देर रात के किसी पहर में
किसी भूले राग को गाते हुए
अक्सर 'पकड़' पर अटक जाती हूँ
सुर भटके हुए लगते हैं
याद आता है अपना हारमोनियम
और सर के तबले की थाप
उँगलियों पर तीन ताल गिनती हूँ
ह्म्म्म...वक़्त की गिनती अभी दुरुस्त है
कोई दिलासा मिलता है कहीं
मैं शायद कुछ उन लड़कियों में से हूँ
जिनको रात में अकेले डर नहीं लगता
चांदनी अच्छी लगती है कमरे में
चाँद को घूरते हुए सोचती हूँ
चाँद पूरा हो गया आज बढ़ते बढ़ते
तुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है
गुलदान में से मुरझाये फूल निकालती हूँ
तीन दिन हो गए सन्डे बीते हुए
रजनीगंधा के फूल लाने होंगे नए
लैवेन्डर कैंडिल, रुकी हुयी लौ
उँगलियों से लौ को गुदगुदी करती हूँ
उसके थिरकने पर हंसी आती है
गिटार अब एकदम आउट ऑफ़ ट्यून है
मन कसैला हो जाता है सुन कर
डेरी मिल्क का एक टुकड़ा तोड़ती हूँ
बहुत कुछ करती हूँ बहुत देर जगी हुयी
तुम्हारे बिना रात वाकई बहुत लम्बी हो जाती है...
ओह ! हैरान हूँ !टोटली हैरान !!!!
ReplyDeleteउँगलियों पर तीन ताल गिनती हूँ
ह्म्म्म...वक़्त की गिनती अभी दुरुस्त है
कोई दिलासा मिलता है कहीं
क्या बात लायी हो तुम..
चाँद को घूरते हुए सोचती हूँ
चाँद पूरा हो गया आज बढ़ते बढ़ते
तुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है
... इससे याद आया - प्यार चाँद जैसा होता है, जब बढ़ नहीं पाटा तो घटने लगता है...
गिटार अब एकदम आउट ऑफ़ ट्यून है
मन कसैला हो जाता है सुन कर
डेरी मिल्क का एक टुकड़ा तोड़ती हूँ
... यह कमाल का चित्र खिंचा है.
अद्भुत।
ReplyDeletebahut acchi rachna hai.
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
मैं और मेरी तन्हाई, कुछ बातें
ReplyDeleteतुम्हारे बिना रात वाकई बहुत लम्बी हो जाती है...
ReplyDeleteकैसा अजीब ये जूनून, मेरे दिल में समाया |
हजारो चहरो में बस तेरा ही चेहरा भाया ||
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
तुम्हारे बिना रात वाकई बहुत लम्बी हो जाती है...
ReplyDeleteकैसा अजीब ये जूनून, मेरे दिल में समाया |
हजारो चहरो में बस तेरा ही चेहरा भाया ||
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
Aaaj Yahi Kahunga
ReplyDeleteSuperb !
Simply Superb
पर कविता आउट आफ ट्यून की परफेक्ट ट्यून में है ।
ReplyDeleteतुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है
ReplyDeleteक्या कमाल का थोट है पूजा..
AYE LADKEE SENTI KYO KARTI RAHTI HO...?
ReplyDeleteBAAR BAAR PADH RAHI HUN
GOD BLESS YOU
जैसा की पिछली टिपण्णी में कहा था के अब फिर से आपको बराबर पढ़ना चाहूँगा ... और आज फिर दिल और जाह्न दोनों कितनी दूर तक चले गए पूजा के साथ ... वाकई ..
ReplyDeleteचाँद को घूरते हुए सोचती हूँ
चाँद पूरा हो गया आज बढ़ते बढ़ते
तुम्हारा काम एक महीने से चल रहा है
के खूब बात की है इन फलसफों से .....
एक शे'र याद आया ....
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खडा रहा
सब अपने-अपने चाहने वालों में खो गए ...
बधाई
अर्श
वाह!! शानदार!
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteAwww .. ur posts are always breeze of fresh air !!!
ReplyDeleteInviting u to comment on my new poem !!
मैं शायद कुछ उन लड़कियों में से हूँ
ReplyDeleteजिनको रात में अकेले डर नहीं लगता
चांदनी अच्छी लगती है कमरे में .
good
ReplyDeleteगिटार की ट्यून को ठीक कर लें.....भई हमें तो न सीख पाने का गम है.....जो हुनर हो उसे तराशते रहना चाहिए....उठाइए एक बार फिर गिटार औऱ छेड़ दिजिए तान, हारमोनियम भी....सीखे सुर कभी नहीं जाते ,कहीं न कहीं अंदर बजते रहते हैं....एक बार फिर से शुरु करके तो देखिए अगर फिर से तान गूंजने न लगे तो कहिएगा....
ReplyDeleteहमारी संगिनी होती तो गवाते रहते भई......भले हमें उनके इशारे पर नाच दिखाना पड़ता.....
ReplyDeleteतीन दिन हो गए सन्डे बीते हुए
ReplyDeleteरजनीगंधा के फूल लाने होंगे नए
very innocent creation , still very effective. Simplicity is the essence of this poem.
Superb !
आप भावों को कुशल शब्दों से कमाल का बुनती है। हर बुनावट सुन्दर होती है। वैसे रात को ना डरने का क्या सूत्र अपनाती है मुझे भी बताए, मुझे रात को डर लगता है।
ReplyDeleteलैवेन्डर कैंडिल, रुकी हुयी लौ
उँगलियों से लौ को गुदगुदी करती हूँ
उसके थिरकने पर हंसी आती है
गिटार अब एकदम आउट ऑफ़ ट्यून है
मन कसैला हो जाता है सुन कर
डेरी मिल्क का एक टुकड़ा तोड़ती हूँ
ये वाली लाईनें ज्यादा अच्छी लगी।
:) tumhaari hi chaap liye ek aur sunder post....
ReplyDeletesundar bhavpoorn rachna
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