इ बादलवा नम्बरी बदमास है, कोने में नुका के बैठल रहेगा और जैसे ही कपडा लार के आयेंगे दन्न से बरसेगा जैसे केतना जो एमरजेंसी है. भोरे से बैठ के एतना चादर धोये हैं, तनी कमर सीधा करने लगे के आंख लग गया. भर दुपहर सुतले निकल गया. साम में माथा में ऐसा दर्द ऊठा के लगा के अबरी तो कपार फट जायेगा...बड़ी मुस्किल से चाय बना के पीए. तनी गो दर्द रुका तो जा के सब ठो चादर उलारे...संझा बाती देईए रहे थे कि बस...ए बादलवा का बदमासी सुरु. अब एक जान संझा दे की भाग के छत से कपड़वा उतारे.
छत पर अन्हेरा में छड़ से छेछार लग गया...चादरवा धर के सांसो नहीं लिए हैं कि बारिस ख़तम. भारी राड़ है ई बादल, ई कोई मौसम है बरसने का, ई कोई बखत है...बेर कुबेर देखे नहीं मनमर्जी सुरु हो गए...अबरी तो सेकायत लगा के मानेंगे. एकरा का लगता है कोई देखने वाला हैय्ये नहीं है का. पूरा एंगना में पिच्छड़ हो गया है, के गिरेगा इसमें पता नहीं. सब बच्चा सब एक जगह बैठ के पढ़ाई नहीं कर सकता...घर भर में भागते फिरेगा. हाथ गोड़ टूटेगा बोलते रहो कुछ बूझबे नहीं करता है.
अब लो...लालटेन में बत्ती ख़तम है, रे टुनकी भंसा से बत्ती लाओ, ऊपर वाले ताक पर है. ठीक से जाना आँगन में बहुत पिच्छड़ है, फिसलना मत. उठी रे!? बाप रे, केतना मच्छर हो गया है, एक मिनट चैन से नहीं बैठने देता है तब से भमोर रहा है. ई गर्मी के मौसम में मच्छर होने का है बरसात में तो बाप रे! उठा के ले जाएगा. कछुआ बारो रे कोई.
(गाँव के कच्ची पक्की यादों में से मेरे, दीदी, दादी, चाची और बहुत से लोगों के बीच का होता एकालाप जो मेरी भाषा में मुझे ऐसे ही याद रह पाता है)
वो कौन सा मौसम है जब तुम याद नहीं आती हो मम्मी.
ऐसे कहे कहती हो जी इ एकालाप है . हमसे बतियाओ ना फिर PD भी तो है... अ सुनो गौतम जी भी हैं... लोगो देखेगा त का सोचेगा... सब अपना पार्टी बना के बैठा है... बड़ी दिनों एक हसरत है की एक ऐसा पोस्ट लिखा जाये जिसमें सारी स्पेल्लिंग गलत हो... सच में फ्लेवर रेनू जैसा हो एक भी शब्द शुध्ध ना हो... अब तुमसे कहा है तो तुम ही लिखो ना.. धोबिया घाट के एक्के पात पे कपडा पटक-पटक के सौसे देह दुख गया है और नाको दम बीत रहा है
ReplyDeleteएकालाप बोले तो, घर में सब ऐसे ही बोलते रहते हैं, कोई किसी एक से नहीं...अपने अपने में...सब एक ही टाइम, पर कोई किसी एक से नहीं.
ReplyDeleteबहुत जोरदार पोस्टवा है, एक दम जबरदस्त, पढ़ कर बहुत्ते मज़ा आया !
ReplyDeleteबंगलौर में टोले को याद करना ......जैसे अमेरिका में गुलफाम की बुग्गी पे बैठना है.......
ReplyDeleteआखिरी लाइन थोडा इमोशनल कर जाती है
एकालाप। :-)
ReplyDeleteमाँ की याद। अब दूसरे बादल मत बरसाईये।
अब ई बदलवा राड़ है त का कीजियेगा, उ जे है से है.. बदलवा के बदले खातिर आपको तो पहिले राड़ के मीनिंगवे को बदले परि, स्पेलिंग के साथ.. और कोनों चारा नईखे बा हो बबुनी..
ReplyDeleteअंतिम लाइन पर कुछ नहीं कहूँगा, बस समझ लो तुम्हारे साथ ही हूँ..
घर की भाषा और अपनों की स्मृतियाँ भावुक कर जाती है ।
ReplyDeleteएगो बात बोलें, हमको भी अपने गाँव कि याद दिलवा न दिए......अब तो हम भी उदास होके बैठे हैं....
ReplyDeleteकैसी बात कर दी रे पगली
ReplyDeleteओह रे...का बात कह दी...
ReplyDeleteवैसे हमरे दिल में तो ई भाषा ऐसे धंसा हुआ है कि आपस में ऐसेही बतियाते हैं...खाली लिखते बखत हीन्दी भाषा का टाई टाईट करते हैं...
पूरा सीन सीनरी अंखियों के आगे डोल गया... जियो..
कौन जिला घर है जी ?????
@ रंजन जी, मुंगेर जिला घर है :)
ReplyDeleteआपने मज़ेदार पोस्ट लिखी है .....
ReplyDeleteपहली बार ऐसा लगा कि आप भी
अपनी पोस्ट पर आई टिप्पड़ी को
पढ़ती हैं .
आभार .....
हम नहीं बोल पाते ऐसी भाषा पूजा! फिर पढ़कर बड़ा ही अपना सा लगा .....हमारे यहाँ कुछ अलग ढंग से बोला जाता है लेकिन सीख नहीं पाए....साथ ही नहीं रहा ज्यादा ......लेकिन मज़ा बहुत आया पढ़कर .....ऐसा ही होता है. :-)
ReplyDeleteजब घर कि याद आती है तो ऐसा ही एहसास होता है ...सच में यूँ ही चलता है एकालाप ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteलीजिये आप हैं मुंगेर की और हम है कटिहार के, कटिहार तो जानबे करती होंगी न बगले में तो है..हम आप तो पडोसी निकल गए....
ReplyDeleteचलिए अच्छा लगा आपसे मिल कर.....
----------------------------------
हमरे ब्लॉग पर इ मौसम में भी पतझड़ ..आईयेगा जरूर ....
तुम्हार गोठ बने लागिस.
ReplyDeleteसच कहा, रिश्तों के लिए कोई मौसम नहीं होता।
ReplyDelete................
खूबसरत वादियों का जीव है ये....?
ओह ...तभी तो...
ReplyDeleteमाटी माटी को ऐसे ही खींचता है...
हम भी बस बगले के हैं...
जियो....ऐसे ही जुडी रहो माटी से और ऐसे ही लिखती रहो...
आशीष !!!
सुब्रह्मनियन जी से होकर यहां पहुंचा. यह तो एक पूरी कविता है, बहुत सारे ब्लॉगर जो हिंदी की काव्य संपदा को सम्पन्न बनाने में जी-जान से जुटे हैं, उनका श्रम निरर्थक हो जाएगा, अगर आपकी याददाश्त इसी तरह आपका साथ देती रही.
ReplyDeleteअच्छा लगता है यह सब याद करना ...
ReplyDeletesimply awesome... felt like back at home... :)
ReplyDeletelanded here thru indiblogger... glad i did.. :) :)
Acha likhati hain app....aur hindi blog dekh ke lagta hai ki apni bhasha pe naz karne wale log hain..:)
ReplyDeletebahut achcha laga apki baaten padhkar.
ReplyDeleteबबुनी, काहे ई सब बड़बड़ आखीरि में सीरीयसा दीं हैं जी ?
ReplyDelete