19 April, 2010

यादों का पैलेट

IIMC के आखिर के कुछ दिन थे, सबकी प्लेसमेंट आ रही थी। अधिकतर लोग दिल्ली में ही कहीं ना कहीं ट्रेनिंग कर रहे थे। ये हमारा आखिरी एक महीना था जेअनयू कैम्पस में और हमारी लाल दीवारों से जुड़े कुछ रिश्ते गहराने लगे थे। उस वक़्त ये नहीं लगा था की अब के बाद फिर शायद बहुत दिन हो जायेंगे किसी से मिले हुए, फिर देखे हुए...या शायद बात किये हुए भी।

मेरे खास दोस्तों में एक की बॉम्बे में ट्रेनिंग आई, स्टार प्लस की...मुझे सुबह ही पता चल गया। बहुत ख़ुशी हुयी कि अच्छी जगह ट्रेनिंग लगी है उसकी पर बात जैसे तीर की तरह चुभी वो ये कि आखिरी एक महीना भी छीना जा रहा है मुझसे...और मैं इस अचानक के लिए तैयार नहीं थी।

दिन भर हम एक दुसरे को देख कर कतराते रहे, किसी और रास्ते मुड़ जाते रहे। कभी अचानक लाइब्ररी चले गए तो कभी कैंटीन...आँखों में आता पानी अच्छा नहीं लगता। कहते हैं जाने वालों को हँस कर विदा करते हैं क्योंकि वो चेहरा ही यादों का सबसे साफ़ चेहरा होता है। धुंधला कर भी उसके रंग फीके नहीं पड़ते।

पर IIMC के छोटे से कैम्पस में दिन भर आप एक दुसरे से नहीं भाग सकते। मैं पानी पीने झुकी थी और पीछे मुड़ते ही उसे पाया...मैं नहीं चाहती थी कि मेरी आँखें गीली हों, मैं उसका चेहरा साफ़ देखना चाहती थी, धुंधला नहीं। पर ऐसा मेरे बस में नहीं था।

मैंने उससे कहा "ऐसा नहीं होगा कि तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकूँगी, ऐसा भी नहीं है कि तुमसे मैं रोज मिलती थी पिछले कुछ दिनों जब हम एक साथ थे। पर ये था कि आते जाते एक तुम्हारे चेहरे की आदत हो गयी थी। उस आदत से बहुत दर्द हो रहा है ये सोच कर कि अब कभी अचानक तुम नहीं नज़र आओगे कैम्पस में। तुम्हें ढूंढती रहती थी पहले ऐसा नहीं था, तुम्हें तलाशती रहूंगी ऐसा नहीं है...पर ये जो कमबख्त आदत है आँखों की, तुम्हें देख कर मुस्कुराने की...तुम बहुत याद आओगे यार, तुमको बड़ा मिस करुँगी।"

और मेरी यादों में उसकी गीली आँखें ही आती हैं अब तक...वो बोला था, इसलिए नहीं मिल रहा था तुझसे, पता था तू रुला देगी...मैं जा रहा हूँ, तुझे रोते देखा नहीं जाएगा, और मैं तेरे सामने रोना नहीं चाहता। तू बहुत ख़राब है रे पुज्जी कसम से।

इन आँखों को किसी की आदत ऐसी पड़ती ही क्यों है...कुछ लोग जैसे सूरज की तरह होते हैं, उनके आने से रोशन हो जाती है जिंदगी। ऑफिस में एक शख्स था ऐसा, मेरे नए ऑफिस में...वो इस हफ्ते जा रहा है। इतना कम वक़्त में तो आदत भी नहीं होती किसी की...पर मुझे दुःख हो रहा है उसके जाने पर। अभी जब कि उससे ठीक से बात भी नहीं की थी कभी...कैसे करती, मुझे कन्नड़ नहीं आती और उसे हिंदी।

अजीब होती है ये आँखों की आदत...शाम ढल रही है, डूबता सूरज, घर लौटते पंछी...और यादों में कहीं खोती हुयी सी मैं, V...आज तेरी बड़ी याद आई।

25 comments:

  1. सी,,,,रोयें मेरे क्यूँ खड़े हो गये...बारहा..!

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  2. याद तेरी कभी दस्तक, कभी सरगोशी से,
    रात के पिछले पहर रोज़ जगती है हमें
    ----- शहरयार

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  3. अब पता लगा, आज यहाँ बारिश क्यों हुयी ?
    Relax.

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  4. nice read! loved reading it.

    www.xcept.blogspot.com

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  5. जज्बातों की डायरी से निकला एक पन्ना। वैसे कुछ चेहरे होते ही ऐसे है कि गाहे बगाहे याद आते है। और आँखे नम कर जाते है।

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  6. आँखों को भी लत लग जाती है कभी कभी ...पर आँखों को जो रोने की लत है उसका क्या करें ?

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  7. ऐसा ही होता है आँखें दिल का आईना होती हैं

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  8. यार पुज्जी ये आँखे हैं न दिल के मसलों को आंसू बनकर उलझा देती हैं कम्बख्त और फिर दिल की दस्ताने बयां भी होती जाती हैं

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  9. ओह आपने कितने अच्छे से दिल के जज्बातों को शब्दों में ढ़ाल दिया ...!

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  10. ज़िन्दगी ऐसी ही होती है रे पुज्जी कसम से..

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  11. हां यही सच है.

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  12. उस सांझ नई दिल्ली स्टेशन पे वो रोती रही मै मुस्कुराता रहा .... नम आखों से बिदा नहीं किया जाता, ये दादी के शब्द कानो में गूँज रहे थे..........ट्रेन चली गयी और पता नहीं कब आखों से बरसात होने लगी....पूजा जी आज उस एक सांझ की याद फिर ताज़ा हो गई........आप बहूत बदमाश हो मुझे रुला दिया.

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  13. ज़िन्दगी ऐसी ही होती है

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  14. सीधे दिल से निकली पोस्ट.............!

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  15. mujhe bhi yaad aa gaye jnv ke purane din...
    shabdon ke aaiene me ehsaason ko utarte dekha.
    bhawo ko sahi ukera hai Puja.
    likhte rahen....
    pratiksha rahti hai.

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  16. मेरे पास बयां करने के शब्द नहीं हैं.

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  17. बचपन में सुना था किशोर कुमार को ..कभी अलविदा न कहना..इसलिए कभी किसी को अलविदा कहने नहीं देता कहता हूं फिर मिलेंगे....पर वर्षों नहीं मिल पाते..होता है जिंदगी मैं पर कभी कभी आंसू आपकी बात कभी कभी ही मानते हैं.....वरना अक्सर निकल ही लेते हैं...

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  18. :) Hamare Dil ke shabdo ko likh dalte ho aap apne Man ki Kalam se.. bahut sundar :)

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  19. khulkar rone ke baad bhi lagta hai..........
    jaise royi nahin aankhein.....
    tum kaho to aaj fir rolooon......

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  20. कहते हैं जाने वालों को हँस कर विदा करते हैं क्योंकि वो चेहरा ही यादों का सबसे साफ़ चेहरा होता है। धुंधला कर भी उसके रंग फीके नहीं पड़ते।

    फिल्म लव आजकल में एक डायलोग का मतलब नहीं पा रहा था पर शायद अब स्पष्ट होने में थोड़ी सी मदद मिल जाएगी. इस लाइन को पढ़कर ये तो स्पष्ट है कि कभी ऐसे मोके पे कैसा बर्ताव रहना चाहिए.

    " जितनी बार भी मिल लो बिछुड़ने से पहले आखरी बार मिलना क्योँ जरुरी होता है"

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