भरी दोपहर का दुःख, दुःख नहीं अवसाद की गीली परछाई है. सूरज को रोके गए बादल से लड़ झगड़ कर आती कुचली हुयी धूप है...पड़ोसी की घर की छत पर भटकता कोई बौराया बच्चा है...भरी दोपहर का दुःख बचपन में काटी पतंग है...बिजली के तारों में उलझी हुयी.
नहीं लिखना जिद है. खुद को मार डालने की साजिश है. धीमा जहर है. नहीं लिखना डिनायल का आखिरी छोर है. दुनिया को नकार देने का पहला पॉइंट है. क्यूंकि लिखना हमें बचा ले जाता है...मौत से एक सांस की दूरी से भी.
मैं कब्रिस्तान गयी थी. अकेले. बस बताना चाहती थी तुम्हें.
मुझे खतों के जवाब लिखने नहीं आते. क्यूंकि कभी किसी ने मुझे ख़त लिखे ही नहीं. कभी भी नहीं. मुझे याद नहीं कि मैंने कभी भी भूरे लिफ़ाफ़े में ख़त भेजें हों. तुम्हें याद हो तो बताना. इकतरफे ख़त और इकतरफे इश्क़ में कितना अंतर होता है?
हम दोनों के बीच इक इंस्ट्रुमेंटल पीस था. रात के क़त्ल की तैय्यारी में वायलिन की स्ट्रिंग्स कसता हुआ. मैं इक मासूम सी शाम इस टुकड़े को सुन रही थी...बेख्याली में. ड्रम बीट्स का प्रील्यूड 'इन द मूड फॉर लव' का था...दो बीट्स सुन कर ही आँखों में वो अँधेरी सुरंग जैसी सीढ़ियाँ कौंध गयी थीं...लैम्प की रोशनी पर सिगरेट के धुएं के घने बादल और तुम्हारी उँगलियों की याद एक साथ आई थी...बीट्स के ठीक बाद वायलिन शुरू होता था...इस टुकड़े में भी हुआ...मगर ये वो धुन नहीं थी जिसने कई रातों में मेरा क़त्ल किया था...ये कोई दूसरी धुन थी...वायलिन था...मगर धुन दूसरी थी. इसे सुनना इक लॉन्ग शॉट में महबूब को देखना था...और क्लोज अप आते ही वो मेरे पास आने की जगह दायीं ओर मुड़ गया. ये टुकड़ा बेवफाई के स्वाद जैसा था. ड्रम बीट्स सेम मगर वायलिन ठीक वहीं से कोई और राह चली जाती थी. ये चोट बहुत गहरी थी. तीखी. और बेरहम. पहली धुन के क़त्ल का अंदाज़ बहुत नरमाहट लिए हुए था. नींद की गोलियां खा के मरने जैसा. यह दुनाली की गोली की तरह थी...सीने में धांय. बहुत बहुत तेज़ आवाज़. क्या तुम महसूस पा रहे हो कि मुझे कैसा लगा था?
मेरी कहानियों के शहर में सितम के मौसम आये हैं...सितम-बर...तुम्हारी ही तरह हैं कुछ कुछ. लिली की पहली पंखुड़ी चिटक रही है. जल्द ही खुशबुओं से सारा शहर भर जाएगा. मैं चाहे जिस भी स्याही से लिखूँ मुझे धूप बुनना नहीं आता. भरी दोपहर का दुःख इक सिगरेट की तलब है जिसके तीन कश मार कर मैं तुम्हारी ओर बढ़ा सकूं. तुम्हारी उँगलियों में उलझ जाए मेरी कलम. कोई बादल हटे और मैं देखूँ फिरोजी धूप में तुम्हारी आँखों का रंग. हिज्र. कुफ्र. मौत.
भरी दोपहर का दुःख दिल में उगता शीशम का पेड़ नहीं, दीवारों पर लगी गहरी हरी काई है. पसंदीदा कलम से लिखते हुए देखना है कि स्याही का रंग फिरोजी से बदल कर गहरा हरा हुआ जा रहा है. किसी की सफ़ेद उँगलियों में पहनी हुयी फिरोज़े की अंगूठी है. परायेपन को बसने देना है अपने दिल के भीतर...गहरी काई लगी दीवारों के सींखचों में फिसलते हुए तोड़ लेना है हाथ की हड्डी और देखना है खरोंचों को अपनी बाइक की बॉडी पर.
टचस्क्रीन फोन बन जाता है इक ग्लास की पेट्रिडिश जिसमें सतह तक कंसन्ट्रेटेड सल्फ्युरिक एसिड भरा हुआ है. मैं कैसे डायल करूँ कोई सा भी नंबर. तुम्हारी आवाज़ से रिश्ता बुनने के पहले बनाना होगा अपनी उँगलियों को कांच का...खुली खिड़की से दिखता है आसमान...रिफ्लेक्ट होता है तो हार्मलेस दिखता है, तुम्हारी तरह...तुम्हें मालूम है कंसन्ट्रेटेड सल्फ्युरिक एसिड कितना गाढ़ा होता है? मैंने छुआ है स्क्रीन को...धीमे धीमे मैं पूरी घुल गयी हूँ...सिर्फ प्लेटिनम की अंगूठी रह गयी है...प्लैटिनम इज रेसिस्टेंट टू एसिड. इतना तो तुमने पढ़ा होगा. हाँ याद तुम्हें है या नहीं मालूम नहीं. प्लैटिनम. या कि मैं ही.
खानाबदोशी चुनने वाले भी उदास हो सकते हैं. उनके पास कोई पता नहीं होता जहाँ लिखे जा सकें ख़त और उन्हें बुला लिया जा सके वापस...किसी ऐसी ज़मीन पर जिस पर घर बनाया जा सकता हो. जिन्हें लौट कर कहीं जाना नहीं होता है वे ही किसी गुफा में गहरे उतरते जा सकते हैं...किसी दूसरे मुहाने की खोज में...उन्हें डर नहीं होता कि अगर दूसरा मुहाना न हुआ तो? मगर क्या वाकई? Aren't we all waiting to be rescued? कोई हमें यहाँ से लौटा ले जाए...जबरन...फिर हम ज़िन्दगी भर खुद को बचा लिए जाने का मातम मनाते रहें.
मैं कब्रिस्तान गयी थी. अकेले. बस बताना चाहती थी तुम्हें.
मुझे खतों के जवाब लिखने नहीं आते. क्यूंकि कभी किसी ने मुझे ख़त लिखे ही नहीं. कभी भी नहीं. मुझे याद नहीं कि मैंने कभी भी भूरे लिफ़ाफ़े में ख़त भेजें हों. तुम्हें याद हो तो बताना. इकतरफे ख़त और इकतरफे इश्क़ में कितना अंतर होता है?
मेरी कहानियों के शहर में सितम के मौसम आये हैं...सितम-बर...तुम्हारी ही तरह हैं कुछ कुछ. लिली की पहली पंखुड़ी चिटक रही है. जल्द ही खुशबुओं से सारा शहर भर जाएगा. मैं चाहे जिस भी स्याही से लिखूँ मुझे धूप बुनना नहीं आता. भरी दोपहर का दुःख इक सिगरेट की तलब है जिसके तीन कश मार कर मैं तुम्हारी ओर बढ़ा सकूं. तुम्हारी उँगलियों में उलझ जाए मेरी कलम. कोई बादल हटे और मैं देखूँ फिरोजी धूप में तुम्हारी आँखों का रंग. हिज्र. कुफ्र. मौत.
Abel Korzeniowski- Satin Birds- 01:48
बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteप्रशंसनीय
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