़ते लड़की के कोमल पांवों में छाले पड़ गए...उसका दुपट्टा कंटीली झाड़ियों में लग के तार तार हो गया...अँधेरे में तुम्हें तलाशने के लिए उसने एक दिया जलाया तो सही पर उसकी आंच से उसकी आँखों के सारे आंसू भाप हो गए...मैंने उस लड़की को वैसे नहीं रचा था...उसे तुमने रचा था.
जो लोग कहते हैं की रो लेने से आराम मिलता है झूठ कहते हैं...कुछ नहीं होता रोने से अगर रोने से तुम उठ के आंसू पोछने नहीं आते हो...आराम रोने से नहीं, उसके बाद तुम्हारी बांहों में होने से होता है...पर जाने दो...तुम नहीं समझोगे...ये कहते हुए लड़की रोज खुद को समझाती थी और दिन भर फर्श पर लेटी जाने क्या सोचती रहती थी...उसे खुद को समझाना आता भी नहीं था. शाम होते तुम्हारी याद के काले बादल घिरते थे और उसका कमरा सील जाता था...तुम्हारा नाम उसकी विंड चाइम पुकारती थी, हलके से. बस...बाकी लड़की ने सख्त हिदायत दे रखी थी की तुम्हारा कोई नाम न ले.
लड़की को यूँ तो धूप बहुत पसंद थी...पर तुम तो जानते ही हो...धूप में अगर गीले कपड़े डाल दो तो उनका रंग उतर जाता है...वैसे ही कमरे में धूप आती थी तो लड़की की आँखों का रंग उड़ा कर ले जाती थी. हर रोज़ एक शेड उतरता जाता था उसकी आँखों का...वो थी भी ऐसी पागल कि धूप की ओर पीठ नहीं फेरती, आँखें खोले खिड़की के बाहर देखती रहती जहाँ इकलौता अमलतास वसंत के आने पर उसका हाथ पकड़ बुलाना चाहता था. अमलतास ने कितना चाहा उसके फूलों का कुछ रंग ही सही लड़की की आँखों में बचा रहे मगर ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों में लड़की की आँखों में कोई रंग नहीं बचा...शायद तुम उसे देखो तो पहचान भी न पाओ.
लड़की नर्म मिटटी सी हो गयी थी...बारिश के बाद जिसमें धान की रोपनी होती है...मगर पिछले कुछ दिनों में बारिश और कड़ी धूप आती जाती रही तो लड़की किले की दीवार सी अभेद्य हो गयी. सिर्फ कठोर ही नहीं हुयी वो...वैसा होता तो फिर भी कुछ उपाय था...लड़की के अन्दर जो हर खूबसूरत चीज़ को जीवन देने की क्षमता थी वो ख़त्म हो गयी और उसकी प्रकृति बदल गयी...पहले उसे हर चीज़ को सकेरना आता था, सहेजना आता था...अब उसे बस आत्मरक्षा समझ आती है...सिर्फ इंस्टिंक्ट बची है उसमें...जो बाकी भावनाएं थी...अब नहीं रहीं...परत दर परत वो जो खुलती थी तो नए रंग उभरते थे...अब बस एक फीका, बदरंग सा लाल रंग है...उम्र के थपेड़ों से चोट खाया हुआ.
लड़की का पागलपन कर्ण के कवच कुंडल की तरह था...वो उनके साथ ही पैदा हुयी थी...हमेशा से वैसी थी...उसे किसी और तरह होना नहीं आता था. मगर उसे ये नहीं मालूम था कि ऐसा पागलपन उसके खुद के लिए ऐसा घातक होगा कि आत्मा भी चोटिल हो जाये. लड़की खुद भी नहीं जानती थी कि वो अपनाप को कितना दुःख पहुंचा सकती है...उसे कहाँ मालूम था कि प्यार ऐसे भी आता है जिंदगी में...दर्द में जलना...जलना जलना...ऐसी आग जिसका कहीं कोई इलाज नहीं था...ये ताप उसका खुद का था...ये दावानल उसके अन्दर उठा था...वहां आग बुझाने कोई जा नहीं सकता था...तुम भी नहीं, तुम तो उसका कन्धा छूते ही झुलस जाते...और वो पगली ये जानती थी, इसलिए तुम्हें उसने बुलाया भी नहीं.
ओ रे इश्क माफ़ कर हमको...उम्र हुयी...अब तेरी उष्णता नहीं सही जाती...रहम कर इस बेदिल मौसम पर...पूरे मोहल्ले में वसंत आया है और मेरा महबूब बहुत दूर देश में रहता है. वो जो लड़की थी, वो कोई और थी...बहुत रो कर गयी है दुनिया से...और हम...मर कर दुबारा जिए हैं...और कुछ भी मांग लो...पर वैसा प्यार हमसे फिर तो न होगा. अबकी बार अंतिम विदा...अब जाके आना न होगा.

लड़की अब भी तुमसे बहुत प्यार करती है...बस पागलपन कम हो गया है उसका...दुनिया की निगाह से देखो तो लगेगा ठीक ही तो है...ऐसा पागलपन जिससे उसे दुःख हो...कम हो गया तो अच्छी बात है न...पर जानते हो...मुझसे भी पूछोगे न तो वही कहूँगी जो तुम्हारा दिल कहता है...मैं भी उस लड़की से बहुत प्यार करती थी जो तुमसे पागलों की तरह प्यार करती थी.
जो लोग कहते हैं की रो लेने से आराम मिलता है झूठ कहते हैं...कुछ नहीं होता रोने से अगर रोने से तुम उठ के आंसू पोछने नहीं आते हो...आराम रोने से नहीं, उसके बाद तुम्हारी बांहों में होने से होता है...पर जाने दो...तुम नहीं समझोगे...ये कहते हुए लड़की रोज खुद को समझाती थी और दिन भर फर्श पर लेटी जाने क्या सोचती रहती थी...उसे खुद को समझाना आता भी नहीं था. शाम होते तुम्हारी याद के काले बादल घिरते थे और उसका कमरा सील जाता था...तुम्हारा नाम उसकी विंड चाइम पुकारती थी, हलके से. बस...बाकी लड़की ने सख्त हिदायत दे रखी थी की तुम्हारा कोई नाम न ले.
लड़की को यूँ तो धूप बहुत पसंद थी...पर तुम तो जानते ही हो...धूप में अगर गीले कपड़े डाल दो तो उनका रंग उतर जाता है...वैसे ही कमरे में धूप आती थी तो लड़की की आँखों का रंग उड़ा कर ले जाती थी. हर रोज़ एक शेड उतरता जाता था उसकी आँखों का...वो थी भी ऐसी पागल कि धूप की ओर पीठ नहीं फेरती, आँखें खोले खिड़की के बाहर देखती रहती जहाँ इकलौता अमलतास वसंत के आने पर उसका हाथ पकड़ बुलाना चाहता था. अमलतास ने कितना चाहा उसके फूलों का कुछ रंग ही सही लड़की की आँखों में बचा रहे मगर ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों में लड़की की आँखों में कोई रंग नहीं बचा...शायद तुम उसे देखो तो पहचान भी न पाओ.
लड़की नर्म मिटटी सी हो गयी थी...बारिश के बाद जिसमें धान की रोपनी होती है...मगर पिछले कुछ दिनों में बारिश और कड़ी धूप आती जाती रही तो लड़की किले की दीवार सी अभेद्य हो गयी. सिर्फ कठोर ही नहीं हुयी वो...वैसा होता तो फिर भी कुछ उपाय था...लड़की के अन्दर जो हर खूबसूरत चीज़ को जीवन देने की क्षमता थी वो ख़त्म हो गयी और उसकी प्रकृति बदल गयी...पहले उसे हर चीज़ को सकेरना आता था, सहेजना आता था...अब उसे बस आत्मरक्षा समझ आती है...सिर्फ इंस्टिंक्ट बची है उसमें...जो बाकी भावनाएं थी...अब नहीं रहीं...परत दर परत वो जो खुलती थी तो नए रंग उभरते थे...अब बस एक फीका, बदरंग सा लाल रंग है...उम्र के थपेड़ों से चोट खाया हुआ.
लड़की का पागलपन कर्ण के कवच कुंडल की तरह था...वो उनके साथ ही पैदा हुयी थी...हमेशा से वैसी थी...उसे किसी और तरह होना नहीं आता था. मगर उसे ये नहीं मालूम था कि ऐसा पागलपन उसके खुद के लिए ऐसा घातक होगा कि आत्मा भी चोटिल हो जाये. लड़की खुद भी नहीं जानती थी कि वो अपनाप को कितना दुःख पहुंचा सकती है...उसे कहाँ मालूम था कि प्यार ऐसे भी आता है जिंदगी में...दर्द में जलना...जलना जलना...ऐसी आग जिसका कहीं कोई इलाज नहीं था...ये ताप उसका खुद का था...ये दावानल उसके अन्दर उठा था...वहां आग बुझाने कोई जा नहीं सकता था...तुम भी नहीं, तुम तो उसका कन्धा छूते ही झुलस जाते...और वो पगली ये जानती थी, इसलिए तुम्हें उसने बुलाया भी नहीं.
ओ रे इश्क माफ़ कर हमको...उम्र हुयी...अब तेरी उष्णता नहीं सही जाती...रहम कर इस बेदिल मौसम पर...पूरे मोहल्ले में वसंत आया है और मेरा महबूब बहुत दूर देश में रहता है. वो जो लड़की थी, वो कोई और थी...बहुत रो कर गयी है दुनिया से...और हम...मर कर दुबारा जिए हैं...और कुछ भी मांग लो...पर वैसा प्यार हमसे फिर तो न होगा. अबकी बार अंतिम विदा...अब जाके आना न होगा.
लड़की अब भी तुमसे बहुत प्यार करती है...बस पागलपन कम हो गया है उसका...दुनिया की निगाह से देखो तो लगेगा ठीक ही तो है...ऐसा पागलपन जिससे उसे दुःख हो...कम हो गया तो अच्छी बात है न...पर जानते हो...मुझसे भी पूछोगे न तो वही कहूँगी जो तुम्हारा दिल कहता है...मैं भी उस लड़की से बहुत प्यार करती थी जो तुमसे पागलों की तरह प्यार करती थी.