04 May, 2012

जे थूरे सो थॉर...बूझे?

ऊ नम्बरी बदमास है...लेकिन का कहें कि लईका हमको तो चाँद ही लागे है...उसका बदमासी भी चाँदवे जैसा घटता बढ़ता रहता है न...सो. कईहो तो ऐसा जरलाहा बात कहेगा कि आग लग जाएगा और हम हियां से धमकी देंगे कि बेट्टा कोई दिन न तुमको हम किरासन तेल डाल के झरका देंगे...चांय नैतन...ढेर होसियार बनते हो...उ चोट्टा खींस निपोरे हीं हीं करके हँसता रहेगा...उसको भी बहुत्ते मज़ा आता है हमको चिढ़ा के.

एक ठो दिन मन नै लगता है उसे बतकुच्चन किये बिना...उ भी जानता है कि हम कितना भी उ थेत्थर को गरिया लें उससे बतियाए बिना हमरा भी खानवे नै पचेगा. रोज का फेरा है...घड़ी बेरा कुबेरा तो देखे नहीं...ऑफिस से छुट्टी हुआ कि बस...गप्प देना सुरु...जाने कौन गप्प है जी खतमे नै होता है. कल हमरा मूड एकदम्मे खराब था...उसको बोले कि हम अब तुमसे बतियायेंगे नहीं कुछ दिन तक...मूड ठीक होने दो तब्बे फोनियायेंगे...लेकिन ऊ राड़ बूझे तब न...सेंटी मारेगा धर धर के और ऊपर उसका किस्सा सुनो बारिस और झील में लुढ़कल चाँद का...कोई दिमागे नै है कि कौन मूड में कौन बात किया जाता है...अपने राग सुनाएगा आप जितना बकझक कर लीजिए हियाँ से. कपार पे हाथ मारते हैं कि जाने कौन बेरा ई लड़का मिला था जो एतना माथा चढ़ाये रखे हैं...इतने दुलरुआ तो कोइय्यो नहीं है हमरा.

कल बतियावे से जादा गरियावे का मन करे...और उसपर छौड़ा का लच्छन एकदम लतखोर वाला कि मन करे कि कोई दिन न खुब्बे लतियायें तुमको...एकदम थूर दें...थूरना बूझते हो न बाबू? इधर ऊ पिक्चर देख के आये 'अवेंजर्स' तुमको तो अंग्रेजी बुझायेगा नहीं तो तुम जा के उसका हिंदी वाला देखना...देखना जरूर...काहे कि उसमें एक ठो नोर्स देवता है...'थॉर' उसके पास एक हथोड़ा होता है जिससे ऊ सबको थुचकते रहता है. हमको लगता है हो न हो ई जो भाईकिंग सब था कभी न कभियो बिहार आया होगा...यहाँ कोई न कोई थूरा होगा ऊ सबको धर के...तो ई जो थॉर नाम का देवता है न...असल में कोई बिहारी रहा होगा...जे थूरे सो थॉर...बूझे? देखो केतना बढ़िया थ्योरी है. त बूझे ना बाबू जो दिन हत्थे चढोगे न बहुत पिटोगे.

राते में ई सब प्रेम पतिया तोरे लिखने के मन रहे बाबू लेकिन का है कि सूत गए ढेर जल्दी...कल मने बौराये हमहूँ निकल गए थे न घर से बाहर...भर दुपरिया टउआते रहे थे, गोड़ दुखाने लगा, खाना उना खा के चित सूत गए सो अभी भोर में आँख खुला है. कल का डीलिंग दे रहे थे जी...अंग्रेजी में बात करो, काहे कि हमको अपने जैसन बूझते हो का...भागलपुरी नै आता है तो अंग्रेजीयो में पैदल रहेंगे का...बहुत बरस पहले सीरी अमिताभ बच्चन जी कहे गए हैं से हम भी कोट करे देते हैं...आई कैन वाक इंग्लिस, आई कैन लाफ इंग्लिस, आई कैन रन इंग्लिस...बिकोज इंग्लिस इज अ भेरी फन्नी लैंगुएज.'

बाबु दुनिया का सब सुख एक तरफ और एक बिहारी को बिहारी में गरियाने का सुख एक तरफ...का कहें जी कल तुमसे बतिया के मन एकदम्मे हराभरा हो गया...वैसा कि जैसा पवन का कार्टून देख के हो जाता है...एकदम मिजाज झनझना गया...सब ठो पुराना चीज़ याद आने लगा कि 'लटकले तो गेल्ले बेट्टा' से लेकर 'ले बिलैय्या लेल्ले पर' तक. गज़बे मूड होई गया तुमसे बतिया के...कि दू चार ठो और दोस्त सब को फोन करिये लें...खाली गरियाये खातिर...कि मन भर गाली उली दे के फोन धर दें कि बहुत्ते दिन से याद आ रहा था चोट्टा सब...ढेर बाबूसाहब बने बैठे हो...खुदे नीचे उतरोगे चने के झाड़ से कि हम उतारें? सब भूत भगैय्ये देते कि फिर दया आ गया...बोले चलो जाने देते हैं...चैन से जी रहा है बिचारा सब.


लेकिन ई बात तो मानना पड़ेगा बाबू...मर्द का कलेजा है तोहार...हमको एतना दिन से झेलने का कूव्वत बाबु...मान गए रे...छौड़ा चाहे जैसन चिरकुट दिखे...लड़का...एकदम...का कहें...हीरा है हीरा.

चलो...अब हमरा फेवरिट वाला कार्टून देखो...जिससे एकदम्मे फैन बन गए थे बोले तो पंखा बड़ा वाला कि एसी एकदम से पवन टून का...और बेसी दाँत मत चियारो...काम धंधा नहीं है तुमको...चलो फूटो!

13 comments:

  1. जय हो पटनैय्या पोस्ट है । आके दोबारा से बांचेंगे । पवन के कार्टून के तो हम भी दीवाने हैं

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  2. हा हा हा , मजा आ गया ....ही हू हा...पटाखे फुलझड़ी ....
    गाय को फर्स्ट फ्लोर पे ले जाके दूध दुहा जा सकता है ना , लिफ्ट तो होगी ही :) :) :)

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  3. खतरनाक...एकदम मस्त वाला पोस्ट है!!पवन साहब का कार्टून सब तो सही में एकदम से मूड झनझना देता है ;)
    वैसे बज्ज एक्सपोर्ट सुना पड़ा हुआ है :D :)

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  4. कितना सुन्दर लिखी हो ! लगा कि सीधे सीधे हमीं को बोल रही हो.

    वैसे पटनिया को ले कर बहुत लोग मज़ाक करता है और मज़ाक में लेता है.... तुम्हारा ही लिखा वो भागलपुर का अंगिका में लिखा गया पोस्ट याद आया.. भाषा की दृष्टि से वो बहुत बेजोड़ है, स्तरीय भी. याद रह गया और तुम्हें बताऊँ की वो बहुत लोगों को पसंद है.



    हाँ ढूध वाला बेकारे पब्लिक फेवर में बोल रहा है उसको तो पानीये में दूह कर दे देना चाहिए... वो वैसे भी बदनाम है और ऐसे में उसके पेशे की चांदी है.

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  5. gajhnat'..........


    tapam tap'

    aisahin parcha fahrabat rahin.....


    hai jo

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  6. कोई समीक्षा नहीं ना ही कोई ऐसी हैसियत .
    लेखन शैली बहुत ही खुबसूरत ,मन के भावों को व्यक्त करने के लिए भाषा का कोई बंधन नहीं होता .बस अंतर्मन से लिखो भावों को सहज सरल राह मिल जाती है ,फिर सब कुछ अपना सा ही लगता है .जैसे पात्र मैं ही हूँ

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  7. बहुते नीक लागा इ पोस्टवा ...
    आपकी प्रोफाइल तो बंगलोर का निवास दर्शा रहा है. यह क्षेत्रीयता तो कह रही है कि ????

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    1. देश का संविधान इजाजत देता है कि हम पूरे देश में कहीं भी बस सकते हैं...तो हैं बिहार के मगर रोजी रोटी का सिलसिला बैंगलोर से है.

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  8. वाह- आपकी लेखनी को साधुवाद. देश के इस कोने में हिंदी में ऐसी सामग्री पढ़ने को मिलेगी, सोचा नहीं था!

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    1. इन्टरनेट के आने के बाद कहाँ बचते हैं 'देश के कोने' अब तो पूरा देश हमारा अपना है. कहीं भी बैठ कर जो मन करे लिख सकते हैं...जिस भाषा की इच्छा हो उसे पढ़ सकते हैं.

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  9. सच में गजब्बे है! :)

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