रूठ कर नहीं जाते हैं घर से
सुबह सुबह
तुम्हारे साथ चली जाती है
घर से हवा
दम घुटने लगता है
अपने ही घर में
खामोश हो जाती है
डाल पर बैठी गौरैया
मुरझा जाते हैं
रजनीगंधा के सारे फूल
गले में अटक जाता है
रोटी का पहला कौर
ख़त्म हो जाता है
घर का सारा राशन पानी
कीलें उग आती हैं
सारे फर्श पर
बारिश होने लगती है
कमरे के अन्दर
आरामकुर्सी पर पसर जाता है
कब्रिस्तान का वीराना
एक दिन ही होती है
इंतज़ार की उम्र
शाम होते होते
रूठ जाती हैं साँसे.
उदासी ...........उदासी .........उदासी...............!
ReplyDeleteकुछ ख्याल गुम सुम से होते है.. एक उम्दा रचना.. लाजवाब
ReplyDeleteगम का तराना बन गया अच्छा . बधाई .
ReplyDeleteक्या खूब अंदाज-ए-बयां है
ReplyDeleteबहुत खूब ......
ReplyDeleteलगता है गुस्से में लिखी गई कविता है।
हा हा हा हा
वाह...उदासी....अकेलापन और...कसक को बहुत खूबसूरत ढंग से बयां करती कविता.....शब्द और भाव दोनों सधे हुए...बधाई.....
ReplyDeleteक्या कहूँ ?
ReplyDeleteआँखों देखा भी झूँठ हो सकता है !
पर दिल के देखे को
झून्ठलाऊ कैसे ?
शुभकामनाएं !
bahut khub
ReplyDeleteउम्दा रचना पेश की है आपने, बधाई स्वीकरें।
ReplyDeleteएक अच्छी रचना। पर उदास कर गई।
ReplyDeleteआपकी कविता का स्वर मुझे मेरी पत्नी की मनोदशा की याद दिला गई- जब मैं उससे नाराज-सा होकर घर से निकला था। ऐसा कई बार हो जाता है, पर सुबह का भूला शाम को घर लौटकर सुलह कर लेता था( वैसे शाम तक रूका नहीं जाता था, फोन पर ही सुलह हो जाती थी)।
ReplyDeleteजब कविता दूसरे की जिंदगी को स्पर्श कर ले, तो समझिए लिखना सार्थक हो गया।
बहुत बढ़िया है.
ReplyDeleteभाव ऐसे कि बस डूब से गये,,इस समुंदर में.
ReplyDeleteरूठ कर नहीं जाते हैं घर से
ReplyDeleteसुबह सुबह
तुम्हारे साथ चली जाती है
घर से हवा
दम घुटने लगता है
अपने ही घर में
खामोश हो जाती है
डाल पर बैठी गौरैया
मुरझा जाते हैं
रजनीगंधा के सारे फूल
गले में अटक जाता है
रोटी का पहला कौर
ख़त्म हो जाता है
घर का सारा राशन पानी
कीलें उग आती हैं
सारे फर्श पर
बारिश होने लगती है
कमरे के अन्दर
आरामकुर्सी पर पसर जाता है
कब्रिस्तान का वीराना
एक दिन ही होती है
इंतज़ार की उम्र
शाम होते होते
रूठ जाती हैं साँसे.
ek hi saans mein padh gaya main, itni adbhut, itni vishal, itni gehri bhavnayen. kai baar padh chuka hoon isey ab tak. wah. adhbut.
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ ""
ReplyDeleteatyant sparshiy kavita.
ReplyDeletebahut khoob!
ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html