डूबते सूरज को सीट के ऊपर से देखती हूँ।
आठवें फ्लोर पर ऑफिस है,
सूरज सामने लगता है
वायलिन सुनती हूँ
किसी की याद में भीगते हुए
सूरज से कहती हूँ रुको ना थोड़ी देर और
दोस्ती हो गयी है
शाम के इस लाल गालों वाले
गुदगुदे सूरज से
क्षितिज पर झूला झूलता है वो
मुस्कुराता है मुझे देख कर
उस तरफ कोई इंतज़ार कर रहा है
चलो ठीक है, जाने दिया
कल फिर आओगे ना
प्रोमिस? हाँ प्रोमिस।
दोस्ती हो गयी है
ReplyDeleteशाम के इस लाल गालों वाले
गुदगुदे सूरज से
क्षितिज पर झूला झूलता है वो
मुस्कुराता है मुझे देख कर
उस तरफ कोई इंतज़ार कर रहा है
" यहाँ से दोनों देह ही नहीं स्वर तक भी अलग हो जाते हैं"
और सूरज क्या कहता है आगे ?
अच्छा इमेजिन करें कि आप आप नही आठवें फ़्लोर के बेजान ग्लास-पैनल की बीच कहीं बची रह गयी मुट्ठी भर मिट्टी मे बरबस उग आये बित्ते भर के बिरवे हैं..इस लाल गालों वाले गुदगुदे और चमकीले दोस्त को हैरत भरी नजरों से ताकते हुए..इठला कर बात करते हुए..
ReplyDelete’रुको ना थोड़ी देर और
चलो ठीक है, जाने दिया
कल फिर आओगे ना
प्रोमिस? हाँ प्रोमिस।’
..सच कितना बड़ा प्रामिस है यह तब..हरी-भरी जिंदगी से भरा!!
अरे बस इमेजिन करने को कहा था..
कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
ReplyDeleteआपकी कल्पना से थोड़ी ज़िन्दगी उधार लू ..................फिर चलू ..............और कम्बख़त ये निहायत खुबसूरत प्रामिस ...................
ReplyDeletebahut hi sundar kalpana...office me baitha baitha aksar sooraj ko main bhi dekhta hun....sooraj ko le kuch likha hai...plz padhiyega....kuck kalpana sa...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/2010/04/blog-post_08.html
प्रतिदिन के दृश्यों में पुनः एक नयापन ।
ReplyDeleteसागर मियाँ और अपूर्व मियाँ आगे की कड़ी बहुत खूब जोड़ते हैं.
ReplyDeleteदोनों को मेरा सलाम पहुँचे
बहुत सुन्दर. अब इसे अंग्रेजी में भी लिख डालो.
ReplyDeletepooja...hamne der ki aapke blog tak pahuchne mein...kuch ek rachnaaye padhi aapki....kaafi accha likhti hain aap...aur doobte sooraj se aapka ye pyaar dekh hamein khud par pyaar aa gaya :-)
ReplyDeleteसूरज को जबरदस्ती उतारा आसमान से कल शाम
ReplyDeleteतुम इसे इतना मुंह ना लगाया करो..
मैंने पहले भी कहा था कि आपके अंदर शब्दों से खेलने की एक कला है, एक प्रवृति है ... जो आपके कविताओं को एक अलग मात्रा देती है ... बहुत सुन्दर ... जारी रखिये ...
ReplyDeleteचलो ठीक है, जाने दिया
ReplyDeleteकल फिर आओगे ना
प्रोमिस? हाँ प्रोमिस।
bahut khoob likha....
"कविता में सुन्दर कल्पना...."
ReplyDeleteतुम्हारे सारे बिम्ब तुम्हारे अपने देखे हुये होते हैं और इसलिये दिल के करीब लगते हैं।
ReplyDeleteएक बात बताओ, तुम्हारे इस नये आफिस में आने पर "डेविल्स ओन" खूब सारा मिलेगा ना पीने को आन द हाउस?
चलो ठीक है....जाने दिया.एक और कविता लेकर आओगी न..
ReplyDeletebahut achchi lagi.
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