हम अनंत के पीछे क्यूँ भागते हैं...भूत और भविष्य की कितनी अनिश्चितताएं हैं उसमें. बीते हुए कालखंड में से कौन सा लम्हा हमारे पीछे अभिमंत्रित सा हर अनुष्ठान में मौजूद रहेगा मालूम नहीं. वर्त्तमान जीते हुए हम कहाँ जान पाते हैं कि इसमें से कौन सा लम्हा यादों के लिए सहेजा जाएगा और कौन भूलने की अंतहीन गलियों में विलुप्त हो जाएगा. वर्तमान को जीते हुए भी हम कहाँ जानते हैं कि हमारा अतीत कैसा होने वाला है...फिर हम यादों को इतने करीने से लगाने के लिए इतने जतन क्यूँ करते हैं. आप कितना भी अच्छा कैटालोग कर लो, ये जानना नामुमकिन ही है कि जब बीते ज़ख्म उधेड़े जायेंगे तो दर्द कहाँ से उभरेगा.
याद की शक्ल कभी पहचानी नहीं होती...किस लम्हे में किसकी याद आये इसका भी कोई गणितीय फ़ॉर्मूला नहीं है...तो फिर क्यूँ मैं तुमसे जुड़ी रहना चाहती हों...हिचकियों से, शाम के रंग से, हर्फों से या कि एकदम ही सच कहूँ तो मन से...मेरा मन तुमसे इतने लम्बे अंतराल का बंधन क्यूँ मांगता है.
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तुम उन दरवाजों को क्यूँ खटखटाती हो जिसमें बाहर से ताला लगा हो...तुम्हें दिख रहा है कि वहां कोई नहीं है, वहां कभी कोई नहीं आएगा...वहाँ से वो जा चुका है फिर भी नहीं मानती...प्यार की मासूमियत के दिन ढल चुके हैं री लड़की पर तुमसे कौन प्यार करेगा कि तुम्हें तो खेलना भी नहीं आता...कितना भी तुम्हें इस खेल के नियम बता दूं तुम हमेशा भूल जाती हो और गलत इंसान से प्यार कर बैठती हो. मगर ओ काली आँखों वाली लड़की सच बताओ क्या तुमने खामोश रातों में बैठ कर वाकई कभी नहीं सोचा है कि शायद तुम ही गलत लड़की हो. तुम वो हो ही नहीं जिससे किसी को भी प्यार हो!
तुझे किसी ने बताया नहीं कि देवताओं के प्रेम निवेदन हमेशा अस्वीकृत कर देने चाहिए? तुझे क्यूँ लगता है कि किसी को तुझसे प्यार होगा...रूप की क्या कमी है स्वर्ग में...रम्भा, मेनका, उर्वशी...एक से एक अप्सराएं हैं...उन्हें नृत्य भी आता है और संगीत विधा भी. स्त्री के सारे गुण उनमें हैं...न वे कभी बूढी होयेंगी, न कभी उनका आकर्षण कम होगा...जो देवता ऐसी अप्सराओं के साथ रहते हैं उन्हें धरती की एक क्षणभंगुर नारी से क्यूँकर प्रेम होगा! ये आकर्षण है...जो उनके पास नहीं है उसका क्षणिक आकर्षण मात्र...तू इसमें अजर, अमर प्रेम की तलाश क्यूँ कर रही है.
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रात रात जागना...दिन दिन परेशां रहना...ये तो होना ही था...तुम्हें क्या लगता था इश्क बड़ी खूबसूरत चीज़ है...अब देखो...अब जियो...की सांस अटकी हुयी है न...अच्छा लगा अब? और किसी से कहोगी की टूट कर प्यार करो...
याद की शक्ल कभी पहचानी नहीं होती...किस लम्हे में किसकी याद आये इसका भी कोई गणितीय फ़ॉर्मूला नहीं है...तो फिर क्यूँ मैं तुमसे जुड़ी रहना चाहती हों...हिचकियों से, शाम के रंग से, हर्फों से या कि एकदम ही सच कहूँ तो मन से...मेरा मन तुमसे इतने लम्बे अंतराल का बंधन क्यूँ मांगता है.
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तुझे किसी ने बताया नहीं कि देवताओं के प्रेम निवेदन हमेशा अस्वीकृत कर देने चाहिए? तुझे क्यूँ लगता है कि किसी को तुझसे प्यार होगा...रूप की क्या कमी है स्वर्ग में...रम्भा, मेनका, उर्वशी...एक से एक अप्सराएं हैं...उन्हें नृत्य भी आता है और संगीत विधा भी. स्त्री के सारे गुण उनमें हैं...न वे कभी बूढी होयेंगी, न कभी उनका आकर्षण कम होगा...जो देवता ऐसी अप्सराओं के साथ रहते हैं उन्हें धरती की एक क्षणभंगुर नारी से क्यूँकर प्रेम होगा! ये आकर्षण है...जो उनके पास नहीं है उसका क्षणिक आकर्षण मात्र...तू इसमें अजर, अमर प्रेम की तलाश क्यूँ कर रही है.
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रात रात जागना...दिन दिन परेशां रहना...ये तो होना ही था...तुम्हें क्या लगता था इश्क बड़ी खूबसूरत चीज़ है...अब देखो...अब जियो...की सांस अटकी हुयी है न...अच्छा लगा अब? और किसी से कहोगी की टूट कर प्यार करो...