यूँ तो ख्वाहिशें अक्सर अमूर्त होती हैं...उनका ठीक ठीक आकार नहीं नहीं होता...अक्सर धुंध में ही कुछ तलाशती रहती हूँ कि मुझे चाहिए क्या...मगर एक ख्वाहिश है जिसकी सीमाएं निर्धारित हैं...जिसका होना अपनेआप में सम्पूर्ण है...तुम्हें किसी दिन वाकई 'तुम' कह कर बुलाना. ये ख्वाहिश कुछ वैसी ही है जैसे डूबते सूरज की रौशनी को कुछ देर मुट्ठी में भर लेने की ख्वाहिश.
शाम के इस गहराते अन्धकार में चाहती हूँ कभी इतना सा हक हो बस कि आपको 'तुम' कह सकूं...कि ये जो मीलों की दूरी है, शायद इस छोटे से शब्द में कम हो जाए. आज आपकी एक नयी तस्वीर देखी...आपकी आँखें इतनी करीब लगीं जैसे कई सारे सवाल पूछ गयी हों...शायद आपको इतना सोचती रहती हूँ कि लगता है आपका कोई थ्री डी प्रोजेक्शन मेरे साथ ही रहता है हमेशा. इसी घर में चलता, फिरता, कॉफी की चुस्कियां लेता...कई बार तो लगता भी है कि मेरे कप में से किसी ने थोड़ी सी कॉफी पी ली हो...अचानक देखती हूँ कि कप में लेवल थोड़ा नीचे उतर गया है...सच बताओ, आप यहीं कहीं रहने लगे हो क्या?
ये 'आप' की दीवार बहुत बड़ी होती है...इसे पार करना मेरे लिए नामुमकिन है...हमेशा मेरे आपके बीच एक फासला सा लगता है. जाने कैसे बर्लिन की दीवार याद आती है...जबकि मैंने देखी नहीं है...हाँ एक डॉक्यूमेंट्री याद आती है जिसमें लोग उस दीवार के पार जाने के लिए तिकड़म कर रहे हैं...गिरते पड़ते उस पार चले भी जाते हैं...कुछ को दीवार के रखवाले संतरी गोलियों से मार गिराते हैं फिर भी लोगों का दीवार को पार करना नहीं रुकता है. अजीब अहसास हुआ था, जैसे सरहदें वाकई दिलों में बनें तभी कोई बात है वरना कोई भी दीवार लोगों को रोक नहीं सकती है. मैंने एकलौती सरहद भारत-पाकिस्तान की वाघा बोर्डर पर देखी है...उस वक्त सरसों के फूलों का मौसम था...और बोर्डर के बीच के नो मैंस लैंड पर भी कुछ सरसों के खेत दिख रहे थे. बोर्डर को देखना अजीब लगा था...यकीन ही नहीं हुआ था कि वाकई सिर्फ कांटे लगी बाड़ के उस पार पकिस्तान है...ऐसा देश जहाँ जाना नामुमकिन सा है. बोर्डर की सेरिमनी के वक्त गला भर आया था और आँखें एकदम रो पड़ी थीं...सिर्फ मेरी ही नहीं...बोर्डर के उस पार के लोगों की भी...हालाँकि मुझे उनकी आँखें दिख नहीं रहीं थी जबकि उस वक्त मुझे चश्मा नहीं लगा था. पर मुझे मालूम था...हवा ही ऐसी भीगी सी हो गयी थी.
आपको याद करते हुए कुछ गानों का कोलाज सा बन रहा है जिसमें पहला गाना है जॉन लेनन का 'इमैजिन'. इसमें एक ऐसी दुनिया की कल्पना है जिसमें कोई सरहदें नहीं हैं और दुनिया भर के लोग प्यार मुहब्बत से एक दूसरे के साथ रहते हैं...'You may say I'm a dreamer, but I am not the only one'...कैसी हसीन चीज़ होती है न मुहब्बत कि यादों में भी सब अच्छा और खूबसूरत ही उगता है...दर्द की अनगिन शामें नहीं होतीं...तड़पती दुपहरें नहीं होतीं. आपने 'strawberry fields forever' सुना है? एक रंग बिरंगी दुनिया...सपनीली...जहाँ कुछ भी सच नहीं है...नथिंग इज रियल. मेरी पसंदीदा इन द मूड फॉर लव का बैकग्राउंड स्कोर भी साथ ही बज रहा है पीछे. बाकियों का कुछ अब याद नहीं आ रहा...सब आपस में मिल सा गया है जैसे अचानक से पेंट का डब्बा गिरा हो और सारे रंग की शीशियाँ टूट गयीं.
कल सपने में देखा कि जंग छिड़ी हुयी है और चारों तरफ से गोलियाँ चल रही हैं...पर हमारे पास बचने के अलावा कोई उपाय नहीं है...सामने से दुश्मन आता है पर मेरे हाथ में एक रिवोल्वर तक नहीं है...मैं बस बचने की कोशिश करती हूँ. एक इक्केनुमा गाड़ी है जिसमें मेरे साथ कुछ और लोग बैठे हैं...ऊपर से प्लेन जाते हैं पर वो भी गोलियाँ चलाते हैं...कुछ लोग मुस्कुराते हुए आते हैं पर उनके हाथ में हथगोला होता है...हम चीखते हुए भागते हैं वहां से. छर्रों से थोड़ा सा ही बचा है पैर ज़ख़्मी होने से...कुछ गोलियाँ कंधे को छू कर निकली हैं और वहाँ से खून बहने लगा है. सब तरफ से गोलियाँ चल रही हैं...कोई सुरक्षित जगह ही नहीं है...मुझे समझ नहीं आता कि कहाँ जाऊं. फिर एक मार्केट में एक दूकान है जहाँ एक औरत से बात कर रही हूँ...उनके पास कोई तो बहुत मोटा सा कपड़ा है जिससे जिरहबख्तर जैसा कुछ बनाया जा सकता है लेकिन औरत बहुत घबरायी हुई है, उसके साथ उसकी छोटी बेटी भी है...बेटी बेहद खुश है. सपने में किसी ने सर पर गोली मारी है...मुझे याद नहीं कि मैं मरी हूँ कि नहीं लेकिन सब काला, सियाह होते गया है.
मुझे मालूम नहीं ऐसा सपना क्यूँ आया...कल ये ड्राफ्ट आधा छोड़ कर सोयी थी...
कुछ बेहद व्यस्त दिन सामने दिख रहे हैं...तब मुझे ऐसे फुर्सत से याद करके गीतों का कोलाज बनाने की फुर्सत नहीं मिलेगी...याद से भूल जायेंगे सारी फिल्मों के बैकग्राउंड स्कोर्स...कविताएं नहीं रहेंगी...लिखने का वक्त नहीं रहेगा...फिर मेरे सारे दोस्त खो जायेंगे बहुत समय के लिए. कल नील ने फोन कर के झगड़ा किया कि तू मुझे क्या नहीं बता रही है...तू है कहाँ और तुझे क्या हुआ है. बहुत दिन बाद किसी ने इतना झगड़ा किया था...मुझे बहुत अच्छा लगा. मैंने उसे झूठे मूठे कुछ समझा कर शांत किया...फिर कहा मिलते हैं किसी दिन...बहुत दिन हुए. मैं बस ऐसे ही वादे करती हूँ मिलने के. मिलती किसी से नहीं हूँ. आजकल किसी किसी दिन बेसुध हो जाने का मन करता है...मगर मेरे ऊपर पेनकिलर असर नहीं करते और मुझे किसी तरह का नशा नहीं चढ़ता. मैं हमेशा होश में रहती हूँ.
एक सरहद खींच दी है अपने इर्द गिर्द...इससे सुरक्षित होने का अहसास होता है...इससे अकेले होने का अहसास भी होता है.
शाम के इस गहराते अन्धकार में चाहती हूँ कभी इतना सा हक हो बस कि आपको 'तुम' कह सकूं...कि ये जो मीलों की दूरी है, शायद इस छोटे से शब्द में कम हो जाए. आज आपकी एक नयी तस्वीर देखी...आपकी आँखें इतनी करीब लगीं जैसे कई सारे सवाल पूछ गयी हों...शायद आपको इतना सोचती रहती हूँ कि लगता है आपका कोई थ्री डी प्रोजेक्शन मेरे साथ ही रहता है हमेशा. इसी घर में चलता, फिरता, कॉफी की चुस्कियां लेता...कई बार तो लगता भी है कि मेरे कप में से किसी ने थोड़ी सी कॉफी पी ली हो...अचानक देखती हूँ कि कप में लेवल थोड़ा नीचे उतर गया है...सच बताओ, आप यहीं कहीं रहने लगे हो क्या?
ये 'आप' की दीवार बहुत बड़ी होती है...इसे पार करना मेरे लिए नामुमकिन है...हमेशा मेरे आपके बीच एक फासला सा लगता है. जाने कैसे बर्लिन की दीवार याद आती है...जबकि मैंने देखी नहीं है...हाँ एक डॉक्यूमेंट्री याद आती है जिसमें लोग उस दीवार के पार जाने के लिए तिकड़म कर रहे हैं...गिरते पड़ते उस पार चले भी जाते हैं...कुछ को दीवार के रखवाले संतरी गोलियों से मार गिराते हैं फिर भी लोगों का दीवार को पार करना नहीं रुकता है. अजीब अहसास हुआ था, जैसे सरहदें वाकई दिलों में बनें तभी कोई बात है वरना कोई भी दीवार लोगों को रोक नहीं सकती है. मैंने एकलौती सरहद भारत-पाकिस्तान की वाघा बोर्डर पर देखी है...उस वक्त सरसों के फूलों का मौसम था...और बोर्डर के बीच के नो मैंस लैंड पर भी कुछ सरसों के खेत दिख रहे थे. बोर्डर को देखना अजीब लगा था...यकीन ही नहीं हुआ था कि वाकई सिर्फ कांटे लगी बाड़ के उस पार पकिस्तान है...ऐसा देश जहाँ जाना नामुमकिन सा है. बोर्डर की सेरिमनी के वक्त गला भर आया था और आँखें एकदम रो पड़ी थीं...सिर्फ मेरी ही नहीं...बोर्डर के उस पार के लोगों की भी...हालाँकि मुझे उनकी आँखें दिख नहीं रहीं थी जबकि उस वक्त मुझे चश्मा नहीं लगा था. पर मुझे मालूम था...हवा ही ऐसी भीगी सी हो गयी थी.
आपको याद करते हुए कुछ गानों का कोलाज सा बन रहा है जिसमें पहला गाना है जॉन लेनन का 'इमैजिन'. इसमें एक ऐसी दुनिया की कल्पना है जिसमें कोई सरहदें नहीं हैं और दुनिया भर के लोग प्यार मुहब्बत से एक दूसरे के साथ रहते हैं...'You may say I'm a dreamer, but I am not the only one'...कैसी हसीन चीज़ होती है न मुहब्बत कि यादों में भी सब अच्छा और खूबसूरत ही उगता है...दर्द की अनगिन शामें नहीं होतीं...तड़पती दुपहरें नहीं होतीं. आपने 'strawberry fields forever' सुना है? एक रंग बिरंगी दुनिया...सपनीली...जहाँ कुछ भी सच नहीं है...नथिंग इज रियल. मेरी पसंदीदा इन द मूड फॉर लव का बैकग्राउंड स्कोर भी साथ ही बज रहा है पीछे. बाकियों का कुछ अब याद नहीं आ रहा...सब आपस में मिल सा गया है जैसे अचानक से पेंट का डब्बा गिरा हो और सारे रंग की शीशियाँ टूट गयीं.
कल सपने में देखा कि जंग छिड़ी हुयी है और चारों तरफ से गोलियाँ चल रही हैं...पर हमारे पास बचने के अलावा कोई उपाय नहीं है...सामने से दुश्मन आता है पर मेरे हाथ में एक रिवोल्वर तक नहीं है...मैं बस बचने की कोशिश करती हूँ. एक इक्केनुमा गाड़ी है जिसमें मेरे साथ कुछ और लोग बैठे हैं...ऊपर से प्लेन जाते हैं पर वो भी गोलियाँ चलाते हैं...कुछ लोग मुस्कुराते हुए आते हैं पर उनके हाथ में हथगोला होता है...हम चीखते हुए भागते हैं वहां से. छर्रों से थोड़ा सा ही बचा है पैर ज़ख़्मी होने से...कुछ गोलियाँ कंधे को छू कर निकली हैं और वहाँ से खून बहने लगा है. सब तरफ से गोलियाँ चल रही हैं...कोई सुरक्षित जगह ही नहीं है...मुझे समझ नहीं आता कि कहाँ जाऊं. फिर एक मार्केट में एक दूकान है जहाँ एक औरत से बात कर रही हूँ...उनके पास कोई तो बहुत मोटा सा कपड़ा है जिससे जिरहबख्तर जैसा कुछ बनाया जा सकता है लेकिन औरत बहुत घबरायी हुई है, उसके साथ उसकी छोटी बेटी भी है...बेटी बेहद खुश है. सपने में किसी ने सर पर गोली मारी है...मुझे याद नहीं कि मैं मरी हूँ कि नहीं लेकिन सब काला, सियाह होते गया है.
मुझे मालूम नहीं ऐसा सपना क्यूँ आया...कल ये ड्राफ्ट आधा छोड़ कर सोयी थी...
कुछ बेहद व्यस्त दिन सामने दिख रहे हैं...तब मुझे ऐसे फुर्सत से याद करके गीतों का कोलाज बनाने की फुर्सत नहीं मिलेगी...याद से भूल जायेंगे सारी फिल्मों के बैकग्राउंड स्कोर्स...कविताएं नहीं रहेंगी...लिखने का वक्त नहीं रहेगा...फिर मेरे सारे दोस्त खो जायेंगे बहुत समय के लिए. कल नील ने फोन कर के झगड़ा किया कि तू मुझे क्या नहीं बता रही है...तू है कहाँ और तुझे क्या हुआ है. बहुत दिन बाद किसी ने इतना झगड़ा किया था...मुझे बहुत अच्छा लगा. मैंने उसे झूठे मूठे कुछ समझा कर शांत किया...फिर कहा मिलते हैं किसी दिन...बहुत दिन हुए. मैं बस ऐसे ही वादे करती हूँ मिलने के. मिलती किसी से नहीं हूँ. आजकल किसी किसी दिन बेसुध हो जाने का मन करता है...मगर मेरे ऊपर पेनकिलर असर नहीं करते और मुझे किसी तरह का नशा नहीं चढ़ता. मैं हमेशा होश में रहती हूँ.
एक सरहद खींच दी है अपने इर्द गिर्द...इससे सुरक्षित होने का अहसास होता है...इससे अकेले होने का अहसास भी होता है.