सितारों से आगे जहाँ और भी हैंअभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं ।
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नये साल में उम्मीदों की एक सुबह...
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नए साल में हम कैम्पिंग करने एक नदी किनारे गए थे. छोटे छोटे टेंट्स और खाने पीने का थोड़ा सामान.
शहर को पीछे छोड़ते हुए गाँव शुरू हो चुके थे...गाँव की भी आखिरी सीमा से एक पगडण्डी शुरू होती थी...उधर से आगे बढ़ते हुए दो छोटी पहाड़ियों के ऊपर कोई किलोमीटर से ऊपर का सफ़र था.
जब हम घाटी में पहुँचते तो जैसे पूरी दुनिया पीछे छोड़ आये थे. साथ थे ९ लोग...कुणाल और मैं, मोहित-नीतिका, कुंदन, चन्दन, साकिब और रमन और दिनेश.
कहीं से कोई शोर नहीं...कहीं एक इंसान नहीं दूर दूर तक...नए साल का कोई हल्ला नहीं, कोई फ़िक्र नहीं मुझे ऐसा ही शांत नया साल चाहिए था. एक बार नए साल में ताज गए थे...वहां डांस फ्लोर पर किसी ने हमारी दोस्त के साथ बदतमीजी की, एक बार नहीं कई बार...और ताज वालों ने उसे होटल से बाहर तक नहीं निकाला. हमें कम से कम ताज से ऐसी उम्मीद नहीं थी. लगा कि कम से वहां तो सेफ्टी होगी. उसके बाद कभी नया साल मनाने का उत्साह ही नहीं रहा. बाहर जाकर पार्टी और हल्ला करने की अब मेरी उम्र नहीं रही. मुझे अब बहुत शोर शराबा और नौटंकी करना अच्छा नहीं लगता है.
३१ की सुबह घर में दो रोटियां बनाने के बाद गैस ख़त्म हो गयी थी...सुबह से भूखे ही थे. दिन में ऑफिस का ये हाल था कि दस मिनट निकाल कर बगल की दूकान से एक पैकेट चिप्स ला के खाने की फुर्सत नहीं थी. सुबह से एक सेब खाया था बस. ढाई बजे बैंगलोर से निकले...और इस बार कार मैं ड्राइव कर रही थी. हमें पहुँचते पहुँचते पांच बज गए थे. भूख के मारे बुरा हाल था...फिर गरम गरम पकोड़े मिले खाने को...जान में जान आई. आलू और मिर्च के पकोड़े. हैंगोवर से बचने के नुस्खों में एक था...पहले कोई तली हुयी चीज़ खा लो...
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| कुंदन, कुणाल और चन्दन |
रात को थोड़ा डांस थोड़ा गाना...थोड़ा चिल्लाना...थोड़ा थोड़ा करके सब बहुत हो गया. सुबह ६ बजे नेचर वाक पर जाना था. मोहित का हल्ला कि मैं सबको उठा दूंगा...चार बजे सो कर ६ बजे तो सब उठने से रहे लेकिन हल्ला करने में सब रेडी...
सात बजे मेरी नींद खुली तो बाकी किसी टेंट में कोई हलचल नहीं दिख रही थी. सुबह का समय, सब एकदम शांत था. कैमरा, अपनी नोटबुक, पेन तीनो उठा कर वहीं नदी किनारे चली गयी. सूरज का रंग फीका था और नदी का पानी रूपहला. हर साल की शुरूआती आदत...डायरी लिखना. सो कुछ तसवीरें खींचीं, एक आध गिलास पानी टिकाया और फिर जैसे धूप गरमाती गयी खुद के साथ थोड़ा वक़्त बिताया. नेरुदा की किताब ट्वेंटी पोयम्स ऑफ़ लव एंड अ सोंग ऑफ़ डिस्पेयर नयी डिलीवर हुयी थी फ्लिप्कार्ट से. कुछ कवितायें पढ़ीं. कोई अख़बार नहीं...कोई मेल नहीं...कोई एसएमएस नहीं. कभी कभी जीने के लिए दुनिया से कटना भी जरूरी होता है. सुबह की कॉफ़ी तैयार हो रही थी. नौ बजते बजते बाकी लोग उठे.
घर पर आराम करने के मूड में आये कि पेट में दर्द शुरू. मुझे शिमला मिर्च से अलर्जी है...हमेशा प्रॉब्लम नहीं होती...पर जब होती है जान चली जाती है. और दर्द कभी दिन में शुरू नहीं होता...रात में होता है कि हॉस्पिटल में भी इमरजेंसी में जाना पड़े. कल भी आसार बुरे दिख रहे थे. दर्द के मारे जान जा रही थी उसपर डि-हाईड्रेशन. पता नहीं कितना तो ओआरएस पिया और कोई तो टैबलेट खायी. अभी सुबह उठी हूँ तो लगता है पुर्जा पुर्जा दर्द कर रहा है. बुखार बुखार सा लग रहा है...ऑफिस में इनफाईनाईट काम है...गैस ख़त्म है सो उसका इन्तेजाम करना है...कुणाल की मौसी-मौसाजी और बच्चे आये हैं तो रात का कुछ अच्छा खाना बनाना है. बाप रे! दिन बहुत लम्बा लग रहा है और चलने की हिम्मत नहीं. कल रात दोनों बच्चों को माइक्रोवेव में मैगी बना कर खिलाये थे. आज पता नहीं नाश्ता का क्या करेंगे. दस बजे टाइप्स गैस एजेंसी खुलेगी. बाबा रे...पैक्ड डे अहेड!
१३ मेरा लक्की नंबर है. देखे ये साल क्या रंग दिखाता है...नए साल में नयी उम्मीदें...नए सपने...आप सबको भी हैप्पी न्यू इयर.





