आज फिल्म देख रही थी, 'जाने भी दो यारों'...फिल्म के बारे में कभी बाद में कहूँगी...आज एक ऐसी चीज़ के बारे में जो मुझे बेहद पसंदीदा थी...अचानक याद आई..श्वेत श्याम फोटोग्राफी/black&white photography. कॉलेज में पढ़ते हुए, हमें १४ दिन की फोटोग्राफी वर्कशॉप भी करनी थी. ये वर्कशॉप फर्स्ट इयर में करनी होती थी और इसके लिए हमें नोट्रे डैम स्कूल स्थित उनके फोटोग्राफी स्टूडियो जाना होता था. नोट्रे डैम की वोर्क्शोप इसलिए भी बहुत अच्छी लगती थी क्योंकि वो हमारे घर से एकदम पास में था. वहां के दो फायदे और होते थे, ड्रेस कोड(जो कि सलवार-कुरता था) लागू नहीं होता था और हम अपने मन पसंद कपडे पहन कर जा सकते थे और बहुत दिन बाद साइकिल चलाने का मौका हाथ आता था. खाना खाने लंच में या तो घर आ जाती थी या कुर्जी में एक बेकरी शॉप थी 'चेरी' उसके सैंडविच बहुत अच्छे लगते थे.
कैमरा के प्रति अपने स्वाभाविक लगाव को यहीं पूरी तरह पहचाना था...अधिकतर लड़कियों को जहाँ SLR मुश्किल लगता था और कैमरा फोकस करने में दिक्कत आ रही थी, मुझे जैसे कि पसंदीदा खिलौना मिल गया था. वे कैमरा-फिल्म के दिन थे इसलिए एक शोट में गलती हो गयी तो फोटो बर्बाद हो जाती थी. एस एमें सही फोकस करना बहुत जरूरी था. उस वक़्त मैंने पहली बार कम्पोजीशन के नियम सीखे थे और रचनात्मकता से उनको तोड़ना भी. जब फोटो फीचर शूट करना था तो हर चीज़ में सब्जेक्ट नज़र आता था. उस समय हम ब्लैक एंड व्हाइट फोटो ही खींचते थे. ये दो रंग के फोटो कई बार जिंदगी के ऐसे रंगों से साक्षात्कार कराते थे कि रंगीन कैमरा नहीं कराता था.
फोटो खींचने के अलावा एक और शगल था मेरा...धुलाई करना...नहीं नहीं अपने सब्जेक्ट्स की नहीं, फिल्म की. फोटो खींचने की बाद फिल्म को एकदम अँधेरे कमरे के अन्दर डेवलपर में डालना होता है. जब नेगटिव डेवलप हो जाता है तो फिर उसे फोटो के हिसाब से काटना होता है. और इसके बाद आता था मेरा सबसे मज़ेदार काम पोजिटिव डेवलप करना. इस्क्ले लिए जो कमरा होता है उसे डार्क रूम कहते हैं, उसमें लाल रंग का धीमा जीरो वाट का बल्ब जलता था...कुछ को वो कमरा भुतहा भी लगता था. पोजिटिव बनाने के लिए एक मशीन होती थी जिसमें नेगटिव को फिट कर देते थे और रौशनी से पोसिटिव वाले पेपर को एक्सपोज करते थे. यहाँ हम अपनी पसंद से फोटो के अलग अलग पार्ट्स को गहरा या हल्का बना सकत थे. इस तकनीक को burning or dodging कहते थे. इसके बाद फिल्म को डेवलपर में डालते थे...और जादू की तरह सादे कागज़ पर आकृति उभरने लगती थी, चिमटे से हम फोटो को अच्छी तरह हिलाते थे ताकि पोजिटिव अच्छे से डेवेलोप हो जाए...इसके बाद उसे फिक्सेर में डालना होता था कुछ देर...और बस फिर सादे पानी से धोने के लिए सिंक में नाल खोल के उसके नीचे थोड़ी देर और बस निकाल के टांग देते थे, सूखने के लिए.
ये सब आपको भी सुनके आफत लग रहा होगा, मेरी क्लास्स्मेट्स को भी लगता था...हमें डार्क रूम में जाने के लिए शिफ्ट्स मिलते थे...और मैं खुशी-खुशी किसी से भी एक्सचेंज कर लेती थी. मुझे वो रहस्यमयी कमरा बेहद पसंद आता था. मैंने बहुत सी फोटो डेवलप की उधर. यहाँ का सीखा हुआ IIMC में भी बहुत काम आया. वहां हालांकि हमने कलर फोटो खींची तो बस कैमरावर्क सीखा हुआ था.
नोट्रे डैम के वो १४ दिन बेहद मज़ेदार थे...हमने खूब सारी मोडलिंग भी की थी एक दूसरे के लिए. ये दोनों तसवीरें मैंने खुद से डार्क रूम में डेवलप की है. आपने कभी खुद से किसी फोटो को धोया है ?! ;)
great job..........
ReplyDeletecongrats........
ji nahi dhoya lekin aapi baat padhakar majaa aayaa
ReplyDeleteआप यकीन करें या न करें, पर आपकी श्वेत-श्याम यादों में भी अपनत्व का एक सुनहरा रंग मिला हुआ है।
ReplyDeleteफोटो को तो नहीं अलबत्ता यादो को रोज धोते है .....यूँ भी इस भाग दौड़ भरी दुनिया में पिछले पांच साल भी नोस्टेल्जिया के हेडिंग के तले चले जाते है ..
ReplyDeleteवैसे एक बात बताओ क्या तुम्हे भी ऐसा लगता है के चेहरा ज्यादा खूबसूरत ब्लेक एंड व्हाईट में लगता है ?
@ डॉ. अनुराग...सहमत हूँ. चेहरा ज्यादा खूबसूरत ब्लैक एंड व्हाइट में लगता है.
ReplyDeleteAaj bhi Cherry wahi pe hai....Aur Notredame ke Opposite Prakash Jha ka mall bhi ban ke taiyar hai.
ReplyDeletegreat work... looking good in B&W... and i also got inspired...
ReplyDelete...और बस निकाल के टांग देते थे, सूखने के लिए.
ReplyDeleteऐसे ही कुछ लम्हे जो धूप में सूख रहे थे, वे आज भी बेहद चमकीले दिख रहे हैं. हम तीव्र गति से बदल रहे हैं तो एक बारगी सोचना पड़ा कि ब्लेक एंड वाईट का ज़माना वाकई बहुत पुरानी बात नहीं है. खूबसूरत पोस्ट.
साँवली, सलोनी,
ReplyDeleteयादों की डुबोनी।
ये ब्लैक एंड व्हाईट फोटुओं में बसी यादें बहुत इमोशनल होती हैं....लाख मना करने पर भी मन को भिगो कर चली जाती हैं
ReplyDeleteब्लैक एंड वाईट कभी भी पुराना नहीं है, बस रंग आने से और डिटेल्स पर ज़्यादा ध्यान जाता है.
ReplyDeleteखुले बालों में आप अच्छी लग रहीं हैं.
बढ़िया पोस्ट है आपकी.
ReplyDeleteब्लेक एंड व्हाईट फोटो को हमने भी बहुत धोया है और सच है ब्लेक एंड व्हाईट में चेहरा ज्यादा खूबसूरत लगता है,क्योंकि उसमें डार्क सर्कल,सन बर्न, झाइयां या मुहांसों के लाल निशाँ नहीं दिखाई देते :)
क्या याद दिला दिया पूजा... एक पल में जाने कितने बरस पीछे लौट गये जब क्लास इलेवेंथ में स्कूल में हॉबी क्लास के रूप में फोटोग्राफी इंट्रोड्यूस हुआ था... फोटो खींचना तो नहीं सिखाया गया हाँ डेवेलप करना ज़रूर सिखाया गया था... बड़ा मज़ा आता था डार्क रूम में जा के ब्लैक एंड वाइट नेगेटिव से फोटो डेवेलप करने में, पहली बार जब फोटो पेपर को फिक्सर में डाला तो सच में जादू सा ही लगा था उस पर उभरती तस्वीर को देख कर :) आज भी ख़ुद की डेवेलप करी वो २ - ४ तस्वीरें ऐसे संभाल के रखी है जैसे कोई बड़ा ख़ज़ाना हो... अभी तुम्हारी पोस्ट पढ़ते-पढ़ते फिर से निकाल कर देखीं...
ReplyDeleteहमें तो नहीं आता फोटो डेवलप करना..बस अभी तक फोटो लेना ही सीखा है(वो भी ठंग से नहीं ;))
ReplyDeleteएक दोस्त है मेरी "रिया", उसने अपने कॉलेज के दिनों में फोटो डेवलप करना सीखा था, कोर्स भी किया था शायद...
कितनी बार फोन पे ये सब बातों से मुझे चाटती रहती थी, लेकिन मजा आता था उसकी बातें सुन कर...बड़े अजीब अजीब किस्से होते थे उसके डार्क रूम के :)
.
वैसे वो बात सही है, फोटो ब्लैक एंड व्हाईट में ज्यादा अच्छी आती है....आपकी दोनों फोटो बहुत खूबसूरत हैं..
हम्म... बढ़िया जानकारी दिया है... आपने अच्छी जिंदगी जी है, कोई मलाल नहीं टाइप (जीने में ) यह बेहतर है... अच्छी बात यह है कि आँख कान खोल कर जिया है... किसी कैदी की तरह नहीं... ब्लैक और white तस्वीर मन की यादों के एक्बम में रखे तस्वीरों जैसे होते हैं यही वजेह है की वो ज्यादा आकर्षित करता है... व्यक्तित्व का एक अलग ही पहलू नज़र आता है इसमें ... मुझे एक फिल्म शिंडलर्स लिस्ट याद आ रही है... जो कमाल की लगी थी.
ReplyDeleteBadhiya post hai ji....
ReplyDeleteसही कहा!.... ब्लैक न व्हाईट की बात ही कुछ और है. बढ़िया पोस्ट! और फोटो में आप बहुत अच्छी लग रही हो.
ReplyDeleteहमें तो आपका अपने अनुभव को शब्द देने का सलीका बहुत पसंद आया .. मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्द्धन.. लेकिन कुछ और तकनीकी बारीकियां भी होंगी उस समय की फोटोग्राफी में उन पर भी प्रकाश डालती जैसे किन केम्क्ल्स का कितनी मात्र में प्रयोग वगैरा ...कुल मिलकर आपके ब्लॉग पर आना अच्छा लगा !
ReplyDeleteअरे...मुझे भी बड़ा शौक था इसका,पर कभी मौका ही नहीं मिला कि सीख सकूँ...
ReplyDeleteबधाई तुम्हे..
काली-सफेद आंखों में कभी फुदकते कभी तैरते सतरंगी सपने.
ReplyDeletehar ek baat bade shaandaar tarike se likhi hai aapne ye blog bahut pasand aaya ky aaapka fase book id milegi taaki aapse baat ho sake aapse kuch sikhna chhata hu,,,,,,,,,,,,,honeysharmabhim@gmail.com
ReplyDeletesorry aap ki baat ko taal bhi nahi sakta bcoz i like u as a teacher in bloging and writing world ,,,,,,,,,,,,,,,very sorry mai aap ki poem delet kar duga but i hav 1 request 2 u plz come on my blog as a authoer and teacher plz aasha kart hu ki niraasha ki kiran nazar nahi ayeghiu ek aash he sath
ReplyDelete,,,,,,,,,
aap ki kuch or post mere blog par hai unhe bhi hata du yeah wo ek he hataani thi
ReplyDeleteचेहरा हमेशा ही खूबसूरत दिखाई देता है ...
ReplyDeleteश्वेत श्याम तसवीरें हकीकत से वाकिफ करवाती है....
बेहद खूबसूरत...
pooja bahut maza aaya post dekh kar....maine bhi apne fine arts college me photography seekhi hai....develop karna seekha hai.....is baat ka jikr apne blog me kiya hai....kabhi fursat mile to dekhna......
ReplyDeleteब्लैक & व्हाइट की बात ही कुछ और थी
ReplyDeleteवो अपने आप में ब्लैंक फोटोग्राफी थी
और रियल थी अब तो जो भी खींचना है
देखते हुए मजा भी पहले की तुलना में कम आता है
मगर आपको पढना अच्छा लगता है