30 November, 2012

लव पैरालल्स ऑन ए ट्रैम्पोलीन

कल की शूट पर एक ट्रैम्पोलीन का इन्तेजाम था...एक वृताकार स्टील का फ्रेम होता है जिसपर एक बेहद हाई-टेंशन झेल सकने वाला ख़ास तरह का कपड़ा बंधा होता है. दोपहर को ट्रैम्पोलीन सेट अप हुआ...अब लोगों को बताना था की भैय्या आपको इस चीज़ पर कूदना है...और हम चूँकि ऐसा कोई काम लोगों को करने नहीं बोलते जो हमने खुद पहले कभी नहीं किया हो तो तुर्रम खान बनके पहले खुद चढ़ लिए ट्रैम्पोलीन  पर. इंस्टिंक्ट है कि जब पैर जमीन से हटते हैं तो इंसान को डर लगता है...चाहे हवा में उड़ना हो चाहे पानी में तैरना हो. ट्रैम्पोलीन जम्प करने का तरीका ये है कि दोनों पंजों को एक साथ रखें और बीच में जम्प करें...छोटे छोटे जम्प लेने से, जैसा कि वेव में होता है या झूले की पींगों में...एम्पलीट्यूड बढ़ता जाता है.

तो कूदना तो बहुत आसान था...फिर डायरेक्टर ने कहा...हाँ अब...लुक एट द कैमरा...एंड स्माइल...तो एक तो पहली बार जम्प करते हुए दिशा पता नहीं चलती है...आसमान में ऊपर जा तो रहे हैं मगर किधर...उसपर नीचे गिरेंगे किधर वो पता नहीं है...उसके ऊपर लुक एट द कैमरा...बाबा रे! और उसपर स्माइल...हे भगवान! मुस्कुराना कभी इतना मुश्किल नहीं लगा था. पहली बार थोड़ा समझ में आया कि जब हम किसी चीज़ पर ध्यान केन्द्रित कर रहे होते हैं तो चेहरे पर एकाग्रता का भाव होता है...उसमें मुस्कुराना एक काम होता है...पार्ट ऑफ़ दा प्रोसेस. नारद जी कैसे एक लोटा दूध त्रिलोक में लेकर घूमते हुए नारायण नारायण जपना भूल गए थे...बेचारे नारद जी  का सारा ध्यान दूध को गिरने से बचाने में लगा था.

खैर...पहली बार के हिसाब से बहुत ही लाजवाब काम किये हम. दूसरी बार जब ट्रैम्पोलीन सेट हुआ तो हम तैयार होकर एकदम ड्यूड बन गए थे. हमारे साथ एक बन्दा था जो हवा में कूदते हुए पलटी मार सकता था...हमने ऐसी कलाबाजी पहले तो नहीं देखी थी. जब वो नीचे उतरा तो पहला वाक्य यही आया...यु डोंट हैव फीयर इन योर हार्ट...तुम्हारे दिल में डर नहीं है. (अनुवाद अपने खुद के लिए चिपकाया है :O वो क्या है कि कुछ वाक्य अंग्रेजी में ज्यादा अच्छे लगते हैं...और बोला भी अंग्रेजी में ही था...तो इमानदारी बरतते हुए). ट्रैम्पोलीन पर कूदना अच्छा ख़ासा थका देने वाला अनुभव होता है...सांसें तेज़ चलने लगती हैं...पसीने छूट जाते हैं.

सही तरीके से जम्प करने के लिए कुछ छोटे छोटे जम्प लेने चाहिए फिर धीरे धीरे जैसे झूले की पींगें बढ़ती हैं वैसे ही जब हवा में कुछ ज्यादा ऊंचे जा रहे हैं तब आप अपने पोज मार सकते हैं...जैसे कि हवा में दोनों पैर पूरे ऊपर मोड़ना या फिर हाथों से भरतनाट्यम की मुद्रा बनाना इत्यादि...ये सब करते हुए जरूरी है कि आप कैमरा की ओर देखें और मुस्कुराएं जरूर...तब जाके एक अच्छा शॉट आता है. कल बड़ी अच्छी धूप थी बैंगलोर में और जमीन तपी हुयी थी...उसपर कुछ देर नंगे पाँव खड़े रहे...दौड़ते भागते रहे.
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नवम्बर सनलाईट. तुम. उफ़.
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मुझे सफ़र करते हुए और काम करते हुए बहुत भूख लगती है...तो मैं खाने पीने का पूरा इंतज़ाम करके चलती हूँ...चोकलेट...बिस्किट...जूस...कुछ स्नैक्स...और जाने कैसे मैंने कभी लोगों को खाने के बारे में थोड़ा सा ध्यान रखते या प्लानिंग करते नहीं देखा है. खैर...सबको मेरी तरह भूख लगती भी नहीं होगी. तो कल भी मैंने राशन पानी का इन्तेजाम कर रखा था...लेकिन मुझे ठीक मालूम नहीं था कि क्रू में लोग कितने होंगे...तो तीन बजते मेरा राशन ख़तम और मेरी भूख शुरू. तो फिर लगभग पांच बजे कैंटीन जा के कुछ कूकीज ले कर आई...किसी ने बताया था कि बिस्किट वो होते हैं जो मशीन से बनते हैं और कुकी वो होती है जो हाथ से बनती है...खैर...मुझे बहुत से लोग बहुत सा भाषण देते हैं. तो कल फिर बेचारे भूखे प्यासे लोग काफी खुश हुए...जोर्ज ने बोला...अब से पूजा को हर शूट पर ले जायेंगे (actually he said...now onwards Puja is a part of every shoot) जब आपको भूख लगी होती है तो आप अच्छी तरह से परफोर्म नहीं कर पाते हैं क्यूंकि दिमाग का एक हिस्सा हमेशा ये सोचता रहता है 'भूख लगी है'. वैसे तो ऐसे भी लोग होते हैं जो खाना पीना छोड़ कर काम करते हैं. पर मैं वैसी हूँ नहीं. मैं वैसे काम करने के पहले इन्तेजाम करके चलती हूँ.
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तुम मेरी याद  में उग आते हो.
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ट्रैम्पोलीन जम्प...प्यार के जैसे...हवा में उड़ रहे होते हैं...ऊपर जाते हुए मालूम नहीं होता कितना ऊपर जायेंगे...नीचे आते हुए मालूम नहीं होता कैसे गिरेंगे...मुंह के बल...एकदम फ़्लैट...पीठ के बल...या फिर पैरों पर तमीज से लैंड करेंगे. जरूरी ये सब होता भी नहीं है न...जरूरी होता है कि जब हम हवा में हो...उस फ्रैक्शन ऑफ़ सेकण्ड में...एक अच्छा पोज होल्ड कर सकें...जब हम प्यार में हों...उस लम्हे भर...जी सकें...मुस्कुरा सकें...बिना ये सोचे हुए कि आगे क्या होने वाला है. जरूरी है कि थोड़े बहादुर हों...कुछ गलतियाँ कर सकें...गिरने के डर से ऊपर उठ सकें...बिना ये सोचे हुए कि आसपास के लोग देख कर हंस रहे हैं...हम पर हंस रहे हैं...बेखबर दोनों हाथों को पूरा फैलाए हुए आसमान को बांहों में भर सकें...तो क्या हुआ अगर हम नीचे एकदम फ़्लैट-आउट होते हैं. प्यार हमें थोड़ा बेवक़ूफ़ होने की इजाजत देता है...कभी कभी मुझे लगता है कि हमें प्यार होता ही इसलिए है कि हम डर से निकल सकें...उसके सामने कुछ भी कह सकें...बिना ये सोचे हुए कि वो मुझे एकदम ही पागल समझेगा...इत्यादि.
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तुम मुझे बहुत रुलाते हो
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प्यार ये तो नहीं होता कि सिर्फ उस लम्हे आपसे प्यार होगा...प्यार तब भी होगा जब आप गिरेंगे...चोट आई होगी...तब उठाने समझाने प्यार ही तो आता है. प्यार ये कि कह सकें...जो दिल करे...कर सकें दुनिया भर का झगड़ा...हो सकें वो जो होने में डरते हैं. प्यार में डर नहीं होता. बेवकूफी में भी डर नहीं होता. तो अगर A=B and B=C, तो A=C तो माने...प्यार यानी बेवकूफी?

ये हर इक्वेशन में प्यार कमबख्त कहाँ से एंट्री मार जाता है...सोच रही हूँ प्यार वाले पैराग्रफ्स को डिलीट मार दें...लेकिन फिर जाने दो...इतना एडिटिंग करने का सरदर्द कौन ले. दो दिन से इनफाईनाईट काम है...दिन भर दौड़...भाग...उसपर ये सैटरडे वर्किंग. उफ़...वर्ल्ड इज नोट फेयर. हम सोच रहे हैं...कि इतना सोचना कोई अच्छी बात नहीं है...अपनी फिल्म लिखते हैं...सारे टाइम दिमाग में कोई और फिल्म चलती रही...कुछ लोग, थोड़ी लाइटिंग...थोड़ा म्यूजिक... ओ तेरे की! ये तो पैरलल सिनेमा हो गया!!

दो दिन में इतने लोगों से मिली कि सर घूम रहा है...कितने लोगों से बात की...कितनों को मस्का लगाया कितनों को बुद्धू बनाया...बहला के फुसला के पुचकार के रिकोर्डिंग के लिए तैयार किया...गज़ब किया! अपनी पीठ ठोके दे रहे हैं. मैं कहाँ डेस्क जॉब में फंसी हूँ...मुझे ऐसे ही काम में मज़ा आता है...किसी रिकोर्डिंग स्टूडियो में होना चाहिए. रुको...एक आध फिल्म बनाते हैं फिर...जैसे कल जोर्ज नेहा के बारे में बोला...कि अब वो किसी भी रिकोर्डिंग स्टूडियो में जाने के लिए रेडी है. वापसी की लॉन्ग ड्राइव थी...अकेले...पसंदीदा म्यूजिक के साथ...बहुत सारा कुछ सोचने का वक़्त मिल गया.
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मैं ये सब क्यूँ लिख रही हूँ...रिकोर्ड के लिए...कल को खुद ही सेंटी होकर सोचते हैं कि खाली डार्क लिखते हैं...तो आज थोड़ी धूप सही. सुबह हुयी...सात-साढ़े सात टाईप...धूप में खड़े हैं...चेहरा गर्म हो रहा है. सोच रहे हैं. जिंदगी बड़ी खूबसूरत है. 

9 comments:

  1. bina pankh ke udne kaa ehsaas hota hai puja

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  2. धूप भी है, हवा भी और उछाह भी...मुस्कराना तो बनता है...

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  3. puja nice post , love this , bahut anand aaya pdhne me , waah yah bhi ek maja hai :) unda bhi accha hai

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  4. are shabd jinpe meherbaan ho wo kuch bhi likhe mazaa aata hai padhne mein.

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (1-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  6. Oye! Mere jaisi ladki!!! Guess karo abhi kya kar rahe hain? Press mein baithkar akhbaar chapwa rahe hain - newspaper production, aur raat ke... Wait... Subah ke 3.10 ho rahe hain.Feelings kuch aisi hi hain - gaddmadd. Paglaye huye hain isliye phone par tumhara blog padh rahe hain. Imagine!!!

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  7. अनु जी ने "Oye... Mere jaisi ladki!" वाक्य को ब्रैकेट कि तरह प्रयोग किया लगता है. ब्रैकेट शुरू, फिर काम की बातें, फिर ब्रैकेट बंद. :)

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