जानती हूँ कि तुम मेरे नहीं हो
फिर भी तुम मेरी जिंदगी हो
हज़ार आंसुओं के बदले जो मांगी मैंने
तुम वो दो लम्हे की हंसी हो
हर अहसास जो टूट टूट कर लिखता है मुझमें
तुम वो अनकही शायरी हो
मैं नहीं जानती रिश्तों की परिभाषाएं
मेरे लिए जो हो तुम्ही हो
दर्द के गहरे इस समंदर में
तुम इकलौती कश्ती हो
क्यों लगता है कि तुम मेरे हो
जब कि तुम मेरे नहीं हो
८.७.०५
bahut hi badhiya..
ReplyDeleteaapse ye kavita udhaar chaahunga..
sach me superb..
puri hi ghazal ek nagina hain...gehrai bhari baat...kam shabdo mein...aur bilkul sidhi sidhi baat...
ReplyDeletefirst sher of the ghazal makes a
gr8 impact...
these 3 are superb...
जानती हूँ कि तुम मेरे नहीं हो
फिर भी तुम मेरी जिंदगी हो
मैं नहीं जानती रिश्तों की परिभाषाएं
मेरे लिए जो हो तुम्ही हो
क्यों लगता है कि तुम मेरे हो
जब कि तुम मेरे नहीं हो
पूजा जी, आखिरी दो पंक्तियाँ बहुत बढ़िया हैं। शायद आप कहीं और भी लिखती हैं?
ReplyDeleteमैं नहीं जानती रिश्तों की परिभाषाएं
ReplyDeleteमेरे लिए जो हो तुम्ही हो
दर्द के गहरे इस समंदर में
तुम इकलौती कश्ती हो
बहुत सुन्दर। लिखती रहें। सस्नेह
@aalok, main www.laharein.blogspot.com aur www.poemsnpuja.blogspot.com par bhi likhti hun.
ReplyDeleteaap mere blog meri profile me bhi dekh sakte hain
पूजा जी, जानकारी के लिए धन्यवाद। शायद मैंने लहरें ही देखा था। शुक्रिया।
ReplyDeleteअच्छी रचना. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
ReplyDelete---
ultateer.blogspot.com
हज़ार आंसुओं के बदले जो मांगी मैंने
ReplyDeleteतुम वो दो लम्हे की हंसी हो>
सुंदरतम।
aap ke kavitayoN meN paripakvita hai, kisi magazine me kyoN nahiN dikhiN
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