उसने गीत को अपना क़त्ल करने दिया...और वह आँखों को बंद कर अपने जिस्म में बंदी हो गयी. शब्द होने के बावजूद वो बहुत अकेली थी. उसे बहुत दिनों बाद जाकर समझ आया है कि लोग नितांत अकेलेपन से घबराकर शायद आत्महत्या कर लेते होंगे.
वायलिन बजता रहा देर शाम और वो छत की आखिरी सीढ़ी पर पांव रोके खड़ी रही. उसे बेतरह अकेला महसूस हो रहा था और किसी से बात करने की नाकाबिले बर्दाश्त इच्छा हो रही थी. पर उसे ये बिलकुल समझ नहीं आ रहा था कि वो किससे बात करे. दुनिया में इस तरह एकदम अकेला होना उसे बहुत खल रहा था. गीत में बोल नहीं थे...उसे सुनना ऐसा था जैसे एकाकी समंदर की ओर ना लौटने के लिए बढ़ना...जैसे बिना जिरह किये मौत को पथरीली आँखों से खुद के पास धीमे धीमे आते हुए देखना.
दुनिया में बहुत से लोग थे जो उससे बात कर सकते थे...पर उसका किसी से भी बात करने का मन नहीं था...उसे अचानक से लगा कि उसकी दुनिया एकदम खाली हो गयी है, वो किसी से भी प्यार नहीं करती है. इस ख्याल से उसे बहुत डर लगा. उसकी जिंदगी में ऐसा कोई लम्हा नहीं था जब उसे किसी से प्यार ना हो...अपनेआप से भी नहीं. उसे प्यार की लत लगी हुयी थी, ये लत शराब या सिगरेट से काफी ख़राब होती है. वायलिन के तार से उसकी नसें कट रही थीं और खून जमीन पर रिसता जा रहा था.
उसे पहाड़ बहुत पसंद थे और समंदर भी...मगर फिलहाल उसे पहाड़ों से नीचे गिर जाना और समंदर में डूब जाना जिंदगी का मकसद दिख रहा था. लहरें आती रहे और खुली आँखों से जिंदगी को दूर जाती देखती रहे...मौत क्या बहुत तकलीफदेह होती होगी? जिंदगी से ज्यादा?
बंद आंखों में मुस्कुराती जिंदगी.
ReplyDeleteभगवान जीवन में वह क्षण कभी न दे, जब रोने के लिये कोई काँधा न मिले और किसी रोते हुये को काँधे में न छिपा सकूँ।
ReplyDeleteअकेलापन किसी मौत से कम नही।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशायद मौत ज़िन्दगी से ज्यादा खूबसूरत होती होगी!
ReplyDeleteमौत का क्या पता. ज़िन्दगी को जरूर खूबसूरत शक्ल दी जा सकती है.
ReplyDeleteमौत तकलीफदेह होती है या नहीं..पता नहीं.
ReplyDeleteपर इतना पक्का है की उसे (नायिका को )
फिर से आना होगा इस दुनिया में, शायद तब तक
जब तक वो अपने पैदा होने के मकसद... अपने उस नायक
को पा नहीं लेगी.......
दुबारा आ रहा हूँ. प्यार की लत (अपने आप को छोड़) दूसरों के लिए बुरी तो नहीं कही जा सकती. इसमें तो बड़ा सकून और शबाब दोनों ही मिलता है.
ReplyDeleteलगातार बजता वायलन.....अपनी फ्रीक्वेंसी भी जिंदगी की माफिक बदलता है ,.......जैसे कभी कभी किसी किरदार को अपनी जिंदगी में लीड रोल दे देते है ........या कोई अपनी प्रजेंस उस स्क्रीन पर देर तक रखता है .............ओर एक वक़्त के बाद किन्ही सूराखो में अपने मन को कैद कर उस किरदार से आज़ाद होना चाहते है ......कुछ आज़ाद हो जाते है ......कुछ नहीं !!!!
ReplyDeleteuf kis tarah is par apni pratikriya vyakt karun....main khud apni soch men kahin gahre doob gayaa hun....ab jaraa isase ubar loon....tab kuchh likhun....!!!
ReplyDeleteuf kis tarah is par apni pratikriya vyakt karun....main khud apni soch men kahin gahre doob gayaa hun....ab jaraa isase ubar loon....tab kuchh likhun....!!!
ReplyDeletekamaal hai abhi-abhi kishoreji ki bhi inhin girahon se rubaroo hona hua...
ReplyDeletea brutal assassination of night..again!!!..but how cud one complain?
ReplyDelete..when the night had thousand eyes..and yet not a single dream!...then only we could know how all the salty oceans were formed..and all darkness of universe!!!!
...
..
Apoorv...every time I see your comment I am amazed at the phrases you coin.
ReplyDelete'then only we could know how all the salty oceans were formed..and all darkness of universe!!!!'
Pure genius.