मुझ तक लौट आने को जानां
ख्वाहिश हो तो...
शुरू करना एक छोटी पगडण्डी से
जो याद के जंगल से गुजरती है
के जिस शहर में रहती हूँ
किसी नैशनल हायवे पर नहीं बसा है
धुंधलाती, खो जाती हुयी कोहरे में
घूमती है कई मोड़, कई बार तय करती है
वक़्त के कई आयाम एक साथ ही
भूले से भी उसकी ऊँगली मत छोड़ना
गुज़रेंगे सारे मौसम
आएँगी कुछ खामोश नदियाँ
जिनका पानी खारा होगा
उनसे पूछना न लौटने वाली शामों का पता
उदास शामों वाले मेरे देश में
तुम्हें देख कर निकलेगी धूप
सुनहला हो जाएगा हर अमलतास
रुकना मत, बस भर लेना आँखों में
मेरे लिए तोहफे में लाना
तुम्हारे साथ वाली बारिश की खुशबू
एक धानी दुपट्टा और सूरज की किरनें
और हो सके तो एक वादा भी
लौट आने वाली इस पगडण्डी को याद रखने का
बस...
BEHAD KHUBSURAT RACHNA........
ReplyDeleteसुन्दर कविता.. बेहद कोमल रचना और भाव !
ReplyDeleteजीवन की पगडंडियाँ भूल जाने वाले जहाँ पहुँच जाते हैं, उन्हें स्वयं ज्ञात नहीं रहता है। याद रखकर वापस आना सीख लें, अन्ततः वापस वहीं जाना है सबको।
ReplyDeletekafi khoobsurat dil ko khatkhatate ehsaas
ReplyDeleteमेरे लिए तोहफे में लाना
ReplyDeleteतुम्हारे साथ वाली बारिश की खुशबू
एक धानी दुपट्टा और सूरज की किरनें
और हो सके तो एक वादा भी
लौट आने वाली इस पगडण्डी को याद रखने का
बस..
बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास ...
और एक वादा भी
ReplyDeleteलौट आने वाली इस पगडण्डी को याद रखने का बस ..
बेहद खूबसूरत एहसास !
इस पगडण्डी पर खिलने लगे हैं सिंदूरी और मखमली पलाश.
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
लौट आने वाली इस पगडण्डी को याद रखने का बस ..
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत एहसास ! ...बहुत सुन्दर...
बहुत ख़ूबसूरत अहसास..बहुत सुंदरता से उकेरा शब्द चित्र..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01-03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
गुज़रेंगे सारे मौसम
ReplyDeleteआएँगी कुछ खामोश नदियाँ
जिनका पानी खारा होगा
उनसे पूछना न लौटने वाली शामों का पता
बहुत ही प्यारी कविता....
आत्म-शक्ति से आलोकित रचना ही,
ReplyDeleteअमृत बना करती है..
बड़े ही खुबसुरत ख्यालात है आपके। बेहतरीन कविता। आभार।
ReplyDeleteहंसीन अहसासों से सजी रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
ReplyDeleteमन के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteऔर हो सके तो एक वादा भी
ReplyDeleteलौट आने वाली इस पगडण्डी को याद रखने का
बस...
wow..!!!!
अफ़सोस के देर से आया...
पढने के बाद मोबाइल पर से हाथ हटाये है ...कही डायल करने लगे थे
गुज़रेंगे सारे मौसम
ReplyDeleteआएँगी कुछ खामोश नदियाँ
जिनका पानी खारा होगा
उनसे पूछना न लौटने वाली शामों का पता
in panktiyun ne man moh liya
sudnar prastuti
yearning at its most beautiful and subtle sense... soft and evocative... I enjoyed it so much.
ReplyDeleteLovely.
ॐ नमः शिवाय
Om Namah Shivaya
http://shadowdancingwithmind.blogspot.com/2011/03/whispers-winter-dew.html
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bahut sundar...
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