19 July, 2015

Dark as my soul

कह कर जाना नहीं होता. कहने का अर्थ होता है रोक लिया जाना. बहला लिया जाना. समझा दिया जाना. सवालों में बाँध दिया जाना. कन्फर्म नहीं तो कन्फ्यूज कर दिया जाना. जब तक हो रही है बात कोई नहीं जाता है कहीं. यहाँ तक कि ये कहना कि 'मैं मर जाउंगी' इस बात का सूचक है कि कुछ है जो अभी भी उसे रोके रखता है. उसे उम्मीद है कि कोई रोक लेगा उसे. कोई फुसला देगा. कोई कह देगा कोई झूठ. कि रुक जाओ मेरे लिए.

जाना होता है चुपचाप. अपनी आहट तक समेटे हुए. किसी को चुप नींद में सोता छोड़ कर. जाना होता है समझना सिद्धार्थ के मन के कोलाहल को. जाना होता है खुद के अंधेरों में गहरे डूबते जाना और नहीं पाना रोशनी की लकीर को. मुझे आजकल क्यूँ समझ आने लगा है उसका का चुप्पे उठ कर जाना. वे कौन से अँधेरे थे गौतम. वह कौन सा दुःख था. मुझे क्यूँ समझ आने लगा है उसका यूँ चले जाना. मुझे रात का वो शांत पहर क्यूँ दिखता है जब पूरा महल शांत सोया हुआ था. रेशम की चादरें होंगी. दिये का मद्धम प्रकाश होगा. उसने जाते वक़्त यशोधरा को देखा होगा? सोती हुयी यशोधरा के चेहरे पर कैसा भाव होगा? क्या उसे जरा भी आहट नहीं महसूस हुयी होगी? वो कौन से अँधेरे थे. वो कौन से अँधेरे थे. मुझे बताओ.

क्यूँ याद आने लगे हैं थाईलैंड के सोये हुए बुद्ध. स्वर्ण प्रतिमाएं. साठ फीट लम्बी. पैरों के पास से देखो तो चेहरे की मुस्कान नहीं दिखती. इन फैक्ट लोगों को बुद्ध के चेहरे पर जो शांति दिखती है वो मुझे कभी नहीं दिखी. उन्हें उनके सवालों का जवाब मिल गया था. कोई मध्यमार्ग था. उन्होंने कभी अपने बेटे को गोद में लेकर चूमा होगा? किसी लम्हे उनमें पितृभाव जागा होगा? मध्य मार्ग. बुद्धं शरणम गच्छामि. धम्मम शरणम गच्छामि. वाकई. कोई मध्य मार्ग होता है. उसमें तकलीफ कम होती है? वहां रौशनी होती है? या कि हम सबको अपना बोधि वृक्ष स्वयं तलाशना होता है?

मैं आजकल वही ढूंढ रही हूँ. अपना बोधि वृक्ष. अपना धर्म. जिसमें मेरी आस्था हो. आस्था. मैं आजकल खुद से अजीब सवाल करने लगी हूँ. मैं अर्थ ढूँढने लगी हूँ. जीवन का क्या अर्थ है. कोई खूबसूरत चीज़ जब मन में ऐसे गहरे भाव उत्पन्न करती है कि मैं समझने और खुद को व्यक्त करने में अक्षम पाती हूँ तो सवाल वही होता है. इसका क्या अर्थ है. गहरे. और गहरे. चीज़ों को सिर्फ ऊपर ऊपर देख कर संतोष नहीं होता. मुझे जानना होता है कि इनके पीछे कोई गूढ़ मतलब होता है. कुछ ऐसा जो मेरी पकड़ में नहीं आ रहा. रोज की यही जिंदगी. लिखना. पढ़ना. बहस करना. इसके अलावा भी कुछ होना चाहिए जीवन का मकसद. सिर्फ आसमान और सूरज के बारे में लिख कर क्या हासिल होगा. हासिल. हासिल क्या है जिंदगी का. हम जो इतने लोगों से बात करते हैं. मिलते हैं. सब क्या कोई फिल्म है जिसके एंड में सब कुछ सॉर्टेड हो जाएगा. इक लोजिकल एंड होगा. सब चीज़ें अपनी अपनी जगह होंगी. वहां जहाँ उन्हें होना चाहिए. ये मेरा मन शांत क्यूँ नहीं होता.

मुझे समझ में आता है कि ऐसी किसी तलाश के लिए अकेले जाना होता है. मैं जो इतने शोर में चुप होती जा रही हूँ. ये दिखता नहीं है किसी को. मैं डिटैच होती जा रही हूँ. सबके बीच होते हुए भी कहीं और हूँ. ये कौन से पाप हैं. What sins. जिनका प्रायश्चित्त इस जन्म में नहीं हो सकता. कोई मन्त्र होता है? कोई नदी कि जिसका पानी इतना शुद्ध के मन के सारे विकार दूर कर सके. मैं शुद्ध होना चाहती हूँ. मन. प्राण. आत्मा से शुद्ध. मैं एक नया जीवन चाहती हूँ. stripped clean. absolved. forgiven. 

स्वयं से इतनी घृणा कर के जिंदगी जी नहीं जा सकती. ये इक झूठ कहते हैं हम खुद से कि हम बदल सकते हैं खुद को. कुछ नहीं बदलता. हमारा स्वाभाव. हमारे रिएक्शन्स. हमारा इंस्टिंक्ट. मगर फिर मैं ये भी तो सोचती हूँ कि गुलामी खुद की करनी कौन सी अच्छी बात है. और नामुमकिन पर तो मेरा विश्वास नहीं है. इन विरोधाभासों में कैसे जियेंगे जिंदगी. और लोग भी परेशान होते होंगे इतना सोच सोच कर? मुझे आजकल अपनी कोई बात पसंद नहीं आती. अपनी कोई आदत नहीं. इतना सारा अँधेरा है खुद के अन्दर कि मुझे समझ नहीं आता कहाँ से लाऊं चकमक पत्थर और चिंगारी तलाशूँ कोई. मुझे सब लोग खुद से अच्छे दिखते हैं. इक वक़्त आई वाज कम्फर्टेबल विथ नॉट बीईंग गुड. कि सब लोग दुनिया में अच्छे ही हो जायेंगे तो दुनिया कैसे चलेगी. मगर कभी कभी लगता है कि नहीं हो पायेगा. इक सीधी सिंपल जिंदगी क्या बुरी है. ये अँधेरे के दानव मैंने ही पाल रखे हैं अपने अन्दर. शायद इन्हें मुक्त करने का वक़्त आ गया है. 

It's difficult to live with a shattered soul. A bruised heart. A broken thought-process. Every thing is a dead end. After one point, there is no healing. I have bandaged myself so well. I'll slowly disintegrate.

मैं किसी अँधेरी गुफा के डेड एंड पर खड़ी हूँ. मुझे आगे का रास्ता समझ नहीं आता. पीछे लौटने का कोई रास्ता भी नहीं दिखता. मुझे आजकल बहुत से भयानक ख्याल आते हैं. नस काट के मर जाने वाले. कांच से उँगलियाँ काट कर खून रिसता देखने वाले. खून की गंध. मदोन्मत्त करने वाली. जैसे गांजे की गंध होती है. एक बार उस गंध को आप पहचान गए तो उसकी इक फीकी धुएं की लकीर भी आपको दिखने लगेगी. दुःख का ऐसा ही नशा होता है. मर जाने की ऐसी ही कुलबुलाहट. आकुलता. हड़बड़ी. धतूरा. आक के फूल. शिव. तांडव.

प्रेम. विश्वास. जीवन.
सब. टूट चुका है. मेरे ह्रदय की तरह.

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