बहुत दिन हुए सूरज निकले
चाँद कहीं उग आये भी
इश्क-मुश्क है परी कहानी
हमको कोई समझाए भी
मैं हूँ तुम हो दीवारें हैं
कोई इन्हें गिराए भी
खुद को दरियादिल समझे थे
खो के तुम्हें पछताए भी
राशन, पानी, फूल, किताबें
जरा तो दिल बहलाए भी
अख़बारों में सब पढ़ती हूँ
नाम तुम्हारा आये भी
रह गए टूटे शब्द बिचारे
कहीं ग़ज़ल बन जाये भी
दुनियादारी बहुत कठिन है
कोई साथ निभाए भी
होठों से तो हँस लेते हैं
आँखों से मुस्काए भी
कई रोज़ बाद आपकी पोस्ट चमचमा रही है
ReplyDeleteअनिल ने सही कहा, चमचमा रही है... कुछेक मिसरे बहुत अच्छे हैं... मसलन
ReplyDeleteमैं हूँ तुम हो दीवारें हैं
कोई इन्हें गिराए भी
अख़बारों में सब पढ़ती हूँ
नाम तुम्हारा आये भी
और
खुद को दरियादिल समझे थे
खो के तुम्हें पछताए भी
कितने छोटे छोटे सुन्दर शेर हैं, मोटे मोटे गुदगुदे उँगलियों की तरह
बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteक्या बात है ... बहुत सुन्दर .. हरेक शेर अच्छा लगा ... खास कर ये शेर तो लाजवाब है
ReplyDeleteमैं हूँ तुम हो दीवारें हैं
कोई इन्हें गिराए भी
गुद गुदी होने लगी.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है जी....
ReplyDeleteसोचो, क्या बीत रही मन में,
ReplyDeleteतुम हँसे नहीं, इठलाये भी।
मैं हूँ तुम हो दीवारें हैं
ReplyDeleteकोई इन्हें गिराए भी
खुद को दरियादिल समझे थे
खो के तुम्हें पछताए भी
wah kya baat hai..........
बहुत ’प्यारी’ सी गज़ल..किसी मीठे-चरपरे स्वाद वाले लॉलीपॉप की तरह..देर तक घुलती रहनी वाली खट्टी सी मिठास..जिसका स्वाद उसी को याद होगा बस जिसे पाँच साल हुए लॉलीपॉप चखे हुए..
ReplyDeleteबढिया गज़ल है।
ReplyDeleteहोंठों से तो हंस लेते हैं,
ReplyDeleteआंखों से मुसकाए भी।
वाह...बेहतरीन ग़ज़ल।...बधाई
छोटी बहर की सुंदर गजल।
ReplyDeleteबधाई।
bahut kub...
ReplyDeletebahut hi sundar...
ReplyDeleteमैं हूँ तुम हो दीवारें हैं
ReplyDeleteकोई इन्हें गिराए भी
खुद को दरियादिल समझे थे
खो के तुम्हें पछताए भी
बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना !
बधाई !
आज और कल
हर एक पल
अच्छी कविता है. कम शब्दों में बहुत कुछ कहने का हुनर. तपती दोपहर में पीपल की छांव में घड़ी भर सुस्ताने का सा अहसास होता है. निरंतर लिखते रहें.
ReplyDeleteइस आँखों से मुस्काने का जवाब नहीं
ReplyDeletekya bakwaas hai..
ReplyDeletedubara likha to jail bhejwa denge
--
pondy
pondy saala...abhi geeta se bol ke tumko pitwate hai. bhai logon se connection tere aur jai bhijwayega hamko :P
ReplyDeletenautanki sala!
dubara mere blog pe aaya na to bombay aa ke tumko kavita padh ke sunayenge.
क्या बात है.. बहुत खूब..
ReplyDeleteदुनियादारी बहुत कठिन है
कोई साथ निभाए भी
होठों से तो हँस लेते हैं
आँखों से मुस्काए भी
यह कुछ लाइन्स हैं जो हकीकत और ज़िंदगी के काफी करीब लगीं...
कविता, शेर, गज़ल, गीत क्या होते हैं, नहीं जानता .. जानता हूँ सिर्फ उन शब्दों को जो मन को छू लें... आपकी रचना भी कुछ ऐसी ही है.
मनोज खत्री
मैं हूँ तुम हो दीवारें हैं
ReplyDeleteकोई इन्हें गिराए भी
bahut khoob kaha.