दिसंबर का ये महिना मेरे लिए अक्सर खोने पाने का रहता है...पिछले साल इसी समय सागर का पहला मेल आया था...इस साल एक बहुत पुराने दोस्त का कमेन्ट देखा कल अपने ब्लॉग पर...साथ ही तारीफ भी, कि अच्छा लिखने लगी हो. दोस्तों से दुःख भी पहुंचा...एक करीबी दोस्त ने शादी कि और बुलाना तो दूर, बताया भी नहीं. वाकई दूरियां आ जाती हैं रिश्तों में...उसी तरह शिंजिनी की शादी में दिल्ली गयी...देर रात उस बंगाल समाज में रुकी. भाई हिम्मत का काम था...वो तो बचपन से इन्द्रनील से दोस्ती होने के कारण थोड़ी बहुत बांगला समझ में आती थी तो कमसेकम पता चल रहा था कि क्या चल रहा है. इस साल मनीष से भी बहुत साल बाद मिली...नील और मनीष दोनों मेरे हाथ का खाना खा के आश्चर्य करते रहे कि हमको सच में खाना बनाना आ गया. दिल्ली में पूजा से मिली...उसने इतने प्यार से चाय बनायी कि मैं कभी नहीं पीती थी पर उसका दिल रखने के लिए चाय पी और अच्छी भी लगी. प्यार में बहुत स्वाद होता है.
वोंग कार वाई की फिल्मों से परिचय हुआ...लगा कि इतने दिन कैसे नहीं देखी...पहली बार अज्ञेय को ध्यान से पढ़ा...कुश और अपूर्व से मिली, देखा कि अपूर्व कितना भला सा लड़का है, कुश के बारे में कुछ नहीं कहूँगी ;) पीडी के रस्ते के ज्ञान के बारे में जाना... नीरा से मिली, उनको अपनी बाइक पर घुमाया...अनगिन गप्पें मारी...बहुत सारी किताबें पढ़ी.
अपनी उम्र के साथ तालमेल बिठाने में साल अंत आते आते कामियाब हुयी...लगता था बुड्ढी हो गयी हूँ, बहुत मच्योर हो गयी हूँ...सब सोच के करती हूँ, आगे पीछे, दुनिया, समाज...सारा बोझा अपने सर ले के घूमती थी. एक दिन लगा बस...दिल की आवाज़ पर कार ले के निकली थी...अपने इस पागलपन में ये भी दिखा कि अब भी कुछ बचा हुआ है मुझमें...जो पहले वाली पूजा जैसा है. फिर से किसी ने कहा 'तू एकदम पागल है' और उसे कॉम्प्लीमेंट की तरह लिया. उम्र जैसे अचानक कम हो गयी.
फिर से पहली बार प्यार हुआ...गोवा गयी..आलसी वाली छुट्टी मनाई...कुणाल को रोज देखती हूँ तो लगता है प्यार बढ़ता जाता है exponentially यकीन आता है कि सोल्मेट्स होते हैं...शादी के तीन साल तो हो गए. बहुत बड़ा माइलस्टोन है. प्यार की बारीकियां, झगड़े, आफतें...और शादी की जिम्मेदारियों के बावजूद...प्यार सलामत है. touchwood.
पापा और भाई से थोड़ी ज्यादा गप्पें मारी...मम्मी की थोड़ी ज्यादा याद आई...रोना थोड़ा ज्यादा आया. सुबह उठ कर आज भी पहला ख्याल मम्मी का ही आता है...अब कभी कभी इस ख्याल पर मुस्कुराने का मन करता है, साल में दो तीन बार ही सही. जब सपने में मम्मी से डांट खा के उठती हूँ तो अक्सर भूल जाती हूँ कि कहाँ हूँ, लगता है पटना में हूँ और उठ कर कॉलेज जाना है. तब अक्सर हँसी आती है सुबह.
बाइक अब भी ९० पर चलाती हूँ मूड होता है तो...देर रात मोहल्ले में बाल खुले छोड़ कर, गाना गाते या सीटी बजाते हुए भी बाइक चलाती हूँ...ऐसे में भूतों के डरने पर मज़ा भी आता है...कभी कभी अपने डरने पर भी मज़ा आता है. चाँद अब भी खूबसूरत दिखता है...दोस्तों की याद अब भी आती है. जिनसे सालों हो गए मिले हुए, उनकी भी. लगता है सब होते और मैं सबको कार में ठूंस कर कहीं दूर चली जाती, वहां सब मिल कर पिकनिक मनाते.
कहानी लिखने की कोशिश की...और अपनी नज़र में आश्चर्यजनक रूप से सफल हुयी...किरदार लोगों को सच लगते हैं, कहानियां सच में घटी हुयी लगती हैं. यानि कल्पना बहुत हद तक detailed है. ये बात इसलिए भी अच्छी लगती है कि मुझे कभी लगता नहीं था कि मैं कभी कहानी रच पाउंगी. ब्लॉग को आजकल रफ कॉपी की तरह इस्तेमाल करती हूँ. फिल्में दिमाग में चलती जाती हैं, लिखते जाती हूँ...बिना सोचे कि अच्छी हैं, बुरी हैं या अधूरी हैं. फिल्में बनाना आसान होगा अब किसी दिन. पिछले साल व्यंग्य लिखने की कोशिश की थी...इस साल कहानी. अच्छा लगता है कि सब कुछ हो रहा है...बिना रुकावट के. ये भी लगता है कि मेरी कोई खास पकड़ नहीं है जैसे सागर, दर्पण या अपूर्व की है...एक बार में लग जाता है कि ये इनकी शैली है...समझ नहीं आता कि अपनी कोई शैली बनायीं भी है या ऐसे ही. लिखना अच्छा लगता है...लिखती हूँ...वैसे भी ब्लॉग ही तो लिख रही हूँ कौन सा छप रहा है नैशनल पेपर में कि सब पढ़ के कहिएं कैसा ख़राब है या अच्छा है :)
साल के अंत में...बहुत दिनों बाद...इश्वर का धन्यवाद करती हूँ...कुणाल के लिए, अपने परिवार के लिए और मेरे कुछ खास दोस्तों के लिए जो मेरी जिंदगी को पूरा करते हैं. मैं जहाँ हूँ...संतुष्ट हूँ...सुखी हूँ.
सबको नए साल की हार्दिक शुभकामनायें.