एक जिंदगी में हम अनगिन फिल्मों से गुज़रते हैं...उनमें से कुछ हमारे अन्दर घर कर लेती हैं. कुछ दृश्य हैं जो कभी कहीं नहीं जाते.
डेज़ ऑफ़ बीईंग वाइल्ड का ये सीन कुछ उन भूले हुए चेहरों की तरह है जो आपका ताउम्र पीछा करते हैं.
लड़की जरूर उससे बेपनाह इश्क करती होगी...उसे ढूंढते हुए उसके मकान पर पहुँचती है. लड़के की माँ को मालूम नहीं कि वो उसे कब देख पाएगी, देख पाएगी भी या नहीं...और वो कल घर छोड़ कर जा रही है.
लड़की की आखिरी इल्तिजा है...'क्या मैं आपका घर देख सकती हूँ?' पहली स्मृतियों के एक धीमे कोलाज की तरह घर आपकी नज़रों से गुज़रता है और अपनी सारी डिटेल्स के साथ जड़ें जमाता जाता है दिल के इर्द गिर्द. आप घर की खूबसूरती, रौशनी की नाज़ुकी, तस्वीरों के चेहरों को खुद में बसाते जाते हैं...आपको लगता है कि लड़की के दिल में भी कुछ उम्मीदों की कोपलें खिल रही होंगी...ट्रैफिक का शोर है...दूर शायद कोई ट्रेन गुज़र रही है. लड़की कहती है 'वो मुझे हमेशा घर की सीढ़ियों के नीचे इंतज़ार करने को कहता था. मैं बेहद उत्सुक थी ये जानने के लिए कि उसका घर कैसा दीखता है. ये किसी भी दूसरे घर की तरह दिखता है'.
इश्क का ये ख़ास से आम हो जाना मुझे जाने कैसे तो बेतरह तोड़ता है...ये सीन मेरे दिमाग से उतरता ही नहीं...रंगता रहता है कितने नए अर्थ. बुनता रहता है कितने पुराने नाम...खोजता है कोई अद्भुत चीज़. मैं जैसे बिलख बिलख कर रोती हूँ...चुप...बेआवाज़. फिल्म का दूसरा दृश्य शुरू होता है...जिसमें एक फोन बूथ है...एक फोन है...पूरी रात बजता रहता है...जब कि उस फोन को उठाने वाले की पोस्टिंग कहीं और हो चुकी है...सालों इंतज़ार करके उसने अपनी पोस्टिंग कहीं और करा ली है.
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जब हमें लगता है कि कोई खो गया है...ये भी तो हो सकता है वो आपको किसी ऐसी राह पर तलाश रहा हो जहाँ जाने का कोई वादा न था..दो अलग अलग आसमानों के नीचे...किसी दूसरे समय में...
डेज़ ऑफ़ बीईंग वाइल्ड का ये सीन कुछ उन भूले हुए चेहरों की तरह है जो आपका ताउम्र पीछा करते हैं.
लड़की जरूर उससे बेपनाह इश्क करती होगी...उसे ढूंढते हुए उसके मकान पर पहुँचती है. लड़के की माँ को मालूम नहीं कि वो उसे कब देख पाएगी, देख पाएगी भी या नहीं...और वो कल घर छोड़ कर जा रही है.
लड़की की आखिरी इल्तिजा है...'क्या मैं आपका घर देख सकती हूँ?' पहली स्मृतियों के एक धीमे कोलाज की तरह घर आपकी नज़रों से गुज़रता है और अपनी सारी डिटेल्स के साथ जड़ें जमाता जाता है दिल के इर्द गिर्द. आप घर की खूबसूरती, रौशनी की नाज़ुकी, तस्वीरों के चेहरों को खुद में बसाते जाते हैं...आपको लगता है कि लड़की के दिल में भी कुछ उम्मीदों की कोपलें खिल रही होंगी...ट्रैफिक का शोर है...दूर शायद कोई ट्रेन गुज़र रही है. लड़की कहती है 'वो मुझे हमेशा घर की सीढ़ियों के नीचे इंतज़ार करने को कहता था. मैं बेहद उत्सुक थी ये जानने के लिए कि उसका घर कैसा दीखता है. ये किसी भी दूसरे घर की तरह दिखता है'.
इश्क का ये ख़ास से आम हो जाना मुझे जाने कैसे तो बेतरह तोड़ता है...ये सीन मेरे दिमाग से उतरता ही नहीं...रंगता रहता है कितने नए अर्थ. बुनता रहता है कितने पुराने नाम...खोजता है कोई अद्भुत चीज़. मैं जैसे बिलख बिलख कर रोती हूँ...चुप...बेआवाज़. फिल्म का दूसरा दृश्य शुरू होता है...जिसमें एक फोन बूथ है...एक फोन है...पूरी रात बजता रहता है...जब कि उस फोन को उठाने वाले की पोस्टिंग कहीं और हो चुकी है...सालों इंतज़ार करके उसने अपनी पोस्टिंग कहीं और करा ली है.
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जब हमें लगता है कि कोई खो गया है...ये भी तो हो सकता है वो आपको किसी ऐसी राह पर तलाश रहा हो जहाँ जाने का कोई वादा न था..दो अलग अलग आसमानों के नीचे...किसी दूसरे समय में...
कहने को तो विश्व सिमट गया है, पर खो जाने वाले फिर भी खो जाते हैं, कल तक तो सामने ही थे, बह जाते हैं समय के प्रवाह में या उड़ जाते हैं घटनाओं के झोंके में।
ReplyDeleteहां ! यह किसी काल्पनिक हाथ के एक दम छूट जाने सा होता हैं . एक स्पर्श बची उम्र में रोज़ याद दिलाने को अपनी छोड़ जाता है . यह एक बेहद भावुक करता प्रोज है .....सुंदर लिखा आपने !!
ReplyDelete.दो अलग अलग आसमानों के नीचे...किसी दूसरे समय में...
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