23 April, 2010
महुआ
कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो शब्द नहीं एक पूरी कहानी होते हैं अपनेआप में, उनका अर्थ समझाया नहीं जा सकता। ऐसा ही एक शब्द है 'महुआ' बोलो तो जैसे मीठा सा स्वाद आ जाता है जुबान पर।
गुलाबी-लाल फूलों से ढका एक पेड़ झूमने लगता है पछुआ हवा बहने के साथ...उस बहती हवा में मिठास घुली रहती है, ऐसी मिठास जैसे रसिया बनाते वक़्त मिट्ठी की हड़िया से आती है...ये मिठास जैसे रोम रोम से फूट पड़ती है, पेड़ के नीचे की मिट्टी, लाल धूसर और फूलों की कुछ दहकती पंखुडियां...डूबता सूरज लाल होता हुआ।
इस मिठास में नशा होता है, जैसे सब कुछ नृत्य करने लगा हो...दूर कोई संथाली में गीत गाने लगता है...गीत के बोल समझ नहीं आते, पर भाव समझ आता है। बांसुरी की आवाज घुँघरू के साथ बजने लगती है। लगता है कोई जन्मों का बिछड़ा प्रियतम बुला रहा हो, किसी झील के पार से। घर के पास के पोखर में चाँद घोलटनिया मारने लगता है, महुआ को छू कर आती पछुआ नीम के पेड़ों से उचक कर उस तक भी पहुँच गयी है।
फुआ का घर अभी बन ही रहा है, हम लोग छत का ढलैया देखने आये हैं। मैं बालू में अपने भाई के साथ घरोंदा बना रही हूँ, वो बहुत छोटा है लेकिन अपने छोटे छोटे हाथों में जितना हो सके बालू ला के दे रहा है मुझे। मम्मी हम दोनों को एका एकी कौर कौर खिला रही है। महुआ की रोटी, मीठी होती है।
आसमान बहुत साफ़ है, उसमें खूब सारे तारे हैं ...मेरी आँखें ठीक हैं, मुझे बिना चश्मा के भी आसमान पूरा दिखता है, हम उसमें सप्त ऋषि ढूंढते हैं। घर चलने का वक़्त हो गया है। मैं सड़क पर एक हाथ में जिमी का हाथ और एक हाथ में रोटी लिए चल रही हूँ...मीठी मीठी महक आ रही है महुआ की।
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:-)
ReplyDeleteमहुआ को आंखों के सामने खडा कर दिया । उसकी महक भी ।
ReplyDeleteमैंने महुआ का पेड़ नहीं देखा पर नशा सुना होता है काफी....पर लगा कोई फिल्म देख रहा हूं....कई पुरानी फिल्मों के सीन की कल्पना हो गई....साकार कर दिया है आपने यादों को....कभी पढ़ा संथाल लोगो के बारे मे..उसकी याद ताजा हो गई.
ReplyDeleteमहुए की भीनी भीनी खुशबू आने लगी है
ReplyDeleteओह! बहुत गहरा गोता लगाया यादों में..महुये के साथ. सुन्दर पीस!
ReplyDelete" भीनी-सी पोस्ट..."
ReplyDeleteआप कविमना हैं, आपको महुआ शब्द में मिठास व सौन्दर्य झलकता है । अच्छा है सौन्दर्य की विधा को बल मिल रहा है । पर अभी भी महुवे का नाम सुनकर शराब पीने वालों के मन में नशा व तलब की आकृति आती है और उसकी पत्नी और बच्चों के मन में एक रात की आकृति उभरती है जिसमें हुड़दंग, पिटाई और बुद्धिहीनता की पूर्णता होती है ।
ReplyDeleteusi se aaj bhi gaanvon me kitne sharaabi ghar ujaad rahe hai...waise aapki lekhni aur bhav dono kamaal ki hain...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
अच्छा तो अब तुम चोरी पर उतर आई :) मेरे मन से यह पोस्ट निकाल ली... महुआ पर मैं लिखने वाला था... परसों रात यही चैनेल भी देख रहा था... प्रोग्राम था "पारा गरम".... खैर... अब लिखा है तो घर बनाने के मुत्ताल्लिक जो कुछ भी लिखा है वो सब सच है.... "एक-एकी" शानदार है.
ReplyDeleteमहुआ को आंखों के सामने खडा कर दिया । उसकी महक भी ।
ReplyDeleteवाह महुआ की बात छेड़.कर आपने गाँव की याद दिला दी...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से बचपना छलक रहा है
ReplyDeleteअरे :( ये वाला बचपना नहीं
हाँ :) वो वाला बचपना
हम तो महुआ के नाम पर भोजपुरी चैनल जानते है.. :)
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