लड़का बिखेरते चलता...धूप, हवा, खुशबू...लड़की समेटते चलती उसके पीछे, धानी दुपट्टा, दूब और पगडंडियाँ...लड़का उँगलियों से खड़े कर देता पहाड़...लड़की उनमें खींचती नदियाँ...लड़का बनाता रात का गहरा काला आकाश...लड़की उसमें उकेर देती बिजलियों की अल्पना...लड़का चलता चुप-चुप-चुप...लड़की चलती गुन-गुन-गुन. लड़का रचता जेठ का महीना...लड़की रचती बारिशें.
फिर एक दिन दोनों बिछड़ गए...फिर लड़के ने बनाया आँसू तो लड़की ने घोल दिया उसमें नमक...लड़के को नमक की तासीर कहाँ मालूम थी...उसने आँसू से नमक निकालने को बनाए समंदर तो लड़की ने बनाए नमक पत्थर के अभेद्य किले...कि लड़का बनता था पानी तो लड़की होती थी चट्टान...कि लड़का लगाता था आग तो लड़की बनती थी हवा...कि उनमें जो भी एक जैसा था वो टूटने लगा था.
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टूटने के यही दिन थे कि जब दुनिया में कुछ का भी नाम नहीं था...सिर्फ स्वर थे...संगीत के स्वर...षडज, रिषभ, गन्धर्व, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद...लड़की उसका नाम ढूंढ रही थी...कोमल सुर या तीव्र...मगर धीरे धीरे उसकी स्वर पहचानने की क्षमता घटती जा रही थी...एक एक करके उसके जीवन से सारे सुर लोप होते जा रहे थे...सबसे पहले गंभीर और अनुभवी षडज कहीं दूर चला गया. लड़की ने खुद को समझाया कि उसकी उम्र हुयी...कौन जाने किसी दिन अलंकार के जंगल में रास्ता भटक गया और भूखा कोई ताल उसे खा गया हो. फिर एक दिन रिषभ भी ज़ख़्मी हालत में वीणा के नाद में गुम हो गया...अब लड़की को गन्धर्व की चिंता शुरू हुई...वो कहाँ गुम होयेगा? कैसे जाएगा? गन्धर्व उसका पसंदीदा सुर था...कोमल 'ग' और शुद्ध 'ग'. दोनों उसके बचपन के दोस्त थे...जुड़वां भाई जो कुछ कुछ एक जैसे थे. फिर एक दिन एक सन्नाटे का अंधड़ चला और लड़की के हाथ से दोनों गन्धर्व छूट गए...लड़की बहुत रोई...बहुत रोई. फिर उसने बाकी बचे सुरों को समेटा और उनसे एक राग बनाया...अपूर्ण...षडज के बिना शुरुआत नहीं होती थी.
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लड़की चुप होती गयी...मध्यम ने बहुत दिन कोशिश की...वो समझाता कि एकदम चुप न रहे...कभी कभार कुछ तो कहे...कि वो समझता था कि लड़की का चुप रहने का मन करता है...फिर भी कभी कभार कुछ कहना जरूरी होता है. पंचम, धैवत और निषाद बहुत कोशिश करते थे कि कोई राग बना सकें कि लड़की का फिर से गाने का मन करे मगर लड़की एकदम चुप हो गयी थी. ऐसी कि तार सप्तक का षड्ज जब मिला तो उसे पहचान भी नहीं पाया.
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मगर उन्हें मिलना था तो वे फिर मिले...लड़के का अब तक कोई नाम नहीं था...युंकी देखा जाए तो लड़की का भी कोई नाम नहीं था...पर उसे नाम की जरूरत नहीं थी कि लड़का कभी उसे पुकारता नहीं था वो खुद उसकी परछाई की ऊँगली पकड़ कर उसके पीछे चला करती थी...कभी कभार लड़का ज्यादा तेज़ चलने लगता था तो लड़की को उसे बुलाना पड़ता था...इसलिए उसे एक नाम चाहिए था...लड़की ने सप्तक तोड़े...फिर से उसे अपने दोनों नन्हे, भटके, खोये हुए गन्धर्वों की याद आई...उसे याद आई वीणा...जंगल का अँधेरा.
लेकिन लड़के को ठहरना नहीं आता था...वो फिर चल पड़ा...लड़की की आँखों में बहुत अँधेरा था इसलिए उसने रचा सूरज...लड़की के होठों पर बहुत उदासी थी इसलिए उसने रची गुदगुदी...लड़की के दिल को चोट लग गयी थी इसलिए उसने रचा इश्क.
बस...यहीं गलती हो गयी लड़के से...इश्क एकदम अपनी किस्म का मनचला था...जिद्दी...बद्दिमाग...और उसकी संगत में लड़की भी कुछ कुछ अलग ही होने लगी थी...पहले से ही वो बावरी थी...इश्क से मिलने के बाद तो उसके मूड का कोई ठिकाना ही नहीं रहता...लड़का परेशान रहने लगा था. उसे लड़की की बहुत फ़िक्र होती थी...वो खुद से रास्ते नहीं तलाश सकती थी. हर बार लड़का उसे ढूंढ के लाता...वो हर बार टूटी और सुबकती हुयी मिलती थी.
लेकिन लड़की अपनी तरह की जिद्दी थी...लड़का अपनी तरह का...लड़के ने बनायी डार्क चोकलेट और लड़की ने बनायी सिल्वर रैपर...लड़के ने उड़ायी केसर की गंध तो लड़की ने बनायी चावल की खीर...लड़का मुस्कुराया तो लड़की शरमाई...वे साथ चलते रहे...कभी लड़का आगे हो जाता...कभी लड़की...फिर लड़की ने बनाया रूठना तो लड़के ने बनाया मनाना...फिर लड़के ने बनाया कमरा तो लड़की ने बनाया घर...फिर लड़के ने बनायी कतार तो लड़की ने रोपी खुशियाँ...
फिर...
फिर एक दिन दोनों बिछड़ गए...फिर लड़के ने बनाया आँसू तो लड़की ने घोल दिया उसमें नमक...लड़के को नमक की तासीर कहाँ मालूम थी...उसने आँसू से नमक निकालने को बनाए समंदर तो लड़की ने बनाए नमक पत्थर के अभेद्य किले...कि लड़का बनता था पानी तो लड़की होती थी चट्टान...कि लड़का लगाता था आग तो लड़की बनती थी हवा...कि उनमें जो भी एक जैसा था वो टूटने लगा था.
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टूटने के यही दिन थे कि जब दुनिया में कुछ का भी नाम नहीं था...सिर्फ स्वर थे...संगीत के स्वर...षडज, रिषभ, गन्धर्व, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद...लड़की उसका नाम ढूंढ रही थी...कोमल सुर या तीव्र...मगर धीरे धीरे उसकी स्वर पहचानने की क्षमता घटती जा रही थी...एक एक करके उसके जीवन से सारे सुर लोप होते जा रहे थे...सबसे पहले गंभीर और अनुभवी षडज कहीं दूर चला गया. लड़की ने खुद को समझाया कि उसकी उम्र हुयी...कौन जाने किसी दिन अलंकार के जंगल में रास्ता भटक गया और भूखा कोई ताल उसे खा गया हो. फिर एक दिन रिषभ भी ज़ख़्मी हालत में वीणा के नाद में गुम हो गया...अब लड़की को गन्धर्व की चिंता शुरू हुई...वो कहाँ गुम होयेगा? कैसे जाएगा? गन्धर्व उसका पसंदीदा सुर था...कोमल 'ग' और शुद्ध 'ग'. दोनों उसके बचपन के दोस्त थे...जुड़वां भाई जो कुछ कुछ एक जैसे थे. फिर एक दिन एक सन्नाटे का अंधड़ चला और लड़की के हाथ से दोनों गन्धर्व छूट गए...लड़की बहुत रोई...बहुत रोई. फिर उसने बाकी बचे सुरों को समेटा और उनसे एक राग बनाया...अपूर्ण...षडज के बिना शुरुआत नहीं होती थी.
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लड़की चुप होती गयी...मध्यम ने बहुत दिन कोशिश की...वो समझाता कि एकदम चुप न रहे...कभी कभार कुछ तो कहे...कि वो समझता था कि लड़की का चुप रहने का मन करता है...फिर भी कभी कभार कुछ कहना जरूरी होता है. पंचम, धैवत और निषाद बहुत कोशिश करते थे कि कोई राग बना सकें कि लड़की का फिर से गाने का मन करे मगर लड़की एकदम चुप हो गयी थी. ऐसी कि तार सप्तक का षड्ज जब मिला तो उसे पहचान भी नहीं पाया.
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मगर उन्हें मिलना था तो वे फिर मिले...लड़के का अब तक कोई नाम नहीं था...युंकी देखा जाए तो लड़की का भी कोई नाम नहीं था...पर उसे नाम की जरूरत नहीं थी कि लड़का कभी उसे पुकारता नहीं था वो खुद उसकी परछाई की ऊँगली पकड़ कर उसके पीछे चला करती थी...कभी कभार लड़का ज्यादा तेज़ चलने लगता था तो लड़की को उसे बुलाना पड़ता था...इसलिए उसे एक नाम चाहिए था...लड़की ने सप्तक तोड़े...फिर से उसे अपने दोनों नन्हे, भटके, खोये हुए गन्धर्वों की याद आई...उसे याद आई वीणा...जंगल का अँधेरा.
लेकिन लड़के को ठहरना नहीं आता था...वो फिर चल पड़ा...लड़की की आँखों में बहुत अँधेरा था इसलिए उसने रचा सूरज...लड़की के होठों पर बहुत उदासी थी इसलिए उसने रची गुदगुदी...लड़की के दिल को चोट लग गयी थी इसलिए उसने रचा इश्क.
बस...यहीं गलती हो गयी लड़के से...इश्क एकदम अपनी किस्म का मनचला था...जिद्दी...बद्दिमाग...और उसकी संगत में लड़की भी कुछ कुछ अलग ही होने लगी थी...पहले से ही वो बावरी थी...इश्क से मिलने के बाद तो उसके मूड का कोई ठिकाना ही नहीं रहता...लड़का परेशान रहने लगा था. उसे लड़की की बहुत फ़िक्र होती थी...वो खुद से रास्ते नहीं तलाश सकती थी. हर बार लड़का उसे ढूंढ के लाता...वो हर बार टूटी और सुबकती हुयी मिलती थी.
लेकिन लड़की अपनी तरह की जिद्दी थी...लड़का अपनी तरह का...लड़के ने बनायी डार्क चोकलेट और लड़की ने बनायी सिल्वर रैपर...लड़के ने उड़ायी केसर की गंध तो लड़की ने बनायी चावल की खीर...लड़का मुस्कुराया तो लड़की शरमाई...वे साथ चलते रहे...कभी लड़का आगे हो जाता...कभी लड़की...फिर लड़की ने बनाया रूठना तो लड़के ने बनाया मनाना...फिर लड़के ने बनाया कमरा तो लड़की ने बनाया घर...फिर लड़के ने बनायी कतार तो लड़की ने रोपी खुशियाँ...
फिर...
शानदार विरोधाभास को आपने शब्द दिए सुन्दर तारतम्य ..
ReplyDeleteएक स्थिर, एक गतिमान। द्वन्द्व के दो छोर, लड़का और लड़की।
ReplyDelete:-) दीवाली की शुभकामनाएँ!
ReplyDeletechaaro taraf Alankaar. gazab.
ReplyDeleteaap love story likho na, wo simile aur metaphor wali
nice..yahi hae zindgi....virodhabhas
ReplyDeleteयुंकी ये तो यही बात हो गई कि
ReplyDeleteजिन्दगी प्यारी भी नहीं और जान से जाते भी नहीं
सुन्दर विरोधी में संगीत की सी ले ..एक दुसरे के पूरक ... उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteYe to gazal ho gayi
ReplyDeleteइसे कहानी या सस्मरण के बीच की अभिव्यक्ति कहा जा सकता हैं लड़का और लड़की को अगर पुरुष और प्रकृति के आयामों में ढाल कर आप बात कहती तो यह गद्य का टुकड़ा अपने होने का अर्थ सार्थक कर पता |बहरहाल लड़का और लड़की के प्रतीकों के माध्यम से आपने स्त्री पुरुष के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला हैं वह अप्रतिम हैं
ReplyDeleteद्वैत, अद्वैत, द्वैताद्वैत.
ReplyDelete''शाख पर जब धूप आई, हाथ छूने के लिए,
ReplyDeleteछांव छम से नीचे कूदी, हंस के बोली आईये''