ओ कवि,
जिम्मेदारियां बहुत सी
समाज, देश को आइना दिखाना
विषमताओं पर लिखना
गरीबों के लिए आवाज़ उठाना
विद्रोह की आंच जलाये रखना
कवि रे,
सुनती हूँ की उम्मीद, हिम्मत
सिर्फ तुम्हारे पास हैं इनके बीज
की लहू की फसलें उगाई जा रही हैं
काटे जा रहे हैं रिश्तों के जंगल
बोई जा रही है त्रासदी
जोते जा रहे हैं अबोध, जुए में
आह मेरे कवि!
सत्य को पल पल खरा करते
तप रहे हो, गल रहे हो
संसार का सबसे बड़ा दुःख है प्रेम
शायद भूख के बाद...मुझे मालूम नहीं
फिर भी, मुझे जिलाने के लिए लिखो...कवितायें
क्योंकि तुम नहीं जानते ओ कवि
प्रेम और भूख से भी बड़ा एक दुःख है...
तुमसे प्रेम करने का दुःख...ओ कवि!
बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteसागर से होती हुई यहाँ तक पहुची ....ऊपरी पंक्तियाँ कुछ ख़ास नहीं लगी, लगा कि कुछ नया तो नहीं...हाँ! होती है कवि पर ये सब जिम्मेदारियां....अंत तक आते-आते....होटों पर मुस्कार तैर गई....हाँ! हमने भी किया है प्रेम कवि और उसकी कविता से :-)
ReplyDeleteप्रोडक्ट नहीं सीधे खदान पर निशाना.
ReplyDeleteखूबसूरत भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteहर बार कवि के लिए अलग संबोधन नवीनता प्रदान करता है.. ये अच्छा लगा
ReplyDeleteन जाने कितनी आशायें हम कवि से लगाये रहते हैं, कितनी हों पायें पूरी?
ReplyDeleteअंतिम दो पंक्तियाँ कविता को कमजोर करती हैं। यह मेरी समझ है मैं गलत भी हो सकता हूँ।
ReplyDeleteओह कवि!! :)
ReplyDeleteplz wo geeta dat wali post konsi thi mai kafi dund chuka par mili nahi aap plz wo post konsi hai wo bataiye na
ReplyDelete@honey sharma...
ReplyDeletehere is the link
http://laharein.blogspot.com/2010/12/blog-post_20.html
बेहतरीन...अपेक्षाओं की कथा कहती कविता...
ReplyDeleteडा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.meajeet.blogspot.com
प्रिय पूजा जी , सादर प्रणाम
ReplyDeleteआपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है...... http://www.upkhabar.in/2011/03/jay-ho-part-2.html
इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.
और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.
धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........
मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. यदि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.
आपकी प्रतीक्षा में...........
हरीश सिंह
संस्थापक/संयोजक -- "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/
प्रेम और भूख से भी बड़ा एक दुःख है...
ReplyDeleteतुमसे प्रेम करने का दुःख...ओ कवि!
तो अल्टीमेटली अन्तत: प्रेम ही सबसे बड़ा है, किसी अन्य भूख से...इसलिये प्रेम ही ईश्वर भी कहा ...जीसस ने। अलग बात है कि हम ईश्वर को कवि कहें और फिर उससे प्रेम करें।
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ReplyDeleteईश्वर का शुक्रिया जो उसने आपको दुःख दिया और हमें प्रेम की कवितायेँ मिली...
ReplyDeleteजिन्होंने उम्र भर तलवार का गीत गाया है
ReplyDeleteउनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता है
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से जिंदगी का सफ़र शुरू होता है
जिनका लहू और पसीना मिटटी में गिर जाता है
वे मिटटी में दब कर उग आते हैं ----- पाश
उसे मालूम है कि शब्दों के पीछे
ReplyDeleteकितने चेहरे नंगे हो चुके हैं
और हत्या अब लोगों की रुचि नहीं –
आदत बन चुकी है
वह किसी गँवार आदमी की ऊब से
पैदा हुई थी और
एक पढ़े-लिखे आदमी के साथ
शहर में चली गयी
एक सम्पूर्ण स्त्री होने के पहले ही
गर्भाधान कि क्रिया से गुज़रते हुए
उसने जाना कि प्यार
घनी आबादी वाली बस्तियों में
मकान की तलाश है
लगातार बारिश में भीगते हुए
उसने जाना कि हर लड़की
तीसरे गर्भपात के बाद
धर्मशाला हो जाती है और कविता
हर तीसरे पाठ के बाद
नहीं – अब वहाँ अर्थ खोजना व्यर्थ है
पेशेवर भाषा के तस्कर-संकेतों
और बैलमुत्ती इबारतों में
अर्थ खोजना व्यर्थ है
हाँ, अगर हो सके तो बगल के गुज़रते हुए आदमी से कहो –
लो, यह रहा तुम्हारा चेहरा,
यह जुलूस के पीछे गिर पड़ा था
इस वक़्त इतना ही काफ़ी है
वह बहुत पहले की बात है
जब कहीं किसी निर्जन में
आदिम पशुता चीख़ती थी और
सारा नगर चौंक पड़ता था
मगर अब –
अब उसे मालूम है कि कविता
घेराव में
किसी बौखलाए हुए आदमी का
संक्षिप्त एकालाप है
--Dhumil