गहरे लाल सूरज के काँधे से
रात उतारती है लिबास उदासी का
और दुपट्टे की तरह फैला देती है आसमान पर
हर बुझती किरण से कोहरे की तरह
बरस रही है उदासी
हर डूबते लम्हे में डूबती हूँ मैं
बुझती किरण का आँखों को छू जाना
जैसे सागर किनारे रेत पर
लेटी हुयी हूँ मैं
महसूसती हूँ लहरों को
चेहरे के ऊपर से जाते हुए
साँस-साँस खारा पानी
लहर गुज़र जाने तक
किनारे पर डूबने की जिद के मुख्तलिफ
तेरी याद जिरह करती है
उतरती हूँ गहरे ख़ामोशी में
गर्म कोलतार सी रात
पैर रोकती है
तनहा...उदास...सहमी सी
मौत का इंतज़ार करती हूँ
'जिंदगी' कितना बेमानी लफ्ज़ हो गया है.
आज लहरों में उदासी सी है... :(
ReplyDeleteउम्दा शब्दों का बेहद ख़ूबसूरती से प्रयोग कर लिखी एक बेहतरीन कविता.......
ReplyDelete@किनारे पर डूबने की जिद के मुख्तलिफ
ReplyDeleteतेरी याद जिरह करती है
उतरती हूँ गहरे ख़ामोशी में
गर्म कोलतार सी रात
पैर रोकती है
....सुन्दर कविता .
इतनी उदासी हो तो सच ही ज़िंदगी बेमानी सा लफ्ज़ लगता है ...खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतनहा...उदास...सहमी सी
ReplyDeleteमौत का इंतज़ार करती हूँ
'जिंदगी' कितना बेमानी लफ्ज़ हो गया है..खूबसूरत अभिव्यक्तिबेहतरीन कविता....छु गयी दिल को उतर गयी गहेरे मे
किनारे पर डूबने की जिद के मुख्तलिफ
ReplyDeleteतेरी याद जिरह करती है
उतरती हूँ गहरे ख़ामोशी में
गर्म कोलतार सी रात
पैर रोकती है
... nihshabd
nazre unke chehre ko dekhne ki lakho raste nikal leti. pato ke bich gujarti parkash ki kiran kee sahare ek pal ke didaar dund leti hai
ReplyDeleteमौत सी एक खामोश सरसराहट है इसमें.. बस छूते हुयी चली गयी..
ReplyDeleteचीयर अप!
जब जिद किनारे पर डूबने की हो तो किनारा धारा बन जाता है और बह निकलती है यह कविता।
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
oh my.......kitni khoobsurat so shuruaat thi aur aakhir mein itni udaaasi....aur itni khoobsurat....beautiful dear :)
ReplyDelete'जिंदगी' कितना बेमानी लफ्ज़ हो गया है. सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteभावमय करते हुये शब्द ।
ReplyDeleteतनहा...उदास...सहमी सी
ReplyDeleteमौत का इंतज़ार करती हूँ
'जिंदगी' कितना बेमानी लफ्ज़ हो गया है.
रचना बहुत सुन्दर है मगर अभी से ऐसा क्यों कह रही हो।
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteपरन्तु हर रचना में इतनी उदासी क्यों?
bahut sundar !
ReplyDeleteरचना के भाव पूरी तरह स्पष्ट हैं...
ReplyDeleteहां थोड़ा निराशावाद झलक रहा है...
लेकिन ये भी जीवन का एक पहलू है...बधाई.
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteकिनारे पर डूबने की जिद
ReplyDeleteगहरे लाल सूरज के काँधे से
रात उतारती है लिबास उदासी का
बहुत सुंदर कविता. भावों को अच्छी तरह से पेश किया है कविता में.
गहरे लाल सूरज के काँधे से
ReplyDeleteरात उतारती है लिबास उदासी का
और दुपट्टे की तरह फैला देती है आसमान पर
हर बुझती किरण से कोहरे की तरह
बरस रही है उदासी
सही अर्थों में एक मानक कविता।
एक अच्छी कविता के सारे गुण इसमें मौजूद है।
शुभकामनाएं।
किनारे पर डूबने की जिद के मुख्तलिफ
ReplyDeleteतेरी याद जिरह करती है
उतरती हूँ गहरे ख़ामोशी में
गर्म कोलतार सी रात
पैर रोकती है
खुबसूरत, भावनात्मक अभिव्यक्ति.......
very nice post dear........ like it
ReplyDeleteLyrics Mantra
Music Bol
भाव और भाषा के सुन्दर समन्वय का अपनी तरह का अनूठा प्रयोग. "सूरज के काँधे से रात उतारती है लिबास उदासी का और दुपट्टे की तरह फैला देती है आसमान पर" या फिर "याद जिरह करती है" हो या गर्म कोलतार सी रात का पैर रोकना ...इतनी सुन्दर बन पड़ी है रचना कि बस .. अद्भुत !!
ReplyDeleteमंजु
शब्दों और भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पिरोया है
ReplyDeleteतनहा...उदास...सहमी सी
ReplyDeleteमौत का इंतज़ार करती हूँ
'जिंदगी' कितना बेमानी लफ्ज़ हो गया है.
kya baat kahdi ....bahut khoob
Too good. Got in complete deep silence for some time after reading!!
ReplyDeleteयादों की नदी के एक छोर से निकली रचना...आज काफी दिनों बाद आना हुआ कई रचनाएं पढ कर ही जाऐगे।
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