हमसे पूछो तन्हाई की कैसी संगत होती है
हमने अक्सर दीवारों को अपना हाल सुनाया है
गली गली सन्नाटे घूमें कैसी दिवाली कैसी ईद
संगीनों को कहाँ पता कौन अपना कौन पराया है
सहमा सहमा दिन होता है और दहशत में जाती रात
पुलिस ने उसके बेटे को कल घर में घुस के उठाया है
आपस में ही लड़ जाएँ तो रोकेगा आतंकी कौन
हममें से ही कुछ लोगो ने नफरत का बीज लगाया है
बचपन में तो पढ़ा अमन का पाठ सभी ने साथ साथ
क्यों आखिर इस उम्र मेंआकर सारा प्यार भुलाया है
आग लगी है अपने वतन में कैसी बुझे बतलाओ कोई
गाँधी जैसा कोई मसीहा कहाँ अभी तक आया है
बनकर एक आवाज उठाना होगा हमको नींद से अब
जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
अर्थपूर्ण कविता। शानदार पंक्तियां-
ReplyDeleteगली गली सन्नाटे घूमें कैसी दिवाली कैसी ईद
संगीनों को कहाँ पता कौन अपना कौन पराया है
सहमा सहमा दिन होता है और दहशत में जाती रात
ReplyDeleteपुलिस ने उसके बेटे को कल घर में घुस के उठाया है
यथार्थ से परिचय कराती आपकी ये रचना बहोत खूब है ... सुंदर रचना के लिए ढेरो बधाई साथ में दीवाली की भी...
अर्श
जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
ReplyDeleteशानदार लेखन लेकिन जनता को जगाने के लिये भी अब लिखना होगा क्योंकि शायद जनता को भी आदत पड़ गई सोते रहने की.
हमसे पूछो तन्हाई की कैसी संगत होती है
ReplyDeleteहमने अक्सर दीवारों को अपना हाल सुनाया है
गली गली सन्नाटे घूमें कैसी दिवाली कैसी ईद
संगीनों को कहाँ पता कौन अपना कौन पराया है
क्या बात है. बहुत बढ़िया है ....
बनकर एक आवाज उठाना होगा हमको नींद से अब
ReplyDeleteजब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
बहुत बढिया और सटीक रचना ! जागना ही होगा ! शुभकामनाएं !
आग लगी है अपने वतन में कैसी बुझे बतलाओ कोई
ReplyDeleteगाँधी जैसा कोई मसीहा कहाँ अभी तक आया है
बनकर एक आवाज उठाना होगा हमको नींद से अब
जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है क्या बात है. बहुत बढ़िया है ....
आज के परिवेश के अनुरूप सार्थक काव्य है!
ReplyDeleteउम्मीद जिलाए रखना भी जरूरी है-
ReplyDeleteजब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
बहुत अच्छा िलखा है आपने ।
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteसहमा सहमा दिन होता है और दहशत में जाती रात
ReplyDeleteपुलिस ने उसके बेटे को कल घर में घुस के उठाया है
पता नही क्यों जगजीत सिंह की गजल याद आ गई ,लगा जैसे उसे सुनते सुनते आपने लिखा हो......आपका ये अंदाज भी अच्छा लगा
i hope this inqlaab comes real soon.. it´s long overdue! very emphatic lines indeed! thanks puja for your comment on my blog...otherwise i generally get only criticism for what i write there...keep visiting.
ReplyDeletedid u change your image here?
cheers
जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
ReplyDeleteसत्य वचन!
हमसे पूछो तन्हाई की कैसी संगत होती है
ReplyDeleteहमने अक्सर दीवारों को अपना हाल सुनाया है
yeh lines to bilkul mere liye likhi gayi hai :-)