किसी ज़माने में जी टीवी पर एक सीरियल आता था...रिश्ते। प्रायः एक या दो एपिसोड में कहानी ख़त्म हो जाती थी। बड़ी प्यारी सी कहानियाँ हुआ करती थीं, इश्क तब इश्क हुआ करता था, आज की तरह नौटंकी नहीं। अनगिन चलने वाले सीरियल मुझे तब भी पसंद नहीं थे, आजकल तो टीवी देखती ही नहीं हूँ।
इश्क...जैसे खुशबू सी आती है इस अल्फाज़ से, उर्दू की बात ही कुछ और होती है। रूमानियत है इस लफ्ज़ में, जैसे कुछ फिल्में थी पाकीजा, मेरे महबूब, उमराव जान, बरसात की रात, और इन सबके ददाजान...मुग़ल-ऐ-आज़म, लगता था की वाह क्या इश्क है, क्या रोल हैं, और क्या डायलॅग होते थे, "साहिबे आलम, ये कनीज आपका हिज्र बर्दाश्त कर सकती है मगर आपकी रुसवाई नहीं"। प्यार बस हो नहीं जाता था, एक लम्हे में, धीरे धीरे चूल्हे पर चाशनी सा पकता था। इजहार की कितनी मुश्किलें होती थी, और प्यार को अंजाम तक पहुँचने की कितनी जद्दोजहद होती थी।
आज के मीडिया में कहाँ है वो प्यार की खुशबु, कहाँ है वो जज्बातों की गहराई, और एक मिनट के प्यार में अंजाम तक पहुँचने की फिक्र किसे है। इजहार के डर को दूर करने के लिए लोग आराम से २४ ड्रिंक्स का सहारा ले सकते हैं। लगता है रुमानियत ख़त्म हो गई है, रिश्तों की जिस सोंधी खुशबु में जिंदगी हसीन लगती थी, pollution के कारन शायदवो हम तक पहुँचती नहीं।
अचानक से लगता है मैं किसी और सदी की हूँ, आज की इस भागम भाग जिंदगी में कहीं खोया हुआ सा पाती हूँ ख़ुद को। आज भी मुझे अच्छा लगता है अगर वो मेरे लिए दरवाजा खोले, चाहे गाड़ी का हो या घर का, आज भी लगता है की कभी कहीं खामोश सा बैठे रहें, बिना कुछ कहे हुए। disco गई मैं (जिंदगी में पहली बार) बहुत अच्छा बीही लगा फ़िर भी given an option main समंदर किनारे उसके साथ बैठना चाहूंगी। मरीन ड्राइव पर बिना कुछ कहे सिर्फ़ हवाओं को महसूस करना ज्यादा अच्छा लगा मुझे। और डांस भी, मुझे अपने घर के ड्राइंग रूम में उसके साथ किसी भी गाने पर थिरकना ज्यादा अच्छा लगेगा।
क्या मैं बहुत अजीब हूँ? इसको ही शायद ठहराव कहते हैं, ये उमर तो बाहर जा के हल्ला गुल्ला करने की, गोल्गाप्पा खाने की, खूब सारी shopping करने की होती है...ये कहाँ ठहर गई हूँ मैं, रुकना तो मेरी फितरत में नहीं था।
खैर कहाँ से कहाँ तक पहुँच गई मैं...बात शुरू की थी रिश्ते से...शायद कहीं कहीं मैं अब भी वैसी ही हूँ...unpredictable
अच्छा संस्मरण लिखा आपने.
ReplyDeleteUnpredictable......NO.
ReplyDeletePredictably Plesant.......Yes.
Unpredictable......NO.
ReplyDeletePredictably Pleasant.......Yes.
पूजा जी जान कर खुशी हुई कि आप आज भी न सिर्फ उस पाक मोहब्बत की इच्छा रखती हैं, बल्कि खुल कर इस बात का इजहार भी कर रही हैं, वर्ना आज कल तो लोग पाकीजा प्यार की इच्छा रखनें मे भी शर्म महसूस करते हैं, जाहिर करना तो दूर की बात। गर कोई ये गुस्ताखी कर भी दे तो सालों वह मजाक का पात्र बना रहेगा। लोग सच्चा आशिक कह उसकी खिल्ली उड़ांएगे। आपने सही कहा न टीवी पर और न ही बड़े पर्दे पर वो मोहब्बत नहीं बची, जिसके लिए कहा जा सके जब प्यार किया तो डरना क्या, प्यार किया कोई चोरी नहीं की छुप छुप आहें भरना क्या। आज कल तो प्यार बस दिखावा बन गया है, डर शर्म या मासूमियत की बात तो छोड़िए अब तो प्यार ट्रेंडी फैशन हो गया है। सुबह कोई और शाम को कोई और। वैसे तो इस विषय पर बहुत कुछ कहा और लिखा जाता है, लेकिन जिस तरह से आपने खुद के अहसासों से जोड़ते हुए, इन अहसासों को छुआ है, काबिल ए तारीफ भी है और काबिल ए गौर भी। अल्हा मियां आपकी खाहिशों को जल्द पूरा करे आमीन
ReplyDeleteमंथन से उपजा लेखन...बढ़िया रहा पढ़ना/
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