आप १४० पर हड़बड़ में नहीं पहुँच सकते.
मैं गाड़ी की स्पीड की बात कर रही हूँ...१४० किलोमीटर प्रति घंटा.
ऐसा नहीं होगा कि आप एक्सीलेरेटर को पूरा नीचे तक दबा दिए तो गाड़ी उड़ती हुयी १४० टच कर जायेगी.
ऐसा हो भी सकता है. पर वो कारें दूसरी तरह की होती हैं. मैं एक नोर्मल कार की बात कर रही हूँ...जैसे कि मेरे पास है. स्कोडा फाबिया. एक साधारण, मिड-लेवल कार...ये कारें हमारे पागलपन के लिए नहीं, हमारी सुरक्षा के लिए बनी हैं.
कोई क्यूँ चलाना चाहेगा कार को १४० की स्पीड पर...जैसा कि मैं खुद से कहती हूँ...१४० मजाक नहीं होता. ८० पर गाड़ी चलाना तेज रफ़्तार माना जाता है. १०० पर चलाने पर अगर कुछ लोग गाड़ी की बैक सीट में हैं तो मुमकिन है कि एक आध बार टोक दें...गाड़ी थोड़ा धीरे चलाओ प्लीज. १२० की स्पीड हाइवे पर गाड़ी को ओवर टेक करने के लिए अक्सर जरूरी होती है. बहुत मूड हुआ तो १२५ और महज छूने की खातिर कि कैसा लगता है १३० पर चलाना कई बार लोग स्पीडोमीटर पर ध्यान देते हुए स्पीड बढ़ा भी सकते हैं. एक बार फिर सुई १३० टच कर जाए तो वापस लौट आते हैं. कभी हुआ है कि भीड़ में कोई शख्स आगे जा रहा है और कौतुहल इतना बढ़ जाए कि आपको तेज कदम बढ़ा कर उसका चेहरा देखना हो...वैसा ही कुछ.
१४० पर चलाने के पहले के हालात और १४० के दरमयान क्या चलता है दिमाग में? जी...दिमाग कमबख्त १४० पर भी सोचना बंद नहीं करता...इस स्पीड में भी पैरलल ट्रैक चलाता है. वैसे अगर आपने चला रखी है गाड़ी तो फिर पढ़ने का सेन्स नहीं बनता कि आप जानते हैं कि कैसा लगता है...मगर फिर भी, हर अनुभव दूसरे से अलग होता है कि हर इंसान के सोचने समझने और रिएक्ट करने के तरीके अलग होते हैं. उसमें भी मैं तो जाने किस मिट्टी से बन के आई हूँ.
इतने भाषण के बाद क्रोनोलोजिकल आर्डर में बात करती हूँ. भोर का पहला पहर था...चार बज रहे होंगे...एकदम सन्नाटा. फिर कोई दस मिनट के आसपास चिड़िया पार्टी हल्ला करना शुरू की. मेरे घर के पीछे एक बहुत बड़ा सा पेड़ है...वही सबका अड्डा है. अँधेरा अपने सबसे सान्द्र फॉर्म में था...यू नो...सूरज उगने के पहले सबसे ज्यादा अँधेरा होता है...वही वक्त. मेरा मन थोड़ा छटपट कर रहा था...या फिर कह सकते हैं कि कहीं भाग जाने का मन कर रहा था...बहुत लंबी सड़क पर
बैंगलोर से बाहर जाने के सारे रास्ते मुझे मालूम है...वैसे अब तो आईफोन में जीपीएस है पर उसके पहले भी साधारण नक़्शे को मैं ही पढ़ती थी और हम घूमने जाते थे...इसलिए शहर का अच्छे से आइडिया है. सारे रास्तों में मुझे सबसे मायावी लगता है हाइवे नंबर ७ जो बहुत से घुमावदार शहरों से होकर कन्याकुमारी जाता है. मुख्यतः दो या तीन रास्ते हैं लेकिन जिनपर ड्राइव करने जाया जा सकता है. घर से निकलते ही सोचना पड़ता है किधर जाएँ...एक रास्ता है ओल्ड मद्रास रोड...जो हाइवे नंबर ४ है...चेन्नई जाता है. पोंडिचेरी जाने के लिए भी इस रास्ते को लिया जा सकता है. एक रास्ता है एयरपोर्ट होते हुए...जिसपर आगे चलते जायें तो हैदराबाद पहुँच जायेंगे. कोरमंगला होते हुए भी एक रास्ता बाहर को जाता है...जिसका सबसे बड़ा आकर्षण है १० किलोमीटर लंबा चार लेन का फ्लाईओवर...इसमें कोई खास मोड़ भी नहीं हैं...एकदम सीधी सड़क है. एयरपोर्ट के रस्ते में अच्छा ये था कि वहाँ मेरी पसंद की कॉफी मिलती है...मगर चार बजे सुबह एयरपोर्ट का रास्ता काफी बिजी रहता है. नाईस रोड भी ले सकती थी पर उधर के रास्ते जाने के लिए थोड़ा मैप ज्यादा देखना पड़ता...तो फिर सोचा कि इलेक्ट्रोनिक सिटी फ्लाईओवर के तरफ निकलते हैं आसानी से पहुँच जायेंगे और भीड़ कम रहेगी.
मैं कार बहुत हिसाब से चलाती हूँ...इतने साल में अब अच्छी ड्राइवर का खिताब मिल चुका है. काफी कण्ट्रोल में और नियमों के हिसाब से चलाती हूँ. अक्सर शांत रहती हूँ गाड़ी चलाते हुए...कार के शीशे उतार के चलाती हूँ...एसी चलाना पसंद नहीं है. सुबह इनर रिंग रोड...कोई ट्रैफिक नहीं था...सिल्क बोर्ड होते हुए आगे और फ्लाईओवर सामने. मेरे फोन में एक प्लेलिस्ट है 'लव मी डू'...बीटल्स के एक ट्रैक के नाम पर. इसमें मेरे सारे सबसे पसंद के गाने हैं...ऐसे गाने जिनसे मैं कभी बोर नहीं हो सकती. क्लासिक. सुबह यही प्लेलिस्ट चल रही थी. हवा में हलकी सी ठंढ थी, जैसे दूर कहीं बारिशें हुयी हों...आसमान में एक तरफ सलेटी रंग के बादल दिखने लगे थे...भोर की उजास फ़ैल रही थी.
फ्लाईओवर स्वप्न सरीखा है...स्विटजरलैंड की सड़कें याद आ गयीं. एकदम सीधी बिछी हुयी सड़क...शहर के कोलाहल से ऊपर...ऐसा लगता है किसी और दुनिया में जी रहे हैं...जहाँ न शोर है, न लोग हैं, न कोई ट्रैफिक सिग्नल. किसी से गहरे प्यार में होना इस फ्लाईओवर के अलावा की दुनिया है...और किसी से अचानक औचक प्यार हो जाना ये फ्लाईओवर...भले ही मुश्किल से दस मिनट का सफ़र होगा...मगर कभी न भूल जाने वाला अनुभव. मिस्टर ऐंड मिसेज अइयर देखते हुए नहीं सोचा था पर रिट्रोस्पेक्ट में हमेशा सोचती हूँ...प्यार की उम्र हमेशा कम ही होती है...और जब कम होती है तो हम बिना किसी रिजर्वेशन के जीते हैं...फिर हमारे पास लौट के जाने को कुछ नहीं होता है...तो दस मिनट से कम के लिए ही सही पर हम पूरी शिद्दत से वो होते हैं वो हम हैं...वो जीते हैं जो हम जीना चाहते हैं. लिविंग ऑन द एज जैसा कुछ.
फ्लाईओवर पर स्पीड लिमिट ८० है. कच्ची उम्र का डायलोग. रिश्ते की लिमिट काँधे तक है. उसके नीचे छू नहीं सकते. सोच नहीं सकते. उसके होटों का स्वाद कैसा है. मैं जब पागल होती हूँ तो १५ की उम्र में क्यूँ लौटती हूँ? स्पीड लिमिट ८० है...इसके कितने ऊपर तक छू सकते हैं? सीधी...सपाट सड़क...दूर दूर तक कोई गाडियां नहीं. न आगे न पीछे. पैर एक्सीलेटर पर हलके हलके दबाव बनाता है...इंटरमिटेन्टली. थोड़ा प्रेशर फिर कुछ नहीं. सुई आगे बढती है...१००...थोड़ी देर बाद फिर १२०...दुनिया अच्छी सी लगने लगी है. १३०...दिल की धड़कन तेज हो गयी है...वो पहली बार इतने करीब आया है...उसकी साँसों में ये कैसी खुशबू है...मीठी सी...१३०...बहुत देर से सुई १३० पर है...अब सब रुका हुआ सा लगता है.
कैसी हूँ मैं...१३० की स्पीड पर सब ऐसा लगता है जैसे रुका हुआ हो...धीमा हो...खंजर दिल में है...मैं रिस रही हूँ...ऐसिलेरेटर पर फिर हल्का दबाव बनाती हूँ...दूर दूर तक कोई गाड़ी नहीं है...थोड़ा और...अब सब कुछ बेहद तेज़ी से मेरी ओर आ रहा है...आसपास चीज़ें इतनी तेज हैं जैसे मैं वक्त में पीछे जा रही हूँ...टाइम ट्रैवेल जैसा कुछ...जिंदगी और आगे का रास्ता जैसे फिश आई लेंस से देख रही हूँ...एक छोटा सा शीशा है जिसमें से मेरी पूरी जिंदगी गुज़र रही है आँखों के सामने से जैसे पुरानी कहानी में एक अंगूठी से ढाके की मलमल का पूरा थान निकल आता था.
१४०...पॉज...एकदम जैसे सांस रुक गयी हो. फ्रैक्शन ऑफ अ मोमेंट...क्या उतना ही छोटा जब पहली बार अहसास हुआ था कि प्यार हो गया है मुझे?
सब कुछ रिवाइंड हो रहा है...एक इमेज उभरती है कि कार अगर फ्लाईओवर की बाउंड्री से टकराएगी तो प्रोजेक्टाइल की तरह गिरेगी. मैं विचार को झटक देती हूँ...सामने नज़र आती सड़क के अलावा लोग बहुत तेज़ी से आ जा रहे हैं...जैसे जिंदगी वाकई एक १४० की स्पीड से दौड़ती हुयी कार है और जिंदगी में आये हुए सभी लोग सिर्फ एक धुंधला सा अक्स.
मैंने एक्सीलेरेटर छोड़ दिया है और बेहद हलके ब्रेक मारती हूँ...लगभग छूती हूँ...जैसे खुद को रोकना...कि उससे प्यार नहीं करना है...हलके ब्रेक्स...थोड़ी थोड़ी देर पर. स्पीड घटती है...१३०...१२०...१००...८०. अब ठीक है...अब सब स्टेबल है. फ्लाई ओवर भी थोड़ी देर में खत्म हो जाएगा. उम्र...अगले महीने २९ की हो जाउंगी...जिंदगी भी थोड़ी देर में खत्म हो जायेगी.
टोल प्लाज़ा आ गया है...टू वे टोल...मैं शीशे के बोक्स में बैठे उस लड़के को देख कर मुस्कुराती हूँ. जब तक वो छुट्टा निकाल रहा है...टोल बूथ के दूसरी तरफ दो लोग खड़े हैं...मुझे कौतुहल से देखते हैं. इतनी इतनी भोर में अकेली लड़की गाड़ी लेकर शहर से बाहर क्यूँ जा रही है. मुझे हमेशा से लोगों का ये बेहद उलझा हुआ चेहरा बहुत पसंद है. मैं हलके गुनगुनाने लगती हूँ...टोल का टिकट लेकर आगे बढ़ी हूँ. यहाँ हाइवे है...इस समय बैंगलोर की तरफ आने वाले बहुत से ट्रक दिख रहे हैं दूसरी लेन में. अभी भी अँधेरा है तो उनकी हेडलाइट्स जली हुयी हैं. हाइवे पर बहुत देर बहुत दूर तक ड्राइव करती हूँ...अब लौटने का मन है...हाई बीम के कारण रोड दिख नहीं रहा है ढंग से...यू टर्न या तो राईट लेन से होगा या लेफ्ट लेन से फ्लाईओवर के नीचे से. जिंदगी ऐसी ही है न...लौटने का या तो सही रास्ता होता है या गलत.
इत्तिफाक कहूँ या फितरत...लेफ्ट लेन में यू टर्न मिला है...बहुत ध्यान से कार मोड़ती हूँ...कुछ देर रुक कर देखती हूँ...कोई गाड़ी नहीं आ रही. हाइवे पर ध्यान ज्यादा देना होता है...स्पीड बहुत तेज रहती है तो अचानक से गाड़ी आ सकती है सामने...वैसे में कंट्रोल में रहना जरूरी होता है. कोलेज बंक मार कर जेएनयू में टहलते हुए कई बार टीचर भी दिख जाते थे. वैसे में नोर्मल रहना होता है जैसे किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में जाना पड़ा था कहीं और अब लौट रहे हैं.
लौटते हुए बहुत से ट्रक हैं रास्ते में और उन्हें ओवरटेक करना पड़ा है...वापस लौटना वैसे भी हमेशा उतना आसान नहीं होता जितना कि चले जाना...अवरोध होते ही हैं. १२० पर ओवरटेक करती हूँ...गानों पर ध्यान देती हूँ...फ्लाईओवर फिर से सामने है...पर इस बार स्पीड बढ़ाऊंगी तो जाने किसका अक्स ठहर जाएगा...डरती हूँ. ८० की स्थिर स्पीड पर चलाती हूँ. ले बाई है. गाड़ी पार्क करती हूँ. एसएलआर निकालती हूँ...ट्राइपोड लाना भूल गयी. खुद को कोसती हूँ कि फोटो अच्छी नहीं आ पाएंगी. गाड़ियां भूतों की तरह भागती हैं कैमरे के व्यूफाइंडर में से...कुछ ऐसे ही फोटो उतारती हूँ...फिर फोन से खुद की एक तस्वीर उतारती हूँ. जानती हूँ मेरी फेवरिट रहेगी बहुत दिनों तक.
शहर जागने लगा है...मैं पूरी रात नहीं सोयी हूँ. फिर भी थकी नहीं हूँ...जरा सी भी. पहचाने रास्तों पर लौट आई हूँ...सिल्क बोर्ड के पास बहुत से फूल बिकते रहते हैं सुबह...जासमिन की तीखी गंध आई है अंदर तक...मैं बारिशों वाले दिन और बालकनी में कॉफी की याद करती हूँ...एक सिगरेट पीने का मन करता है. दिल की धड़कन बढ़ी हुयी है अब तक. कार पार्क करती हूँ. एहतियात से घर का लॉक खोलती हूँ.

कॉफी बनाती हूँ...सूरज उग गया है पर दिख नहीं रहा...बहुत बादल हैं. मैं हमेशा उन लोगों को बहुत एडमायर करती थी जो बहुत तेज़ी से कार चलाते हुए भी स्थिर रह सकते हैं...खुद को वहाँ देखती हूँ तो अच्छा लगता है. कुछ लोग खतरे का बोर्ड देख कर आगाह होते हैं...कुछ लोग खतरे का बोर्ड देखते ही वही काम करने चल देते हैं. मैं दूसरे टाइप की हूँ. फिर से वो साइन टांग देने का मन कर रहा है. 'Danger Ahead. You might fall in love with me'...लेकिन...कोई फायदा नहीं...फिर से खुद से प्यार हो गया मुझे.
थोड़ी पागल...थोड़ी खतरनाक...थोड़ी आवारा...थोड़ी नशे में...जरा सी बंजारामिजाज...थोड़ी घुमक्कड़...थोड़ी थोड़ी प्यार में. पूरा पूरा कुछ नहीं...अधूरी अधूरी सब कुछ.
मैं गाड़ी की स्पीड की बात कर रही हूँ...१४० किलोमीटर प्रति घंटा.
ऐसा नहीं होगा कि आप एक्सीलेरेटर को पूरा नीचे तक दबा दिए तो गाड़ी उड़ती हुयी १४० टच कर जायेगी.
ऐसा हो भी सकता है. पर वो कारें दूसरी तरह की होती हैं. मैं एक नोर्मल कार की बात कर रही हूँ...जैसे कि मेरे पास है. स्कोडा फाबिया. एक साधारण, मिड-लेवल कार...ये कारें हमारे पागलपन के लिए नहीं, हमारी सुरक्षा के लिए बनी हैं.
कोई क्यूँ चलाना चाहेगा कार को १४० की स्पीड पर...जैसा कि मैं खुद से कहती हूँ...१४० मजाक नहीं होता. ८० पर गाड़ी चलाना तेज रफ़्तार माना जाता है. १०० पर चलाने पर अगर कुछ लोग गाड़ी की बैक सीट में हैं तो मुमकिन है कि एक आध बार टोक दें...गाड़ी थोड़ा धीरे चलाओ प्लीज. १२० की स्पीड हाइवे पर गाड़ी को ओवर टेक करने के लिए अक्सर जरूरी होती है. बहुत मूड हुआ तो १२५ और महज छूने की खातिर कि कैसा लगता है १३० पर चलाना कई बार लोग स्पीडोमीटर पर ध्यान देते हुए स्पीड बढ़ा भी सकते हैं. एक बार फिर सुई १३० टच कर जाए तो वापस लौट आते हैं. कभी हुआ है कि भीड़ में कोई शख्स आगे जा रहा है और कौतुहल इतना बढ़ जाए कि आपको तेज कदम बढ़ा कर उसका चेहरा देखना हो...वैसा ही कुछ.
१४० पर चलाने के पहले के हालात और १४० के दरमयान क्या चलता है दिमाग में? जी...दिमाग कमबख्त १४० पर भी सोचना बंद नहीं करता...इस स्पीड में भी पैरलल ट्रैक चलाता है. वैसे अगर आपने चला रखी है गाड़ी तो फिर पढ़ने का सेन्स नहीं बनता कि आप जानते हैं कि कैसा लगता है...मगर फिर भी, हर अनुभव दूसरे से अलग होता है कि हर इंसान के सोचने समझने और रिएक्ट करने के तरीके अलग होते हैं. उसमें भी मैं तो जाने किस मिट्टी से बन के आई हूँ.
इतने भाषण के बाद क्रोनोलोजिकल आर्डर में बात करती हूँ. भोर का पहला पहर था...चार बज रहे होंगे...एकदम सन्नाटा. फिर कोई दस मिनट के आसपास चिड़िया पार्टी हल्ला करना शुरू की. मेरे घर के पीछे एक बहुत बड़ा सा पेड़ है...वही सबका अड्डा है. अँधेरा अपने सबसे सान्द्र फॉर्म में था...यू नो...सूरज उगने के पहले सबसे ज्यादा अँधेरा होता है...वही वक्त. मेरा मन थोड़ा छटपट कर रहा था...या फिर कह सकते हैं कि कहीं भाग जाने का मन कर रहा था...बहुत लंबी सड़क पर
बैंगलोर से बाहर जाने के सारे रास्ते मुझे मालूम है...वैसे अब तो आईफोन में जीपीएस है पर उसके पहले भी साधारण नक़्शे को मैं ही पढ़ती थी और हम घूमने जाते थे...इसलिए शहर का अच्छे से आइडिया है. सारे रास्तों में मुझे सबसे मायावी लगता है हाइवे नंबर ७ जो बहुत से घुमावदार शहरों से होकर कन्याकुमारी जाता है. मुख्यतः दो या तीन रास्ते हैं लेकिन जिनपर ड्राइव करने जाया जा सकता है. घर से निकलते ही सोचना पड़ता है किधर जाएँ...एक रास्ता है ओल्ड मद्रास रोड...जो हाइवे नंबर ४ है...चेन्नई जाता है. पोंडिचेरी जाने के लिए भी इस रास्ते को लिया जा सकता है. एक रास्ता है एयरपोर्ट होते हुए...जिसपर आगे चलते जायें तो हैदराबाद पहुँच जायेंगे. कोरमंगला होते हुए भी एक रास्ता बाहर को जाता है...जिसका सबसे बड़ा आकर्षण है १० किलोमीटर लंबा चार लेन का फ्लाईओवर...इसमें कोई खास मोड़ भी नहीं हैं...एकदम सीधी सड़क है. एयरपोर्ट के रस्ते में अच्छा ये था कि वहाँ मेरी पसंद की कॉफी मिलती है...मगर चार बजे सुबह एयरपोर्ट का रास्ता काफी बिजी रहता है. नाईस रोड भी ले सकती थी पर उधर के रास्ते जाने के लिए थोड़ा मैप ज्यादा देखना पड़ता...तो फिर सोचा कि इलेक्ट्रोनिक सिटी फ्लाईओवर के तरफ निकलते हैं आसानी से पहुँच जायेंगे और भीड़ कम रहेगी.
मैं कार बहुत हिसाब से चलाती हूँ...इतने साल में अब अच्छी ड्राइवर का खिताब मिल चुका है. काफी कण्ट्रोल में और नियमों के हिसाब से चलाती हूँ. अक्सर शांत रहती हूँ गाड़ी चलाते हुए...कार के शीशे उतार के चलाती हूँ...एसी चलाना पसंद नहीं है. सुबह इनर रिंग रोड...कोई ट्रैफिक नहीं था...सिल्क बोर्ड होते हुए आगे और फ्लाईओवर सामने. मेरे फोन में एक प्लेलिस्ट है 'लव मी डू'...बीटल्स के एक ट्रैक के नाम पर. इसमें मेरे सारे सबसे पसंद के गाने हैं...ऐसे गाने जिनसे मैं कभी बोर नहीं हो सकती. क्लासिक. सुबह यही प्लेलिस्ट चल रही थी. हवा में हलकी सी ठंढ थी, जैसे दूर कहीं बारिशें हुयी हों...आसमान में एक तरफ सलेटी रंग के बादल दिखने लगे थे...भोर की उजास फ़ैल रही थी.
फ्लाईओवर स्वप्न सरीखा है...स्विटजरलैंड की सड़कें याद आ गयीं. एकदम सीधी बिछी हुयी सड़क...शहर के कोलाहल से ऊपर...ऐसा लगता है किसी और दुनिया में जी रहे हैं...जहाँ न शोर है, न लोग हैं, न कोई ट्रैफिक सिग्नल. किसी से गहरे प्यार में होना इस फ्लाईओवर के अलावा की दुनिया है...और किसी से अचानक औचक प्यार हो जाना ये फ्लाईओवर...भले ही मुश्किल से दस मिनट का सफ़र होगा...मगर कभी न भूल जाने वाला अनुभव. मिस्टर ऐंड मिसेज अइयर देखते हुए नहीं सोचा था पर रिट्रोस्पेक्ट में हमेशा सोचती हूँ...प्यार की उम्र हमेशा कम ही होती है...और जब कम होती है तो हम बिना किसी रिजर्वेशन के जीते हैं...फिर हमारे पास लौट के जाने को कुछ नहीं होता है...तो दस मिनट से कम के लिए ही सही पर हम पूरी शिद्दत से वो होते हैं वो हम हैं...वो जीते हैं जो हम जीना चाहते हैं. लिविंग ऑन द एज जैसा कुछ.
फ्लाईओवर पर स्पीड लिमिट ८० है. कच्ची उम्र का डायलोग. रिश्ते की लिमिट काँधे तक है. उसके नीचे छू नहीं सकते. सोच नहीं सकते. उसके होटों का स्वाद कैसा है. मैं जब पागल होती हूँ तो १५ की उम्र में क्यूँ लौटती हूँ? स्पीड लिमिट ८० है...इसके कितने ऊपर तक छू सकते हैं? सीधी...सपाट सड़क...दूर दूर तक कोई गाडियां नहीं. न आगे न पीछे. पैर एक्सीलेटर पर हलके हलके दबाव बनाता है...इंटरमिटेन्टली. थोड़ा प्रेशर फिर कुछ नहीं. सुई आगे बढती है...१००...थोड़ी देर बाद फिर १२०...दुनिया अच्छी सी लगने लगी है. १३०...दिल की धड़कन तेज हो गयी है...वो पहली बार इतने करीब आया है...उसकी साँसों में ये कैसी खुशबू है...मीठी सी...१३०...बहुत देर से सुई १३० पर है...अब सब रुका हुआ सा लगता है.
कैसी हूँ मैं...१३० की स्पीड पर सब ऐसा लगता है जैसे रुका हुआ हो...धीमा हो...खंजर दिल में है...मैं रिस रही हूँ...ऐसिलेरेटर पर फिर हल्का दबाव बनाती हूँ...दूर दूर तक कोई गाड़ी नहीं है...थोड़ा और...अब सब कुछ बेहद तेज़ी से मेरी ओर आ रहा है...आसपास चीज़ें इतनी तेज हैं जैसे मैं वक्त में पीछे जा रही हूँ...टाइम ट्रैवेल जैसा कुछ...जिंदगी और आगे का रास्ता जैसे फिश आई लेंस से देख रही हूँ...एक छोटा सा शीशा है जिसमें से मेरी पूरी जिंदगी गुज़र रही है आँखों के सामने से जैसे पुरानी कहानी में एक अंगूठी से ढाके की मलमल का पूरा थान निकल आता था.
१४०...पॉज...एकदम जैसे सांस रुक गयी हो. फ्रैक्शन ऑफ अ मोमेंट...क्या उतना ही छोटा जब पहली बार अहसास हुआ था कि प्यार हो गया है मुझे?
सब कुछ रिवाइंड हो रहा है...एक इमेज उभरती है कि कार अगर फ्लाईओवर की बाउंड्री से टकराएगी तो प्रोजेक्टाइल की तरह गिरेगी. मैं विचार को झटक देती हूँ...सामने नज़र आती सड़क के अलावा लोग बहुत तेज़ी से आ जा रहे हैं...जैसे जिंदगी वाकई एक १४० की स्पीड से दौड़ती हुयी कार है और जिंदगी में आये हुए सभी लोग सिर्फ एक धुंधला सा अक्स.
मैंने एक्सीलेरेटर छोड़ दिया है और बेहद हलके ब्रेक मारती हूँ...लगभग छूती हूँ...जैसे खुद को रोकना...कि उससे प्यार नहीं करना है...हलके ब्रेक्स...थोड़ी थोड़ी देर पर. स्पीड घटती है...१३०...१२०...१००...८०. अब ठीक है...अब सब स्टेबल है. फ्लाई ओवर भी थोड़ी देर में खत्म हो जाएगा. उम्र...अगले महीने २९ की हो जाउंगी...जिंदगी भी थोड़ी देर में खत्म हो जायेगी.
टोल प्लाज़ा आ गया है...टू वे टोल...मैं शीशे के बोक्स में बैठे उस लड़के को देख कर मुस्कुराती हूँ. जब तक वो छुट्टा निकाल रहा है...टोल बूथ के दूसरी तरफ दो लोग खड़े हैं...मुझे कौतुहल से देखते हैं. इतनी इतनी भोर में अकेली लड़की गाड़ी लेकर शहर से बाहर क्यूँ जा रही है. मुझे हमेशा से लोगों का ये बेहद उलझा हुआ चेहरा बहुत पसंद है. मैं हलके गुनगुनाने लगती हूँ...टोल का टिकट लेकर आगे बढ़ी हूँ. यहाँ हाइवे है...इस समय बैंगलोर की तरफ आने वाले बहुत से ट्रक दिख रहे हैं दूसरी लेन में. अभी भी अँधेरा है तो उनकी हेडलाइट्स जली हुयी हैं. हाइवे पर बहुत देर बहुत दूर तक ड्राइव करती हूँ...अब लौटने का मन है...हाई बीम के कारण रोड दिख नहीं रहा है ढंग से...यू टर्न या तो राईट लेन से होगा या लेफ्ट लेन से फ्लाईओवर के नीचे से. जिंदगी ऐसी ही है न...लौटने का या तो सही रास्ता होता है या गलत.
इत्तिफाक कहूँ या फितरत...लेफ्ट लेन में यू टर्न मिला है...बहुत ध्यान से कार मोड़ती हूँ...कुछ देर रुक कर देखती हूँ...कोई गाड़ी नहीं आ रही. हाइवे पर ध्यान ज्यादा देना होता है...स्पीड बहुत तेज रहती है तो अचानक से गाड़ी आ सकती है सामने...वैसे में कंट्रोल में रहना जरूरी होता है. कोलेज बंक मार कर जेएनयू में टहलते हुए कई बार टीचर भी दिख जाते थे. वैसे में नोर्मल रहना होता है जैसे किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में जाना पड़ा था कहीं और अब लौट रहे हैं.
लौटते हुए बहुत से ट्रक हैं रास्ते में और उन्हें ओवरटेक करना पड़ा है...वापस लौटना वैसे भी हमेशा उतना आसान नहीं होता जितना कि चले जाना...अवरोध होते ही हैं. १२० पर ओवरटेक करती हूँ...गानों पर ध्यान देती हूँ...फ्लाईओवर फिर से सामने है...पर इस बार स्पीड बढ़ाऊंगी तो जाने किसका अक्स ठहर जाएगा...डरती हूँ. ८० की स्थिर स्पीड पर चलाती हूँ. ले बाई है. गाड़ी पार्क करती हूँ. एसएलआर निकालती हूँ...ट्राइपोड लाना भूल गयी. खुद को कोसती हूँ कि फोटो अच्छी नहीं आ पाएंगी. गाड़ियां भूतों की तरह भागती हैं कैमरे के व्यूफाइंडर में से...कुछ ऐसे ही फोटो उतारती हूँ...फिर फोन से खुद की एक तस्वीर उतारती हूँ. जानती हूँ मेरी फेवरिट रहेगी बहुत दिनों तक.
शहर जागने लगा है...मैं पूरी रात नहीं सोयी हूँ. फिर भी थकी नहीं हूँ...जरा सी भी. पहचाने रास्तों पर लौट आई हूँ...सिल्क बोर्ड के पास बहुत से फूल बिकते रहते हैं सुबह...जासमिन की तीखी गंध आई है अंदर तक...मैं बारिशों वाले दिन और बालकनी में कॉफी की याद करती हूँ...एक सिगरेट पीने का मन करता है. दिल की धड़कन बढ़ी हुयी है अब तक. कार पार्क करती हूँ. एहतियात से घर का लॉक खोलती हूँ.
कॉफी बनाती हूँ...सूरज उग गया है पर दिख नहीं रहा...बहुत बादल हैं. मैं हमेशा उन लोगों को बहुत एडमायर करती थी जो बहुत तेज़ी से कार चलाते हुए भी स्थिर रह सकते हैं...खुद को वहाँ देखती हूँ तो अच्छा लगता है. कुछ लोग खतरे का बोर्ड देख कर आगाह होते हैं...कुछ लोग खतरे का बोर्ड देखते ही वही काम करने चल देते हैं. मैं दूसरे टाइप की हूँ. फिर से वो साइन टांग देने का मन कर रहा है. 'Danger Ahead. You might fall in love with me'...लेकिन...कोई फायदा नहीं...फिर से खुद से प्यार हो गया मुझे.
थोड़ी पागल...थोड़ी खतरनाक...थोड़ी आवारा...थोड़ी नशे में...जरा सी बंजारामिजाज...थोड़ी घुमक्कड़...थोड़ी थोड़ी प्यार में. पूरा पूरा कुछ नहीं...अधूरी अधूरी सब कुछ.