07 April, 2010

अख़बार से रंगा एक दिन

आधा दिन से ऊपर होने को आया...

मैं मान लूंगी कि मैंने आज का अखबार नहीं पढ़ा।

कि अस्सी जवानों के मारे जाने की बात सुनकर मुझे बस झुंझलाहट हुयी कि मैंने पेपर पढ़ना फिर क्यों शुरू किया.
कि मेरे दिमाग में कॉलेज के ज़माने का मीडिया एथिक्स का एक लेक्चर आया जिसमें ये था कि पहले अखबार वाले फ्रंट पेज पर ऐसी तसवीरें नहीं छापते थे जो विचलित कर सकती हूँ, खून वाली तसवीरें ब्लैक एंड व्हाईट में छापते थे।
कि सुबह से मुझे घबराहट हो रही है, मुझे लगता है मेरे हाथों पर खून लगा हुआ है। कहीं ना कहीं मेरी कोई जिम्मेदारी है जिससे मैं भाग रही हूँ। मुंह छुपा रही हूँ।

कि मुझे लगता है कि मैं उन लोगों को जानती हूँ जो उनके परिवार में थे, कि खून से रंगी पोशाकों में जो चेहरे थे उन्हें मैंने कभी, कहीं हँसते देखा है।

कि मेरी जिंदगी में बस ये दुःख है कि मैंने अपनी माँ को खो दिया है पर मुझे वही दुःख पहाड़ लगता है और जिंदगी जीने के काबिल नहीं पर मुझे आज ये सोच कर शर्म आती है।

कि मुझे लगता है कि किसी भी वजह के लिए इतनी बर्बरता से खामोशी से इतने लोगों कि जान लेना गलत है और अगर कुछ लोग इसे सही ठहरा सकते हैं तो हमारे समाज कि बुनियाद में कोई खोट है

कि थोड़ा चैन पाने के लिए मैंने टीवी देखना शुरू किया पर टीवी में 'अब तक छप्पन' चल रही थी, जिसमें वो सीन था जहाँ नाना पाटेकर बात करते करते किसी को गोली मार देता है...अंग्रेजी में शोट हिम इन कोल्ड ब्लड...व्हाटेवर दैट मीन्स।

कि मुझे रसीदी टिकट का एक वाकया याद आता है जिसमें कोई जर्मन कहता है कि इस भाषा ने इतने गुनाह किये हैं जर्मन में कभी कवितायेँ नहीं रची जानी चाहिए। मुझे भी लगता है कि कविताओं का कोई औचित्य नहीं है।

कि मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे हर बार मैं बस सोच के रह जाती हूँ और कुछ भी नहीं करती। कि मैं सोचती हूँ कि क्या वाकई मैं मुझ कर सकूंगी अगर करना चाहूँ तो।

कि किताबें अगर जला दी जाएँ तो हाथों में क्या थामें, दूसरा सहारा कहाँ है...संगीनों के साए में

कि जिंदगी से जरूरी ऐसी कौन सी जंग लड़ रहे हैं लोग...कितना भी पढूं समझ में नहीं आता।

कि एक मसीहा के इन्तेजार में बैठे हैं, पर मसीहा हम में से एक को ही तो बनना पड़ता है, जिम्मेदारी कभी कभी खुद से भी उठानी पड़ती है।

कि स्याही जैसे दिन पर फ़ैल गयी है...मुझे हर तरफ से रोना सुनाई देता है, ऐसा रूदन जिसमें आवाज नहीं है।

कि मनुष्य की बनायीं दुनिया की प्रोब्लेम्स का हल भगवान् के पास नहीं होता, हमें खुद तलाशना पड़ता है।

कि क्या मैं मन में गूंजते इस श्लोक की रौशनी में बस बैठी रहूँ..."असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।"

20 comments:

  1. शुक्र है मानवीय संवेदनाये अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है.. जो लोग सक्षम है वो ये क्यू नहीं समझते पूजा ?

    ऐसी खबर पढ़ते ही जाने कितनी ही तरह के विचार एक साथ दिमाग में कौंध जाते है.. सवालों की बौछारे.. अनसुलझे रहस्य.. हमारी कायरता.. या मरी हुई संवेंदना.. क्या गारंटी है कि हम आज से तीसरे दिन भी इन्हें याद रखेंगे.. बाज़ार में इतने अच्छे हैण्ड वाश लिक्विड्स आते है पूजा कि खून से सने हाथ दो मिनट में धुल जाते है.. और कोई कीटाणु भी हाथो पर नहीं रहता..

    ये मेरा इण्डिया फिल्म के अंत में होती सुबह और पार्श्व में बजता गीत.. असतो मा सदगमय.. याद आ रहा है..

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  2. यही वे कड़वे सच हैं जो गले के नीचे उतारने पड़ते हैं, न चाहते हुये भी ।

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  3. उनका यूँ ही मर जाना और हमारा यूँ लगातार हाथ मलते रह जाना ...जाने क्यूँ मुझ में एक भयानक डर जगाता है..हे प्रभु..! कहीं हम अपराधी ना हों..!

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  4. मीडिया एथिक्स की तो बात ही मत करो पूजा! कल या परसों टी.वी. पर एक न्यूज़ चैनल कुछ तांत्रिकों द्वारा छोटे छोटे बच्चों पर गरम दूध डालने की पिक्चर्स दिखा रहा था......कल ऑफिस में सारे मीडिया वाले आकर एक नाबालिग लड़की जिसका कि रेप हुआ था उसका फोटो खींचने की जिद कर रहे थे! सचमुच मन ख़राब हो जाता है.....

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  5. पूजा जी दिनों दिन मानवीय सवेंदनाएं धीरे धीरे मरती जा रही है। ना जाने क्यूँ? मुझे उस बच्चे की आवाज कोंध रही जिसने अपने पिता की मौत पर कहा था कि "उन्होंने मेरे पापा को मारा मैं भी पुलिस बनकर उन्हें मारुँगा।" ......... इस दर्द को सहन करना आसान नही। और फिलहाल मीडिया की तो बात ही मत कीजिए............। वैसे आप सच कहती अब मसीहा कोई नही आऐगा हम सब को अपनी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और अगर ऐसा हो जाए तो सच हमारे समाज में कुछ सुकून आ जाए।

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  6. ओह पूजा...! दिन भर में कितनी बार हटाया दिमाग से वो दृश्य, जो सुबह की चाय के साथ हाथ में आया अखबार के साथ। एक के बाद एक पड़ी ७४ मानव देह...! विश्वास मानो जी मिचलाने लगा और चाय पीने का मन नही हुआ।

    खाना खाते वक्त भी वही दृश्य आँख के सामने आ गया। तुरंत ध्यान वहाँ से हटा कर रोटी की तरफ किया।

    और दिन भर में एक बार भी किसी से ये बात नही की, क्योंकि किसी में जबर्दस्ती संवेदना नही जगाना चाह रही थी। मगर थोड़ी थोड़ी देर में वो ७४ शहीद जो लड़ भी ना पाये।

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  7. पूजा जी, ह्रदय को चीर कर रख देने वाली बातें लिखी है आप ने, चाहते हुए भी कुछ ना कर पाने कि पीड़ा को आप ने सचमुच सच्चे शब्द दिए हैं, सच में कहीं ना कहीं इसके जिम्मेदार हम भी हैं! झकझोर कर रख दिया आप ने!

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  8. pata nahi aaj ki problems ko khatm karne koi badhega bhi yanahi...sab pet bharne me hi lage hain...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  9. यही वे कड़वे सच हैं जो गले के नीचे उतारने पड़ते हैं, न चाहते हुये भी ।

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  10. क्या करें पूजा,

    हादसें इतने हैं मेरे शहर में,
    के अख़बार को निचोड़ों तो खून टपकता है।

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  11. ye kis tarah ke shahar basa rakhe hain logon ne..jahan sirf bam aur khun ki sargroshiyan sunai deti hain.......

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  12. shi khe rhi ho puja!! mere bhai bhi usi batalian se hai,unki 1 week pahele hi delhi posting ho gyi thi, yhi soch ker ki aaj ager bhai bhi vhi per hote tu kya hota, lekin unka kya hal hoga jinhone apne bhaiyo ko kho diya hai, aankho se aansu rukne ka naaam nhi lete hai, dil bahut ghabrata hai, bus bhagwan ka sukiraya aada kerti hun.........

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  13. aisi hi kuchh karano ke wajah se maine akhbaar padhtaa nahi band kar chukaa hun, shaam ko jab news me ye sunaa to shocked rah gayaa tha , aur chidambaram ka sirf ye statement ke ham me hi kahin chuk hui hai , like a hel statement give by him ... mujhe uske upar hasi aaye ke ye yahaa bhi arthshashtra khel rahaa hai .... nafrat kartaa hun jo insaan khud arthshastri hai wo naakaami ke baad home ministry leleta hai sirf isliye ke use kuchh naa kuchh to post chahiye hi ...
    fir maine sunaa ke wo mission jaari rakhi jayegi magar helicopters nahi lagaye jayenge unko maarne aur search karne ke liye... ye sab kya majaak hai ... samajh nahi aarahaa ...
    usi raat Dua live ndtv par dekhaa khub usne li MP ke mukhyamantri ki ... magar ye sabhi sudharne waale nahi hain... apni raajniti har chij par karne se baaj nahi aayenge... agar ham apne andaruni dushamano ka safaya nahi kar sakte to bahar ke dushamn se kya ladege... mujhe to ye lashkar se bhi jyada khatarnaak lagte hain... apne desh ke liye... dukh hotaa hai pujaa magar kya karen yahi sochta hun ke hami logon ne to chunaa hai unhe aur wo bhi purn bahumat ke saath...
    magar jindaa kaum 5 saal tak intazaar nahi karti ... lohiyaa ji ki yah baat dhyaan kar chup ho jaata hun ke shayad kuchh ho...

    bahut kuchh likhne ko hai magar kya hai jaye...

    arsh

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  14. आपकी संवेदना वहाँ तक जाती है जहाँ से कोई रास्ता निकलेगा ...जरूर निकलेगा.

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  15. क्या करें मीडिया..जब कुछ अच्छा न होने देने की लोगो ने ठान रखी हो.मीडिया की अपनी सीमांए हैं.कुछ मीडिया के लोगो के नाम पर सबको बुरा न समझें....जितना हो सकता है कई लोग करते हैं..पर कोई ध्यान भी नहीं देता....देश के गौरव को के लिए खेलने वाली एक टेनिस खिलाड़ी का प्रोग्रमाम किया था..विश्ववास करना 2 लाख की चैरिटी नहीं जुटी थी....प्रशासन की नाकामी न छापें तो क्या करे मीडिया....पुराने जमाने में विचलित करने वाली तस्वीर नहीं छापी जाती थी..पर समाज भ्रम में जी रहा हो तो क्या करें..कब तक छुपाएं कि भारत की 70 फीसदी जनता को दो वक्त की रोटी नहीं मिलती..37 फीसदी लोग एक वक्त की रोटी को भी तरसते हैं.....विचलित होते हो देशवासी तो हों, पर कुछ करते भी तो नहीं हैं.. सिर्फ ओह गॉड या च च च च करने से कुछ नहीं होने वाला

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  16. मै इधर कुछ दिनो से कुछ नही पढ रहा हू..पता था कि गाली गलौज चल रहा होगा हर जगह.. पता है कायर हू भाग रहा हू लेकिन लिखकर मै कर भी क्या लूगा..

    पल्लवी के बताये वाक्ये ने तो और मूड खराब कर दिया..

    इस पूरे समाज़ को तहस नहस कर दो.. हमे एक नया आगाज़ चाहिये.. धर्मग्रन्थ शायद इसीलिये प्रलय की बात करते है.. प्रलय बहुत जरूरी है वरना हम भेडिये बन जायेगे... काश आज भी धरती फ़ट सकती और सीताये उसमे समा सकती... सीता भी कहा है आजकल और राम तो ढूढे नही मिलने वाला..

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  17. मानवता को फोकस में रखकर लिखी यह पोस्ट चिंतन पर विवश करती है.......विमर्श के लिए उद्द्वेलित करती है..........आपके ब्लॉग पर पहली बार ही आया मगर अब लग रहा है की रेगुलर विसिटर बनना पड़ेगा.

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