१० थप्पड़ों के बाद बेहोशी सी छा जाती है...सब कुछ सुन्न पड़ जाता है. जैसे नींद में कुछ ना कर सकते वाली स्थिति रहती है वैसे ही, शरीर होता है पर नहीं होता...गाल का दर्द आँखों, कनपटी और सर पर होता हुआ आत्मा तक पहुँच जाता है. जख्म गहरे होते हैं...जिंदगी से भी गहरे.
ना माफ़ कर पाना एक ऐसा गहरा नासूर होता है कि अम्ल की तरह जिस्म को खोखला करता जाता है...माफ़ कर देना एक ऐसी जिंदगी होती है जिसमें खुद से आँखें मिलाने की हिम्मत बाकी नहीं रहती.
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लड़की है तो उसका नाम भी होगा...और ताज्जुब होगा लोगों को कि उसका नाम कुछ आम सा ही होता है...चलिए मान लेते हैं कि इस लड़की का नाम आँचल है, आँचल मिश्रा...जी हाँ कोई निचले जात की बीपीईल वाली परिवार की लड़की नहीं है जिसने घर पर बाप को दारू पी कर नशे में माँ को पीटते हुए देखा है. उच्च माध्यम वर्गीय परिवार की लड़की...शादी के लिए सुयोग्य हो इसलिए कॉन्वेंट में पढ़ी हुयी...पिटर पिटर अंग्रेजी बोलती है, अक्सर बातों से लोगों को चुप करा देती है...ताल ठोंक कर कहती है कि डिबेट में हरा के दिखाओ.
दिल्ली के एक अच्छे यूनिवर्सिटी में इकोनोमिक्स में शोध कर रही है...समाज की कई पेचीदगियों को समझती है. रिसर्च के सिलसिले में दुनिया देखी है...काफी ब्रोड माइंडेड है, अक्सर जलसों में भी हिस्सा लेती रहती है और काफी धारदार भाषण देती है. गे और लेस्बियन राइट्स पर खुल कर बोलती है. इन फैक्ट उसका 'लिव-इन' रिलेशन उस समय से है जब ये चीज़ें चर्चा का विषय हुआ करती थीं...अब तो खैर...फैक्ट सा हो गया है.
उसे जानने वाले कहते हैं कि उसकी उत्सुकता का लेवल काफी हाई है...घबराहट लेश मात्र भी नहीं...एक बार कदम आगे बढ़ा दिया तो मजाल है कि कोई उसे डरा के, समझा के या पुचकार के वापस हटा सके. उसका सच और झूठ, सही गलत का अपना हिसाब किताब है जो कभी दुनिया के साथ कभी दुनिया के खिलाफ होता रहता है...और जिंदगी छोटे मोटे हिचकोलों के साथ बढ़ती रहती है.
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लड़की से औरत बनने का सफ़र कभी आसान नहीं होता...खास तौर से तब जब ये सफ़र बिना के मर्द के नाम के साथ बिताया जाते...एक कच्ची उम्र से ३२ साल की उम्र का फासला तय किया आँचल ने और एक लड़की adopt की...लिव-इन से लिव-आउट होकर अपना फ्लैट लिए उसे चार साल बीत गए हैं. आज उसकी बेटी ने पहली बार बोलना शुरू किया है...म्मम्म जैसा कुछ जो जल्दी ही मम्मा में बदल जाएगा. फ्लैट में उसके साथ तीन लड़कियां और रहती है...सबकी अपनी अपनी कहानी है, सफलताओं की.
रात को कई बार उसे नींद नहीं आती देर तक...ऐसे में जब वो बेटी को लोरी नहीं सुना रही होती है तो कुछ आवाजें जेहन में घूमने लगती हैं. एक झन्नाटेदार 'तड़ाक', नीम बेहोशी...और मेडिकल अबार्शन के बाद की दिल दहलाने वाली चीखें.
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वो ना उसके थप्पड़ माफ़ कर पाती है...ना खुद को उसे वैसे टूट कर चाहने के लिए...हर दर्द के बावजूद.
रात के देर पहर बेटी का रोना उसे धीमी धीमी लोरी सुनाता है...और वो बच्चों की मानिंद सो जाती है...सुबह बेटी को देखती है तो हज़ार से ख्यालों में एक जरूरी बात याद आती है...बेटी बड़ी होगी तो उसे सिखाएगी...अगर किसी ने कभी भी तुम्हें एक थप्पड़ मारा हो तुम्हें तो माफ़ कर दो...मगर दूसरा थप्पड़ कभी जिंदगी में मत खाना...वो थप्पड़ गाल पर नहीं, आत्मा पर निशान बनाता है.
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यादें बेरहम सही...वर्त्तमान के अपने मरहम हैं...बेटी के गुलाबी फाहों से गालों को चूमते हुए ख्याल घुमड़ता है...और वो प्यार से उसे बुलाती है 'परी'.
थप्पड़ सह लेने का प्रभाव नियति बदल देने की क्षमता रखता है। प्रतिक्रिया यदि उसी क्षण नहीं हुयी तो पीड़ा रिस रिस कर बहती है, ताउम्र। मुझे भाव छिपाना नहीं आता, रिश्तों में कृत्रिमता नहीं भाती है। अन्याय सह लेना वस्त्रों पर छिड़क दिया रक्त सा लगता है, उतार कर फेंक देता हूँ ऐसे मर्यादा के वस्त्रों को।
ReplyDeleteपीड़ा का काल बढ़ाना न ठीक लगे को उसकी मात्रा बढ़ाना सीख ले आँचल।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
हरीश प्रकाश गुप्त की लघुकथा प्रतिबिम्ब, “मनोज” पर, पढिए!
सुबह सुबह आनंद की प्राप्ति हुई. अच्छी लगी.
ReplyDeleteपीडा का मार्मिक चित्रण्।
ReplyDeleteमुझे लहरें याद आई. मैंने सोचा कि जाने क्या बात हुई है ?
ReplyDeleteफिर अपने ब्लॉग रोल को देखा सोचा बहुत दूर तक देखना पड़ेगा लेकिन तुरंत ही दिख गई...
ऐसे अचानक याद आई जैसे कम ही आती है.
किसी बालकनी से सामने दीखता फ्लेट शायद दिमाग से नहीं निकला. ऐसे ही भीतर से देखे जाने वाले बाहर के दृश्य बेहद चिपकू होते हैं.
पिछले कई दिनों में बहुत बार ये ख़याल आया कि अगर उसने मेरी बेटी को थप्पड़ मारा तो... सिहर उठता हूँ. एक काल्पनिक व्यक्ति के लिए योजनायें बनाता हूँ. सोचता हूँ जेल कोई बुरी जगह तो नहीं, वहां छः महीने बाद कहानियां लिखने को कागज कलम मिल जायेगा.
इस पोस्ट को पढ़ता हूँ तो अवसाद कम होता है... है ना आश्चर्यजनक...
कि कमजोरी सिर्फ प्यार और सम्मान के कारण दबे हुये भावों को समझा जाता है. आज शाम को मैं और मानविका ये पोस्ट फिर से पढेंगे. आभा भी होगी तो मजा आएगा.
कुछ शुक्रिया कहने की जरुरत फ़िलहाल नहीं लग रही, अगर उन दोनों ने कुछ कहा तो लिखूंगा.
मुझे लहरें याद आई. मैंने सोचा कि जाने क्या बात हुई है ?
ReplyDeleteफिर अपने ब्लॉग रोल को देखा सोचा बहुत दूर तक देखना पड़ेगा लेकिन तुरंत ही दिख गई...
ऐसे अचानक याद आई जैसे कम ही आती है.
किसी बालकनी से सामने दीखता फ्लेट शायद दिमाग से नहीं निकला. ऐसे ही भीतर से देखे जाने वाले बाहर के दृश्य बेहद चिपकू होते हैं.
पिछले कई दिनों में बहुत बार ये ख़याल आया कि अगर उसने मेरी बेटी को थप्पड़ मारा तो... सिहर उठता हूँ. एक काल्पनिक व्यक्ति के लिए योजनायें बनाता हूँ. सोचता हूँ जेल कोई बुरी जगह तो नहीं, वहां छः महीने बाद कहानियां लिखने को कागज कलम मिल जायेगा.
इस पोस्ट को पढ़ता हूँ तो अवसाद कम होता है... है ना आश्चर्यजनक...
कि कमजोरी सिर्फ प्यार और सम्मान के कारण दबे हुये भावों को समझा जाता है. आज शाम को मैं और मानविका ये पोस्ट फिर से पढेंगे. आभा भी होगी तो मजा आएगा.
कुछ शुक्रिया कहने की जरुरत फ़िलहाल नहीं लग रही, अगर उन दोनों ने कुछ कहा तो लिखूंगा.
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ReplyDeleteआपकी लेखनी प्रशंसीनय है। औरत की व्यथा का खूबसुरती से चित्रण किया है...
ReplyDeleteये लेख पढ कर सोचने पर मजबूर करता है।
वो ना उसके थप्पड़ माफ़ कर पाती है...ना खुद को उसे वैसे टूट कर चाहने के लिए...हर दर्द के बावजूद.
ReplyDeleteरात के देर पहर बेटी का रोना उसे धीमी धीमी लोरी सुनाता है...और वो बच्चों की मानिंद सो जाती है...सुबह बेटी को देखती है तो हज़ार से ख्यालों में एक जरूरी बात याद आती है...बेटी बड़ी होगी तो उसे सिखाएगी...अगर किसी ने कभी भी तुम्हें एक थप्पड़ मारा हो तुम्हें तो माफ़ कर दो...मगर दूसरा थप्पड़ कभी जिंदगी में मत खाना...वो थप्पड़ गाल पर नहीं, आत्मा पर निशान बनाता है...
बहुत ही मार्मिक चित्रण...सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
पहले पैरे की कुछ लाइन बज्ज़ की थी, एक बात तो भोगा हुआ है बेबाक लोगों को ज्यादा तकलीफ उठानी पड़ती है, पता नहीं क्यों सामने वाले दिल से ये स्वीकार नहीं कर पाते की बेबाक लोगों में निर्दयता ज्यादा होती है और उनमें मुहब्बत कम होती है... आँचल इससे जुड़ा नहीं...
ReplyDeleteथप्पड़ के निशां कई बार जिंदगी भर भुलाये नहीं भूलते ऐसे में अगर इस समाज में लड़की ऐसी हो तो मुश्किलें आएँगी ही... फिर वो परी को देखकर ग़म भुलाने लगती है... जब परी बड़ी हो जाती है वो आँचल भी आदत का आँचल डाल लेगी अपने ऊपर
ये पोस्ट एक करारा थप्पड़ था पुजा..
ReplyDeleteबहुत बुरी तरह घेर लिया है इस लहर ने......निकलूं कैसे इससे सोच रही हूँ......
ReplyDeleteपहली बार आया हूँ, मगर निराश नही हुआ, पहली पोस्ट नहीं पढ़ पाया सो इस पर चला आया.. पढकर अजीब सिरहन हुई..
ReplyDeleteऐसे कई थप्पड़ बिना मारे भी लग जाते हैं. यह वोह भार है जो शायद ज़िंदगी भर नहीं उतरता.
एक बेहतरीन पोस्ट पढ़ी और आपसे परिचय हुआ. धन्यवाद.
मनोज खत्री
कैसे तो नर्म होते होंगे आत्मा के गाल..कि कुछ थप्पड़ो के निशाँ ताजिंदगी मिट नही पाते..तो कुछ के आत्मा होती भी नही..जमाने की पिटी लीक से अलग हट कर अपनी राह बनाने वालों को सफर मे थप्पड़ क्यों मिलते हैं..और फिर अगर औरत हो तो..पूरी दुनिया को लाइसेंस रहता है..उसे ’डिसिप्लिंड’ करने का..! बेटी कल को जब बड़ी होगी..तो क्या जिंदगी की इन्ही तल्ख सच्चाइयों का, खुरदरे वायलेंट हाथों का सामना नही होगा क्या?..अच्छे लोगों के लिये प्यार कोई जरूरी शर्त होगी शायद..मगर प्यार कमजोर बनाता है..मजबूर भी!
ReplyDeleteपिछली बार जब पढ़ा था..तो भुला नही पाया था तमम वक्त..
..जिंदगी है..
shaayd der se aana huaa hai tumhaare blog par ..par aakar laga yahaan se jaana itnaa aasaan nahi hai
ReplyDeleteना माफ़ कर पाना एक ऐसा गहरा नासूर होता है कि अम्ल की तरह जिस्म को खोखला करता जाता है...माफ़ कर देना एक ऐसी जिंदगी होती है जिसमें खुद से आँखें मिलाने की हिम्मत बाकी नहीं रहती.
ReplyDeletenot agree. khud se ankh milane ki takt rakhne wala he maaf kar sakta hai. still a touchy post.
विगत तीन-चार दिनों से अजीब सा हो रखा हूँ....और अब ये तुम्हारा पोस्ट| जाने कितनी परियों की कहानी है ये|
ReplyDeleteउन बहुत कम लोगों में जो तुम्हें मिले हैं जो कहते हैं कि चाहे कुछ भी हो हाथ उठाना एकदम गलत है, मुझे भी गिन लेना| मेरे अपनी समझ में वो सबसे कमजोर इंसान है जो ऐसे हाथ उठाता है|
वो जो दूसरा वाला थप्पड़ है जो आत्मा पर निशान छोड जाता है, उससे पहले ही ऐसी हर परी से कहना चाहता हूँ कि एक वो भी जड़ दे.... बस दुआ भर कर सकता हूँ कि ऊपर वाला हर ऐसी परी को कम से कम इतनी तो ताकत दे...