वो: क्या लिख रही हो?
मैं: कुछ
वो: कुछ माने? तुमको पता नहीं है कि क्या लिख रही हो.
मैं: नहीं
वो: तो फिर क्यों लिख रही हो? लिखने का कोई मकसद, कोई मंजिल होनी चाहिए ना?
मैं: अच्छा? ऐसा होना जरूरी है क्या? और अगर ना हो तो, लिखने का कोई तयशुदा मकसद ना तो हो, लिखना लिखना नहीं रहेगा? तो फिर क्या रह जाएगा? मकसद?
वो: मैंने तो बस यूँ ही पुछा था कि क्या लिख रही हो, तुम तो मुझे ही सवालों से बाँधने लगी. आजकल तुम इतने सवाल करने लगी हो, पहले तुम कितनी खुशगवार बातें किया करती थी.
मैं: तुम्हें संतोष हो जाएगा अगर मैं ये कहूँ कि मैं तुम्हें भुलाने के लिए बहुत से किरदार रच रही हूँ जो बिलकुल तुम्हारे जैसे नहीं हैं? कि मैं बहुत सी कहानियां लिख रही हूँ जो तुम्हारी बात कहीं भी नहीं कहते...तुम मान लोगे कि मैं तुम्हें याद ना करने के लिए अपनी कलम इस्तेमाल करती हूँ. लोगों को जैसे पी के नशा होता है मुझे लिख के होता है, या कहो...लिखने के दौरान होता है.
वो: तुम मुझे भुलाना चाहती क्यों हो, मेरे होने के साथ जीना इतना मुश्किल तो नहीं है.
मैं: मुश्किल तो नहीं है, सच कहते हो...मुश्किल तो सिगरेट ना पीना है, मुश्किल तो ये सोचना है कि आज ग्लास में कितनी आइस क्यूब्स डालूं...या फिर सर्दी है थोड़ी, नीट पी लूं क्या, मुश्किल तो ये सारे निर्णय हैं. तुम्हारे होने के साथ जीना तो इनके सामने खिलवाड़ लगता है. तुम समझ रहे हो ना?
वो: जान...अगर मैं कहूँ कि सिगरेट और शराब छोड़ तो तो प्लीज ऐसा करोगी?
मैं: नहीं, तुम्हें ये कहने का कोई हक नहीं है.
वो: आजकल तुम अबूझ होती जा रही हो मेरे लिए.
मैं: अच्छा है...इसी तरह अबूझ होते हुए अनजान होकर तुम्हारे लिए भूलने लायक हो जाउंगी, जो बातें समझ में नहीं आती उन्हें याद रखना हद दर्जे का मुश्किल काम है...कुछ कुछ वैसा जैसे कि सुबह डिसाइड करना कि आज तुमसे मिलने कौन से कपड़े पहन कर आऊं. शायद एक दिन ऐसा आएगा जब मुझे सचमुच यकीन हो जाए कि कपड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता...कि तुम मेरी रूह से प्यार करते हो.
वो: करता हूँ...तुम्हारी रूह से प्यार करता हूँ, पर एक बात समझाओ. प्यार तो हमेशा अपनी जगह था, प्यार होने के लिए तुम्हारे पास होना जरूरी नहीं होता. फिर जब तुम पास नहीं होती हो, याद किसकी आती है? प्यार कहीं चला तो नहीं जाता...याद तो इस खुशबू की आती है ना, तुम्हारी उँगलियों की आती है जो मेरी उँगलियों में फंसी हुयी हैं. मेरे कंधे पर जो तुम सर टिकाये बैठी हो इस अहसास की आती है. फिजिकली पास होना भी उतना ही जरूरी है.
मैं: मुझे लगता है मैं ये कहानी पूरी नहीं कर पाउंगी.
वो: क्यों?
मैं: सच और झूठ के बीच की लकीरें धुंधलाने लगी हैं. मुझे लगता है मैंने आज कुछ ज्यादा पी ली है...वो तुम्हारे आने की ख़ुशी और तुम्हारे जाने का ग़म एक साथ था ना, इसलिए. तुम यूँ एक दिन के लिए मुझसे मिलने मत आया करो.
वो: देखो...अल्कोहल हेल्थ के लिए ठीक नहीं होता.
मैं: नहीं, मोडरेट क्वांटिटी में अल्कोहल दिल के लिए अच्छा होता है, ऐसा रिसर्च में आया है. और चूँकि दिल में तुम रहते हो तो अल्कोहल तुम्हारे लिए भी फायदा करेगा. तुम्हारे लिए पी रही हूँ जान.
वो: सुबह होने को आई, उजास फूट रही है.
मैं: तुम्हारे जाने वाली सुबह...कितनी चुभती है.
वो: मैं बैठा हूँ...तुम कहानी पूरी कर लो, फिर जाऊँगा.
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उसने कभी कहानी पूरी नहीं की...हर बार वो देर रात तक एक कहानी की बातें करते थे. उसे कहानी लिखनी थी, पर पूरी नहीं करनी थी क्योंकि उसके हमराही का वादा था कहानी पूरी होने तक साथ रहने का.
उसकी कलम में स्याही की जगह शराब भरी होती थी...वो लिखती थी तो उसे नशा चढ़ता था, वो पीती थी तो उसे लिखने का मन करता था.
कहानी मुकम्मल नहीं थी...पर लिखना, बेहद मुकम्मल हुआ करता था.
वो लिखती थी तो उसे नशा चढ़ता था, वो पीती थी तो उसे लिखने का मन करता था.
ReplyDeleteकितना खूबसूरत है :)
बहुत खतरनाक लिखा है, यह घटता हुआ नाटक जो लिखित होने से चूक जाता है और फिर लिखें में तिल तिल कर मारता है ... दर्द टपकता रहता है. और बिखर जाता है... इसे रिसना कहते हैं... बीच चौराहे पर
ReplyDeleteदेखो...अल्कोहल हेल्थ के लिए ठीक नहीं होता.
ReplyDelete:)
bas likhti raho... suroor bana rahe
ReplyDeleteएक समय एक ही चीज़ में डूबा जा सकता है, कई तहों में डूब गये तो बाहर आना कठिन हो जायेगा।
ReplyDeleteलेखकों के कनफ़ेशन, नीट एल्कोहल जैसे ही होते हैं शुरुआत में तीखे लेकिन न जाने कब तक सुरूर बना रहता है..
ReplyDeleteकहानियाँ अधूरी छोड दी जानी चाहियें। किरदार भी जीवित रहते हैं और लिखने वाला भी नहीं मरता।
causing addiction...nice one
ReplyDeleteनशा कन्टेजियस है कितनी शिद्दत से कलम की शराब तुम्हें लिखती है पूजा!
ReplyDeleteदोस्तों
ReplyDeleteआपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
http://charchamanch.uchcharan.com
वाकई चढ़ गयी!
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