20 March, 2013

मुस्कराहट का परजीवी आंसुओं से सिंचता है


मुस्कराहट का परजीवी आंसुओं से सिंचता है.
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और वो खो गया. ऐसे जैसे कभी था ही नहीं. ऐसे जैसे नदी के तट से गुम हुआ हो कोहरा, ऐसे जैसे राम ने ली थी जल समाधि.

मुझे देर तक दिखती रही उसकी आँखें, चेहरा बदल बदल कर. सलेटी कपड़े पहने वो कौन था जिसने पूरे धैर्य से मेरी पूरी जिंदगी सुनी और अंत में श्राप देने की जगह सर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद में अभयदान दे गया.

संत, महात्मा, दुनिया से विरक्त कोई? मेरे मन को समझने वाला. रात का तीसरा पहर था. अलाव के आखिरी अंगारे बचे थे. प्रेम अपनी ऊष्मा बचाए रखने के लिए कोई नहीं दुनिया नहीं बसाना चाहता था.

मैं थी की मिटटी के घरोंदों को ही घर मान बैठी थी. कहाँ मैं बंजारन और कैसा वो धरती से सोना उगाने वाला किसान, हमारा क्या मेल था.

-किसी तारीख का लिखा हुआ, जो तारीख लिखी नहीं गयी.
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Absence of death is not life. Absence of life is death.
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मैं कहीं गुम हो जाना चाहती हूँ. 

5 comments:

  1. जब मुस्कराहट गिरवी रख दी जाये तो छुड़ाने के लिये आँसू का मोल तो चुकाना ही पड़ता है।

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  2. -मुस्कराहट का परजीवी आंसुओं से सिंचता है.
    -किसी तारीख का लिखा हुआ, जो तारीख लिखी नहीं गयी.
    Bahut Khub

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  3. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.

    "स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल"

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  4. मन के कोने में दबी चिंगारी सुलग उठी

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