तेरी तलाश में फिर खुद को खंगाला हमने
लम्हा लम्हा कई यादों को निकाला हमने
दर्द सुलझे कई, उलझे कई धड़कन की तरह
बस खुदी को दिया जख्मों का हवाला हमने
साँस की तरह तेरा नाम हवा में घोला
पर ना चक्खा तेरे होठों का भी प्याला हमने
तेरा घर देखा और देख के मुस्काया किये
चाबी थी पर कभी खोला नहीं ताला हमने
चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने
अब के पहले तुझे भूलूं ऐसा भी मुमकिन था
चाहा भी नहीं, ना दिल को सम्हाला हमने
तो अब गजले भी.. अच्छा है
ReplyDeleteचाबी थी पर कभी खोला नहीं ताला हमने
ये मस्त है..
और हाँ टेम्पलेट भी बढ़िया है.. .रिफ्रेशिंग!!
ReplyDeletemujhe yeh wala achchha laga
ReplyDeleteचाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने
aur haan shirshak mast lagayi hai
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ... मैं सोच ही रहा था कि आप इतने अच्छे शब्दों के खिलाडी है और आप ग़ज़ल क्यूँ नहीं लिखते हैं ... और सच में आपने ग़ज़ल लिख दी है ...
ReplyDeleteहर शेर अच्छा है ... हमेशा कि तरह आप शब्दों का जाल बुन दिए हैं ...
ये शेर बहुत अच्छा लगा
चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
ओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने
ACCHI RACHNA!!!
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeletebadi hi pyaari gazal likhi....
ReplyDeleteग़ज़ल खूबसूरत है
ReplyDeleteमगर झूले वाली तस्वीर याद आ रही है.
बेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteये टेम्पलेट बढ़िया है :)
ReplyDeleteपिछला मेरी गुजारिश पर बदला ? खैर जाने दीजिए :)
बदलने के लिए शुक्रिया ये मोबाइल में बढ़िया खुलेगा
और आपकी रचना पर क्या कहें
उम्दा भाव है
आज की पोस्ट पढ़ कर खुद का लिखा एक शेर याद आया जो आज की पोस्ट के लिए आप पर फिट बैठ रहा है
जाने कितना फन समेटे है मेरा अहले सुखन
हर अदा की इब्तिदा पर चौंकता रहता हूँ मै
अहले सुखन - मेरे अंदर का शायर
इब्तिदा - शुरुआत, आगाज़
आगाज़ बहुत उम्दा है इस सफर को भी आगे बढाईये
khubsurat hai is dafa bhi...:-)
ReplyDeleteचाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
ReplyDeleteओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने
ये शेर हमारा हुआ.......उधारी में .......
ऐसी दुविधा में बहुत बिताई हैं राते हमने।
ReplyDeleteऐसी कविता न कर पाये - कुछ नुक्स रहा होगा दुविधा में!
चाँद रातों में तेरी याद के तागे काते
ReplyDeleteओढा जाड़ों में हिज्र का वो दुशाला हमने
.. badi nafasat hai...
wah! bhut khubsurat gajal hai
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल
ReplyDeletehttp://madhavrai.blogspot.com/
चाबी थी पर कभी खोला नही ताला हमने ... बढ़िया प्रयोग है ।
ReplyDeleteअब के पहले तुझे भूलूं ऐसा भी मुमकिन था
ReplyDeleteचाहा भी नहीं, ना दिल को सम्हाला हमने
kya baat hai aapke blog par pahali baar aaya lekin afsos der se kyun aaya, badhai
कितनी बेतरतीबी से पढ़ लिया, ये गडबडझाला हमने!! :P
ReplyDeletebahut khoob........
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