07 March, 2013

फीवर ९९ और हम


दो दिन से ९९ डिग्री बुखार है. न चढ़ कर ख़त्म होता है, न उतर कर ख़त्म होता है. इस बुखार में अजीब किस्म से घालमेल हो रहा है चीज़ों का. आज दिन भर किसी काम में मन नहीं लगा. बस दिन भर फेसबुक पर रही...कुछ पुरानी पोस्ट्स पढ़ीं...कुछ मनपसंद फिल्मों के दृश्यों और जिंदगी में कन्फ्यूज होती रही. कई बार लगता रहा कि इन द मूड फॉर लव वाली गली से गुज़र रही हूँ और किसास किसास बज रहा है.

कुछ अजीब किस्म के रंग हैं...उनका अपना भूगोल है, वे इसी धरती के किसी मानचित्र में नहीं मिलेंगे. मैं ऐसे किसी शहर में हूँ. किसी दीवार पर उकेरे गए नाम देखती हूँ. सड़क की गर्द और गुबार से भरी गलियां हैं जिनमें कितने साल पहले लिखे गए नाम भी हैं. ये चिट्ठियां कभी पहुँचीं? किसी ने कभी ठहर कर नामों के इस गलीज स्लम में अपना कुछ ढूँढा भी होगा...तो फिर इस सारी ग्रैफिटी में एक विशाल 'आई मिस यू' क्यूँ लिखा नज़र आता है. या कि मेरी आँखों का दोष है...मेरी दूर की नज़र ख़राब है. मुझे अपने से एक फुट से ज्यादा नहीं दिखता. जिंदगी के साथ भी ऐसा ही कुछ है. इस लम्हे से आगे देखने का कोई चश्मा नहीं बना है.

बिना चश्मे के मुझे लोग तो दिखते हैं मगर उनके चेहरे का भाव नहीं पढ़ सकती...बेसिकली उनकी आँखें नहीं दिखती हैं. हालाँकि कानों में हेडफोन हैं और कोई पसंद का गीत बज रहा है मगर मैं किसी से बात करना चाहती हूँ. भले मुझे उनकी भाषा समझ नहीं आये, उन्हें मेरी भाषा समझ नहीं आये. मैं एक कैमरा लटकाए घूम रही हूँ...हवा का एक बेहद प्यारा झोंका आता है और इस तनहा शहर में जैसे मुस्कराहट का एक बीज रोप जाता है. मैं देखती हूँ सड़क पर एक टूटा हुआ क्लचर गिरा हुआ है. याद आता है किसी वसंत में तुम्हारे साथ एक चेरी के गुलाबी फूलों वाले शहर में चल रही थी. मेरे बंधे हुए बालों में उलझे हुए चेरी नन्हें गुलाबी फूलों को निकलते हुए तुमने कहा था 'बाल खुले रहने दो न, अच्छे लगते हैं'. दुनिया की सबसे घिसी हुयी लाइन होने के बावजूद उस वसंत में कितना नया लगा था तुमसे सुनना.

स्क्रीन के ग्लेयर से आँखों में जलन होने लगी है. दोपहर होने को आई...ये कैसी धूप है, जलाती भी नहीं...रहम भी नहीं करती...ठीक उस मुकाम पर रखती है जहाँ मैं दवा नहीं खाऊँ कि खुद से ठीक होना है...मगर तकलीफ इतनी होगी कि एक कदम से दूसरे कदम तक की दूरी में जान चली जायेगी. कराह को अन्दर ही कहीं दबाते हुए मुस्कुराती हूँ...लोग कहते हैं चेहरे का रंग उतर गया है...आँखों की रौशनी डिम हो गयी है. मैं आइना देखती हूँ...आज अपनी आँखों पर ध्यान नहीं जाता...देखती हूँ होठ सूख गए हैं और चेहरा भी उतर गया है. वाश बेसिन में चेहरा धोती हूँ और एक मुखौटा चढ़ाती हूँ. हँसते हुए कहती हूँ कि 'बीमार होती हूँ तो भी लगती नहीं'...थोड़ा और बीमार लगती शायद तो छुट्टी मिल जाती.

इतनी थकान नहीं होनी चाहिए लेकिन...मगर बुखार आये भी तो बहुत साल बीत गए...जाने कैसा लगता है बुखार आने पर...शायद ऐसा ही लगता होगा...जैसे किसी दस मंजिला बिल्डिंग से नीचे फेंके गए हैं और हालाँकि हड्डियों का सुरमा बन गया है मगर जान बाकी है. कभी सर में दर्द ज्यादा उठता है, कभी कन्धों के दर्द से बेहाल हो जाती हूँ...कभी आँखों की जलन से आंसू निकल आते हैं.

जैसा कि होता है...दिन भर कुछ न करने के बाद शाम को एक बेहतरीन कांसेप्ट लिखा...ऐवें ही मूड फ्रेश हो गया. इधर लगभग चार महीने बाद बाईक ठीक कराई है. मुझे अपनी बाईक चलाने से ज्यादा अच्छा कुछ और लगता हो मुझे याद नहीं आता. आज दोपहर बहुत सारी चोकलेट भी खायी है. अभी बस जरा स्विट्ज़रलैंड टाईप हॉट चोकलेट विद विस्की मिल जाती तो क्या बात होती.

थर्मामीटर ठीक से नहीं लगाया था...अब लगाया थोड़ी देर पहले तो देखती हूँ कि बुखार मियां अब तक मौजूद हैं...तशरीफ़ ले नहीं गए हैं. मेहमाननवाज़ी एक्सटेंड करना कोई अच्छी बात है भला! सारी प्लानिंग चौपट हो गयी...क्या क्या न सोच रखा था इस हफ्ते के लिए. खुदा न खस्ता, बुखार को भी आने का टाइम नहीं मालूम होता है. खैर. लिखने से मूड अच्छा होता है इसके प्रूफ के लिए मैं अक्सर अपनी पोस्ट्स पढ़ती हूँ. आज का काम क्लोज हो गया है...कल का भी सब जुगाड़ ठीक ही लग रहा है. लिख के थोड़ा सर हल्का हुआ तो दर्द भी कम होगा ही कभी न कभी.

कभी कभी दुआओं का कोटा ख़त्म हो जाता है, वैसे में एक्सप्रेस एंट्री करनी पड़ती है...खुदा इसलिए बीमार कर देता है हमें. चलिए आप हमारे ठीक होने के लिए ऊपर खुशामद करिए हम तब तक पिज़्ज़ा और चोकोलावा केक पर हाथ साफ़ करते हैं. बाई द वे....अगर आपको हमारे स्वर्ग के वर्शन पर भरोसा है तो वहां पर एक चोकोलावा का पेड़ है...जिसमें हमेशा अनगिन केक लगे होते हैं. यूँ हाथ बढ़ाया और टप्प से तोड़ लिया. खैर. लगता है बुखार चढ़ रहा है. बकिया बरगलाना फिर कभी.  

5 comments:

  1. Get well soon.........take care

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  2. बुखार मियाँ को इतने रोचक विचार परोसेंगी तो वो जाने से रहे, आँख बंद कीजिये और चादर तानकर सो जाइये, बुखार की इतनी उपेक्षा करें कि छोड़कर भाग जाये।

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  3. जल्दी ठीक हो ही जाओगी.

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  4. सार्थक अभिव्यक्ति।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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