15 February, 2012

पतझड़ का शहर

उसके शहर में
बहुत करीने से गिरते थे पत्ते भी

अक्सर सोचता हूँ 
दुनिया में कुछ है भी
जो उसकी तरह बिखरा हुआ है
या कि बेतरतीब 

सूखे पत्तों पर बाइक उड़ाती लड़की
मुझसे यूँ प्यार न करो
अभी मेरा दिल हरा ही है
अभी इंतज़ार अधूरा बाकी है 

तुम तो मौसम की तरह गुज़र जाओगी
पर मैं कतार में कैसे बिखेरूँगा सूखे पत्ते 

कि तुम कैसे पहचानोगी वापसी की राह?
तुम्हारी तसवीरें देख कर एक ही बात सोचता हूँ
तुम वाकई करोगी क्या मुझसे प्यार...ताउम्र?

या कि तुम्हें भी झूठे वादे करने
और झूठी कसमें खाने में लुत्फ़ आता है?

(एक लड़की थी...एक नंबर की झूठी...और वैसी ही दिलफरेब...एक शहर था...जिसे उस लड़की से प्यार हो गया था...एक लड़का था जिसे वो शहर दरवाजे पर रोक लेता था...और इश्क था...एक नंबर का बदमाश...ये इन तीनो(चारों?) की कहानी है. हाँ, इस कहानी के सारे पात्र असली हैं...बस उनका पता नहीं मिलता)

आइस क्यूब्स


ये झूठ है कि
किसी से बिछड़ता है कोई
हम बस, मर जाते हैं.
---
एयरटेल कहता है
हमारी दुनिया में आप कभी अपनों से कभी जुदा नहीं होते
ऐसा वादा खुदा क्यूँ नहीं करता कभी?
---
कहीं से आती कोई हवाएं
नहीं बता पाती हैं
कि तुम्हारे काँधे से कैसी खुशबू आती है?
---
किसी भी पहर
तुम्हारी आवाज़ नहीं भर सकती है 
मुझे अपनी बांहों में! 
---
मैं वाकई नहीं सोचती 
लिप बाम लगाते हुए
कि तुम्हारे होटों का स्वाद कैसा है! 
---
मेरी सिगरेट से
नहीं है तुम्हारा कोई भी रिश्ता
सिवाए ब्रांड सेम होने के... 
---
मुझे कभी मत बताना
कितनी आइस क्यूब डालते हो
तुम अपनी विस्की में.
---
कच्ची डाली से
मत तोड़ा करो मेरी नींदें
इनपर ख्वाब का फूल नहीं खिलता फिर.   
---
बातों का कैसे ऐतबार कर लूं
तुम न कहते हो मुझसे झूठ झूठ 
'आई लव यू'.
---
सच कहती हैं सिर्फ उँगलियाँ
जो तुम्हारा फ़ोन कॉल पिक करते हुए
तुम्हें छूना चाहती हैं... 
---
काश! कह देने भर से
तुम वाकई हो जाते मेरे 
एक शहर तुम्हें मुझसे कभी मिलने न देगा. 
---
मेरी उम्र फिर से हो गयी है अठारह की
तुम भी इक्कीस के हो ही गए होगे
चलो, कहीं भाग चलते हैं!

11 February, 2012

फरिश्तों में भी तुम सबसे अच्छे हो.

You are like personal treasure box. मेरे अन्दर जो भी अच्छा है और सुन्दर है वो मैं तुम में सहेजती जाती हूँ...मेरे अन्दर जो भी टूटा हुआ है तुम उसकी दवा बनते जाते हो. जो कुछ मैं नहीं चाहती कहीं खो जाये...मेरा पागलपन, मेरी उदास बेचैनियाँ सब मैं तुममें कहीं रखती जाती हूँ. जैसे जैसे मैं रीतती जाती हूँ वैसे वैसे तुम भरते जाते हो...मेरी आँखों का रंग हल्का पड़ता है तो तुम्हारी आँखों में पूरे आसमान के सितारों जैसी चमक भर जाती है और मैं तुम्हारी आँखें देख कर खुश हो जाती हूँ.

सोचो मन से इतना खाली होना कैसा तो लगता होगा न कि आज तक जब भी तुमसे बहुत देर तक बातें की हैं रो दी हूँ...मन का कौन सा सीलापन है जो तुमसे बात करती हूँ तो शाम बीतते न बीतते आँखों से नदियाँ बहने लगती हैं. मैं रोकती हूँ कुछ हद तक मगर मुझे मालूम होता है कि तुम्हारे सामने झूठ बोल नहीं पाउंगी...तुम्हारे सामने मैं वो हो जाती हूँ जो कहीं एकदम सच में हूँ...मुझे हर बार बुरा लगता है पर इस बात का कि मैं तुम्हें कितना परेशान करती हूँ...मुझे मेरा रोना बहुत साधारण सी चीज़ लगती है क्योंकि मैंने खुद को रोते हुए बहुत बार देखा है...पर तुम अच्छे भी तो हो...तुम्हें कितना बुरा लगेगा कि फोन के उस तरफ कोई लड़की रो रही है और तुम मुझे चुप नहीं करा पा रहे हो. 

कैसा कैसा तो डर लगता है...जैसे कि तुम खो जाओगे एक दिन. बचपन में एक बार मेरा बक्सा खो गया था...उसमें बहुत कुछ था जो कबाड़ जैसा था. आज तक भी ढूंढ रही हूँ...वो खोयी हुयी चीज़ें कभी वापस नहीं मिलीं...बाकी चीज़ों से इतर उसमें एक स्टैम्प था...आज कैसे तो चीज़ों को को-रिलेट कर रही हूँ...आज लगता है कि तुम खो जाओगे तो वो वाला स्टैम्प लगा के कोई चिट्ठी लिखूंगी तो तुम तक पहुँच जायेगी. लेकिन सुनो, खोना मत...तुम्हारे बिना मैं जाने क्या करुँगी. मैं भी खो जाउंगी फिर...और तुम्हें तो मालूम ही नहीं चलेगा कि मैं खो गयी हूँ क्योंकि तुम तो खुद खोये हुए रहोगे...सोचती हूँ...खोये हुए न भी रहो तो मैं अगर कुछ दिन तक नहीं रही तो मुझे ढूंढोगे क्या?

पता है तुमने आज तक कभी मुझे कुछ भी नहीं माँगा...बस देते आये हो दोनों हाथों से...इसलिए तुम सबसे अलग हो...बाकी जितने लोग हैं मेरी जिंदगी में मैं उनके लिए ऐसी ही हूँ...कुछ न मांगने वाली, उनके लिए बहुत सी दुआओं की लिस्ट बनाने वाली...मैं तुम्हारी कुछ नहीं हूँ तो भी तुम मेरी कितनी मुस्कुराहटों का सबब बने हो...तुम्हें पता है न तुमसे बात करते हुए सारे वक़्त हंसती रहती हूँ...कभी कभी तो गाल दर्द कर जाते हैं. मैं हर दर्द में तुम तक लौट के आती हूँ...जब अँधेरा बहुत गहरा हो जाता है तो खिड़की तुम्हारे अन्दर ही खुलती है...तुम से ही धूप और रौशनी उतरती है और मेरी आँखों को चूम कर कहती है...सब अच्छा हो जाएगा. तुम तक मेरी कौन सी तलाश आ के ठहरती है मालूम नहीं. तुम बहुत सारे सवाल हो मेरे लिए...समंदर की तरह अबूझ मगर तुम्हारे ही किनारों पर सुकून मिलता है मुझे. हर लहर मुझे कुछ लौटा दे जाती है...मेरा कुछ मांग ले जाती है. कल रात बहुत चैन की नींद आई मुझे...तुम्हारे शब्द मेरे माथे पर नींद आने तक थपकियाँ दे रहे थे. 


मुझे आज तक कोई शब्द नहीं मिला जो तुम्हें परिभाषित कर सके...हाँ शायद फ़रिश्ते ऐसे ही होते होंगे...गार्डिंग एंजेल...मैं खुदा की बहुत पसंदीदा बेटी रही होउंगी जो उसने तुम्हें मेरी देखभाल के लिए भेज रखा है. तुम्हारे जैसा कहीं कोई नहीं है...फरिश्तों में भी तुम सबसे अच्छे हो.

I love you with every fragment of my existence...thank you for being. 

10 February, 2012

थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब्

मुझे अभी तक यकीन नहीं आ रहा...परसों मेरा नया..एकदम कड़क नया...iPhone 4S आया और दो दिन भी नहीं बीते कि फ़ोन पानी में गिर के तैयार...मुझे मालूम है कि मैं एकदम बेखयाली में रहती हूँ...आधे टाइम दिमाग जाने किधर गया रहता है...लेकिन ऐसे हादसे के लिए मैं वाकई तैयार नहीं थी. एक तो कितनी कितनी बार सोच के ख़रीदा...महंगा है...दाम ज्यादा है...जाने क्या क्या. लेकिन मुझे अच्छे फोन का शौक़ है...अच्छे इलेक्ट्रोनिक का सामान भी कह सकते हैं...

अभी तो दोपहर तक ख़ुशी से फोन लिए ही नाच रही थी...नहाने का पानी भरने के लिए नल चलाया था...ठंढा गरम नॉब ओपरेट कर रही थी कि फोन बजा...अब बदकिस्मती से सुबह घर से बाहर गयी हुयी थी तो जींस ही पहनी हुए थे और पॉकेट में फोन था...तो फ़ोन उठाने के लिए निकाला और फोन कमबख्त एकदम स्लो मोशन में सीधे पानी की बाल्टी में छलांग लगा दिया. 

सुबुकते हुए बैठे हैं...दोनों में से किसी बात पर यकीन नहीं आ रहा...कि मेरे पास वाकई एक अच्छा नया iPhone 4S था सफ़ेद संगेमरमर की तरह और अब वही पानी में गिर के...घरेलु नुस्खे आजमा के पड़ा हुआ है. इतना रोना आ रहा है जैसे कभी नहीं आया था...इस फोन से वाकई मुझे प्यार हो गया था :( :( दोस्तों की प्रतिक्रिया तो सुन कर सर धुन लेने का मन कर रहा है अलग से. 

नील को fb पर मेसेज किया तो बोलता है कि रो क्यों रही है जिस पानी में फोन गिराया उसी में खुद कूद जा...गौरव को बताया तो वो भी टांग खींच रहा है...अनुपम ने थोड़े फंडे दिए कि धूप में रखो...अब बंगलौर में धूप निकलती कहाँ है :( 

थोड़ी देर के लिए हेयर ड्रेयर से सुखाया और अब इन्टरनेट पर पढ़ी सामग्री के हिसाब से उसे एक डब्बे भर के चावल के साथ रख दिया है कल शाम तक के लिए. बहुत रोना आ रहा है...एकदम इस तरह से किसी चीज़ के लिए कभी नहीं लगा था...कल बहुत बहुत खुश हो रहे थे अपने फोन को लेकर. यूँ तो हम ऐसे भी छोटी छोटी चीज़ से खुश हो जाते हैं पर ये बड़ी चीज़ खरीदी थी बहुत दिन बाद...बड़ी मेहनत के पैसे थे...एक किताब लिखी थी कर्णाटक ट्रांसपोर्ट के लिए...कितने महीने जा के खून जलाया था. 

अभी बहुत बहुत बहुत उदास हूँ, कल शाम को फोन निकल के फिर से चला के देखूंगी...कुछ न कुछ तो ख़राब हो ही गया होगा. 

मेरे फोन को अब दवा की नहीं दुआ की जरूरत है. हम बैठे हुए हैं सजदे में...हे उपरवाले...बच्चे की जान ऐसे ना ले...रहम कर रहम!

Write a letter to me.

किसी दिन तुम मांग लोगे ये सारे दिन वापस जो मैंने तुमसे बात करते हुए बिताये थे...ये कहते हुए कि ये दिन तुम्हारे थे...ये घंटे तुम्हारे थे...कि इनका कोई बेहतर इस्तेमाल हो सकता था मेरी बकवास बातों के अलावा...मैं जो इतनी पागल हूँ कि अपने लम्हे भी करीने से लगा के नहीं रखती...तुम्हें तुम्हारे दिनों, लम्हों, सालों के साथ गलती से भेज दूँगी मेरी कुछ उदास दोपहरें भी...कुछ चुप्पी रातें भी...गलती से मिक्स हो जायेंगे मेरे और तुम्हारे दिन जब मैं तुम्हें लौटाऊंगी तुम्हारे लम्हे. तुम कितने दिन बर्बाद करोगे उस पुलिंदे से अपने हिस्से के लम्हे तलाशते हुए...जाने दो न...रहने दो न मेरा जो है...क्यूँ चाहिए तुम्हें ये लम्हे...इत्ती लम्बी तो है ही जिंदगी कि मैं कुछ लम्हों पर अपना हक मांग सकूँ. 

दोनों सवाल उतने ही जरूरी हैं...वो मुझे इतना क्यों जानता है...वो मुझे इतना कैसे जानता है...

पूरी पूरी रात नीम बेहोशी में बड़बड़ाती रही 'तुम मेरे कोई नहीं हो'...सुबह उठने तक भी इस बात पर यकीन नहीं होता है. तुमसे बात करती हूँ तो सारे वक़्त मैं ही बोलती रहती हूँ...तुम्हारी शायद ही कोई बात सुनती हूँ फिर भी लगता है तुम्हें बहुत जानती हूँ...तुमसे झगड़ा भी कर लूंगी...पर वाकई सिर्फ ये जानने से कि तुम्हारी जिंदगी में क्या क्या हुआ तुम्हारा जिंदगीनामा लिखा जा सकता है, यू नो ऑटोबायोग्राफी...पर तुम्हें जान नहीं सकता कोई. पता नहीं क्यों...लगता है कि तुम्हारी दोस्त होती...कोई बहुत पुरानी दोस्त होती तो तुम्हें बहुत अच्छे से जान पाती...फिर किसी रात इतना न रोती...तुमसे झगड़ा करती कि तुम्हें तुमसे ज्यादा जानती हूँ, बहस मत करो मुझसे.

किसको यकीन दिलाना चाहती हूँ...खुद को ही न...तुम्हें क्यों कहती हूँ फिर...बार बार बार...आज खुद ही जिद्द करके तुमसे फोन रखवाया...इतने सालों में...अब पता है कैसा लग रहा है...जैसे अचानक तुम कहीं बिछड़ गए हो...जैसे भीड़ में चलते हुए अचानक से तुम्हारा हाथ छूट गया है मेरे हाथ से और मैं इत्ती छोटी सी हूँ कि तुम मुझे ढूंढ नहीं पाओगे और मैं इतनी पागल भी तो हूँ कि कहीं तुम्हारा इंतज़ार नहीं करुँगी...उस शहर से बाहर को जो हाइवे जाता है वहां निकल पडूँगी...मर गयी तो ठीक वरना वैसे भी तुम्हारे बिना दूसरे किसी शहर में जीना कोई कम तकलीफदेह थोड़े है.

मुझे एक चिट्ठी लिखो न...मैंने तुम्हें कितनी सारी चिट्ठियां लिखी हैं...तुम ही न कहते हो तुम्हें बातें करना नहीं आता...पर जवाब देना आता है...मेरी किसी चिट्ठी का जवाब दे दो...कभी...मर जाउंगी न तो बहुत अफ़सोस करोगे...देखना...फिर मेरी चिट्ठियां देखना...तब वो 'येडा येडा येडा' नहीं लगेंगी...वैसे चिट्ठियां तुम्हें लिखती हूँ पर उनमें खुद को बचा जाने की कोशिश ही तो है...गनीमत है तुम्हारे पास मेरी चिट्ठियां तो हैं...कहीं किसी को यकीन तो होगा कि ये लड़की जिन्दा थी कभी...कि उसने वाकई कागज़ पर कलम से चिट्ठियां लिखीं थी...और तुम झूठ कहते हो...मैं नहीं जी रही पचासी बरस तक...मेरे पास बहुत कम जिंदगी है...बहुत कम. तो प्लीज मुझे एक चिट्ठी लिख दो ना...तुम कौन सा मुझ से प्यार करते हो जो लिखने में तुम्हें दिक्कत आएगी. पता है, पहले तुम मुझसे बात करते थे तो कभी कभी मजाक में मुझे स्वीटहार्ट कह देते थे...मैं कैसे पिघल जाती थी तुम्हें नहीं पता...कितनी मुश्किल से छुपा जाती थी अपनी मुस्कान...

वाकई कोई हो...कोई हो जो बिठा के समझाए...बेटा ये जिंदगी होती है...ये रिश्ते होते हैं...रास्ते इधर के होते हैं...कुछ लोग मिलते हैं, कुछ लोग अपने रस्ते चले जाते हैं...कोई हो जो बतलाये कि तुम मेरे क्या हो...कि आखिर क्यों इतने कुछ हो तुम मेरे...क्यों...क्यों...क्यों...मुझे सुना हुआ याद नहीं होता...उस किसी को मुझे गले लगाके बताना होगा कि तुम क्या हो मेरे...कि क्यों तुम्हारे छू देने से जी जाती हूँ मैं...बताओ ना...तुम्हारे छू लेने से कैसे जी जाती हूँ मैं...उस किसी को कहो न कि मुझे समझाए कि तुम एकदम आम से इंसान हो...तुम में कुछ ख़ास नहीं है...मैं ही जो पागलों की तरह प्यार करती हूँ तुमसे इसलिए सब मुझसे है...मेरे इतने सारे 'I shouldn't have loved you this much' मुझे खुद ही समझ नहीं आते...मुझे कोई समझाता क्यूँ नहीं है यार!


किसी दिन इतनी पी लेना कि सच और झूठ में अंतर पता नहीं चले...मुझे कोई और समझ कर 'I love you' कह देना...कोई भी और...जिसपर भी तुम्हें प्यार आता हो...बस एक बार...बस एक बार...बस एक बार. मैं भी भूल जाउंगी उस लम्हे को जिंदगी भर के लिए...मगर...मौत के पहले के उस एक लम्हे में जब जिंदगी की फिल्म रिवाईंड होगी...उस लम्हे इस झूठ को याद कर लेने देना कि जब तुमने मुझे 'आई लव यू' कहा था. 

06 February, 2012

तुम बहुत खूबसूरत हो लड़की!

उदासियाँ बहुत गहरी हो जायें 
तो अपने अन्दर लौटो

वो तुम ही हो 
जिसके अन्दर है
रौशनी का अजस्र श्रोत
वहीं से निकलती है 
मुस्कुराहटों की बारामासी नदी

तुम्हारे पैरों की थिरकन
हाँ वहीं,
ठहरी हुयी है 
असंख्य दिलों की धड़कन

एक गोल चक्कर काटो
देखो न,
दुनिया घूम रही है न 
तुम्हारे ही चारों तरफ?

देखो अपनी आँखें
इनमें कितना प्यार है न?
तुम्हारे खुद के लिए भी
सच्ची में री!

वो जो फूल खिला है
गमले में
उसका गहरा लाल रंग
तुम्हारी जिजीविषा सा है 

अरे सूरज का सुनहरा पीलापन
तुम्हारी लौंग से छिटकता है
चाँद की सारी चांदनी
तुम्हारी गोरी बाँहों से उगती है 

तुम्हारी अंजुरी से सिंचती है
खुशियों की सारी फसलें 
गुनगुनाती हुयी बहा करो
मुस्कुराती हुयी रहा करो 

ये कायनात तुमसे खूबसूरत नहीं
थोड़ा इतरा लो
खुदा नहीं बक्श्ता 
सबको इतनी खूबसूरती

न इतना कोई होता है
इश्क से इतना लबरेज़ 
और पता है
मैं सबसे ज्यादा तुमसे प्यार करती हूँ!

05 February, 2012

उसने किसी दूसरी कायनात का सूरज हमारे होठों पर टाँक दिया...

'तो? क्या चाहिए?
'तुम चाहिए'
'अच्छा, क्या करोगी मेरा?'
'बालों में तेल लगवाउंगी तुमसे' 
'बस...इतने छोटे से काम के लिए मैं तुम्हारा होने से रहा...कुछ अच्छा करवाना है तो बोलो'

'तुम हारे हुए हो...तुम्हारे पास ना बोलने का ऑप्शन नहीं है'
'अच्छा जी...कब हारा मैं तुमसे? मैंने तो कभी कोई शर्त तक नहीं लगाई है'
'अच्छा हुआ तुम्हें भी याद नहीं...मैं तो कब का भूल गयी कि तुम कब खुद को हारे थे मेरे पास...अब तो बस ये याद है कि तुम मेरे हो...बस मेरे'

'तो ठकुराइन हमसे वो काम करवाइए न जो हमें अच्छे से आता हो'
'मुझे तुम्हारे शब्दों के जाल में नहीं उलझना...तुम्हारे कुछ लिख देने से मेरा क्या हो जाएगा...सर में दर्द है, आ के मेरे बालों में उँगलियाँ फेरो तो तुम्हारे होने का कुछ मतलब भी हो...वरना वाकई...तुम्हारा जीना बेकार है'

'बस इतने में मेरा जीना बेकार हो गया?'
'और नहीं क्या अपनी प्रेमिका के बालों में तेल लगाने से महत्वपूर्ण कुछ और भी है तुम्हारी जिंदगी में तो ऐसी जिंदगी का क्या किया जाए!'
'आप और मेरी प्रेमिका...अभी तो आप कह रही थीं कि मैं हारा हुआ हूँ खुद को आपके पास...कि आप तो बेगम हैं'
'खूब जानती हूँ तुम्हें...देखो...ये बेगम शब्द कहा...कुछ और भी तो कह सकते थे'
'कुछ और जैसे कि...जान...महबूब...मेहरबां...या फिर कातिल?'
'हद्द हो...कितनी बात बनाते हो...मैं तो कह रही थी कि मालकिन, रानी साहिबा, मैडम या ऐसे अधिकार वाले शब्द'
'चलो बता दो इनमें से कौन सा शब्द गलत है...जान तुम में बसती है...महबूब तुम हो मेरी...और पल बदलते मेहरबान होती हो और पल ठहरते कातिल.'
'जाओ हम तुमसे बात नहीं करते'

'गलत इंसान से रूठ रही हो!'
'ओये लड़के...प्यार तुझसे करुँगी तो रूठने क्या पड़ोसी से जाउंगी?...हाँ प्यार गलत इंसान से कर लिया है...सीधे सीधे कह दो न .'
'प्यार गलत इंसान से कर लिया है...अब मैं अपना क्या करूँगा?'
'मेरे हो जाओ'
'अब क्या होना बाकी रह रखा?'

'ईगो बहुत है तुममें'
'अच्छा तो अब हमें तोड़ के भी देखोगी?...जान क्यों नहीं लेती हो हमारी?'
'अरे...फिर मेरे बालों में तेल कौन लगायेगा?'

'तौबा री लड़की! तू वाकई अपने जैसी अकेली है...तुझे खुदा से भी डर लगता है भला?'
'डरें मेरे दुश्मन...हमने भला कौन सा गुनाह किया है कभी'
'तूने री लड़की...गुनाह-ए-अज़ीम किया है'
'अच्छा...वो क्या भला?'
'इश्क़'
---

आखिरी लफ्ज़ कहते हुए महबूब की आँखों में शरारत नाच उठी...उसने किसी दूसरी कायनात का सूरज हमारे होठों पर टाँक दिया...उस एक सुलगते बोसे से मेरे होठ आज तक महक रहे हैं...कि आज भी जब मैं हंसती हूँ तो लोग कहते है कि मेरे होठों से रौशनी के फूल झरते हैं. 

04 February, 2012

अश्क़ और इश्क़ में एक हर्फ़ का ही तो फर्क है.

तुम्हारी जिंदगी में मेरी क्या जगह है?’
तिल भर
बस?’
हाँ, बस। बायें हाथ की तर्जनी पर, नाखून से जरा ऊपर की तरफ एक काले रंग का तिल है...वही तुम हो।‘’
वहीं क्यूँ भला?’
दाहिने हाथ से लिखती हूँ न, इसलिए
ये कैसी बेतुकी बात है?’
अच्छा जी, हम करें तो बेतुकी बात, तुम कहो तो कविता
मैंने कभी कुछ कहा है कविता के बारे में, कभी तुम्हें सुनाया है कुछ...तो ताने क्यों दे रही हो?’
नहीं...मगर मैंने तुम्हारी डायरी पढ़ी है
तुम्हें किसी चीज़ से डर लगता भी है, क्यूँ पढ़ी मेरी डायरी बिना पूछे?’
तुम मेरी जिंदगी में किसकी इजाजत ले कर आए थे?’
तुमने कभी कहा कि यहाँ आने का गेटपास लगता है? फिर तुमने वापस क्यूँ नहीं भेजा?’

तुम शतरंज अच्छी खेलते हो न?’
तुम मुझसे प्यार करती हो न?’
तुमसे तो कोई भी प्यार करेगा
मैंने ओपिनियन पोल नहीं पूछी तुमसे...तुम अपनी बात क्यूँ नहीं करती?’

मेरे मरने की खबर तुम तक बहुत देर में पहुंचेगी, जब तुम फूट फूट कर रोना चाहोगे मेरे शहर के किसी अजनबी के सामने तो वो कहेगा "अब तो बहुत साल हुये उसे दुनिया छोड़े...अब क्या रोना.....तुम्हें किसी ने बताया नहीं था....अब तो उसे सब भूल चुके हैं"...'
तुम मुझसे पहले नहीं मरने वाली हो, इतना मुझे यकीन है
अच्छा तो अब काफिर नमाज़ी होने चला है, तुम कब से इतनी उम्मीदों पर जीने लगे?’

लड़के ने लड़की का बायाँ हाथ अपने हाथ में लिया और तिल वाली जगह को हल्के हल्के उंगली से रगड़ने लगा। लड़की खिलखिलाने लगी।
क्या कर रहे हो?’
तुम्हारा क्या ठिकाना है लड़की, देख रहा हूँ कि सच में तिल ही है न कि तुमने मुझे बहलाया है
भरोसा नहीं हमपे और इश्क़ की बातें करते हो! बचपन से है तिल...कुछ लिखते समय जब कॉपी को पकड़ती हूँ तो हमेशा सामने दिखता है। ये तिल मेरे लिख हर लफ्ज का नजरबट्टू है...तुम्हें चिट्ठी लिखती हूँ तो वो थोड़ा सा फिसल कर तुम्हारे नाम के चन्द्रबिन्दु में चला जाता है।
यानि तुम्हारे साथ हमेशा रहूँगा...चलो तिल भर ही सही
ऐसा कुछ पक्का नहीं...दायें हाथ में एक तिल था...अनामिका उंगली में...पता है उसके कारण वो उंगली ढूंढो वाला खेल कभी खेल नहीं पाती थी...साफ दिख जाता था...वो तिल मुझे बहुत पसंद था...कुछ साल पहले गायब हो गया। आज भी उसे मिस करती हूँ...अपना हाथ अपना नहीं लगता।

तुम चली क्यूँ नहीं जाती मुझे छोड़ कर?’
इस भुलावे में क्यूँ हो कि तुम मेरे हो? मैंने कोई हक़ जताया तुमपर कभी? कुछ मांगा? तुमने कुछ दिया मुझे कभी? तो तुम कैसे मेरे हो? आँखें मीचते उठो...मैंने आज सुबह ही उगते सूरज से दुआ मांगी है...दिल पे हाथ रख के...कि तुम मुझे भूल जाओ।

------------

एक दिन बाद।

------
तुमसे पहली बार बात कर रहा हूँ, फिर भी तुम मुझे जाने क्यूँ बहुत अपनी लग रही हो...जैसे कितने सालों से जानता हूँ तुमको...माफ करना...पहली बार में ऐसी बातें कर रहा हूँ तुम भी जाने क्या सोचोगी...पर कहे बिना रहा नहीं गया।'
इस बार लड़की कुछ न कह सकी, उसकी आँखों में पिछले कई हज़ार साल के अश्क़ उमड़ आए।
-----


उस नासमझ लड़की की दोनों दुआएँ कुबूल हो गईं थी।
लड़का उसे हर सिम्त भूल जाता था।
वो उस लड़के को कोई सिम्त नहीं भूल पाती थी।

-----



जब हम किसी से बहुत प्यार करते हैं तो उसकी खुशी की खातिर दुआएँ मांग तो लेते हैं...पर यही दुआएँ कुबूल हो जाएँ तो जान तुम्हारी कसम...ये इश्क़ जान ले लेगा हमारी किसी रोज़ अब। 

02 February, 2012

मरने से लोग तस्वीरों से भी गुम हो जाते हैं...

 'रिपोर्ट यहीं लिखवाई जाती है?' लड़के ने तीसरी बार सवाल पूछा. वो एक छोटा सा ८-१० साल का लड़का होगा, पुलिस स्टेशन में मेज के सामने वाली कुर्सी पर बैठा था. उसे पैर बमुश्किल कुर्सी से नीचे जमीन तक पहुँच रहे थे. वो बड़ों के बैठने की कुर्सी थी...उसमें बैठा हुआ वह खुद को बहुत छोटा भी महसूस कर रहा था...उसे उचक कर बात करनी पड़ रही थी. सामने की कुर्सी पर एक अधेड़ उम्र का पुलिस वाला बैठा हुआ था...चेहरे पर बहुत सी हिकारत और नफरत उबली पड़ी थी कि जैसे सारे कैदियों के किये घृणित अपराधों का एक हिस्सा उसे चेहरे पर चिपकता जाता और इतने सालों में चेहरा परत परत विद्रूप हो गया था...सिकोड़ी हुयी नाक...आँखों में बहुत सा अविश्वास और हिकारत. 

वहाँ बहुत कोलाहल था...फिर भी एक अजीब किस्म का सन्नाटा भी पसरा हुआ था...पुलिस स्टेशन न होके कोई फांसीघर या बूचड़खाना लग रहा था...कायदे से उस लड़के के वहाँ पाए जाने की कोई जरूरत नहीं थी. कहीं बेशर्म ठहाके थे तो कहीं खैनी के ठोकने की आवाज़ और उसके साथ ही बीड़ी, सिगरेट और अतृप्त इच्छाओं के प्रेत भी हवा में डोल रहे थे...एक अजीब किस्म की मनहूस बेचैनी पसरी थी वहाँ. ऐसी किसी जगह से कोई भी उम्मीद नहीं जाग सकती थी...यहाँ आ के किसी का पता नहीं मिलता...शहर का हर आदमी यहाँ आने से डरता था. वो था भी एक छोटा सा शहर जिसका हर कदम वहाँ की लड़कियों की तरह होता है...हज़ार बार विचारा हुआ. सारे इफ्स एंड बट्स के बाद वहाँ कोई निर्णय लिया जाता था. वहाँ अगर लोग खो जाते थे तो उन्हें मरा हुआ मान लेना इस जिल्लत से बेहतर था कि पुलिस स्टेशन जा के रिपोर्ट लिखाई जाए और फिर पुलिस खोयी हुयी चीज़ या खोये हुए लोग ढूंढ के वापस करे. 

वो लड़का अभी छोटा था फिर भी उसे बहुत अच्छी तरह मालूम था कि पुलिस स्टेशन अच्छे आदमियों के जाने की जगह नहीं है. लेकिन जो खो गया था उसे ढूँढने के उसके सारे तरीके विफल हो चुके थे...वो सब जगह देख आया था. स्कूल के रजिस्टर में, उसके घर के सामने वाले अहाते में, कोटर वाले नीम के पीछे की छाँव में, अलगनी पर टंगे बाकी कपड़ों में...उसका कहीं कोई निशान नहीं था और दुनिया ऐसी बेपरवाह चल रही थी जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो. उसने बहुत सोचा कि वो क्या करे फिर आखिर में अपना बस्ता उठाया और पुलिस स्टेशन जाने का मन बनाया...गुल्लक फोड़ी तो उसमें से मात्र सैंतालिस रुपये बीस पैसे मिले. उसे लग रहा था कम से कम पचास रुपये तो हो जाने चाहिए...उसने बड़ों से सुन रखा था कि पुलिस से काम करवाने के पैसे लगते हैं...फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखता आया था. 

उसने अपनी साफ़ स्कूल वाली शर्ट पहनी और बैग लेकर थाने की ओर निकल गया. उस सुबह स्कूल मिस करने का क्या बहाना बनाएगा ये सोचना उसने बाद के लिए टाल दिया. आज रस्ते में उसे कोई भी देखता तो वो डर जाता, उसे लगता कि सब उसके चेहरे पर पढ़ लेंगे कि वो स्कूल नहीं थाना जा रहा है और फिर उसे जबरन खींच कर क्लास में बैठा दिया जाएगा या घर में बाथरूम में बंद कर दिया जाएगा. वो जल्दी जल्दी कदम बढ़ा रहा था. उसने आज पहली बार पुलिस स्टेशन को गौर से देखा था...एक बार तो ऊँची ऊँची दीवारें और उससे भी बेहद ऊँचे गेट को देख कर वो सहम गया. बचपन में जब वो खाना खाने में आनाकानी करता था तो मम्मी कहती थी कि उसे पुलिस थाने में दे आयेंगे. उसे लगा कि कहीं ये लोग उसे पकड़ के अन्दर ही रख न लें. 

इतना सब सोचते हुए वो अन्दर गया था और मेज़ के सामने रखी कुर्सी पर बैठा था जहाँ कोई उसकी बात ही नहीं सुन रहा. कुछ देर वहीं चुप और गुमसुम बैठा रहा...वहाँ एक बड़े से बोर्ड पर बहुत से लोगों की तसवीरें लगी थीं. वो ध्यान से उन्हें देखने लगा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा...लड़के ने देखा कि कुछ लोग रोते हुए अन्दर घुस आये हैं और उनमें से एक को बिठाने के लिए कुर्सी चाहिए थी...वो हड़बड़ा के उठ खड़ा हुआ. उसे मालूम नहीं था वो कितनी देर से वहाँ बैठा था. उसे लगा कि बहुत देर अगर वो उधर ही रहा तो क्या शहर में किसी को उसके खो जाने की बात पता चलेगी? क्या कोई उसकी रिपोर्ट लिखवाने थाने आएगा? उसके कोई खास दोस्त नहीं थे और उसे ऐसा लगता था कि माँ और पिता उसे इतना प्यार नहीं करते कि उसके लिए थाने चले आयें...वो शायद उसे मरा हुआ मान कर ही संतोष कर लेंगे. इतना सोचने के बावजूद वो रिपोर्ट लिखा कर घर जाना चाहता था. 

वहाँ सब अपने अपने काम में गुम थे...एक दरवाजे के पीछे उसे बहुत सी चुप्पी दिखी, लड़के को लगा कि यहाँ जो बैठता होगा उसे पास वक़्त होगा उसकी बात सुनने के लिए. वो दरवाजे से अन्दर घुसा...वहाँ एक दयालु आँखों वाला इन्स्पेक्टर बैठा था. उसे देख कर लड़के का सारा डर जाता रहा...इन्स्पेक्टर ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया और सामने कुर्सी पर बिठाया. 
'कोल्ड ड्रिंक पियोगे?'
लड़के को अचानक से लगा कि उसे बहुत देर से प्यास लगी थी...उसे हाँ में सर हिलाया. इन्स्पेक्टर ने घंटी बजायी और किसी को एक कोल्ड ड्रिंक लाने को कहा. कोल्ड ड्रिंक आने तक वो फ़ाइल में कुछ लिखता रहा और बीच बीच में लड़के की ओर देख कर मुस्कुरा भी देता. 
'अब बताओ...क्या हुआ?'
'एक लड़की खो गयी है...उसकी रिपोर्ट लिखवानी है?'
'तुम क्यूँ आये हो, उसके मम्मी पापा नहीं हैं?'
'हैं, पर वो उसे नहीं ढूंढते...उन्हें लगता है कि वो...(एक बार गले में कुछ अटका और उसने कोल्ड ड्रिंक का एक सिप लिया) कि वो मर गयी है. 
इन्स्पेक्टर के माथे पर कुछ बल पड़े पर वो शहर के लोगों को अच्छे से जानता था इसलिए उसे बात समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुयी.
'तुम्हारी कौन है, बहन?'
'दोस्त है'
'लड़की की फोटो है?'
लड़के ने बैग से निकल कर स्कूल की फोटो दी जो पिछले पंद्रह अगस्त को खिंचवाई गयी थी और ऊँगली से दिखाया ये यही लड़की है. 
इन्स्पेक्टर एक मिनट को तो चकित हुआ कि लड़का मजाक तो नहीं कर रहा...उस तस्वीर में सारे लड़के थे क्लास के. वो सेंट माइकल्स की तस्वीर थी और सेंट माइकल्स बोयस स्कूल था ये इन्स्पेक्टर को भी मालूम था. 

उसने संयत होकर लड़के से पूछा कि इसमें तो कोई लड़की है ही नहीं...फिर उसकी दोस्त कहाँ है. लड़के ने चौंक कर कहा कि मरने से लोग तस्वीरों से भी गुम हो जाते हैं...फिर वो सिर्फ उन्हीं को दिखते हैं जिन्होंने उन्हें जीते जी जाना था और जो उन्हें अब भी प्यार करते हैं. इन्स्पेक्टर लड़के के लिए परेशान होने लगा था उसने प्यार से पूछा कि लड़की कि और भी कोई चीज़ है उसके पास. इसपर लड़के ने अपना बक्सा निकला और उसमें से कागज़ निकाल के रखा जो किसी स्कूल की कॉपी से फाड़ा हुआ लग रहा था. टेढ़े मेढ़े अक्षर थे...'सोनू एक अच्छा लड़का है. सोनू पिंकी का बेस्ट फ्रेंड है. सोनू की साइकिल हरे रंग की है. सोनू की मम्मी बहुत अच्छा पुलाव बनाती है. सोनू मेरे साथ हमेशा रहेगा.' इसके नीचे नाम लिखा हुआ था पिंकी. 

कुछ और है तुम्हारे पास? लड़के ने अबकी ना में सर हिलाया...इन्स्पेक्टर ख़ासा परेशान था. इस लड़की को कैसे ढूंढें जिसकी एक तस्वीर भी नहीं है...एक कागज़ के टुकड़े पर लिखी हैण्डराइटिंग का क्या ठिकाना...जाने कोई बच्ची है भी या नहीं. पर उसका मन नहीं मानता कि कोई लड़का इतनी हिम्मत करके झूठी कहानियां सुनाएगा. इन्स्पेक्टर ने लड़के का पता लिख लिया और कहा कि उसे लड़की मिल जायेगी तो बताने आ जाएगा और उस कागज़ के टुकड़े को अपने साथ रख लिया. 

इन्स्पेक्टर नया नया भर्ती हुआ था उसका अभी भी दुनिया में कुछ अच्छा करने और होने में विश्वास कायम था. उसने एक छोटी टुकड़ी लेकर शहर छानना शुरू किया...दुपहर होते होते शहर से कुछ पाँच किलोमीटर दूर गुफाओं के पास एक साइकिल दिखी...ये बहुत पुरानी गुफाएं थीं जहाँ यदा कदा लोग पहुँच जाते थे पुराने भित्ति चित्रों को देखने के लिए. सर्च लाईट लिए हुए पुलिसकर्मी अन्दर घुसे...काफी देर तक कहीं कुछ नहीं मिला कुछ घंटे बीत जाने पर अचानक कुछ उम्मीद जागी...एक गहरी कन्दरा में दो बच्चे दिख रहे थे. ऐम्बुलंस बुलवाई गयी और धीरे धीरे करके एक पुलिस वाला उस गहरी खोह में उतरा. 

रस्सियों की मदद से दोनों को बाहर निकाला गया...बच्ची की सांसें बहुत धीमे चल रहीं थी...पर लड़का दम तोड़ चुका था, उसका चेहरा खून से लथपथ था. टीम जब बाहर आई तो एम्बुलेंस और डॉक्टर बाहर खड़े थे...इन्स्पेक्टर भी पहली बार दोनों बच्चों को देखने पहुंचा...डॉक्टर ने लड़की की हालत चेक करके बताया कि वो बच जायेगी...कहाँ नहीं जा सकता कि कब गिरी, कब बेहोश हुयी...पर जल्दी ठीक हो जायेगी. लोग राहत की साँस ले रहे थे कि कमसे कम एक बच्चा तो बच गया...उन्हें लग रहा था भाई-बहन खेलते हुए आये होंगे और शाम यहाँ गिर गए होंगे. 

लड़के की बॉडी को पोस्टमोर्टेम के लिए भेज दिया गया. अगली शाम इन्स्पेक्टर रिपोर्ट पढ़ रहा था कि उसे लगा कि सर चकरा रहा है...कि उसकी हृदयगति रुक जायेगी. लड़के के मरने का वक़्त ७२ घंटे पहले दिया गया था. ७२ घंटे...तीन दिन...कल दोपहर की बात थी...यहीं...घबराया...सहमा सा...सामने की कुर्सी पर अब भी एक सांस में कोल्ड ड्रिंक पीता लड़का दिख रहा था इन्स्पेक्टर को...और दायीं जेब में कोपी का फटा हुआ पन्ना...सोनू एक अच्छा लड़का है... 

29 January, 2012

डायरी से कुछ नोट्स

मैं अपने साथ एक कॉपी लिए चलती हूँ आजकल...जब जो दिल किया लिख लेने के लिए...कल दो दिन से ढूंढ रही थी...एकबारगी तो डर भी लग गया कि कहीं प्लेन पर तो नहीं छूट गयी...यूँ तो उसके खोने का अफ़सोस भी बेहद बेहद ज्यादा होता पर इस बार इस अफ़सोस में सिर्फ अपने लिखे के खो जाने का अफ़सोस नहीं होता...कुछ यादें भी बिसर जातीं...जैसे कि धूप में बैठ कर अनुपम को अपना लिखा कुछ पढ़ते हुए देखना...और मन ही मन खुश होना...हल्ला करना कि ये वाला पन्ना मत पढ़ो न...या कि फिर सबसे जरूरी दो पन्ने कि जिसमें अनुपम और स्मृति ने कुछ लिखा है...अनुपम ने लिखा 'anything' और स्मृति ने 'अचार'. क्यूंकि दोनों महानुभावों को जब डायरी थमाई गयी तो दोनों ने पूछा क्या लिखूं...और दोनों के ठीक वही लिखा जो मैंने लिखने को कहा!

घर पर कुणाल ने कहा सब कुछ ऑनलाइन लिख दिया करो...सब यहाँ रखने पर भी कागज़ में कुछ रह जाता है जिसकी खुशबू नहीं जाती...फिर भी...कुछ टुकड़े तो सकेर ही देती हूँ. 

---
तुम्हारी खुशबू कैसी थी?
ख़ुशी को अगर bottle किया जा सके तो शायद वैसी कुछ. 
-
इश्क के चले जाने के बाद...
जो बाकी रह जाए, वही जिंदगी है. 
-
धूप को कैसे लिखते हैं, उसकी सारी गर्मी, सारी खुशबुओं के साथ, और ख़ुशी को? सब अच्छा अच्छा से लगने के अहसास को?
अपने खुद के मिल जाने के अहसास को? इतना प्यार किन शब्दों में समेटूं? कहाँ सहेजूँ, कैसे सकेरूँ? शब्द तो पूरे पड़ते ही नहीं हैं!

कैसा रास्ता था न कि दोस्त हर कदम पर साथ खड़े थे, कि किसी ने एक भी लम्हा तनहा नहीं होने दिया,
कितना प्यार ओह कितना प्यार!
खुदा तेरा शुक्रिया!
२५.१.१२
---

उस दिन मुझसे करना बातें
जिस दिन दिल के ज़ख्म भरे हों
वरना इतनी चुप्पी सुन कर
कट जायेंगे सारे टाँके
खुल जाएगा दर्द का गट्ठर
कैसे जियोगे तनहा रातें?

टूट बिखरना, मुझको थामे
साथ मेरे दरिया में बहना
सांस छुटे जब आँख थामना
मर जाने तक थामे रहना

मेरी पेशानी पर रख दो
दो दिन के दो बासी बोसे
मेरी आँखों को कह दो न
तुम मेरे हो, मेरे हो न?

१८.१.१२
---

तस्वीरों के उस पार से
एक लड़की मुझे देख कर
किलकती है 
उसकी मुस्कराहट इतनी जेनुइन है
कि मुझे उससे जलन होने लगती है.

१४.१.१२
---

जमीन से आसमान तक बहती हुयी नदी थी और उस नदी पर बादलों के बहुत सारे पुल थे. स्केल से खींचा हुआ सीधा समंदर था. सूरज की किरणें उड़ेलीं गयीं थीं बादलों के सारे टुकड़ों पर ज्यों कोई दोशीजा अपने भीगे बदन पर सुनहला पानी डाल रही हो नहाते हुए. 
No wonder, nature is the muse of so many artists. You can never get bored of it. Just when you are just about to begin to think you have seen it all, it bares another of its mysteries. 
प्रकृति की इस नयी अदा पर आज हम क्या कहें!
(कलकत्ता से बंगलोर आते हुए फ्लाईट में)

८.१.१२
---

I come back to you the pen the way I come back to you, in pain. At the need to fill an abject vacuum in my life. A vacuum I don't understand myself. 

18.12.11
---

Those that can smile with a broken heart are those that know how to plant white Lillies in the fault lines that have formed. 
18.11.11
---

The memory of that day has started to blur around the edges. There are some fuzzy characters, a little sound wave that echoes off the walls of memory. A peeled wallpaper here, a coffee machine token there. Air is still dense with cigarette smoke seen through burning, red eyes. The day passes in a jiffy and all that remains of that memory is relegated to black&white. The only thing that remains lifelike in that portrait is a caption written in green ink at the bottom white portion of the photograph.
'His eyes are brown'.
12.11.11
---

28 January, 2012

जिंदगी से लबरेज़...मुस्कुराहटों सी खनकती हुयी...नदी सी बहती...बेपरवाह...


दुनियादारी की अदालत लगी है...मेरे घर के लोग, जान-पहचान वाले, कुछ अपने लोग, कुछ पक्के वाले दुश्मन, कुछ पुराने किस्से, कुछ टूटी कवितायें, गज़लों के कुछ बेतुके मिसरे...सब इकट्ठा हैं...वकील पूरे ताव में है...जोशो-खरोश में मुझसे सवाल कर रहा है...आपने क्या किया है अपनी जिंदगी के साथ? कोई बड़ा तीर मारा है...न सही कुछ महान लिखा है, क्या पढ़ा है, दोस्तों के नाम पर आपके पास कितने लोग हैं? कहते हैं कि भगवान ने आपको बड़ी बड़ी खूबियों से नवाजा है...आपने उनका क्या किया है। दुनियादारी के टर्म में समझाओ कि आज तक के तुम्हारी जिंदगी का हासिल क्या है? आखिर इतनी बड़ी जिंदगी बेमतलब गुजरने की सज़ा जरूरी है मिलोर्ड वरना लोग ऐसे ही खाली-पीली टाइम खोटी करते रहेंगे...मोहतरमा को जिंदगी बर्बाद करने के लिए सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए...आप खुद ही इनसे पूछिये, देखिये जैसे चुपचाप खड़ी हैं...ऐसे लोगों को चैन से जीने दिया गया तो सबका जीना मुहाल हो जाएगा...आप इनसे पूछिये कि ये रेस का हिस्सा क्यूँ नहीं हैं...जब सबको कहीं न कहीं पहुँचने की हड़बड़ी है, इनके पास जिंदगी का कोई रूटमैप क्यूँ नहीं है। यायावर की जिंदगी का उदाहरण पेश कर रही हैं ये और उसपर बेशरम हो के हँसती हैं...इनसे पूछा जाए कि इनहोने अपनी पूरी जिंदगी क्या किया है?

जज साहब मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखते हैं...और दोहराते हैं...मोहतरमा...आपने अपनी जिंदगी भर क्या किया है?

मेरी आँखों में कोई गीत उन्मुक्त हो नाच उठता है...मैं मुसकुराती हूँ और पूरी जनता को देखती हूँ...वकील को और आखिर में जज साहब को। 

और जितनी जिंदगी उस एक शब्द में आ सकती है समेट कर जवाब देती हूँ...एक शब्द में...
इश्क!

दिल्ली- याद का अनुपम चैप्टर

picture courtesy: Ashish Shah
एक एकदम भिटकिन्नी सी शैतान थी वो...बहुत ही चंचल...पूरा घर उसे आँखों पर बिठाये रखता था मगर उस भिटकिनिया की जान बसती थी दादा में...देवघर के तरफ थोड़ा बंगाली कल्चर होने के कारण कुछ बच्चे अक्सर अपने बड़े भाई को दादा बोलते थे...खास तौर से जो सबसे बड़े भैय्या हुए उनपर ये स्टेटस खूब सूट करता था. तो उस भिटकिनिया का भी एक बड़ा भाई था...जिसपर वो जान छिड़कती थी. भाई भी कैसा...हमेशा उसे अपने साथ रखने वाला...और एक बार तो माँ से जिद्दी भी लड़ा बैठा था कि अपने साथ उसे स्कूल ले जाएगा...पर भिटकिनिया तो अभी बस दो साल की थी...अभी कैसे स्कूल जाती...और जाती भी तो करती क्या. दादा बहुत बोलता था कि मेरे पास बैठी रहेगी...थोड़ा सा पढ़ ही लेगी आगे का तो क्या हो जाएगा...पर घर वाले बड़े बेवक़ूफ़ थे...उन्हें समझ नहीं आता था कि भिटकिनिया को अभी से आगे के क्लास की पढाई पढ़ा देने में क्या फायदा है. इस बात से बेखबर वो उसे अपनी सारी किताबें दिए रहता था...अब भिटकिनिया उसमें लिखे कुछ या पेंटिंग करे इससे बेखबर. 

हाँ, एक जगह वो हमेशा भिटकिनिया को साथ लिए चलता था...उसे साथ वाले दोस्त के साथ गुल्ली खेलने की जगह...गुल्ली खेली है कभी? उसे अच्छी भाषा में कंचे कहते हैं...कांच की गोलियां...अलग अलग रंगों में...उन्हें धूप में उठाओ तो उनसे रौशनी आती दिखती है और बेहद खूबसूरत और जीवंत लगती है...भिटकिनिया को कांच के गुल्ली भरे मर्तबान से अपने पसंद की गुल्ली मिल जाती थी...उस समय गुल्ली पांच पैसे की पंद्रह आती थी...और गुल्ला पांच पैसे का पांच. गुल्ला होता भी तो था तीन कंचों के बराबर...उसी से गुल्ली पिलाई जाती थी. गुल्ला को अच्छी भाषा में डेढ़कंचा बोलते थे...पर ऐसी अच्छी भाषा बोलने वाले गुल्ली खेलते भी थे ये किसी को मालूम नहीं था. 

गुल्लियाँ हमेशा खो जाती थीं...और गुल्ला तो खैर...कितने भी बार खरीद लो उतने ही बार खो जाएगा...फिर हमारी भिटकिनिया और उसका फेवरिट दादा नुक्कड़ की दूकान पर...वैसे भिटकिनिया के पास बहुत सारी गुल्लियाँ थी...दादा ने जितनी गुल्लियाँ जीती थीं जब उसी की तो हो जातीं थी...मगर भिटकिनिया अपने खजाने से थोड़े न किसी को एक गुल्ली देती..उसके पास सब रंग की गुल्लियाँ थीं...हरी, लाल, काली, पीली, भूरी...पर उसका पसंदीदा था एक शहद के रंग का गुल्ला...हल्का भूरा...उसमें से सूरज की रौशनी सबसे सुन्दर दिखती थी उस छुटंकी को.
--------------------
रेडियो पूजा जारी था...दिल्ली की ट्रैफिक में...
पता है अनुपम...तुम्हारे बाद किसी के साथ काम करने में मन नहीं लगा...एकदम भी...और वो राजीव...ओफ्फो...फूटी आँख नहीं सुहाता था हमको...एक तो वो था होपलेस...वैसे भी किसी को बहुत मुश्किल होती तुम्हारे बाद मेरा बॉस बनने में...पर कोई अच्छा होता तो चल भी जाता...वो...सड़ियल... एकदम अच्छा नहीं लगता था उसके साथ काम करने में. इन फैक्ट तुम्हारे बाद कोई अच्छा मिला ही नहीं जिसके साथ ऑफिस में मज़ा आये...यू नो...अच्छा लगे...इतने साल हो गए...आठ साल...
यहाँ अनुपम मुझे टोकता है...कि आठ साल नवम्बर में होंगे...और मैं अपना रेडियो चालू रखती हूँ...२०१२ हो गए न...आठ साल अच्छा लगता है बोलने में...सात साल कहने में मज़ा नहीं आता...खैर जाने दो...तुम बात सुनो न मेरी...किसी के साथ ऑफिस में अच्छा ही नहीं लगता...तुम कितने कितने अवसम थे...कितने क्रिएटिव...और कितने अच्छे से बात करते थे हमसे...पता नहीं दुनिया के अच्छे लोग कहाँ चले गए...वैसे पता है इधर बहुत दिन बाद किसी के साथ काम करने में बहुत मज़ा आया...पता है अनुपम...उसकी आँखें भी भूरी हैं...ही हैज गॉट वैरी ब्यूटीफुल आईज...ब्राउन...तुम्हारी तरह...अनुपम बस हँसता है और मुझसे पूछता है...तुम्हें बचपन में कंचे बड़े पसंद रहे होंगे...मैं कहती हूँ हाँ...तुम्हें कैसे पता...वो कहता है...बस पता है...जैसे कि उसको बहुत कुछ पता है मेरे बारे में. 
-----------------
इसके बहुत दिन बाद...लगभग एक हफ्ते बाद...मैं उसे अपनी डायरी पढ़ के सुना रही हूँ...दिल्ली से प्लेन उड़ा तो बहुत रोई मैं...फिर कुछ कुछ लिखा...उसमें ऐसी ही एक कहानी भी थी...मैं फोन पर उससे पूछती हूँ 

'अनुपम, तुमने बचपन में कंचे खेले हैं कभी?'
'नहीं'
(मैं एकदम होपलेस तरीके में सर हिलाती हूँ...अनुपम तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता टाइप)'
'तब जाने दो तुम नहीं समझोगे'

फिर मैं उसे पहले समझाने की कोशिश करती हूँ कि गुल्ली क्या होती है...कैसे गुल्ले से गोटियाँ पिलाई जाती हैं...पूरा गेम समझाती हूँ उसको...फिर बोलती हूँ...पता है अनुपम...ये जो कहानी है न...इसमें मैं मैं होती और तुम वो लड़का होते और मैं अपनी छोटी सी हथेली फैला कर तुमसे कुछ मांगती न...तो तुम अपनी पॉकेट में से ढूंढ कर वो गुल्ला निकलते और मेरी हाथेली में रख कर मेरी मुट्ठी बंद कर देते. 

मैं वो ब्राउन कलर का गुल्ला अपनी पूरी जिंदगी उस छोटे से बक्से में महफूज़ रखती जिसमें बचपन के खजाने होते हैं...और शादी के बाद अपने साथ अपने घर ले आती...जिस दिन मायके की बहुत याद सताती उस गुल्ले को निकाल कर धूप में देख लेती और खूब खूब सारा खुश हो जाती. 
-------------------
दिल्ली से आये कुछ दिन गुज़रे हैं...मैं सोच रही हूँ कि एकदम ही बेवक़ूफ़ हूँ...पता है फिर से मेरे पास ऐसी कोई फोटो नहीं है जिसमें मैं तुम्हारे साथ में हूँ. अकेली अकेली वाली फोटो देखती हूँ और हंसती हूँ कि मैं कितनी खुश थी जो ढंग की एक फोटो नहीं खींच पायी....अगली बार तुमसे मिलूंगी तो तुम्हारी खूब अच्छी वाली फोटो लूंगी...मेरी दिल्ली के सबसे अच्छे चैप्टर...अनुपम...तुम्हारा खूब खूब सारा...शुक्रिया नहीं कहूँगी :) :)

27 January, 2012


दिल्ली- याद का पहला पन्ना

Towards PSR
प्लेन के रनवे पर चलते ही दिल में बारिशें शुरू हो गयीं थीं...हलके से एक हाथ सीने पर रखे हुए मैं उसे समझाने की कोशिश कर रही थी कि इस बार जल्दी आउंगी...इतने दिन नहीं अलग रहूंगी इस शहर से...मगर दिल ऐसा भरा भरा सा था कि कुछ समझने को तैयार ही नहीं था...जैसे ही प्लेन टेकऑफ़ हुआ दिल में बड़ी सी जगह खाली हो गयी...आंसू ढुलक कर उस जगह को भरने की कोशिश कर रहे थे. अनुपम को बताया तो पूछता है कि प्लेन पर रो रही थी, किसी ने कुछ बोला नहीं...ये कोई ट्रेन का स्लीपर कम्पार्टमेंट थोड़े था कि आंटी लोग आ जायेंगी गले लगा लेंगे कि बेटा कोई नहीं...फिर से आ जाना दिल्ली...ऐसे नहीं रोते हैं...कोई पानी बढ़ा देगी पीने के लिए...कोई पीठ सहलाने लगेगी और सब चुप करा देंगी मुझे. प्लेन में बगल में एक फिरंगी बैठा था...मैं जी भर के रोई और फिर आँखें पोछ कर पानी पिया...चोकलेट खाई और डायरी निकल कर कुछ लिखने लगी...इस बीच कुछ कई बार अनुपम का और स्मृति का डायरी में लिखा हुआ पढ़ लिया...मुस्कुराना थोड़ा आसान लगा. 

मुझे कोई खबर नहीं कि मैं रोई क्यूँ...ख़ुशी से दिल भर आया था...सारी यादें ऐसी थीं कि दिल में उजली रौशनी उतर जाए...एक एक याद इतनी बार रिप्ले हो रही थी कि लगता था कि याद की कैसेट घिस जायेगी...लोग धुंधले पड़ जायेंगे, स्पर्श बिसर जाएगा...पर फिलहाल तो सब इतना ताज़ा धुला था कि दिल पर हाथ रखती थी तो लगता था हाथ बढ़ा कर छू सकती हूँ याद को. 

इतना प्यार...ओह इतना प्यार...मैं जाने कहाँ खोयी हुयी थी...मैं वापस से पहले वाली लड़की हो गयी...बिलकुल पागल...एकदम बेफिक्र और धूप से भरी हुयी...मेरी आँखें देखी तुमने...ये इतने सालों में ऐसे नहीं चमकती थीं. अपने लोगों से मिलना...मिलते रहना बेहद जरूरी है...क्यूंकि जानते हो...ईमेल के शब्द बिसर जायेंगे...फोन पर सुनी आवाज़ खो जायेगी...मगर भरे मेट्रो स्टेशन पर उसने जो भींच के गले से लगाया था ना...वो कहीं नहीं जाएगा अहसास...स्मृति...सॉरी यार...क्या करूँ मुझे लोगों की परवाह करना नहीं आता...अब तेरे गले लगने के पहले भी सोचती तो मैं तुझसे मिलती ही न...मुझे तेरे चेहरे पर का वो शरमाया सा अहसास याद आता है...वाकई हम कॉलेज में मिले होते तो एकदम दोस्त नहीं होते...तू देखती है न...मेरी कोई दोस्त है ही नहीं कॉलेज के टाइम की. 

Smriti&Me
I know, I know...
झल्ली लग रही हूँ :) 
पहले दिन ही स्मृति के साथ पार्थसारथी गए...IIMC का अपना होस्टल दिखाया उसे...और पैदल चल दिए...जेऐनयू के रास्तों पर...वहाँ पत्थरों में जड़ें गहरायीं और जो मिटटी में था इश्क उसे फिर से अपने सिस्टम में भरने दिया...हवाएं...शाम...तोतों का उड़ता झुण्ड...हरियाली...सब वैसा ही था...मेरे अन्दर जो लड़की कहीं खो गयी थी, वापस लौट के चली आई...दुपट्टा लहराते हुए. मैं लगातार बोलती जा रही थी...सॉरी स्मृति रे...सोचती हूँ मेरे साथ चलना कैसा होगा...मैं वहाँ जा कर एकदम अपने फुल फॉर्म में आ जाती हूँ...वो मेरी दुनिया की सबसे पसंदीदा जगहों में से है और मैं तुझसे बहुत प्यार करती हूँ इसलिए तेरे साथ उधर गयी थी...वहाँ बैठ कर पुराने दोस्तों को याद किया...कुछ को फोन किया...और लौट आई. 

रात की बस थी जयपुर के लिए...पर जयपुर गए नहीं उस रात...उसे कैंसिल करा के सुबह आठ बजे की बस की...जयपुर का रास्ता दोनों तरफ सरसों के खेतों से भरा हुआ था...बस में एकदम आगे वाली सीट थी...कुणाल को फिट करने के लिए आगे की सीट ली थी...मैं तो किसी भी जगह अट जाती हूँ. खैर...बड़ा खूबसूरत रास्ता था...दोनों तरफ पहाड़...सरसों के खेत...जाने क्या क्या...आधी नींद आधे जगे हुए में देखा...कभी ख्वाब लगता तो कुछ और दोस्त भी ख्वाबों में टहलते हुए चले आते...तब उन्हें sms कर देती...देखो कहे देती हूँ जिसको जिसको sms  किया है...इसी कारण किया होगा :) 

जयपुर करीब तीन बजे पहुंचे...अंकन...जिसकी शादी का रिसेप्शन अटेंड करने हम गए थे...हमें खुद रिसीव करने आया :) हम VIP  गेस्ट जो थे. रात की कोकटेल पार्टी का हाल दूसरी पोस्ट में :) 

24 January, 2012

शी लव्स मी नॉट...

उसने एक गहरी सांस ली
डूबने के ठीक पहले वाली
या फिर 
चूमने के ठीक बाद वाली 
उसे ठीक से याद नहीं

....
आँख के रस्ते तक सरसों के पीले खेत थे...जैसे किसी सुघड़, सुशील लड़की ने एकदम करीने से धरती पर पीली सरसों के रंग की चादर बिछायी हो और तुम्हारे ख्यालों में खोये हुए बिस्तर की सलवटें ठीक की हों. ख्वाबों के कौन कौन से कतरे उठा के साइड वाले कूड़ेदान में डाली हों...कि उसे तो सब था...नासमझ सी कुछ उम्मीदें परदे पर टंगी होंगी कि जब उसने धूल की तरह डस्टर से झाड़ा होगा तुम्हारा नाम...

वीरानी गलियों में रात रास्ता भटक गयी होगी...किसी लैम्पोस्ट से पूछा होगा तुम्हारे देश का पता...रौशनी कमबख्त आँखों में भर गयी होगी और रात को सोने न दिया होगा...कितनी देर जागी होगी तुम्हें सोचते हुए...कितने गाने सुने होंगे, कितने शेर पढ़े होंगे और आखिर में जब कुछ याद न रह पाता होगा तो तुम्हारे इकलौते ख़त को फिर से बड़े अहतियात से खोला होगा और शब्दों को छू कर तुम्हें छू लेने का गुमान पाले सोयी होगी.

लड़की वाकई नासमझ है जो तुमसे प्यार करती है...या कि तुमसे प्यार करते हुए नासमझ हो गयी है...तुम्हें कौन बतलाये...फिलहाल तो इतना जान लो कि बड़ी खराबियां हैं उसमें...ज्यादा बताउंगी तो कौन जाने प्यार करो ही न उससे...फिलहाल तो इतना जानो कि जब उसे तुम्हारी बेतरह याद आती है...बेतरह मतलब एकदम ऐसी कि सांस न ले पाए तो वो चुप हो जाती है...उसके पहले, काफी पहले तक वो मुस्कुरा के बातें करती रहती है...उसकी चुप्पी तुम जान भी न पाओगे मेरी जान. तुम्हारे प्यार में इतना तो सीख ही लिया उसने कि तुमसे झूठ बोल लेती है...तुम क्यूँ उसका ऐतबार करते हो...तुम्हें लगता है न कि वो उदास है तो बस उसकी आवाज़ सुन कर तसल्ली करते ही क्यों हो...उसके पास जाओ तो सही...हाँ वो ऐसी है कि कभी न कहेगी कि उदास है...पर वो ऐसी भी तो है कि जबरदस्ती खींच कर अपने सीने से लगाओगे तो तुम्हारे कांधे से कोई चिनाब बह निकलेगी.

वो एकदम अच्छी लड़की टाईप नहीं है...पर जाने क्यूँ तुमसे बात करते हुए उसका अच्छा होने का मन करने लगता है...सलीके से बातें करना...थोड़ा ठहरना...बिना तुम्हारे मांगे वो अपने किनारे बनाने लगती है. उसे तुम्हें बहा ले जाने में डर लगता है...तुम्हें किसी ने बताया कि पार्टी पर उसने सिर्फ इस डर से कि तुम्हारा नाम उसके होठों पर आ जाएगा सिर्फ तीन लार्ज व्हिस्की पी...ऑन द रॉक्स. तुम इतना तो जानते हो न कि उसका सिगरेट पीने का मन कब करता है और वो तब भी सिगरेट नहीं पीती...तो बता दूं उस रात उसने बहुत सी सिगरेटें पी थीं...फिर उदास होते शहर की बुझती रोशनियों में तुम्हारे चेहरे का नूर देखा था.

उफ़क पर किसी दूर शहर का प्रतिबिम्ब था कि सितारों का कोई जखीरा तुम्हारे चेहरे जैसा लगा था...उँगलियों में फंसी सिगरेट ख़त्म होने वाली थी जब उसने एक गहरा कश लिया और तुम्हारी याद के साथ उसे सीने में कैद कर लिया...सांस बुझती रही गर्म कोयलों के साथ कि खुले में अलाव तापते हुए उसने सिर्फ तुम्हें याद किया...यकीन करो पार्टी में कोई ऐसा नहीं था जिसने उसे मुड़ के न देखा हो...उसके चेहरे पर एक बड़ी खुशमिजाज़ सी मुस्कराहट थी...बहुत जिंदगी थी उसके चेहरे पर...और तुम तो जानते हो जिंदगी से ऐसा लबरेज़ चेहरा सिर्फ इश्क में होता है.

तुमने उसे उस रात डांस करते हुए नहीं देखा...यूँ तो वो इतना अच्छा डांस करती है कि फ्लोर पे लोग डांस करना भूल के सिर्फ उसकी अदाएं देखते हैं...पर कल वो दूसरे मूड में थी...उसके सारे स्टेप्स गड़बड़ थे पर वो हंस रही थी बेतहाशा...वो खुश थी बहुत...कहने को वो किसी और की बांहों में थी पर उससे पूछो तो उसकी आँखों के सामने बस एक ही चेहरा था...तुम्हारा. 




कब तक कोई इस खुश-ख्याल में जिए कि तुम्हारी बांहों में मर जाना कैसा होता होगा?

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...