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परिचय
तीन रोज़ इश्क़
02 July, 2007
चाँद
चांद अब भी सलाखों में नज़र आता है
ना रह कर भी साथ आयी खिड़कियाँ
किसी दिन झिर्री से दिख जाता है उदास सा
वो कहीं सुराखों में नज़र आता है
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