26 May, 2008

एक शाम

क्यों खास थी वो शाम?

तुम और मैं
एक पार्क की बेंच पर अकेले बैठे रहे थे
काफ़ी देर तक

बस...
कुछ खास बातें भी तो नहीं की थीं
एक भुट्टा खाया था

नहीं...
मेरा भुट्टा था, और तुमने खाया था
मेरा जूठा पानी पिया

मौसम...
भीगा सा, चंचल सा था
बारिश हुयी थी सुबह

पैदल...
देख रहे थे कि कौन थकता है
और लौटना किसे है

हाथ भी तो नहीं पकड़ा था मेरा
मेरी तारीफ़ भी नहीं की
फ़िर?

पर उस शाम
कई दिनों बाद
जैसे हम मिले थे

सिर्फ़ हम...

मॉल की चमचमाहट में
बर्गर और कोक के साथ
शॅपर्स स्टॉप में भटकते हुए
बिग बाज़ार की छूट में

मैं और तुम ही रहते हैं
हम नहीं हो पाते

उस पुरानी सी शाम में
फ़िर से तुम और मैं
हम हो गए थे...

6 comments:

  1. Hey !! This is too good boss. This is beautiful. It captures.

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  2. यही बिंदासपन हमेशा रहे.....यही दुआ है.....

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  3. उस पुरानी सी शाम में
    फ़िर से तुम और मैं
    हम हो गए थे...

    सुन्दर, स्पर्श करती हुई रचना।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  4. बहुत खूब...
    साधारण से वाक्यों में हर बात कह गई आप !

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  5. मै और तुम ही रहते है
    हम नही हो पाते॥


    वाह क्या बात। जमे रहो।

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