कभी कभी लगता है हमसे ड्रामेबाज़ कोई और हो तो हम जानते नहीं. शाम में मूड बना...आंधी तूफ़ान की तरह घर से निकले हैं....भागते मूड को पकड़ना जरूरी था...दिल तो ये भी कर रहा था कि कोई विस्की टाइप चीज़ होता तो नीट पी जाते बोतल से ही...मगर घर पर था नहीं और दूर जा के लाने का इन्तेजाम नहीं था...मने कि बाइक चलाना अभी डॉक्टर अलाव नहीं किया है...हम उसको बोले कि हम दो बार चला लिए पिछले हफ्ते तो हमको घूरा...कि हमसे पूछने का मतलब ही क्या है जब अपने ही मन का करती हो...पर खैर दस दिन का बात है और फिर हम अपने हाथ का जो चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं...मार पिटाई...ढिशूम ढिशूम वगैरह वगैरह.तो शाम को उधर से ही डोलते डालते आये थे कि बस...आज तो जो करवा लो हमसे...बीड़ी पहले कभी खरीदी नहीं थी...पान की दूकान पर पूछे तो बोला यहाँ नहीं आगे मिलेगा...आगे मिलेगा...तीन और पान का दूकान पर पूछे तब जा के चौथे पर बोला कि हाँ है...दो पैकेट बीड़ी खरीदे...वहीं से धूंकते हुए घर आये...कान में इयरफोन लगा हुआ था फुल साउंड में...रंगरेज़ मेरे सुनते हुए आये...
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बहुत सी बीड़ी धूंकने के बाद बावले होने का मौसम आया था. लड़की ने जाने कब से शैम्पू नहीं किया था...बालों में शहर का मौसम इस कदर उलझ गया था कि बस...हर कश में मुहब्बत सा जलता था...पहली बार इश्क हुआ था तो भी ऐसा ही लगा था.
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'ये १७वीं बीड़ी है मेरी जान. कलेजा जल जाएगा', मेरे होठ चूमते हुए उसने पूछा, 'अब किससे इश्क़ हो गया है तुझे?'
'मौत से'
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घर पर खूब सारा डांस किया...खूब सारा...सर दर्द के मारे फटा जा रहा था...खुमार की तरह शब्द चढ़ रहे थे...बहुत बहुत बहुत दिनों बाद...लग रहा था मैं पूरी पूरी लिक्विड बन गयी हूँ और बस कागज़ पर उतर जाऊं किसी तरह...बीड़ी रखने को ऐशट्रे मिल नहीं रही थी...कानों में हेडफोन लगे हुए थे...बोस वाले...कि बस आगे दुनिया फिर मुझे दिखती कहाँ है. इधर बहुत सोचने लगती हूँ मैं...अच्छा बुरा...जाने क्या क्या. सही गलत. मेरे अन्दर वो जो पागल लड़की रहती थी, उसे जेल में डाल दिया था. वो मुझे पागल कर रही थी. सलीके से जीना पहले कहाँ आता था मुझे. न चीज़ों को परफेक्ट करना.
इधर लिखने की आदत छूट गयी है तो शब्द आते हैं तो उनको लिखने का डिसिप्लिन गायब था...उँगलियाँ बौरा रही थीं...और फिर ये भी लग रहा था कि शब्दों में नहीं हो पायेगा...कुछ और मीडियम चाहिए इनको. तो बस. हेडफोन ऑन था ही. लैपटॉप पर रिकॉर्ड कर दिया. ये इसलिए नहीं है कि कोई इसे पसंद करे....ये इसलिए है कि मेरे अन्दर इक लड़की रहती है...दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की. उससे मुझे बेपनाह इश्क़ है...अब ये गुनाह है तो गुनाह सही.
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तुम्हें देखना चाहिए उसे. अभी. इस लम्हे. इस शहर की किसी बालकनी से...इस बेमुरव्वत शहर की किसी खिड़की से...इस नामुराद शहर की किसी सड़क पर चलते हुए...यूँ झूमते हुए...खुद के इश्क़ में यूं डूबी हुयी कि मौत के गले पड़ जाए तो मौत पीछा छुड़ा कर भाग ले पतली गली से.
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इक दुष्ट शहजादा था...हाँ, वही...जिसने लड़की का दिल चुरा लिया था...इस बार वो उसकी नीली स्याही की दवात लिए भागा है...बताओ, शोभा देता है उसको...शहजादा होकर भी ऐसी हरकतें...उफ़...आपको कहीं मिले तो समझाना उसे...ठीक?









