बंगलोर में रहते हुए बारिशों के कई अंदाज़ देखे हैं, कुछ घर की खिड़की से, कुछ बालकोनी में कॉफ़ी के साथ, कुछ ऑफिस की सीट से बाहर...जिद्दी बारिश, प्यारी बारिश, तमतमाई बारिश, आलसी बारिश वगैरह...जिंदगी के कुछ हिस्सों में बारिश कैसे गुंथी है कि लगता है बादल बड़ा होशियार होता है. आज कुछ तरह की बारिशों के रंग में भीगते हैं.
इंस्टैंट बारिश: ये सबसे दुर्लभ किस्म की बारिश होती है...दुर्लभ यानि कि आम जनता के लिए. फिल्मों में ऐसी बारिश भरपूर मात्रा में पायी जाती है...खास तौर से ऐसे दिन जब हिरोइन के पास छाता ना हो. ऐसे अनेको उदाहरण हैं जब फिल्मों में बारिश एकदम राईट टाइम पर शुरू होती है. लेकिन इस बारिश का श्रेय हम मिस्टर बदल को नहीं दे सकते क्योंकि ये आर्टिफिसियल बारिश होती है. अधिकतर इंस्टैंट बारिश को काम बिगाडू माना जाता है. खडूस लोगों के विचारों से इतर...इंस्टैंट बारिश से प्यार के फूल खिलने की संभावना काफी बढ़ जाती है.
जुल्मी बारिश: ये वो बारिश है जिसे सभी प्यार करने वाले खार खाते हैं...इश्क कई बार आग का दरिया ना होकर असली दरिया भी होता है...हमें तो पाटलिपुत्रा का ज़माना याद आता है, मानसून आते ही पूरी कालोनी की सडकों पर पानी भर जाता था...वैसे तो पानी में इटा पर कूद फांद कर ट्यूशन पहुँच जाते थे पर जिस दिन ये कमबख्त 'जुल्मी' बारिश आती थी सड़कों पर गंगा बहने लगती थी. बारिश दरिया और नाले में कोई फर्क नहीं करती थी, सब तरफ सामान रूप से बरसती थी. ठीक वैसे ही मम्मी हमपर बरसती थी....दिमाग ख़राब हो गया है लड़की का, इत्ती बारिश में कहाँ जायेगी. हाय वो बचपन का प्यार...किसी को एक नज़र देखने के लिए घुटना भर से ऊपर पानी हेलकर अपनी साइकिल से जाते थे. तो जैसा कि मैंने उदाहरण दिया...ये जुल्मी बारिश हमेशा इश्क के सुलगते अरमानो को बुझा डालती है...डुबा डालती है. ग़ालिब पटना में पैदा हुए होते तो कहते...ये इश्क नहीं आसान, एक बाढ़ है, दरिया है और अबकी डूब जाना है.
गुस्सैल बारिश: इस बारिश का बिजली और गरज से सोलिड दोस्ती है. तीनो साथ मिलकर शहर शहर डुबोने का प्लान बनाते हैं. ये बारिश खास तौर से तब आती है जब हम घर से छाता लेकर निकलना भूल जाते हैं. ऐसे केस में बादल अपमानित महसूस करता है, कि सुबह से आसमान में क्या लुख्खा टाईमपास कर रहे थे, तुम हमको देख कर भी अनदेखा की, हमारा इन्सल्ट की. अब भुगतो! और अगर बारिश का मूड हुआ तो तो ओले से भी सेट्टिंग कर लेती है अपनी...खास तौर से जब कोई सर मुन्डाता है. इसलिए कहते हैं सर मुंडाते ही ओले पड़े. जब गुस्सैल बारिश आती है तो तेज हवा चलती है और थपेड़े से पेड़ों की जड़ें तक हिल जाती हैं. तब ये पेड़ ७ पटियाला पैग चढ़ाये इन्सान की तरह भरभरा के गिर जाते हैं. इस बारिश के कारण गाड़ियाँ ख़राब होती हैं, वो भी अं चौराहे पर...ताकि चारों तरफ का ट्रैफिक सत्यानाश हो जाए. इस बारिश के तेवर पहले से ही मालूम रहते हैं इसलिए इस बारिश को किसी हाल में इग्नोर नहीं करना चाहिए. इससे बचने का सबसे आसान उपाय है...बचना...यानि घर पर टिकना.
क्यूट बारिश: इस बारिश को सभी पसंद करते हैं, ये बारिश अच्छे दोस्त की तरह कभी भी आती है, गौरतलब रहे कि इसमें और इंस्टैंट बारिश में बस ये एक समानता है. तो क्यूट बारिश बिलकुल हलके हलके पड़ती है, इसकी नन्ही नन्ही बूँदें चेहरे को प्यार से थपथपाती हैं. ये बारिश अक्सर दिल्ली में अगस्त के पहले मैंने में पायी जाती है...इस बारिश से तीन खास तरह के लोग बहुत खुश होते हैं, कॉफ़ी, पकौड़े और जलेबी बनाने वाले...जब ये बारिश आती है तो भुट्टे वालों का भी बिजनेस बढ़ जाता है. ये बारिश ऐसी है कि अकेले या दुकेले एन्जॉय की जा सके. अकेले लोगों के लिए आवश्यक है हेडफोन और कोई भी म्यूजिक प्लेयर ये अकेला इन्सान अगर कवि हो तो उसकी लेखनी में चार चाँद लग जाते हैं. जो मनुष्य इस बारिश में ना भीगा हो उसका जीवन व्यर्थ है.
फिलहाल इतने बारिशों में भीगिए, बाकी रंग फिर किसी दिन उड़ेले जायेंगे.
वारिश के बारे में ये नज़रिया अच्छा है .
ReplyDeleteया ये मान लिजीए बेहद उम्दा ......
वाह !
ReplyDeleteक्या बात है बारिश की भी किस्मे होती है ! मगर सर जी एक बारिश तो आप भूल ही गए ! चईनीज़ बारिश ये भी एक आइटम है चाइना का ! कुदरत से पंगा लेने में लगा हुआ है चाइना !
उम्दा पोस्ट बधाई !
भीग क्या गए डूब ही गए. :)
ReplyDeleteबारिश ... एक पसंदीदा शगल है ... बहुत पहले की बात है मैं कवियों को गरियाता था की पटना में होता तो कभी नहीं पन्त जी बारिश पर कविता लिखते और कौन सी नज़र से उनको बारिश अच्छी लगती है., रात भर मेंढक की टर्र- टर्र .. सांप, बिच्छु, कीड़ा, सत्यानास जीवन था...
ReplyDeleteलेकिन अभी दिल्ली भी जोरदार बारिश हुई और कभी बारिश में कनेल के पेड़ को देखना कितना खिला हुआ लगता है. पटना में जब जलस्तर खतरे के निशान को छूने लगे तब दरभंगा हाउसे पर जाना ... देखना नदी जा वेग लगता है किसी से मिलने जा रही हो... मटमैला रंग थोडा खीझ का प्रतीक हो जाता है जैसे कोई मिलने में बाधा डाल रहा हो और तेज़ी ऐसी जैसे हाथ छुड़ा कर जा रही हो.. गोया २ महीने पटना वासियों से बेवफाई भी चलेगी.
bahut badiya
ReplyDelete, is baar baris ne bahuton ko rulaaya
ye vivechana mazedar lagee.
ReplyDeleteare bangalore me hee ho?
kabhee mila ja sakta hai..........
Aabhar
वाह !
ReplyDeleteक्या बात है उम्दा पोस्ट
ग़ालिब साहब आगरा की जिस गली में पैदा हुए थे....बरसात, रंग तो अपना वहाँ भी दिखाती है....अच्छा खासा, लबालब पानी भर जाता है, उस क्षेत्र में...किन्तु चचा ने जवानी और बुढ़ापा दिल्ली में बिताया था....इसीलिए वो तुम्हारा वाला शेर नहीं लिखा होगा
ReplyDeletetarah tarah ki baarish....
ReplyDeletewaah maza aa gaya...
और उस बारिश को क्या कहेंगे...जो लगातार बरसकर स्कूल से छुट्टी करवा देती थी! प्यारी और मज़ेदार बारिश! खैर बारिश चाहे जिस भी कैटेगरी की हो , हमेशा मस्त ही लगती है! तुमने बारिश की पोस्ट लिखी और आज यहाँ शाम से तेज़ बारिश हो रही है!
ReplyDeleteलेखक, कवि की लेखनी में वार चांद लगा देता है.
ReplyDeleteज़िन्दगी में कई बार बारिस में भीगा हूँ. परन्तु बारिस को कभी नाम नहीं दे पाया. अब आगे जब भी भीगुंगा तो आपका यह लेख बहुत याद आयेगा और याद करने की कोशिश करूंगा कि मुझे भिगाने वाली बारिस 'पूजा' जी के शब्दों में कौन सी बारिस होगी? बारिस का यह classification बहुत अच्छा लगा. आभार.
ReplyDeleteआआआंछी....!
ReplyDeleteएक बारिश ये भी होती है मैडम जी...!!
एक बारिश को कातिलाना नाम दिया है, जो आती है तो जिगर कातिलामा हो जाता है। बंगलोर के क्या कहने।
ReplyDeleteअगर कहें के इस बार आपकी 'जुल्मी बारिश' ने बहुत कुछ बदल दिया तो ठीक होगा.. हमारे शहर की सड़कों से लेकर मन के मौसम तक...
ReplyDeleteखूब बरसी है तबियत से इस बार..
हमारे यहाँ तो अब बरिश के बाद शरद ऋतु चल रही है । लेकिन गजब का है यह विश्लेषण
ReplyDeletewese to hammare rajasthaan mai baarish hoti nahi orab sardi mai ho rahi hai is baare mai kya vichaar hai
ReplyDeletewese to hammare rajasthaan mai baarish hoti nahi orab sardi mai ho rahi hai is baare mai kya vichaar hai
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