उसके यहाँ घर से निकलते हुए 'कहाँ जा रहे हो' पूछना अशुभ माना जाता था. उसपर घर के मर्द इतने लापरवाह थे कि कई बार शहर से बाहर भी जाना होता था तो माँ, भाभी या पत्नी को बताये बिना, बिना ढंग से कपड़े रखे हुए निकल जाते थे. घर की औरतें परेशान रहती थीं...कि ये मोबाइल से बहुत पहले की बात थी. उन दिनों कई कई दिनों के इंतज़ार के बाद एक भूली भटकी चिट्ठी आती थी...कि मैं दोस्त की शादी में आरा आया हूँ, अभी कुछ दिन यहीं रुकूंगा. घर की औरतें इतने में हरान परेशान होने लगती थीं...उनको मालूम था कि घर से बाहर निकला है तो हज़ार परेशानियाँ है...उनके परेशान होने के आयाम में उसका अपहरण होकर उसकी शादी हो जाने से लेकर...उसका नदी में तैरना और डूब जाना तक शामिल था.
उसके माथे में भंवर थे...भंवर हमारे तरफ कहते हैं जब सर के बाल एक खास तरह से गोल घुमते हुए निकलते हैं, कहते हैं कि जिस इंसान के माथे में भंवर हो उसकी मृत्यु पानी में डूब के होगी. उसे पोखर, तालाब, कुआँ, नदी, समंदर सब जगह से दूर रखा जाता था...यूँ करना तो ऐसा चाहिए था कि जिस व्यक्ति को डूबने का डर हो उसे खास तौर से तैरना सिखाया जाए मगर अंधविश्वास हमेशा तर्क पर भारी पड़ता था. बाढ़ उन गाँवों में एक मान्यताप्राप्त स्थिति थी...साल में एक बार उन्हें पता था कि सब बह जाएगा और फिर से बसना होगा. असल बेचैनी का जन्म तो तब होता था जब ऐसा कोई लड़का घर से बाढ़ के वक़्त बिना बताये निकल जाए...और वो कहाँ गया है इसका अंदाजा मात्र इस बात से लगाया जा सके कि उसने किस ओर का रुख किया था. बाढ़ के समय चिट्ठियां भी नहीं आती थीं...किस पते पर आतीं जब पूरा गाँव ही अपनी जगह न हो.
ऐसे ही खोये, भुतलाये हुए गाँव में एक लड़का गर्मी के दिनों में नहर वाले खेत के पास के पुआल के टाल पर लेटा हुआ हुआ था...नीम के पेड़ की छाँव थी और नहर की ओर से हवा आती थी तो भीगे आँचल सी ठंढी हो जाती थी इसलिए उस कोने में बाकी गाँव के बनिस्पत गर्मी काफी कम थी. चेहरे को गमछे से ढके हुए वो सोच रहा था कि ऐसे ही बाढ़ वाले दिन अगर स्कूल की उस लड़की का हाथ पकड़ पर किसी नाव पर बैठा ले और मल्लाह को पिछले पूरे साल के जोड़े हुए २० रुपये दे तो क्या मल्लाह उसे ऐसी जगह पहुंचा देगा जहाँ से चिट्ठियां गिराने का कोई डाकखाना न हो...अगर उसी मल्लाह को अपना चाँदी का कड़ा भी दे दे तो क्या ऐसा होगा कि वो घर पर किसी को ना बताये कि वो किस गाँव चला आया है. यहाँ तक तो कोई तकलीफ नहीं दिख रही थी...मल्लाह उसे ऐसा व्यक्ति लगता था जो उसकी बात मान जाएगा...हँसते चेहरे वाले उस मल्लाह के गीत में एक ऐसी टीस उभरती थी जो लड़के को लगता था कि सिर्फ उसे सुनाई देती थी.
समस्या अब बस ये थी कि लड़की क्या करेगी ऐसे में...उसे अभी तक उसका नाम भी नहीं मालूम था...दुनियादारी का इतना पता था बस कि वो अगर घर से घंटों बाहर रहे तो कोई नहीं पूछता कि वो कहाँ गया है, कब आएगा...मगर उसकी ही बहनें कहाँ जा रही हैं, किसके साथ जा रही हैं, कितनी देर में आयेंगे इसकी पूरी जानकारी घर में रहती थी...कोई लड़की कभी भी खो नहीं सकती थी...लड़कियां दिख भी जाती थीं भीड़ में अलग से...लड़के बाढ़ में, पानी में, शहर में, शादियों में, मेले में भले गुम हो जाएँ लड़कियां कभी गुम नहीं होतीं...उन्हें हमेशा ढूंढ लिया जाता. उसे तो अब तक लड़की का नाम भी नहीं पता था...उसने कभी उसकी आवाज़ भी नहीं सुनी थी...लड़की को सर झुकाए क्लास में आते जाते, चुप खाना खाते देखते हुए उसके दिल में बस एक हसरत जागने लगी थी कि वो उसका दायीं कलाई पकड़ के मरोड़ दे कुछ ऐसे कि वो हाथ छुड़ा भी न सके...वो सुनना चाहता था कि वो ऐसे में कैसे चीखती है...हालाँकि उसे लगता था कि तब भी लड़की एक आवाज़ नहीं निकालेगी...दांत के नीचे होठ भींच लेगी जब तक कि खून न निकल आये और वो खुद ही उसकी नील पड़ी कलाइयाँ छोड़ दे. ये लड़कियों को दर्द कैसे नहीं होता...या कि फिर दर्द होने पर रोती क्यूँ नहीं हैं.
ऐसे ही सपने बुनने वाली खाली दोपहरों के बाद वाली एक दोपहर के बाद लड़का कहीं नहीं दिखा...मल्लाह ने बहुत सालों कोई गीत नहीं गाया...लड़की की उसी लगन में बहुत दूर के गाँव शादी हो गयी...बगल के गाँव का एक पागल फकीर लोगों को चिल्ला चिल्ला के बताता रहा कि पूरनमासी की रात नदी का पानी खून की तरह लाल हो गया था...उसके घर की औरतों का इंतज़ार उनकी आँखों में ही ठहर गया.
इस किस्से के काफी सालों बाद उस लड़की की बेटी हुयी...उसका रूप ऐसे दमकता था कि वो बिना दुपट्टे के कहीं नहीं जाती थी...आज वो एक लड़के को इमली के पेड़ के नीचे बैठी ये कहानियां सुना रही है...कहते हैं इमली के पेड़ पर भूत रहता है...लड़की को जाने कैसे यकीन था कि इस पेड़ पर एक आत्मा है जो उसे कभी नुक्सान नहीं पहुंचाएगी...उसका ख्याल रखेगी. लड़के को रात की ट्रेन पकड़ के शहर को जाना था...वो सोच नहीं पा रहा था कि कैसे बताये...उसने सारी बातें तो सुन ली पर उसे मालूम नहीं था कि उसके जाने के पहले लड़की सवाल भी पूछ उठेगी कि जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं होगा...
'मुझे छोड़ के जा रहे हो?'
उसके माथे में भंवर थे...भंवर हमारे तरफ कहते हैं जब सर के बाल एक खास तरह से गोल घुमते हुए निकलते हैं, कहते हैं कि जिस इंसान के माथे में भंवर हो उसकी मृत्यु पानी में डूब के होगी. उसे पोखर, तालाब, कुआँ, नदी, समंदर सब जगह से दूर रखा जाता था...यूँ करना तो ऐसा चाहिए था कि जिस व्यक्ति को डूबने का डर हो उसे खास तौर से तैरना सिखाया जाए मगर अंधविश्वास हमेशा तर्क पर भारी पड़ता था. बाढ़ उन गाँवों में एक मान्यताप्राप्त स्थिति थी...साल में एक बार उन्हें पता था कि सब बह जाएगा और फिर से बसना होगा. असल बेचैनी का जन्म तो तब होता था जब ऐसा कोई लड़का घर से बाढ़ के वक़्त बिना बताये निकल जाए...और वो कहाँ गया है इसका अंदाजा मात्र इस बात से लगाया जा सके कि उसने किस ओर का रुख किया था. बाढ़ के समय चिट्ठियां भी नहीं आती थीं...किस पते पर आतीं जब पूरा गाँव ही अपनी जगह न हो.
ऐसे ही खोये, भुतलाये हुए गाँव में एक लड़का गर्मी के दिनों में नहर वाले खेत के पास के पुआल के टाल पर लेटा हुआ हुआ था...नीम के पेड़ की छाँव थी और नहर की ओर से हवा आती थी तो भीगे आँचल सी ठंढी हो जाती थी इसलिए उस कोने में बाकी गाँव के बनिस्पत गर्मी काफी कम थी. चेहरे को गमछे से ढके हुए वो सोच रहा था कि ऐसे ही बाढ़ वाले दिन अगर स्कूल की उस लड़की का हाथ पकड़ पर किसी नाव पर बैठा ले और मल्लाह को पिछले पूरे साल के जोड़े हुए २० रुपये दे तो क्या मल्लाह उसे ऐसी जगह पहुंचा देगा जहाँ से चिट्ठियां गिराने का कोई डाकखाना न हो...अगर उसी मल्लाह को अपना चाँदी का कड़ा भी दे दे तो क्या ऐसा होगा कि वो घर पर किसी को ना बताये कि वो किस गाँव चला आया है. यहाँ तक तो कोई तकलीफ नहीं दिख रही थी...मल्लाह उसे ऐसा व्यक्ति लगता था जो उसकी बात मान जाएगा...हँसते चेहरे वाले उस मल्लाह के गीत में एक ऐसी टीस उभरती थी जो लड़के को लगता था कि सिर्फ उसे सुनाई देती थी.
समस्या अब बस ये थी कि लड़की क्या करेगी ऐसे में...उसे अभी तक उसका नाम भी नहीं मालूम था...दुनियादारी का इतना पता था बस कि वो अगर घर से घंटों बाहर रहे तो कोई नहीं पूछता कि वो कहाँ गया है, कब आएगा...मगर उसकी ही बहनें कहाँ जा रही हैं, किसके साथ जा रही हैं, कितनी देर में आयेंगे इसकी पूरी जानकारी घर में रहती थी...कोई लड़की कभी भी खो नहीं सकती थी...लड़कियां दिख भी जाती थीं भीड़ में अलग से...लड़के बाढ़ में, पानी में, शहर में, शादियों में, मेले में भले गुम हो जाएँ लड़कियां कभी गुम नहीं होतीं...उन्हें हमेशा ढूंढ लिया जाता. उसे तो अब तक लड़की का नाम भी नहीं पता था...उसने कभी उसकी आवाज़ भी नहीं सुनी थी...लड़की को सर झुकाए क्लास में आते जाते, चुप खाना खाते देखते हुए उसके दिल में बस एक हसरत जागने लगी थी कि वो उसका दायीं कलाई पकड़ के मरोड़ दे कुछ ऐसे कि वो हाथ छुड़ा भी न सके...वो सुनना चाहता था कि वो ऐसे में कैसे चीखती है...हालाँकि उसे लगता था कि तब भी लड़की एक आवाज़ नहीं निकालेगी...दांत के नीचे होठ भींच लेगी जब तक कि खून न निकल आये और वो खुद ही उसकी नील पड़ी कलाइयाँ छोड़ दे. ये लड़कियों को दर्द कैसे नहीं होता...या कि फिर दर्द होने पर रोती क्यूँ नहीं हैं.
ऐसे ही सपने बुनने वाली खाली दोपहरों के बाद वाली एक दोपहर के बाद लड़का कहीं नहीं दिखा...मल्लाह ने बहुत सालों कोई गीत नहीं गाया...लड़की की उसी लगन में बहुत दूर के गाँव शादी हो गयी...बगल के गाँव का एक पागल फकीर लोगों को चिल्ला चिल्ला के बताता रहा कि पूरनमासी की रात नदी का पानी खून की तरह लाल हो गया था...उसके घर की औरतों का इंतज़ार उनकी आँखों में ही ठहर गया.
इस किस्से के काफी सालों बाद उस लड़की की बेटी हुयी...उसका रूप ऐसे दमकता था कि वो बिना दुपट्टे के कहीं नहीं जाती थी...आज वो एक लड़के को इमली के पेड़ के नीचे बैठी ये कहानियां सुना रही है...कहते हैं इमली के पेड़ पर भूत रहता है...लड़की को जाने कैसे यकीन था कि इस पेड़ पर एक आत्मा है जो उसे कभी नुक्सान नहीं पहुंचाएगी...उसका ख्याल रखेगी. लड़के को रात की ट्रेन पकड़ के शहर को जाना था...वो सोच नहीं पा रहा था कि कैसे बताये...उसने सारी बातें तो सुन ली पर उसे मालूम नहीं था कि उसके जाने के पहले लड़की सवाल भी पूछ उठेगी कि जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं होगा...
'मुझे छोड़ के जा रहे हो?'
उसने सारी बातें तो सुन ली पर उसे मालूम नहीं था कि उसके जाने के पहले लड़की सवाल भी पूछ उठेगी कि जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं होगा...
ReplyDelete'मुझे छोड़ के जा रहे हो?'
शब्द नहीं हैं मेरे पास..कुछ कहने को..आपने लहरों में बहा ही दिया..
SUPERB POST.... BEYOND DESCRIBE
ReplyDeletetoo gud
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
राम राम जी..
ReplyDeleteअद्भुत प्रवाह..शब्दों का भी भावनाओं का भी....
कल्पनाओ का बहुत ही कम फासला रह जाता कई बार वास्तविकताओ से..... पर फिर भी हम बह रहे होते है कल्पनाओ की लहरों पर..... एहसासों की बहुत ही सहज व् सरल अभिव्यक्ति...
कुँवर जी,
awesome... is it the right word to describe this post... no not at all.
ReplyDeletefabulous .. may be
भँवर तो हमारे सर में भी है, जब जिन्दगी में डूब चुके हैं तो पानी से क्या घबराना, अब तो जीने में और तैरने में आनन्द आने लगा है।
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - शिकागो के जयघोष की गूंज - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteखामोश मुहब्बत.... इसे क्या नाम दें...??
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन।
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बिहारी नोनी की बिंदास लेखनी के जादू को सलाम ......
ReplyDeleteतू बड़ी अद्भुत लड़की है रे पूजा ! ......शब्दों और भावों की जादूगरनी .....
प्रेम और समर्पण की सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत
प्रेम और समर्पण की सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत