जान,
अच्छा हुआ जो कल तुम्हारे पास वक़्त कम था...वरना दर्द के उस समंदर से हमें कौन उबार पाता...मैं अपने साथ तुम्हारी सांसें भी दाँव पर लगा के हार जाती...फिर हम कैसे जीते...कैसे?
बहुत गहरा भंवर था समंदर में उस जगह...पाँव टिकाने को नाव का निचला तल भी नहीं था...डेक पर थोड़ी सी जगह मिली थी जहाँ उस भयंकर तूफ़ान में हिचकोले खाती हुयी कश्ती पर खड़ी मैं खुद को डूबते देख रही थी. कहीं कोई पतवार नहीं...निकलने का कोई रास्ता नहीं...ऐसे में तुम उगते सूरज की तरह थोड़ी देर आसमान में उभरे तो मेरी बुझती आँखों में थोड़ी सी धूप भर गयी...उतनी काफी है...वाकई.
अथाह...अनन्त...जलराशि...ये मेरे मन का समंदर है, इसके बस कुछेक किनारे हैं जहाँ लोगों को जाने की इज़ाज़त है मगर तुम ऐसे जिद्दी हो कि तुम्हें मना करती हूँ तब भी गहरे पानी में उतरते चले जाते हो...कितना भी समझाती हूँ कि उधर के पानी का पता नहीं चलता, पल छिछला, पल गहरा है...और तुम...तुम्हें तो तैरना भी नहीं आता...जाने क्या सोच के समंदर के पास आये थे...क्या ये कि प्यास लगी है...उफ़ मेरी जान, क्या तुम्हें पता नहीं है कि खारे पानी से प्यास नहीं बुझती?
मेरी जान, तुम बेक़रार न हो...मैंने कल खुदा की दूकान में अपनी आँखों की चमक के बदले तुम्हारे जिंदगी भर का सुकून खरीद लिया है...यूँ तो सुकून की कोई कीमत नहीं हो सकती...कहीं खरीदने को नहीं मिलता है...पर वैसे ही, आँखों की चमक भी भला किस बाज़ार में बिकी है आजतक...उसमें भी मेरी आँखें...उस जौहरी से पूछो जिसने मेरी आँखों के हीरे दीखे थे...कि कितने बेशकीमती थे...बिलकुल हीरे के चारों पैमाने पर सबसे बेहतरीन थे 'The four Cs ', कट, कलर, क्लैरिटी और कैरट...बिलकुल परफेक्ट डायमंड...५८ फेसेट्स वाले...जिसमें किसी भी एंगल से लाईट गिरे वापस रेफ्लेक्ट हो जाती थी...एकदम पारदर्शी...शुद्ध...उनमें आंसू भर की भी मिलावट नहीं थी...और कैरट...उस फ़रिश्ते से पूछे जिसने मेरी आँखों से ये हीरे निकाले...खुदा के बाज़ार में ऐसा कोई तराजू नहीं था कि जो तौल सके कि कितने कैरट के हैं हीरे. सुना है मेरी आँखों की चमक के अनगिन हिस्से कर दिए गए हैं...दुनिया के किसी हिस्से में ख़ुशी कम होती है तो एक हिस्सा वहां भेज दिया जाता है...आजकल खुदा को इफरात में फुर्सत है.
मेरी आँखें थोड़ी सूनी लगेंगी अब...पर तुम चिंता मत करना...मैं तुमसे मिलने कभी नहीं आ रही...और जहाँ ख़ुशी नहीं होती वहां गम हो ऐसा जरूरी तो नहीं. तुम जिस जमीन से गुज़रते हो वहां रोशन उजालों का एक कारवां चलता है...मैं उन्ही उजालों को अपनी आँखों में भर लूंगी...जिंदगी उतनी अँधेरी भी नहीं है...तुम्हारे होते हुए...और जो हुयी तो मुझे अंधेरों का काजल बना डब्बे में बंद करना आता है.
कल का तूफ़ान बड़ा बेरहम था मेरी जान, मेरी सारी सिगरेटें भीग गयीं थी...माचिस भी सील गयी...और दर्द के बरसते बादल पल ठहरने को नहीं आते थे...मेरी व्हिस्की में इतना पानी मिल गया था कि नशा ही नहीं हो रहा था वरना कुछ तो करार मिलता...तुम भी न...पूछते हो कि मैंने पी रखी है...उफ़ मेरे मासूम से दिलबर...तुम क्या जानो कि किस कदर पी रखी है मैंने...किस बेतरह इश्क करती हूँ तुमसे. खुदा तुम्हें सलामती बक्शे...तुम्हारे दिन सोने की तरह उजले हों...तुम्हारी रातों को महताब रोशन रहे, तारे अपनी नर्म छाँव में तुम्हारे ख्वाबों को दुलराएँ.
मैं...मेरी जान...इस बार मुझे इस इश्क में बर्बाद हो जाने दो...टूट जाने दो...बिखर जाने दो...मत समेटो मुझे अपनी बांहों में कि इस दर्द, इस तन्हाई को जीने दो मुझे...ये दर्द मुझे पल पल...पल के भी सारे पल तुम्हारी याद दिलाता है...मेरी जान, ये दर्द बहुत अजीज़ है मुझे.

जान, अच्छा हुआ जो तुम्हारे पास वक़्त कम था...उस लम्हा मौत मेरा हाथ थामे हुयी थी...तुम जो ठहर जाते मैं तुमसे दूर जैसे जा पाती...तुम तो जानते हो न, मुझे तुमसे बिछड़ना नहीं आता?
दुआएं,
वही...तुम्हारी.
अच्छा हुआ जो कल तुम्हारे पास वक़्त कम था...वरना दर्द के उस समंदर से हमें कौन उबार पाता...मैं अपने साथ तुम्हारी सांसें भी दाँव पर लगा के हार जाती...फिर हम कैसे जीते...कैसे?
बहुत गहरा भंवर था समंदर में उस जगह...पाँव टिकाने को नाव का निचला तल भी नहीं था...डेक पर थोड़ी सी जगह मिली थी जहाँ उस भयंकर तूफ़ान में हिचकोले खाती हुयी कश्ती पर खड़ी मैं खुद को डूबते देख रही थी. कहीं कोई पतवार नहीं...निकलने का कोई रास्ता नहीं...ऐसे में तुम उगते सूरज की तरह थोड़ी देर आसमान में उभरे तो मेरी बुझती आँखों में थोड़ी सी धूप भर गयी...उतनी काफी है...वाकई.
अथाह...अनन्त...जलराशि...ये मेरे मन का समंदर है, इसके बस कुछेक किनारे हैं जहाँ लोगों को जाने की इज़ाज़त है मगर तुम ऐसे जिद्दी हो कि तुम्हें मना करती हूँ तब भी गहरे पानी में उतरते चले जाते हो...कितना भी समझाती हूँ कि उधर के पानी का पता नहीं चलता, पल छिछला, पल गहरा है...और तुम...तुम्हें तो तैरना भी नहीं आता...जाने क्या सोच के समंदर के पास आये थे...क्या ये कि प्यास लगी है...उफ़ मेरी जान, क्या तुम्हें पता नहीं है कि खारे पानी से प्यास नहीं बुझती?
मेरी जान, तुम बेक़रार न हो...मैंने कल खुदा की दूकान में अपनी आँखों की चमक के बदले तुम्हारे जिंदगी भर का सुकून खरीद लिया है...यूँ तो सुकून की कोई कीमत नहीं हो सकती...कहीं खरीदने को नहीं मिलता है...पर वैसे ही, आँखों की चमक भी भला किस बाज़ार में बिकी है आजतक...उसमें भी मेरी आँखें...उस जौहरी से पूछो जिसने मेरी आँखों के हीरे दीखे थे...कि कितने बेशकीमती थे...बिलकुल हीरे के चारों पैमाने पर सबसे बेहतरीन थे 'The four Cs ', कट, कलर, क्लैरिटी और कैरट...बिलकुल परफेक्ट डायमंड...५८ फेसेट्स वाले...जिसमें किसी भी एंगल से लाईट गिरे वापस रेफ्लेक्ट हो जाती थी...एकदम पारदर्शी...शुद्ध...उनमें आंसू भर की भी मिलावट नहीं थी...और कैरट...उस फ़रिश्ते से पूछे जिसने मेरी आँखों से ये हीरे निकाले...खुदा के बाज़ार में ऐसा कोई तराजू नहीं था कि जो तौल सके कि कितने कैरट के हैं हीरे. सुना है मेरी आँखों की चमक के अनगिन हिस्से कर दिए गए हैं...दुनिया के किसी हिस्से में ख़ुशी कम होती है तो एक हिस्सा वहां भेज दिया जाता है...आजकल खुदा को इफरात में फुर्सत है.
मेरी आँखें थोड़ी सूनी लगेंगी अब...पर तुम चिंता मत करना...मैं तुमसे मिलने कभी नहीं आ रही...और जहाँ ख़ुशी नहीं होती वहां गम हो ऐसा जरूरी तो नहीं. तुम जिस जमीन से गुज़रते हो वहां रोशन उजालों का एक कारवां चलता है...मैं उन्ही उजालों को अपनी आँखों में भर लूंगी...जिंदगी उतनी अँधेरी भी नहीं है...तुम्हारे होते हुए...और जो हुयी तो मुझे अंधेरों का काजल बना डब्बे में बंद करना आता है.
कल का तूफ़ान बड़ा बेरहम था मेरी जान, मेरी सारी सिगरेटें भीग गयीं थी...माचिस भी सील गयी...और दर्द के बरसते बादल पल ठहरने को नहीं आते थे...मेरी व्हिस्की में इतना पानी मिल गया था कि नशा ही नहीं हो रहा था वरना कुछ तो करार मिलता...तुम भी न...पूछते हो कि मैंने पी रखी है...उफ़ मेरे मासूम से दिलबर...तुम क्या जानो कि किस कदर पी रखी है मैंने...किस बेतरह इश्क करती हूँ तुमसे. खुदा तुम्हें सलामती बक्शे...तुम्हारे दिन सोने की तरह उजले हों...तुम्हारी रातों को महताब रोशन रहे, तारे अपनी नर्म छाँव में तुम्हारे ख्वाबों को दुलराएँ.
मैं...मेरी जान...इस बार मुझे इस इश्क में बर्बाद हो जाने दो...टूट जाने दो...बिखर जाने दो...मत समेटो मुझे अपनी बांहों में कि इस दर्द, इस तन्हाई को जीने दो मुझे...ये दर्द मुझे पल पल...पल के भी सारे पल तुम्हारी याद दिलाता है...मेरी जान, ये दर्द बहुत अजीज़ है मुझे.

जान, अच्छा हुआ जो तुम्हारे पास वक़्त कम था...उस लम्हा मौत मेरा हाथ थामे हुयी थी...तुम जो ठहर जाते मैं तुमसे दूर जैसे जा पाती...तुम तो जानते हो न, मुझे तुमसे बिछड़ना नहीं आता?
दुआएं,
वही...तुम्हारी.






