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दोनों सखियाँ रोज शाम को मिलती थीं. उनके अपने दस्तूर थे. रात को थपकियाँ देती लड़की सोचती थी कि अगली सुबह किसी दूर के द्वीप का टिकट कटा लेगी और चली जायेगी इतनी दूर कि चाह कर भी इस जिंदगी में लौटना न हो सके. उसका एक ही सवाल होता था हमेशा...वो चाहती थी कि कोई हो जो सच को झुठला दे...बार बार उससे एक ही सवाल पूछती थी...
'प्लीज टेल मी आई डोंट लव हिम...प्लीज'
वो इस तकलीफ के साथ जी ही नहीं पाती थी...मगर कोई भी नहीं था जिसमें साहस का वो टुकड़ा बचा हो जो उसकी सियाह आँखों में देख कर सफ़ेद झूठ कह सके...यू डोंट लव हिम एनीमोर...
तब तक की यातना थी. शाम का बारिश के बाद का फीका पड़ा हुआ रंग था. घर भर में बिना तह किये कपड़े थे. वेस्ट बास्केट में फिंके हुए उसके पुराने शर्ट्स थे जो जाने कितने सालों से अपने धुलने का इंतज़ार करते करते नयेपन की खुशबू खो चुके थे. सबसे ऊपर बिलकुल नयी शर्ट थी, एक बार पहनी हुयी...जिसकी क्रीज में उसका पहला हग रखा हुआ था. उसी रात लड़के ने पहली बार चाँद आसमान से तोड़ कर शर्ट की पॉकेट में रख लिया था. तब से लड़की सोच रही है कि चाँद को कमसे कम धो कर, सुखा कर और आयरन कर वापस आसमान में भेज दे...मगर नहीं...इससे क्रीजेस टूट जाएँगी और उसके स्पर्श का सारा जादू बिसर जाएगा. दुनिया में लोग रोजे करते करते मर जाएँ इससे उसे क्या. वो भी तो मर रही है लड़के के बिना. किसी ने कहा जा के उससे कि वो प्यार करती है उससे. फिर. फिर क्या पूरी दुनिया के ईद का जिम्मा उसका थोड़े है. और चाँद कोई इतना जरूरी होता तो अब तक खोजी एजेंसियों ने तलाश लिया होता उसे. मगर लड़की ड्राईक्लीनर्स को थोड़े न उसकी शर्ट दे देगी. पहली. आखिरी.
लड़की को अपनी बात पर कभी यकीन नहीं होता था. वो तो लड़के के बारे में कभी सोचती भी नहीं थी. मगर उसे यकीन ही नहीं होता था कि वो उसे भूल चुकी है. उसे अभी भी कई चौराहों पर लड़के की आँखों के निशान मिल जाते थे...लड़का अब भी उसे ऐसे देखता था जैसे कोई रिश्ता है...गहरा...नील नदी से गहरा...वो क्यूँ मिलता था उससे इतने इसरार से...काँधे पर हल्के से हाथ भी रखता था तो लड़की अगले कई सालों तक अपनी खुशबू में भी बहक बहक जाती थी. मगर इससे ये कहाँ साबित होता था कि वो लड़के से प्यार करती है. वो रोज खुद को तसल्ली देती, मौसमी बुखार है. उतर जाएगा. जुबां के नीचे दालचीनी का टुकड़ा रखती...कि ऐसा ही था न उसके होठों का स्वाद...मगर याद में कहाँ आता था टहलता हुआ लड़का कभी. याद में कहाँ आती थी साझी शामें जब कि साथ चलते हुए गलती से हाथ छू जाएँ...किसी दूकान के शेड के नीचे बारिशों वाले दिन सिगरेट पीने वाले दिन कहाँ आते थे अब...वो कहाँ आता था...अपनी बांहों में भरता हुआ...कहता हुआ कि आई डोंट लव यू...यू नो दैट...मगर फिर भी तुम हो इतना काफी है मेरे लिए. उसे 'काफी होना' नहीं चाहिए था. उसे सब कुछ चाहिए था. मर जाने वाला इश्क. उससे कम में जीना कहाँ आया था जिद्दी लड़की को. किसी दूसरे शहर का टिकट भी तो इसलिए कटाया था न कि उसकी यादों से न सही, उससे तो दूर रह लेगी कुछ रोज़...
अपनी सखी से मिलती थी हर रोज़...सुनाती थी लड़के के किस्से...सुनाती थी और बहुत से देशों की कहानियां...और जैसे कोई ड्रग एडिक्ट पूछता है डॉक्टर से कि मर्ज एकदम लाइलाज है कि कोई उपाय है...पूछती थी उससे...
'प्लीज टेल मी आई डोंट लव हिम, प्लीज'.
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/09/blog-post_16.html
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteतुम करती हो अब भी उससे प्यार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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