पहले तो सफाई की हमारे एक्सीडेंट में कोई रूमानी बात नहीं है, हाय हमारी ऐसी किस्मत कहाँ...ठुके भी तो...खैर. उस दिन हम जाने किसका चेहरा देख कर उठे थे...सुबह कुछ काम से जाना था, हड़बड़ी में निकले थे. एक प्रिंट आउट निकलवाना था...वाल्लेट खोलते हैं तो देखते हैं की पैसे नदारद...हम अधिकतर लड़कों वाला वालेट ही लेकर चलते हैं की जींस की बैक पॉकेट में डाला और निश्चिन्त, पर्स ले जाने में मेरा ज्यादा भरोसा नहीं है. लेकिन इत्तिफाकन एक रात पहले हमने अपने पर्स में पैसे और कार्ड्स डाल दिए थे और सुबह हड़बड़ी में चेक करना भूल गए. अब मेरे वालेट में एक भी रूपया नहीं...रुपये की तो खैर मैं जायदा चिंता नहीं करती पर लाइसेंस नहीं था और मैं बिना DL के बैक नहीं चलती. तो घर गयी, पर्स उठाया...मुहूर्त का तो कबाड़ा हो ही गया था.
लावेल रोड के आसपास पार्किंग की जगह ही नहीं एकदम...मैंने कार पार्किंग में ही बाईक खड़ी कर दी की दस मिनट का काम है, दस मिनट के घंटा हो गया. बाहर आई तो देखती हूँ नो-पार्किंग वाले ले जा रहे हैं उठा के. देर काफी हो गयी थी तो पहले ऑटो किया और ऑफिस भागी. तब तक लगभग लंच का टाइम हो गया था. आधे रस्ते में याद आया की टिफिन भी तो बाईक में ही है उसपर से कल रात काजू पनीर की सबकी बनायीं थी तीन बजे...और चखी भी नहीं थी. अब तो लगे की पहले बाईक से उतर कर रोना शुरू कर दूं. ऑफिस पहुंची तो पता चला मीटिंग कैंसिल थी. मैंने सोचा बाईक ले आती हूँ...भूख लग रही थी, सुबह से एक बजने को आये थे और खाना कुछ भी नहीं खाया था.
बाईक लाने के लिए जिस ऑटो से गयी उसने वन वे में एंट्री कर दी...वहां से उतर कर कुछ पौन किल्मीटर चल कर वहां पहुंची जहाँ बेचारी मेरी बाईक खड़ी थी. तीन सौ रूपये दे कर गाडी छुड़ाई और वापस ऑफिस...आजकल मेट्रो का काम चल रहा है तो खुदी हुयी सड़क पर बोर्ड लगा लिए गए हैं. मैंने उधर ही यु टर्न के लिए बाइक मोड़ी...सड़क लगभग खाली थी कुछ गाड़ियाँ आ रही थी...चूँकि तुरत यु टर्न लिया था तो मैं सबसे दायीं लें में थी...अचानक से मुझे पता भी नहीं चला और काफी तेज़ी से एक कार ने अचानक मुझे ठोक दिया, मेरी बाइक काफी धीमी थी इसलिए मैं ब्रेक मार कर रकने या कंट्रोल करने की कोशिश की पर व कार इतनी तेज़ी से आ रही थी की मैं एक पलटन खाते हुए दूर फेंका गयी. किस्मत अच्छी थी की पीछे वाली गाड़ियाँ मुझपर नहीं चढ़ीं. कुछ लोग आये, उन्होंने मुझे उठाया, बाइक को सड़क किनारे लगाये. अचानक चोट या दर्द तो ज्यादा नहीं हो रहा था बस थोड़ा shaken महसूस कर रही थी. किसी भी तरह का एक्सीडेंट थोड़ा वल्नरेबल फील करा देता है. लग रहा था की कुछ भी हो सकता था, मर सकती थी. अचानक, बिना किसी से विदा लिए हुए.
वहां खड़े एक अंकल ने गाडी का नंबर भी नोट कर लिया था...मैंने भी सोचा की एक कम्प्लेन तो डाल ही दूँगी. पानी पिया और थोड़ी देर गहरी सांसें ले कर खुद को संयत किया. वहीं लोगों ने बताया की कार वाले के पीछे एक व्यक्ति बाइक से गया है. मैंने उम्मीद तो क्या ही की थी...पर दस मिनट ने अन्दर वो कर वाले को लेकर आ गया और बला की आप लोग आपस में बात कर लीजिये. मैं तब तब एकदम परेशान हो चुकी थी, रोना सा आ रहा था. पर मैंने सोचा की घबराने की कोई बात नहीं है...मैं ठीक हूँ और कुछ ही समय में घर पहुँच जाउंगी. गाडी वाला सॉरी बोला..पूछा की मुझे चोट तो नहीं लगी...मैं काफी परेशान थी तो मैं कुछ नहीं कहा उससे...बस इतना की ये कोई तरीका है कार चलने का, न मैं किसी गलत लेन में थी, न मैं ओवेर्टेक कर रही थी, न मैं वन वे में थी...पूरी सड़क खाली थी. खैर...
असली मुसीबत फिर शुरू हुयी जब बाइक स्टार्ट ही नहीं हो रही थी...एक तो चोट लगी थी, उसपर किक मरते मारते हालत ख़राब...बहुत देर के बाद जाके बाइक स्टार्ट हुयी. वहां से चली और मुश्किल से १०० मीटर चली होगी की फिर बंद...अब चिन्नास्वामी स्तादियम से mg रोड तक बाइक पार्क करने की कोई जगह ही नहीं. वहां से लगबग आधा किलोमीटर बाइक खींच कर लायी. बीच सड़क में छोड़ भी नहीं सकती थी. फिर काफी देर बाइक स्टार्ट करने की कोशिश की...फिर सोचा की थोड़ा और पेट्रोल डाल कर देखते हैं...तब तक लगभग ढाई बज गए थे और भूख के मारे चक्कर आने लगे थे. वहां से कोई तीन सौ मीटर पर पेट्रोल पम्प था...एक अच्छे दरबान भईया ने बोतल ला के दी...फिर पैदल गयी और पेट्रोल लिया. उस वक़्त इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी की रोड पार करके उस तरफ से औत लेकर पेट्रोल पम्प जाऊं. सर्विस सेंटर को फोन किया तो उन्हने बताया की पूरा एक्सीलेरेटर दे कर किक मारने से स्टार्ट हो जाएगा.
पेट्रोल डाला और स्टार्ट करने की कोशिश की तब भी नहीं हो रहा था...तब एक और भला लड़का आया और उसने बहुत कोशिश की...फिर बाइक स्टार्ट हो गयी. जब जाने की बारी आई तो ध्यान आया की हेलमेट तो डिक्की में है...और डिक्की खोलने के लिए चाभी निकालनी होगी...रोना आ गया एकदम से. पर अभी तुरत एक्सीडेंट हुआ था तो बिना हेलमेट के कहीं जाने में बहुत डर लगा. खैर...इस बार इतनी दिक्कत नहीं हुयी.
वहां से ऑफिस आई खाना खाया...फिर भी थोड़े चक्कर आ रहे थे. तो सोचा घर चली जाऊं. तो घर चली आई की आज का दिन बहुत ख़राब है...जितनी जल्दी घर पहुँच जाऊं बेहतर रहेगा. मेरे साथ एक प्रॉब्लम और है की घर में मूड अच्छा हो तो मन लगता है वरना घर काटने को दौड़ता है. तो शाम को फिर घूमने निकल गयी. वापस आई कपडे बदले तब पहली बार देखा की कितनी चोट लगी है. एक सेकंड को तो फिर से चक्कर आ गए. जींस पहनती हूँ इसलिए छिला नहीं कुछ पर कुछ हथेली भर जितना बड़ा खून का थक्का जम गया था. देखने के बाद और दर्द होने लगा. रात होते होते और भी जगहों के दर्द उभरे.
अगले दिन ये हालत की चलने में पूरे बदन में दर्द और जुबान पर 'सर से सीने में कभी, पेट से पांवों में कभी, एक जगह हो तो बताएं की इधर होता है'. दो दिन आराम किया पर आराम कहाँ...लगता है पहली बार प्यार में गिर पड़े हैं, दर्द जाता ही नहीं...इश्क कर बैठा है मुझसे. अब कुछ दिन तक न कार चलेगी मुझसे न बाइक. घर बैठे लिखने पढने का इरादा है.
जो लोग ब्लॉग में नए हैं जैसे सागर, अपूर्व, दर्पण, डिम्पल, पंकज...इनसे अक्सर हम अक्सर ब्लॉग के एक सुनहरे दौर की बात किया करते हैं...जब दुनिया में कम लोग थे और हर छोटी चीज़ पर कई दिन बात किया करते थे. जैसे पीडी की टांग नहीं टूटने के बाद भी अब तक पुराने लोग पीडी के टांग टूटने का किस्सा जानते हैं. तो फुर्सत में मैंने कुछ लिंक ढूंढ निकले हैं...ताकि थोड़ा अंदाजा हो की उस समय क्या क्या बातें करते थे हम, रामप्यारी कौन है, क्या करती है वगैरह. मुझे चिट्ठाजगत का लिंक नहीं मिल रहा..वरना पोस्ट करती.
खैर...हम ठीक हैं अभी...आराम कर रहे हैं...आप लोग दुआओं का टोकरा भेजिए, लगे हाथ कुछ फल, मिठाई भी आ सकती है टोकरे में. :) :)
अले ले बाबू ! कोई-कोई दिन ऐसे ही जाता है. तुम्हारा स्टेटस देखा था फेसबुक पर तो लगा था कि मज़ाक किया है तुमने. चलो, अच्छा कि कोई हड्डी-वड्डी नहीं टूटी :-)
ReplyDelete"मेरे साथ एक प्रॉब्लम और है की घर में मूड अच्छा हो तो मन लगता है वरना घर काटने को दौड़ता है." ...ये मेरे साथ भी होता है.
खैर आराम करो और दर्द को दुरदुराकर भगा दो. दर्द से प्यार अच्छा नहीं होता.
रूमानियत के बीच जायका बदलने जैसा.
ReplyDeleteab accedent ki post ko achchha kya khun...shukra hai ki theek ho aur khud uth kar ghar aa gayee....saral shabdon me bahut achchhi prastuti lagi..ummed hai yu hi milate rahenge...
ReplyDeleteहोप घुटनों पर चोट न आयी हो वरना चिंतन प्रक्रिया में तो दिक्कत हो जायेगी। :-/
ReplyDeleteयार सच कहूँ तो मेरे साथ ऎसी ऎसी बातें होती रहती हैं कि अब तो खुद पर ही हँसी आती है। इस बार घर से आते हुए ट्रेन में बैठने के बाद जब मोबाईल पर ई-टिकेट देखा तब समझ आया कि टिकेट तो एक दिन पहले का था। फ़िर वहाँ से विदआउट टिकेट आना हुआ। सोच रहा था कि फ़ाईन दे दूंगा लेकिन शायद होली का दिल होने के कारण किसी ने चेक नहीं किया..
ख्याल रखो अपना और अब एक दिन में दो दो चार चार पोस्ट्स डालो.. चीयर अप!
हाँ एक बात बताना भूल गये कि मेरी पहली पोस्ट नवंबर २००६ में आयी थी इस लिहाज से अब हम उतने भी पुराने नहीं.. :-) खैर वो बात अलग है कि बहुत एक्टिव कम ही रहे।
ReplyDelete@पंकज...किस साल लिखना शुरू के हिसाब से नहीं कह रही थी पंकज...उस समय कुछ कम लोग थे और एक दसरे कि हर बात पर ध्यान देते थे, कुछ कुछ परिवार जैसा फील होता था. उसी की बात की है.
ReplyDeleteहृदय-विदारक विवरण!!..खैर पढ़ने से पहले नही पता था कि इतना ज्यादा सीरियस सा कुछ घटित हुआ रहा...खैर कुछ दिन औरों से बदतर होते हैं..ऊपरवाला हमारी पेशेंस बढ़ाने के लिये गढ़ता है..सो अंत भला तो सब भला..और यहाँ अंत मे तो आराम ही आराम हो रही है! :-)
ReplyDeleteऔर हाँ हम नये हैं और बहुत एक्टिव भी कम ही हैं..सो कथा चालू रहे... :-)
रोचक प्रस्तुति।
ReplyDeleteआप स्वास्थ्य लाभ शीघ्र करें। चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास थीं तो फोन कर देतीं, कुछ सहायता भिजवा देते या स्वयं ही आ जाते।
ReplyDeleteआप आराम करें, बॉडी को समय दें हीलिंग के लिए. हमारी शुभकामनाएँ भिजवा रहें हैं. फल और फूल तो आप तक पहुँचते पहुँचते खराब हों जायेंगे, कहें तो दवा भिजवा देते हैं.
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति। धन्यवाद|
ReplyDeleteaccident ke baad hamesha jeans ka shukriya ada main bhi karti hoon....ghutno ko bahut bachaya hai is bhali cheez ne. ab do din mast leti raho...patidev se seva karwao.;)
ReplyDelete:(
ReplyDeleteमुआ पहला एक्सीडेंट ना हुआ ....पहला प्यार हो गया ...चटकारे लेकर बताया जा रहा है और पानी के बताशे जैसे टिपियाया जा रहा है....मतलब समां ऐसा बना के माने एक्सीडेंट एक खूबसूरत फील दे गया ......आप जल्दी से फिट हो जाइए और बंगलौर की सडको पर बाईक दौड़ाइए यही दुआ है बस!
ReplyDeleteछोटा सा एक एक्सीडेंट मेरा भी हुआ था कभी बैंगलोर में,रिचमंड रोड के पास..
ReplyDeleteएनीवे, दुआओं का टोकरा टिप्पणी में देते जा रहे हैं और मिठाई भी है साथ में... :)
चलिए लगता है सब ठीक ही होगा, तभी तो आनन् फानन में ये पोस्ट ठेल दी गयी है...
ReplyDeleteमेरी तरफ से भी एक फूलों का गुलदस्ता लिया जाए....
और वो दिन भी खूब होंगे जब गिने चुने लोग होंगे ब्लोगिंग में...
इसलिए हम भी उन पुराने दिनों की पोस्ट और उसपर किये गए कमेंट्स देख कर कोशिश कर लेते हैं उन लम्हों को जीने की.....
खैर..... गेट वेल सून....:)
सिरिअस बात मज़ाक मज़ाक में कही गयी है. इक तो ऐसे ही हम तुम्हारी ऊर्जा के कायल हैं, बहुत कम लड़कियां इतना भाग दौड़ कर पाती हैं, जो करती हैं वो मज़बूरी में नहीं तो दुनिया भर के नखरे... बहरहाल सुनकर बुरा लगा कि तुम्हें चोट लगी है. एकबारगी डर भी लगा.. यहाँ मेरे ऑफिस में भी इक लड़का है कृष्ण नाम का, पिछले दो महीने से उसका बुरा हाल है, लगातार हाथ पर चोट खा रहा है, ब्रेक पर ऊँगली में चोट लगते लगते फेक्चर हुआ फिर आखिरकार हाथ भी टूट गया अभी रेस्ट पर है. इस दौरान मेरे भाई का भी एक्सीडेंट हुआ...
ReplyDeleteकुल मिला कर यह डरावनी बात है, सोचो कि कल अगर किसी से अचानक बात नहीं हो पायी तो क्या होगा ? खैर...
हल्दी चुना लगा कर जल्दी से ठीक हो जाओ, और पहलवान कि तरह फिर से जिंदगी के अखाड़े में कूद पड़ो
ब्लोगिंग साली.. ! एक्सीडेंट पे भी पोस्ट लिखवा दी.. और वो भी डिटेल में..
ReplyDeleteबाय द वे, जो पुरे दिन का हाल सुनाया है.. अकेले इतना कुछ निपटाया है.. उसके लिए सेल्यूट रहेगा..
maine pichle comment mai jikr kiya tha ki aapki agli post kab milegi par badi bhari post likh di aapne sukrh hai ki aapne a एक्सीडेंट hote he ye post nahi likh di ,,,,,,,,,, may i wish to good u recover u r self,,,,,,,,,,whn u free chek my blog honey with poem.blogspot.com
ReplyDeleteकुछ भी हो सकता था, मर सकती थी. अचानक, बिना किसी से विदा लिए हुए
ReplyDeleteOh My God!
You are really.... experience the ultimate...horror!
प्रिय पूजा जी
ReplyDeleteमुझे आशा ही बल्कि पूर्ण विशवास है की एक बार फिर आप बंगलौर के सडकों पर बाइक से चहलकदमी करती नजर आएँगी |
मेरी शुभकामनायें आपके साथ है |
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पूजा जी
ReplyDeleteअब तो आप ठीक हो गई होंगी। फिर भी आपकी कुशलता की कामना करता हूँ।
आपने ये नहीं बताया कि उस दिन काजू-पनीर की सब्जी का क्या हुआ था? अगली बार जब जब आप काजू-पनीर की सब्जी बनायेंगी, एक्सीडेन्ट भी याद आयेगा।
:)