वक़्त नहीं लगता, शहर बदल जाते हैं. ये सोच के चलो कि लौट आयेंगे एक दिन, जिस चेहरे को इतनी शिद्दत से चाहा उसे पहचानने में कौन सी मुश्किल आएगी...मगर सुना है कि दिल्ली अब पहचान में नहीं आती...कई फिरंगी आये थे उनके लिए सजना सँवरना पड़ा दिल्ली को. दिल्ली की शक्लो सूरत बदल गयी है.
सुना है महरौली गुडगाँव के रास्ते पर बड़ा सा फ़्लाइओवर बना है और गाड़ियाँ अब सरपट भागती हैं उधर. मेरे वक़्त में तो IIMC से थोड़ा आगे बढ़ते ही इतना शांत था सब कुछ कि लगता ही नहीं था कि दिल्ली है...खूब सारी हरियाली, ठंढी हवा जैसे दुलरा देती थी गर्मी में झुलसे हुए चेहरे को...कई सार मॉल भी खुल गए हैं...एक बेर सराय का मार्केट हुआ करता था, छोटा सा जिसमें अक्सर दोस्तों से मुलाक़ात भी हो जाया करती थी. छोटी जगह होने का ये सबसे बड़ा फायदा लगता था...और फिर साथ में कुछ खाना पीना, समोसे वैगेरह...चाय या कॉफ़ी और टहलते हुए वापस आना कैम्पस तक.
JNU तो हमारे समय ही बदलने लगा था...मामू के ढाबे की जगह रेस्तारौंत जैसी कुर्सी टेबलों ने ले ली, वो पत्थरों पर बैठ कर आलू पराठा और टमाटर की चटनी खाना और आखिर में गुझिया, चांदनी रात की रौशनी में...टेफ्ला में दीवारों पर २००६ में जो कविता थी मेरे एक दोस्त की, जिसे मैं शान से बाकी दोस्तों को दिखाती थी वो भी बदल दी गयी. पगडंडियों पर सीमेंट की सड़कें बन गयीं...जंगल अपने पैर वापस खींचने लगा...समंदर पे आती लहरों की तरह.
जो दोस्त बेर सराय, जिया सराय में रहते थे वो पूरी दिल्ली NCR में बिखर गए. पहले एक बार में सबके घर जाना हो जाता था...इधर से उठे उधर जाके बैठ गए...अब किसी चकमकाती मैक डी या पिज़ा हट में मिलना होगा...एसी की हवा दोस्ती को छितरा देती है, बिखरने लगती है वो आत्मीयता जो गंगा ढाबे के मिल्क कॉफ़ी में होती है. अब तो पार्थसारथी जाने के लिए आईडी कार्ड माँगा जाने लगा है...कहाँ से कहें कि ये जगह JNU में अभी पढने वाले लोगों से कहीं ज्यादा उनलोगों के लिए मायने रखती है जो यहाँ एक जिंदगी जी कर गए थे. पता नहीं अन्दर जाने भी मिलेगा कि नहीं.
१५ नवम्बर, किसी कैलेंडर में घेरा नहीं लगाना पड़ा है...आँखों को याद है कि जब दिल्ली आउंगी मैं, दो साल से भी ऊपर हुए...जाने कैसी होगी दिल्ली...याद के कितने चेहरों से मिल सकूंगी...नयी कितनी यादों को सहेज सकूंगी. बस...ख्वाहिशों का एक कारवां है जो जैसे डुबो दे रहा है. दिल्ली...जिंदगी का एक बेहद खूबसूरत गीत.
याद न जाए बीते दिनों की.......शायद कुछ इस तरह का हाल है आपका .....
ReplyDeleteदिल्ली में आकर मेट्रो में ज़रूर बैठना, अच्छा लगेगा. बढ़िया पोस्ट .
तो स्मृतियों को दुलारने का वक़्त आ पहुँचा....
ReplyDeleteवैसे दिल्ली में फ्लाईओवेर्स की बाढ़ आ गयी है, सड़के ज़्यादा चमचमाती हैं और बाहर हाईवे के हाल बुरे, चाहे सोनीपत की तरफ निकलें, हरिद्वार की तरफ या फिर जयपुर की तरफ, सब की हालात एक जैसी है, सरकारी अमला जैसे पिछले साल भर से कॉमनवे़ल्थ में ही जुटा था...!!
ReplyDeleteदिल्ली से आने के बाद वहाँ के एक्सपेरिएंस भी हमसे बांटिएगा..
मनोज
आप दिल्ली को तो नहीं पहचान पायेंगी, बहुत बदल गयी है बाहर से, काश दिल्ली आप को पहचान ले।
ReplyDeleteJNU me entry mushkil ho gayi hai.Main Jiya Sarai me rahta hoon.Pehle weekend pe jaya karta tha par ab to wahan without reference entry nahi dete.Lekin wakai JNU is JNU.Full classical.Wahan pe entry hote hi time machine 2 decade peeche chali jaati hai.Maine JNU ke kuch posters lagaye hain apne blog par you can see.
ReplyDeletewww.taswiren.blogspot.com
sacha kaha apane JNU meM bahuta kuCha badala gayaa hai aura ab bhee badala rahaa hai. जैन सर अब प्राक्टर हो गये हैं, नये वीसी की खोज जी है..आशा है इस माह हमें नये वीसी मिल जायेंगे.................
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