ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है
तुम्हें मालूम कहाँ रात के टूटे वो पहर
कि आधी नींद लेके बदगुमान थे बहुत हम
जब कि ख्वाब में भी तुमने हाथ छोड़ा था
कि आधे जागने में भी मुझसे दूर थे बहुत तुम
हाँ वो बातें ही थी, कोरी ख्याली बातें थी
बस तुम कहते थे तो लगता था सच से रिश्ता है
तुम कहा करते थे मैं खूबसूरत हूँ बहुत
ये भी तो कहते थे इश्क हमेशा सा होता है
तुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
मुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ
क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है
तुम्हें मालूम कहाँ रात के टूटे वो पहर
कि आधी नींद लेके बदगुमान थे बहुत हम
जब कि ख्वाब में भी तुमने हाथ छोड़ा था
कि आधे जागने में भी मुझसे दूर थे बहुत तुम
हाँ वो बातें ही थी, कोरी ख्याली बातें थी
बस तुम कहते थे तो लगता था सच से रिश्ता है
तुम कहा करते थे मैं खूबसूरत हूँ बहुत
ये भी तो कहते थे इश्क हमेशा सा होता है
तुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
मुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ
ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
क्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है
ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
ReplyDeleteक्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है
gazab ka khyaal.
pooja ji - aap bahut hi acchi abhivyakti karti hain - dil ko choo jaati hain aapki rachnaein....
ReplyDeleteaapki lekhni mein gajab ka aakarshan hai
ReplyDeleteगहरा सागर
ReplyDeleteभार बहुत
अब पड़ता है,
क्या होता है,
बिन्दु अकेला.
दिख जाने को लड़ता है।
जो बूंद भी नहीं बन पाता, वही रिसता है.
ReplyDelete''खुदा की देखो यह कैसी कुदरत,
ReplyDeleteउनको देखे हो गई एक मुददत।''
अच्छी रचना।
ना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
ReplyDeleteक्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है
wahhh...!!! totally awesome....bohot bohot khoobsurat nazm likhi hai yaara, tooo good...
बेहद भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteSou do Brasil adorei seu blog
ReplyDeleteUm abraço.
Carlos
मैं ब्राजील से हूँ मैं अपने ब्लॉग से प्यार
एक आलिंगन.
कार्लोस
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteना छेड़ो ज़ख्म मेरे ऐसे बेख्याली में
ReplyDeleteक्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है....
उम्दा नज़्म ! आज आपकी कइ पोस्ट्स पढीं… बेहद अच्छी लगीं। फिर लौटूँगा !
Stay blessed !
maza aa gaya padhkar :)
ReplyDeleteक्या जानो तुम कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या हैतुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
ReplyDeleteमुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ very nise thought
ड्राफ्ट में तिरासी पोस्ट्स पड़ी हुयी हैं. wo kab padhne ko milegi
ReplyDeleteड्राफ्ट में तिरासी पोस्ट्स पड़ी हुयी हैं. wo kab padhne ko milegi
ReplyDeleteतेरे जख्म अब लगता है कि
ReplyDeleteज़ख़्मों के बस दाग भर हैं
न दाग तुमसे मिट रहे हैं
न जख्म उनमें रुक रहे हैं
तुम्हें रुकने की आदत सी है
या तुमने बेख्याली में पी है
जो रिस रहा है रस नहीं है
तेरा तो जान पर भी बस नहीं है
कहाँ तक रोओगी रोने का रोना
अब बस करो बदलो बिछोना
गम में ही जरा सा हँस-हंसा लो
इन सूखे फूलों पर ही मुस्करा लो
भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना। धन्यवाद|
ReplyDeleteआप को बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ|
तुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
ReplyDeleteमुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ
humm......
love this one ....puja!
^
ReplyDelete|
same here
तुम्हें याद है तुम मुझको 'जान' कहते थे
मुझे गुरूर था मैं तुमको 'तुम' बुलाती हूँ
आज लफ़्ज़ों में आवाज़ ढूंढती हूँ फिर
मैं फिर उदास होके तुमको 'ग़म' बुलाती हूँ
loved this one.. :)