जाने वो कौन सा प्यार होता है कि जिसके होने से रूह के कण कण में से उजास फूटने लगती है...जाने तुम्हारी याद के बादल किस समंदर से उठते हैं, सदियों बरसने पर भी बंद नहीं होते हैं...
जब तक उपरी बात होती है, सब बहुत सुन्दर है...आँखों को लुभावना दिखता है, पर जहाँ थोड़ा भी गहरे उतर कर देखती हूँ तो पाती हूँ कि अँधेरे का कोई छोर ही नहीं है...कोई सीमा नहीं है...जैसे सामने बेहद ऊँची लहरें हैं जिनमें डूबने के अलावा कोई चारा ही नहीं है. और लगता ये भी है कि दिए में रोज बाती करना, तेल करना और शाम होते देहरी पर रखना जिसका काम था वो तो बिना त्यागपत्र दिए रुखसत हो रखी है. मुझे अपने लिए एक रेकोमेंडेशन लेटर चाहिए...कह सकते हैं कि एक तरह का चरित्र प्रमाण पत्र जो कि एकदम मेरे मन को सही सही ग्रेड दे सके. मनुष्य के कई प्रकार होते हैं काले और सफ़ेद के बीच...इन्हें आजकल खास तरह के ग्रे शेड वाले कैरेक्टर कहते हैं. ऐसी कोई value जो तय कर सके कि इस सियाह अँधेरे में कहीं उजाले की कोई किरण है भी कहीं...या कभी हुयी थी...या कभी होने की कोई सम्भावना है?
तुम...मन के हर अवसाद से खींच कर लाने को तत्पर और सक्षम भी...तुम तो हो नहीं आज...सामने मार्कशीट रखी है...पढ़ने में नहीं आ रही है...पर लोग कहते हैं कि लाल स्याही है...दूर से चमकता है लाल रंग, खून के जैसे, रुक जाने के जैसे... फुल स्टॉप...जिंदगी यूँ ही ख़त्म क्यों नहीं हुए जाती है. मार्कशीट पर किसी ऐसे इन्सान के हस्ताक्षर चाहिए जो कह सके कि मुझे जानता है...पूरी तरह, उतनी पूरी तरह जितना कि एक इन्सान दूसरे इन्सान को जान सकता है...अफ़सोस...कार्ड पर आत्मा के दस्तखत नहीं हो सकते. समाज बस मान्यता देता है आत्मा के रिश्तों को...पर उन गवाहियों को नहीं मानता. शर्त है कि खुद को गिरवी रखना होता है अगर बात साबित हो गयी...कि मेरे अन्दर कहीं से भी कोई भी रोशनी ना थी, ना है...और ना कभी होगी.
दर्द का ये कौन सा मौसम है कि गुज़रता ही नहीं...सावन नहीं गिरता, बहार नहीं आती. आज जबकि इश्क का दिन है...मैं कैसी बेमौसम बातें कर रही हूँ.
लव यू माँ. मिस यू मोर.
जब तक उपरी बात होती है, सब बहुत सुन्दर है...आँखों को लुभावना दिखता है, पर जहाँ थोड़ा भी गहरे उतर कर देखती हूँ तो पाती हूँ कि अँधेरे का कोई छोर ही नहीं है...कोई सीमा नहीं है...जैसे सामने बेहद ऊँची लहरें हैं जिनमें डूबने के अलावा कोई चारा ही नहीं है. और लगता ये भी है कि दिए में रोज बाती करना, तेल करना और शाम होते देहरी पर रखना जिसका काम था वो तो बिना त्यागपत्र दिए रुखसत हो रखी है. मुझे अपने लिए एक रेकोमेंडेशन लेटर चाहिए...कह सकते हैं कि एक तरह का चरित्र प्रमाण पत्र जो कि एकदम मेरे मन को सही सही ग्रेड दे सके. मनुष्य के कई प्रकार होते हैं काले और सफ़ेद के बीच...इन्हें आजकल खास तरह के ग्रे शेड वाले कैरेक्टर कहते हैं. ऐसी कोई value जो तय कर सके कि इस सियाह अँधेरे में कहीं उजाले की कोई किरण है भी कहीं...या कभी हुयी थी...या कभी होने की कोई सम्भावना है?
तुम...मन के हर अवसाद से खींच कर लाने को तत्पर और सक्षम भी...तुम तो हो नहीं आज...सामने मार्कशीट रखी है...पढ़ने में नहीं आ रही है...पर लोग कहते हैं कि लाल स्याही है...दूर से चमकता है लाल रंग, खून के जैसे, रुक जाने के जैसे... फुल स्टॉप...जिंदगी यूँ ही ख़त्म क्यों नहीं हुए जाती है. मार्कशीट पर किसी ऐसे इन्सान के हस्ताक्षर चाहिए जो कह सके कि मुझे जानता है...पूरी तरह, उतनी पूरी तरह जितना कि एक इन्सान दूसरे इन्सान को जान सकता है...अफ़सोस...कार्ड पर आत्मा के दस्तखत नहीं हो सकते. समाज बस मान्यता देता है आत्मा के रिश्तों को...पर उन गवाहियों को नहीं मानता. शर्त है कि खुद को गिरवी रखना होता है अगर बात साबित हो गयी...कि मेरे अन्दर कहीं से भी कोई भी रोशनी ना थी, ना है...और ना कभी होगी.
दर्द का ये कौन सा मौसम है कि गुज़रता ही नहीं...सावन नहीं गिरता, बहार नहीं आती. आज जबकि इश्क का दिन है...मैं कैसी बेमौसम बातें कर रही हूँ.
लव यू माँ. मिस यू मोर.
आपने सही लिखा पूजा जी ! प्रेम में जितनी खुशिया दिखती हैं उस से ज्यादा दुःख होते हैं... और ये मौसम ही ऐसा है.. जब कि खुशी का और दुःख का इजहार कर दिल को हल्का किया जाता है.. खैर .. जल्दी ही आपके जीवन में हर रंग की खुशियाँ हों... लेख बहुत सुन्दर...कलम का जादू... उम्दा
ReplyDeleteपूजा जी..गाने में बहुत कसक है.. दर्द है... आपकी लेखनी भी आपके दर्द को बताती है... माँ की कीमत और जरूरत कभी कोई पूरी कर पाया.?? ..किन्तु माँ की खुशी के लिए भी खुद को खुश रखा जाये .. अगर आत्मा है तो उसकी खुशी के लिए... और हर माँ की एक ही इच्छा होती है ... कि उसकी बेटी बेटे को कभी दुःख ना हो... कभी जिंदगी हार जाती है... किन्तु मन की बात वही होती है... अपने बच्चों की खुशी ..जिसको ले कर वो चली गयीं होंगी... उनके लिए और अपने कर्तव्यों के लिए आपको खुश रहना होगा... और यही जीवन की सच्चाई है..चाहे कड़वी कह लीजिए...सादर
ReplyDeleteपूजा जी... सचमुच प्यार के मौसम में है बेमौसम की बात याद आती है.. अंतिम पंकित्यों से ह्रदय को चीर दिया.. मैं भी अपने ब्लॉग पर कविता में माँ को मिस कर रहा हूँ...
ReplyDeleteप्रेम का स्वरूप न जाने कितनी गहराई लिये हुये होता है, सुख की भी और दुख की भी। किस समय कौन सा पक्ष आकर सामने ठिठक जायेगा, नहीं ज्ञात। यह तो कुछ सुनता ही नहीं,....।
ReplyDeletemere sheher mein udaas nahin, bohot khushgavaar mausam hai aaj....bohot hi khoobsurat mausam....aur yahi zyaada taqleef de raha hai....guzre hue khoobsurat mausamon ki yaad dila raha hai....jab ham yun akele na the...!!
ReplyDeletebeautifully written dear.....lovely post
pyar yesa hi hai
ReplyDeletejo bin mausam aa jaye
..
अंतिम पंक्तियाँ ह्रदय को चीर कर रख देती हैं।
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ ह्रदय को चीर कर रख देती हैं।
ReplyDelete:(
ReplyDeleteमाँ तो फिर माँ है, कौन भूल सकता है उसका प्यार.. बात बेमौसम नहीं की है आपने..
ReplyDelete................................
ReplyDeleteदर्द रिस रहा है.. ये क्या लिख दिया है..
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