‘तुम्हारी जिंदगी में मेरी
क्या जगह है?’
‘तिल भर’
‘बस?’
‘हाँ, बस। बायें हाथ की तर्जनी पर,
नाखून से जरा ऊपर की तरफ एक काले रंग का तिल है...वही तुम हो।‘’
‘वहीं क्यूँ भला?’
‘दाहिने हाथ से लिखती हूँ न,
इसलिए’
‘ये कैसी बेतुकी बात है?’
‘अच्छा जी, हम करें तो बेतुकी बात,
तुम कहो तो कविता’
‘मैंने कभी कुछ कहा है कविता के बारे में,
कभी तुम्हें सुनाया है कुछ...तो ताने क्यों दे रही हो?’
‘नहीं...मगर मैंने तुम्हारी डायरी पढ़ी है’
‘तुम्हें किसी चीज़ से डर लगता भी है,
क्यूँ पढ़ी मेरी डायरी बिना पूछे?’
‘तुम मेरी जिंदगी में किसकी इजाजत ले कर आए थे?’
‘तुमने कभी कहा कि यहाँ आने का गेटपास लगता है?
फिर तुमने वापस क्यूँ नहीं भेजा?’
‘तुम शतरंज अच्छी खेलते हो न?’
‘तुम मुझसे प्यार करती हो न?’
‘तुमसे तो कोई भी प्यार करेगा’
‘मैंने ओपिनियन पोल नहीं पूछी तुमसे...तुम अपनी बात
क्यूँ नहीं करती?’
‘मेरे मरने की खबर तुम तक बहुत देर में पहुंचेगी,
जब तुम फूट फूट कर रोना चाहोगे मेरे शहर के किसी अजनबी के सामने तो वो कहेगा "अब
तो बहुत साल हुये उसे दुनिया छोड़े...अब क्या रोना.....तुम्हें किसी ने बताया नहीं
था....अब तो उसे सब भूल चुके हैं"...'
‘तुम मुझसे पहले नहीं मरने वाली हो,
इतना मुझे यकीन है’
‘अच्छा तो अब काफिर नमाज़ी होने चला है,
तुम कब से इतनी उम्मीदों पर जीने लगे?’
लड़के ने लड़की का बायाँ हाथ
अपने हाथ में लिया और तिल वाली जगह को हल्के हल्के उंगली से रगड़ने लगा। लड़की
खिलखिलाने लगी।
‘क्या कर रहे हो?’
‘तुम्हारा क्या ठिकाना है लड़की,
देख रहा हूँ कि सच में तिल ही है न कि तुमने मुझे बहलाया है’।
‘भरोसा नहीं हमपे और इश्क़ की बातें करते हो! बचपन से है
तिल...कुछ लिखते समय जब कॉपी को पकड़ती हूँ तो हमेशा सामने दिखता है। ये तिल मेरे
लिख हर लफ्ज का नजरबट्टू है...तुम्हें चिट्ठी लिखती हूँ तो वो थोड़ा सा फिसल कर
तुम्हारे नाम के चन्द्रबिन्दु में चला जाता है।‘
‘यानि तुम्हारे साथ हमेशा रहूँगा...चलो तिल भर ही
सही’
‘ऐसा कुछ पक्का नहीं...दायें हाथ में एक तिल
था...अनामिका उंगली में...पता है उसके कारण वो उंगली ढूंढो वाला खेल कभी खेल नहीं
पाती थी...साफ दिख जाता था...वो तिल मुझे बहुत पसंद था...कुछ साल पहले गायब हो
गया। आज भी उसे मिस करती हूँ...अपना हाथ अपना नहीं लगता।‘
‘तुम चली क्यूँ नहीं जाती मुझे छोड़ कर?’
‘इस भुलावे में क्यूँ हो कि तुम मेरे हो?
मैंने कोई हक़ जताया तुमपर कभी? कुछ मांगा? तुमने कुछ दिया मुझे कभी?
तो तुम कैसे मेरे हो? आँखें मीचते उठो...मैंने आज सुबह ही उगते सूरज से
दुआ मांगी है...दिल पे हाथ रख के...कि तुम मुझे भूल जाओ।
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एक दिन बाद।
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‘तुमसे पहली बार बात कर रहा हूँ,
फिर भी तुम मुझे जाने क्यूँ बहुत अपनी लग रही हो...जैसे कितने सालों से जानता हूँ
तुमको...माफ करना...पहली बार में ऐसी बातें कर रहा हूँ तुम भी जाने क्या
सोचोगी...पर कहे बिना रहा नहीं गया।'
इस बार लड़की कुछ न कह सकी,
उसकी आँखों में पिछले कई हज़ार साल के अश्क़ उमड़ आए।
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उस नासमझ लड़की की दोनों
दुआएँ कुबूल हो गईं थी।
लड़का उसे हर सिम्त भूल
जाता था।
वो उस लड़के को कोई सिम्त
नहीं भूल पाती थी।
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जब हम किसी से बहुत प्यार
करते हैं तो उसकी खुशी की खातिर दुआएँ मांग तो लेते हैं...पर यही दुआएँ कुबूल हो
जाएँ तो जान तुम्हारी कसम...ये इश्क़ जान ले लेगा हमारी किसी रोज़ अब।