06 October, 2008

या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेन संस्थिता

दुर्गापूजा की आज सप्तमी है। पिछले साल इसी समय माँ के साथ पूरा पूरा दुर्गासप्सती पढ़े थे, शाम सुबह आरती किए थे।

इस बार...
पहली पूजा से ही दुर्गा माँ से नाराज़ हूँ, जो भगवान के सामने हाथ जोड़ दो अगरबत्ती दिखाती थी वो भी बंद कर रखा है। इतने दिन न पूजा की न सांझ दी, पूजाघर में जाना भी नहीं चाहती। शंख ला के रखा है, लिया तो यही सोच के था की दुर्गापूजा में बजाउंगी, पर छुआ तक नहीं है।

ये नाराजगी उनसे है या अपनेआप से मालूम नहीं। पर ऐसी अजीब घटनाओं के लिए तो मन इश्वर को ही जिम्मेदार मानता है, उन्ही से गुस्सा होता है। फ़िर लगता है की जाऊं तो जाऊं कहाँ, जब माँ नहीं है तो दुर्गा माँ ही से सारी बातें कह लूँ। त्यौहार के दिन कितना कुछ होता था, रोज पूजा, आरती और प्रसाद...कितनी तरह की सब्जी खास तौर से अष्टमी के दिन बनती थी। खाने का स्वाद अलोकिक होता था, माँ कहती थी त्यौहार के वक्त भगवान को भोग लगता है न, इसलिए खाने में इतना स्वाद आता है।

हर तरफ़ देखती हूँ, दोस्तों की मम्मी कभी उनके लिए कुछ बना के भेज रही है, कभी उनके बीमार पड़ जाने पर कितने नुस्खे बता रही है, कभी कपड़े भेज रही है। और हर त्यौहार पर सब घर जाने की बात कर रहे हैं। मैं कहाँ जाऊं, मेरा कोई घर नहीं, मुझे कोई नहीं बुलाता।
मुझे त्यौहार अच्छे नहीं लगते.

11 comments:

  1. Chaliye achchha hai aapne apni narajgi durga maa par to jataai par ham jaise log kya karen?

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  2. अपने भीतर की दुनिया में खो जाइए।निजि अनुभव है।

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  3. जब भी जीवन में इस तरह की गहन उदासी उतरती है , कुछ अलौकिक अनुभव मिलने शुरू होते हैं ! इतनी गहन उदासी
    मौन में ही सम्भव है , भले कारण कुछ भी हों , अगर सही में ऐसा है तो इसका उपयोग करे ! उदासी और प्रशन्नता एक
    ही सिक्के के दो पहलू हैं ! और मौन सत्य है !

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  4. sabhi ko koi na koi anubhav se zindagi mein gujarna padata hai,narazgi jatadi aapne durga maa se bahut achha kiya,dil ki baatein keh deni chahiye,festival achhe nahi lagte na sahi,festival par kuch aisa kigie jo aapko achha lagta ho karne mein.

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  5. ताऊ सही कह रहे हैं..नव रात्री की शुभकामनाऐं.

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  6. मैं ज्यादा तो नही जनता आपके बारे में और न ही आपकी उदासी की वजह ही, जो समझ पाया हूँ वो यह की आप घर को याद कर रही हैं, पर यह तो एक फेज़ है जो समय के साथ साथ चला जाता है, शायद हर किसी को कभी न कभी इस तरह के वक्त से दो चार होना पढता है. मुसुकुराते रहिये और हाँ दोस्त बनते रहिये.

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  7. पूजा जी.. सारा चिटठा जगत आपका परिवार है. इतना निराश और परेशान मत होइए. माँ की कमी तो खलना लाज़मी है..और त्योहारों पर तो और ज्यादा. लेकिन इसी का नाम जीवन है. सब को सब कुछ नहीं मिलता. बहरहाल.. माँ दुर्गा तो सबके कष्ट हरती है...आपके जीवन में भी खुशियाँ भर देगी...बस अपनी सोच को सकरात्मक रखिये.

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  8. ऐसा करो फ़ौरन बाहर निकलो.....ओर एक टिकट लेकर दिल्ली का फ़ौरन प्लेन में बैठ जायो.....इतना क्यों सोचती हो यार ....चलो चलो....

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  9. मैं कहाँ जाऊं, मेरा कोई घर नहीं, मुझे कोई नहीं बुलाता।

    अपने अंतस में उतर जावो ! हंसो, खिल खिलावो ! जो सत्य है उसको स्वीकार लो उसी रूप में ! बस परेशानी दूर ! शुभकामनाएं !

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  10. जो सत्य है उसको स्वीकार लो.शुभकामनाएं

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  11. Try to look beyond the horizon.. introspect but don't punish yourself for not being with the loved ones.

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