धीरे धीरे बिसर रहा था कैस उसकी आँखों से...रुबाब पर बज रही थी कोई प्राचीन धुन...इतनी पुरानी जितना इश्क था...इतनी पुरानी जितना कि वो वक़्त जब कि कैस की जिन्दा आँखों में उसकी मुहब्बत के किस्से हुआ करते थे. मगर रेगिस्तान बहुत बेरहम था...उसकी दलदली बालू में लड़की के सारे ख़त गुम जाया करते थे. मगर लड़की गंगा के देश की थी...उसने दलदल नहीं जानी थी. उसके लिए डूबना सिर्फ गंगा में डूबना होता था...जिसमें कि यादों को मिटा देने की अद्भुत क्षमता थी.
वो भी ऐसी ही एक रात थी. कैलेण्डर में दर्ज हुयी रातों से मुख्तलिफ. वो किस्से कहानियों की रात थी...वो किस्से कहानियों सी रात थी. लड़की को याद आता आता सा एक लम्हा मिला कि जिसमें उसके नीले रंग की पगड़ी से खुशबू आ रही थी. उसने अपनी उँगलियों में उसके साफे का वो जरा सा टुकड़ा चखा था, रेशम. उसके बदन से उजास फूटती थी. जरा जरा चांदी के रंग की. कैस किम्वदंती था. लड़की को उसके होने का कोई यकीन नहीं था इसलिए उसकी सारी बातों पर ऐतबार किया उसने. यूँ भी ख्वाब में तो इंसान को हर किस्म की आज़ादी हुआ करती है. लड़की कैस के हाथों को छूना चाहती थी...मगर कैस था कि रेत का काला जादू...अँधेरी रात का गुमशुदा जिन्न...फिसलता यूँ था कि जैसे पहली बार किसी ने भरा हो आलिंगन में.
वे आसमान को ताकते हुए लेटे हुए थे. अनगिनत तारों के साथ. आधे चाँद की रात थी. आकाशगंगा एक उदास नदी की तरह धीमे धीमे अपने अक्ष पर घूम रही थी. लड़की उस नदी में अपना दुपट्टा गीला कर कैस की आँखों पर रखना चाहती थी. ठंढी आँखें. कैस की ठंढी आँखें. दुपट्टे में ज़ज्ब हो जाता उसकी आँखों का रंग जरा सा. बारीक सी हवा चलती थी...कैसे के चेहरे को छूती हुयी लड़की के गालों पर भंवर रचने लगती.
लड़की की नींद खुलती तो सूरज चढ़ आया होता उसके माथे के बीचो बीच और रेत एक जलते हुए जंगल में तब्दील हो जाया करती. तीखी धूप में छील दिया करती रात का सारा जादू. उसकी उँगलियों से उड़ा ले जाती स्पर्श का छलावा भी. आँखों में बुझा देती उसे एक बार देखने के ख्वाहिश को भी. दुपहर की रेत हुआ करती नफरतों से ज्यादा चमकदार. लड़की की पूरी पलटन सब भूल कर वापस लग जाती खुदाई के कार्य में. उस लुटे हुए पुराने शहर में बरामद होता एक ही कंकाल...गड्ढों सी धंसी आँखों से कभी नहीं पता चल पाता कि क्या था उसकी आँखों का रंग. उसका नीला रेशम का साफा इतना नाज़ुक होता जैसे कि लड़की का दिल...छूने से बदलता जाता रेत में. ऐसे ही गुम क्यों न हो जाती कैस की याद?
उसे भूलना नामुमकिन हुआ करता. लड़की रातों रात दुहराती रहती एक ही वाक्य 'वो सच नहीं था...वो सच नहीं था'. वो भुलावा था. छल था. मायावी थी. तिलिस्मी. लड़की की कहानियों का किरदार.
कैस...उफ़ कैस...कि कैस कोई किरदार नहीं था...प्रेम को दिया हुआ एक नाम था बस. एक अभिमंत्रित नाम कि जिसके उच्चारण से जिन्दा हो उठता था प्रेम...किसी के भी दिल में...
फिर वो लड़की मीरा की तरह कृष्ण कृष्ण पुकारे या कि मेरी तरह तुम्हारा नाम.