06 May, 2008

एक रोज मैंने सोचा

बहुत दिन हो गए
अपने आप से नहीं मिली हूँ
सोचती हूँ थोड़ा वक्त निकाल
मिल आऊं एक रोज़


जैसे उस नीली जींस के
पिछले पॉकेट में रखा हुआ है
मेरा पुराना वालेट
और थोडी रेजगारी
वैसे ही
कहीं भुलाई हुयी हूँ मैं


अब तक रखा
कॉलेज का आईडी कार्ड
जैसे अभी भी उसी पहचान
में पाना चाहती हूँ ख़ुद को
जिन आंखों में
सपनो पर बन्धन नहीं होते थे


कहीं किसी पहाड़ी की चोटी पर
दुपट्टे से खिलवाड़ करती हुयी
वहीं की हवा में
कहीं उड़ती हुयी हूँ मैं शायद


सोच रही हूँ
मिल आऊं
अपने आप से

इससे पहले कि
अपना पता ही भुला दूँ

11 comments:

  1. अपने बीते कल को याद कर आगे चलते जाने का नाम है जिंदगी। भावनाओ से भरी सुन्दर कविता।

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  2. जैसे उस नीली जींस के
    पिछले पॉकेट में रखा हुआ है
    मेरा पुराना वालेट
    और थोडी रेजगारी
    वैसे ही
    कहीं भुलाई हुयी हूँ मैं


    हम तो रोज यादो को फलक से तोड़ तोड़ कर अपने आँगन मे लाते है......

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  3. जैसे उस नीली जींस के
    पिछले पॉकेट में रखा हुआ है
    मेरा पुराना वालेट
    और थोडी रेजगारी
    वैसे ही
    कहीं भुलाई हुयी हूँ मैं
    ये सादी सी उपमाएँ ज्यादा खूबसूरत लगती हैं।

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  4. मैं भी इन्हीं पंक्तियों के गुण गाऊंगा..

    जैसे उस नीली जींस के
    पिछले पॉकेट में रखा हुआ है
    मेरा पुराना वालेट
    और थोडी रेजगारी
    वैसे ही
    कहीं भुलाई हुयी हूँ मैं

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  5. जैसे उस नीली जींस के
    पिछले पॉकेट में रखा हुआ है
    मेरा पुराना वालेट
    बहुत सुंदर.. भावनाओ को समेट कर रची हुई कविता.. बधाई स्वीकार करे..

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  6. bahut khub,nili jeans aur walet ki bahut hi pasand aayi.

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  7. बहुत अच्छी कविता, आज तो मुझे भी लग रहा है की अपने आप से मिल लूँ... थोड़े सुकून से, बहुत दिन हो गए.

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  8. बढ़िया है मिल आईये.

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  9. मुझे लगता है ये लड़का पार्टी आपकी नीली जिन्स के पीछे पड़ गई है...:)
    मगर क्या करे हमे भी वही चार पंक्तियाँ बहुत भा रही है...
    जैसे उस नीली जींस के
    पिछले पॉकेट में रखा हुआ है
    मेरा पुराना वालेट
    और थोडी रेजगारी
    वैसे ही
    कहीं भुलाई हुयी हूँ मैं
    क्या बात है वाह!

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  10. यहाँ तो सब सन्त समाज नीली जींस और रेजगारी के पीछे पड़ गया है .
    वैसे सपने बन्धन में नही रहते है.
    कभी भी नही!
    इसीलिए उन्हें सपने कहा जाता है.

    आकांक्षाओं की बात और है.
    फिर भी ख़ुद से मुलाक़ात होना या उसकी उम्मीद रखना आजकल कम ही नज़र आता है. कवि की इस उम्मीद को सलाम करना ही पड़ेगा.

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  11. aapke shabdome bahot gaharyi hai duaa karta hoo ki ye gaharyi aasihi badhati jay aur ham us gaharyi me aasehi dubate jaye...
    take care
    bye

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