मैंने कार ड्राइविंग इस साल की शुरुआत में ही सीख ली थी...लाइसेंस जनवरी एंड में आ गया था. पर उसके बाद से कार चलाई ही बहुत कम है, एक तो कुणाल को डर लगता है तो वो मेन रोड पर हमको देता ही नहीं है...उसको टेंशन ही इतनी होती है. चेहरा देखने लायक होता है उसका, पूरा ध्यान उसका सड़क पर, और मैं गप्पें मारती चलती हूँ. अभी शनिवार रात को एक मित्र को मराथल्ली ड्रॉप करना था, रात के कोई एक बज रहे थे. गाड़ी मैं ही चला के ले गयी, कभी कभी ज्यादा जिद करने पर और रात को चूँकि सड़कें खाली रहती हैं तो कुणाल चलाने दे देता है हमको. लगभग ऊँगली पर गिन सकते हैं कि कितनी बार गाड़ी मैंने चलाई है साल में. 
कल दोपहर से ही खुराफात सूझ रही थी मुझे, ऑफिस जाने के पहले दोनों चाभियाँ ले कर उतरी थी...बाइक की भी और कार की भी. मेरे घर में पार्किंग से कार निकाल पाना बहुत मुश्किल है...अपार्टमेन्ट के दो गेट हैं...पीछे वाले गेट में अक्सर बहुत सी गाड़ियाँ लग के रास्ता ही ब्लोक रहता है वरना उस गेट से गाड़ी निकलना एकदम आसान है. थोड़ा सा रिवर्स करो और बस सीधे सड़क पर. वहीं सामने वाले गेट से निकलने के लिए बहुत आड़ा टेढ़ा करके निकालना पड़ता है. पिछली बार कोशिश की थी तो मिरर पर स्क्राच लगा दिया था. इतना रोना आया था कि मत पूछो.
ऑफिस जाने टाइम तो नहीं जा पायी कि रास्ते में बहुत गाड़ियाँ थी...वापस आई, कुक से खाना बनवाई फिर सोच रही थी कि कल व्हाईटफील्ड में मीटिंग है, बाइक से १८ किलोमीटर कुछ ज्यादा हो जायेंगे. कार से जा पाती तो कितना अच्छा रहता. भगवान का नाम लिया और दिल में कहा 'बेटा चढ़ जा सूली पर, जो होगा देखा जाएगा' अब सोचती हूँ तो हँसी आती है. बेसमेंट में पहुंची तो फिर से बाइक लगी हुयी थी कार के आगे...दरबान भी बेचारा देख रहा था कि मैं रोज कार की चाभी लिए आती हूँ और फिर जाती कहीं नहीं हूँ. तो उसने सामने से बाइक हटा दी. मैंने कार पहली बार निकाली अपार्टमेन्ट से बाहर.
गहरी सांसें ले रही थी...और दिल में कह रही थी 'यू कैन डू ईट, कम ऑन पूजा'. डर तो इतना लग रहा था कि दिल लगता था उछल के बाहर आ जाएगा...हाथ एकदम ठंढे पड़ रहे थे, एकदम. पहले तो कार के शीशे उतारे थे सारे ताकि बाहर की आवाज़ सुनाई पड़ती रहे. फिर मैंने हिम्मत की और सारा ध्यान सड़क पर रखा...शुरू के टाइम के कुछ लम्हे मुझे जिंदगी भर याद रहेंगे...सांस अटक रही थी. 'आई कैन डू ईट' के साथ एक और ख्याल भी आ रहा था 'मैं एकदम पागल हूँ' और घड़ी घड़ी सर को हिला रही थी कि मेरा खुद का कोई भरोसा नहीं है. फिर दिल में सोलिड बोल्ड ख्याल आया 'कि क्या होगा हद से हद एक स्क्रैच आएगा कार में, मर थोड़े ना जाउंगी'. बस फिर डर नहीं लगा...और मैंने कॉनफिडेंस के साथ कार चलायी. 
ट्रैफिक वाली सड़कों पर तो कोई चिंता नहीं थी, २० की स्पीड पर क्या खाक होगा...खुली सड़कों पर उफ़ क्या मज़ा आता है. थोड़ा सा रोड खाली मिला नहीं कि आह...रात का समय...दिल में कोई गाना, मस्त सा मौसम, थोड़ा सा डर कि कुणाल को बताये बिना भाग आई हूँ :) किल्लर कॉम्बो होता है...एकदम दिल खुश हो जाने वाला टाइप्स. 
वापस आई तो दोस्त बोले...क्या जमाना आ गया है, अपनी ही गाड़ी ले के भागना पड़ रहा है...भाई हंसा बहुत देर तक पहले फिर बोला 'रे बिलाई क्या सब काम करती है' और जिससे सबसे डर लग रहा था...कि कुणाल जानेगा तो जान मार देगा पर वो कितना प्यारा है उसने बस कहा कि बता के जाया करो :) हम उससे ये भी पूछे कि तुम सोचे थे कि हम ऐसे गाड़ी लेके फरार हो जायेंगे. वो बोला एकदम सोचे थे, हर रोज़ सोचते हैं कि आज घर जायेंगे तो तुम गायब रहोगी. वो मुझे कित्ती अच्छी तरह समझता है :)  No wonder I love him like crazy.
ये थी मेरी पहली लॉन्ग ड्राइव की कहानी...खुद के साथ...और ये पूरी पूरी सच्ची है :)