Towards PSR |
प्लेन के रनवे पर चलते ही दिल में बारिशें शुरू हो गयीं थीं...हलके से एक हाथ सीने पर रखे हुए मैं उसे समझाने की कोशिश कर रही थी कि इस बार जल्दी आउंगी...इतने दिन नहीं अलग रहूंगी इस शहर से...मगर दिल ऐसा भरा भरा सा था कि कुछ समझने को तैयार ही नहीं था...जैसे ही प्लेन टेकऑफ़ हुआ दिल में बड़ी सी जगह खाली हो गयी...आंसू ढुलक कर उस जगह को भरने की कोशिश कर रहे थे. अनुपम को बताया तो पूछता है कि प्लेन पर रो रही थी, किसी ने कुछ बोला नहीं...ये कोई ट्रेन का स्लीपर कम्पार्टमेंट थोड़े था कि आंटी लोग आ जायेंगी गले लगा लेंगे कि बेटा कोई नहीं...फिर से आ जाना दिल्ली...ऐसे नहीं रोते हैं...कोई पानी बढ़ा देगी पीने के लिए...कोई पीठ सहलाने लगेगी और सब चुप करा देंगी मुझे. प्लेन में बगल में एक फिरंगी बैठा था...मैं जी भर के रोई और फिर आँखें पोछ कर पानी पिया...चोकलेट खाई और डायरी निकल कर कुछ लिखने लगी...इस बीच कुछ कई बार अनुपम का और स्मृति का डायरी में लिखा हुआ पढ़ लिया...मुस्कुराना थोड़ा आसान लगा.
मुझे कोई खबर नहीं कि मैं रोई क्यूँ...ख़ुशी से दिल भर आया था...सारी यादें ऐसी थीं कि दिल में उजली रौशनी उतर जाए...एक एक याद इतनी बार रिप्ले हो रही थी कि लगता था कि याद की कैसेट घिस जायेगी...लोग धुंधले पड़ जायेंगे, स्पर्श बिसर जाएगा...पर फिलहाल तो सब इतना ताज़ा धुला था कि दिल पर हाथ रखती थी तो लगता था हाथ बढ़ा कर छू सकती हूँ याद को.
इतना प्यार...ओह इतना प्यार...मैं जाने कहाँ खोयी हुयी थी...मैं वापस से पहले वाली लड़की हो गयी...बिलकुल पागल...एकदम बेफिक्र और धूप से भरी हुयी...मेरी आँखें देखी तुमने...ये इतने सालों में ऐसे नहीं चमकती थीं. अपने लोगों से मिलना...मिलते रहना बेहद जरूरी है...क्यूंकि जानते हो...ईमेल के शब्द बिसर जायेंगे...फोन पर सुनी आवाज़ खो जायेगी...मगर भरे मेट्रो स्टेशन पर उसने जो भींच के गले से लगाया था ना...वो कहीं नहीं जाएगा अहसास...स्मृति...सॉरी यार...क्या करूँ मुझे लोगों की परवाह करना नहीं आता...अब तेरे गले लगने के पहले भी सोचती तो मैं तुझसे मिलती ही न...मुझे तेरे चेहरे पर का वो शरमाया सा अहसास याद आता है...वाकई हम कॉलेज में मिले होते तो एकदम दोस्त नहीं होते...तू देखती है न...मेरी कोई दोस्त है ही नहीं कॉलेज के टाइम की.
Smriti&Me |
I know, I know... झल्ली लग रही हूँ :) |
रात की बस थी जयपुर के लिए...पर जयपुर गए नहीं उस रात...उसे कैंसिल करा के सुबह आठ बजे की बस की...जयपुर का रास्ता दोनों तरफ सरसों के खेतों से भरा हुआ था...बस में एकदम आगे वाली सीट थी...कुणाल को फिट करने के लिए आगे की सीट ली थी...मैं तो किसी भी जगह अट जाती हूँ. खैर...बड़ा खूबसूरत रास्ता था...दोनों तरफ पहाड़...सरसों के खेत...जाने क्या क्या...आधी नींद आधे जगे हुए में देखा...कभी ख्वाब लगता तो कुछ और दोस्त भी ख्वाबों में टहलते हुए चले आते...तब उन्हें sms कर देती...देखो कहे देती हूँ जिसको जिसको sms किया है...इसी कारण किया होगा :)
जयपुर करीब तीन बजे पहुंचे...अंकन...जिसकी शादी का रिसेप्शन अटेंड करने हम गए थे...हमें खुद रिसीव करने आया :) हम VIP गेस्ट जो थे. रात की कोकटेल पार्टी का हाल दूसरी पोस्ट में :)
इति दिल्ली कथा..
ReplyDeleteअभी तो शुरू हुयी है :) अभी तो चैपटर्स आने बाकी हैं :)
ReplyDeleteहाँ सच्ची ....एकदम झल्ली लग रही हो ........जैसे हमारे यहाँ बस्तर में रेशम की इल्ली .............कभी देखी है भला ? शायद नहीं .....रेशम का मोथ न तो देवघर में है न दिल्ली में और न बेंगुलुरु में ......ठीक है, अगली बार अपने ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा ..तब देखना ......
ReplyDeleteफिर क्या हुआ जयपुर में .........? हवा महल पर चढ़कर ऊपर उड़ीं कि नहीं .......या शादी की पार्टी में ही व्यस्त रहीं ?
दिल्ली के आपके प्रेम को समझ सकता हूँ, मेरे ख़्याल से आपने बहुत पहले भी एक बार दिल्ली के बार में लिखा था तक़रीबन दो एक साल पहले ! खैर वो बात भी सही है, अगले अंक का इंतज़ार करूँगा !
ReplyDeleteअर्श्
लिखिए लिखिए और चैप्टर्स...मुझे भी लिखनी है बैंगलोर के चैप्टर्स :P
ReplyDeleteमजा आया ये पोस्ट पढ़ के....कितना ज्यादा प्यार करती हैं आप दिल्ली से ये तो आराम से पता चलता है :):)
अच्छी लगी. चेपटर्स का इंतज़ार भी कर लेंगे.
ReplyDeletewaiting for next chapters :) :) :)
ReplyDeleteleave and live both moment or feelngs are very toching so only tears can express them .may it ruled on that
ReplyDeletemoment nice journey waiting next one.
कुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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ReplyDeleteमेरी प्यारी-सी और पूरी दुनिया से निराली पूजा: तेरे साथ चलना बड़ा सुकून देने वाला अनुभव था...बचपन के दिन याद आ गए जब हम स्कूल में ऐसे ही हाथ पकड़े घूमा करते थे...
ReplyDeleteमेरे पास टाइम-मशीन होती तो मैं तेरे जाने के बाद भी अनगिनत बार उन लम्हों को जी आती... miss u :(
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 28/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट पूजा जी |
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को पढ़कर एक अनोखा अनुभव हुआ. इतने अनौपचारिक ढंग से, अपनी बात, अनुभूति को शब्द देना आत्मविश्वास से आता है. खैर, विश्लेषण की बजाय यह कहना ही पर्याप्त रहेगा, नया अनुभव.
ReplyDeleteजे एन य़ू के पी एस आर का जिक्र यादों में ले गया.. उसी के आस पास जिंदगी का लम्बा हिस्सा बीत निकला जो है.