17 October, 2008

हमसे रूठा न करो...

रूठ कर नहीं जाते हैं घर से

सुबह सुबह

तुम्हारे साथ चली जाती है

घर से हवा

दम घुटने लगता है

अपने ही घर में

खामोश हो जाती है

डाल पर बैठी गौरैया

मुरझा जाते हैं

रजनीगंधा के सारे फूल


गले में अटक जाता है

रोटी का पहला कौर

ख़त्म हो जाता है

घर का सारा राशन पानी

कीलें उग आती हैं

सारे फर्श पर

बारिश होने लगती है

कमरे के अन्दर

आरामकुर्सी पर पसर जाता है

कब्रिस्तान का वीराना

एक दिन ही होती है

इंतज़ार की उम्र

शाम होते होते

रूठ जाती हैं साँसे.

16 comments:

  1. उदासी ...........उदासी .........उदासी...............!

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  2. कुछ ख्याल गुम सुम से होते है.. एक उम्दा रचना.. लाजवाब

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  3. गम का तराना बन गया अच्छा . बधाई .

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  4. क्या खूब अंदाज-ए-बयां है

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  5. बहुत खूब ......
    लगता है गुस्‍से में लि‍खी गई कवि‍ता है।
    हा हा हा हा

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  6. वाह...उदासी....अकेलापन और...कसक को बहुत खूबसूरत ढंग से बयां करती कविता.....शब्द और भाव दोनों सधे हुए...बधाई.....

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  7. क्या कहूँ ?
    आँखों देखा भी झूँठ हो सकता है !
    पर दिल के देखे को
    झून्ठलाऊ कैसे ?

    शुभकामनाएं !

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  8. उम्दा रचना पेश की है आपने, बधाई स्वीकरें।

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  9. एक अच्छी रचना। पर उदास कर गई।

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  10. आपकी कवि‍ता का स्‍वर मुझे मेरी पत्‍नी की मनोदशा की याद दि‍ला गई- जब मैं उससे नाराज-सा होकर घर से नि‍कला था। ऐसा कई बार हो जाता है, पर सुबह का भूला शाम को घर लौटकर सुलह कर लेता था( वैसे शाम तक रूका नहीं जाता था, फोन पर ही सुलह हो जाती थी)।

    जब कवि‍ता दूसरे की जिंदगी को स्‍पर्श कर ले, तो समझि‍ए लि‍खना सार्थक हो गया।

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  11. भाव ऐसे कि बस डूब से गये,,इस समुंदर में.

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  12. रूठ कर नहीं जाते हैं घर से

    सुबह सुबह

    तुम्हारे साथ चली जाती है

    घर से हवा

    दम घुटने लगता है

    अपने ही घर में


    खामोश हो जाती है

    डाल पर बैठी गौरैया

    मुरझा जाते हैं

    रजनीगंधा के सारे फूल


    गले में अटक जाता है

    रोटी का पहला कौर

    ख़त्म हो जाता है

    घर का सारा राशन पानी

    कीलें उग आती हैं

    सारे फर्श पर

    बारिश होने लगती है

    कमरे के अन्दर

    आरामकुर्सी पर पसर जाता है

    कब्रिस्तान का वीराना


    एक दिन ही होती है

    इंतज़ार की उम्र


    शाम होते होते

    रूठ जाती हैं साँसे.



    ek hi saans mein padh gaya main, itni adbhut, itni vishal, itni gehri bhavnayen. kai baar padh chuka hoon isey ab tak. wah. adhbut.

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  13. दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""

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  14. atyant sparshiy kavita.

    bahut khoob!

    ज़रूर पढिये,इक अपील!
    मुसलमान जज्बाती होना छोडें
    http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html

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