15 September, 2014

चार दिन की जिन्दगी है, तीन रोज़ इश्क़



कॉफ़ी का एक ही दस्तूर हो...उसका रंग मेरी रूह से ज्यादा सियाह हो. लड़की पागल थी. शब्दों पर यकीन नहीं करती थी. उसे जाते हुए उसकी आँखों में रौशनी का कोई रंग दिख जाता था...उसकी मुस्कराहट में कोई कोमलता दिख जाती थी और वो उसकी कही सारी बातों को झुठला देती थी. यूँ भी हमारा मन बस वही तो मानना चाहता है जो हम पहले से मान चुके होते हैं. किसी के शब्दों का क्या असर होना होता है फिर. तुम्हारे भी शब्दों का. तुम क्या खुदा हो.
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दोनों सखियाँ रोज शाम को मिलती थीं. उनके अपने दस्तूर थे. रात को थपकियाँ देती लड़की सोचती थी कि अगली सुबह किसी दूर के द्वीप का टिकट कटा लेगी और चली जायेगी इतनी दूर कि चाह कर भी इस जिंदगी में लौटना न हो सके. उसका एक ही सवाल होता था हमेशा...वो चाहती थी कि कोई हो जो सच को झुठला दे...बार बार उससे एक ही सवाल पूछती थी...
'प्लीज टेल मी आई डोंट लव हिम...प्लीज'
वो इस तकलीफ के साथ जी ही नहीं पाती थी...मगर कोई भी नहीं था जिसमें साहस का वो टुकड़ा बचा हो जो उसकी सियाह आँखों में देख कर सफ़ेद झूठ कह सके...यू डोंट लव हिम एनीमोर...

तब तक की यातना थी. शाम का बारिश के बाद का फीका पड़ा हुआ रंग था. घर भर में बिना तह किये कपड़े थे. वेस्ट बास्केट में फिंके हुए उसके पुराने शर्ट्स थे जो जाने कितने सालों से अपने धुलने का इंतज़ार करते करते नयेपन की खुशबू खो चुके थे. सबसे ऊपर बिलकुल नयी शर्ट थी, एक बार पहनी हुयी...जिसकी क्रीज में उसका पहला हग रखा हुआ था. उसी रात लड़के ने पहली बार चाँद आसमान से तोड़ कर शर्ट की पॉकेट में रख लिया था. तब से लड़की सोच रही है कि चाँद को कमसे कम धो कर, सुखा कर और आयरन कर वापस आसमान में भेज दे...मगर नहीं...इससे क्रीजेस टूट जाएँगी और उसके स्पर्श का सारा जादू बिसर जाएगा. दुनिया में लोग रोजे करते करते मर जाएँ इससे उसे क्या. वो भी तो मर रही है लड़के के बिना. किसी ने कहा जा के उससे कि वो प्यार करती है उससे. फिर. फिर क्या पूरी दुनिया के ईद का जिम्मा उसका थोड़े है. और चाँद कोई इतना जरूरी होता तो अब तक खोजी एजेंसियों ने तलाश लिया होता उसे. मगर लड़की ड्राईक्लीनर्स को थोड़े न उसकी शर्ट दे देगी. पहली. आखिरी. 

फूलदान में पुराने फूल पड़े हुए थे. कितने सालों से घर में ताज़े फूलों की खुशबू नहीं बिखरी थी. लड़की ने तो फूल खरीदने उसी दिन बंद कर दिए थे जिस दिन लड़के ने जाते हुए उसके लिए पीले गुलाबों का गुलदस्ता ख़रीदा था. हम उम्र भर दोस्त रहेंगे. वो उसे कैसे बताती, कि जिस्म में इश्क का जहर दौड़ रहा है...जब तक कलाई में ब्लेड मार कर सारा खून बहाया नहीं जाएगा ये दोस्ती का नया जुमला जिंदगी में कुछ खुशनुमा नहीं ला सकता...मगर इतना करने की हिम्मत किसे होती भला...उसकी कलाइयाँ बेहद खूबसूरत थीं...नीलगिरी के पेड़ों जैसी...सफ़ेद. उनसे खुशबू भी वैसी ही भीनी सी उठती थी. नीलगिरी के पत्तों को मसलने पर उँगलियों में जरा जरा सा तेल जैसा कुछ रह जाता था...उसे छूने पर रह जाती थी वो जरा जरा सी...फिर कागजों में, कविताओं में, सब जगह बस जाती थी उसकी देहगंध.

लड़की को अपनी बात पर कभी यकीन नहीं होता था. वो तो लड़के के बारे में कभी सोचती भी नहीं थी. मगर उसे यकीन ही नहीं होता था कि वो उसे भूल चुकी है. उसे अभी भी कई चौराहों पर लड़के की आँखों के निशान मिल जाते थे...लड़का अब भी उसे ऐसे देखता था जैसे कोई रिश्ता है...गहरा...नील नदी से गहरा...वो क्यूँ मिलता था उससे इतने इसरार से...काँधे पर हल्के से हाथ भी रखता था तो लड़की अगले कई सालों तक अपनी खुशबू में भी बहक बहक जाती थी. मगर इससे ये कहाँ साबित होता था कि वो लड़के से प्यार करती है. वो रोज खुद को तसल्ली देती, मौसमी बुखार है. उतर जाएगा. जुबां के नीचे दालचीनी का टुकड़ा रखती...कि ऐसा ही था न उसके होठों का स्वाद...मगर याद में कहाँ आता था टहलता हुआ लड़का कभी. याद में कहाँ आती थी साझी शामें जब कि साथ चलते हुए गलती से हाथ छू जाएँ...किसी दूकान के शेड के नीचे बारिशों वाले दिन सिगरेट पीने वाले दिन कहाँ आते थे अब...वो कहाँ आता था...अपनी बांहों में भरता हुआ...कहता हुआ कि आई डोंट लव यू...यू नो दैट...मगर फिर भी तुम हो इतना काफी है मेरे लिए. उसे 'काफी होना' नहीं चाहिए था. उसे सब कुछ चाहिए था. मर जाने वाला इश्क. उससे कम में जीना कहाँ आया था जिद्दी लड़की को. किसी दूसरे शहर का टिकट भी तो इसलिए कटाया था न कि उसकी यादों से न सही, उससे तो दूर रह लेगी कुछ रोज़...

अपनी सखी से मिलती थी हर रोज़...सुनाती थी लड़के के किस्से...सुनाती थी और बहुत से देशों की कहानियां...और जैसे कोई ड्रग एडिक्ट पूछता है डॉक्टर से कि मर्ज एकदम लाइलाज है कि कोई उपाय है...पूछती थी उससे...

'प्लीज टेल मी आई डोंट लव हिम, प्लीज'.

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